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यूक्रेन में अमेरिकी सैनिकों से कौन डरता है?

बाइडेन प्रशासन ने अपने अनुमान में एक भयानक गलती की, जिसमें उसने मान लिया था कि आर्थिक और अन्य प्रतिबंधों के भार से रूस की अर्थव्यवस्था का पतन हो जाएगा और युद्ध रूस में शासन परिवर्तन का कारण बनेगा।
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डोनेट्स्क में रूसी सशस्त्र बलों का एक टी-72 टैंक तैनात नज़र आ रहा है

बहुत अहानिकार ढंग से बाइडेन प्रशासन ने यह कुछ इस तरह विश्व को जताया कि अमेरिकी सैनिक वास्तव में रूस के तत्काल पड़ोस यानि यूक्रेनी धरती पर मौजूद हैं। वाशिंगटन ने एक अनाम वरिष्ठ पेंटागन अधिकारी के ज़रिए "सॉफ्ट लैंडिंग" की, जिसका खुलासा एसोसिएटेड प्रेस और वाशिंगटन पोस्ट ने किया है।

अधिकारी ने इस बारे में एक बहुत ही सरल सा स्पष्टीकरण दिया कि अमेरिकी सैनिकों ने "हाल ही में इस बात को सुनिश्चित करने के लिए ऑनसाइट जांच शुरू की" कि यूक्रेन को मिल रहे पश्चिमी हथियारों का "ठीक से खाता" रखा जा रहा है या नहीं। उन्होंने दावा किया कि यह एक व्यापक अमेरिकी अभियान का हिस्सा है, जिसकी घोषणा पिछले सप्ताह विदेश विभाग ने की थी, "जो तथ्य को जाँचने के लिए कि यूक्रेन को दिए गए हथियार परदे के पीछे से रूसी सैनिकों या अन्य चरमपंथी समूहों के हाथों में तो नहीं जा रहे हैं।"

वास्तव में, हालांकि, राष्ट्रपति बाइडेन खुद अपने उस बयान से पीछे हट गए जिसमें उन्होंने कहा था कि अमरीका किसी भी हालात में यूक्रेन की 'जमीन' पर पैर नहीं रखेगा। क्यों भला? वह इसलिए कि इस बात का असल खतरा हमेशा बना रहता है कि यूक्रेन के दौरे पर जाने वाले अमेरिकियों के समूह पर रूसी सेना की गोलीबारी हो सकती है। वास्तव में देखा जाए तो अमेरिकी तैनाती, यूक्रेन के महत्वपूर्ण ठिकानों/बुनियादी ढांचों पर वर्तमान में की जा रही तीव्र रूसी मिसाइल और ड्रोन हमलों की पृष्ठभूमि के खिलाफ जाती है।

सीधे शब्दों में कहें तो, जाने अनजाने में, अमेरिका सीढ़ी पर ऊपर की तरफ बढ़ रहा है। अब तक, अमेरिकी हस्तक्षेप का मतलब, यूक्रेनी सेना को सैन्य सलाह देना, वास्तविक समय में खुफिया जानकारी की आपूर्ति करना, रूसी सेना के खिलाफ हमलों/संचालन की योजना और उनके निष्पादन में मदद करना और अमेरिकी भाड़े के सैनिकों को युद्ध में लड़ने भेजना तथा दसियों अरबों डॉलर के हथियार की लगातार आपूर्ति शामिल है।

इसमें गुणात्मक अंतर यह है कि यह छद्म युद्ध अब नाटो और रूस के बीच एक गर्म युद्ध में बदल सकता है। रूसी रक्षा मंत्री सर्गेई शोइगु ने बुधवार को रूसी और बेलारूसी रक्षा मंत्रालयों की संयुक्त बोर्ड की बैठक में कहा कि पूर्वी और मध्य यूरोप में नाटो बलों की संख्या फरवरी से ढाई गुना बढ़ गई है और निकट भविष्य में और भी बढ़ सकती है।

शोइगू ने रेखांकित किया कि मास्को इस बात को पूरी तरह समझता है कि पश्चिम रूस की अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमता को नष्ट करने के लिए एक ठोस रणनीति का अनुसरण कर रहा है, जिससे देश के लिए एक स्वतंत्र विदेश नीति पर चलना असंभव हो गया है।

उन्होंने कहा कि नाटो की नई रणनीतिक अवधारणा इस ओर इशारा करती है कि, वह रूस को कमजोर करने के इरादे से "मोर्चे पर आगे रहकर", "पूर्वी किनारे पर सामूहिक रक्षा की एक पूरी प्रणाली" कायम करेगा, जो ब्लॉक गैर-क्षेत्रीय सदस्यों के साथ बाल्टिक देशों में सैनिकों को तैनात करने के साथ, पूर्वी और मध्य यूरोप, और बुल्गारिया, हंगरी, रोमानिया और स्लोवाकिया में नई बहुराष्ट्रीय बटालियन सामरिक समूहों का गठन करेगा।

यह कोई संयोग नहीं हो सकता है कि वाशिंगटन ने यूक्रेन में अपने सैन्य कर्मियों की उपस्थिति को ऐसे समय में स्वीकार किया, जब रूसियों ने नॉर्ड स्ट्रीम पाइपलाइनों पर हाल ही में हुई तोड़फोड़ का आरोप और शनिवार को सेवस्तोपोल में रूस के काला सागर में स्थित बेड़े पर हुए ड्रोन हमलों में ब्रिटिश खुफिया की भागीदारी का आरोप लगाया था।

ऐतिहासिक रूप से, अमेरिका और ब्रिटेन के बीच तथाकथित "विशेष संबंध" कुछ संदिग्धता भरे रहे हैं। उनके इस रिश्ते का इतिहास महत्वपूर्ण पलों में कुत्ते की पूंछ को हिलाने के उदाहरणों से भरा हुआ है। दिलचस्प बात यह है कि सेवस्तोपोल पर हमले पर मॉस्को कीव की तुलना में एमआई6 के संचालकों पर अधिक उंगली उठा रहा है।

यूएस-यूके का गणित, मूल रूप से रूसियों को यूक्रेन में एक दलदल में फंसाने और 'पुतिन के युद्ध' का विरोध कर रूस के भीतर विद्रोह को उकसाने का था। लेकिन यह विफल रहा। अमेरिका देख रहा है कि आने वाले 3-4 महीनों में युद्ध को समाप्त करने के लिए रूस एक बड़ा आक्रमण शुरू करने के लिए 300,000 से अधिक प्रशिक्षित पूर्व सैन्य कर्मियों को यूक्रेन में तैनात कर रहा है।

कहने का मतलब यह है कि यह सब झूठ और भ्रामक प्रचार पर खड़ा है जिसने यूक्रेन में  पश्चिमी नेरेटिव को सच माना। यूक्रेन में हार से न केवल यूरोप में बल्कि वैश्विक मंच पर एक महाशक्ति के रूप में अमेरिका की छवि और विश्वसनीयता के लिए विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं, और ट्रान्साटलांटिक गठबंधन का उसका नेतृत्व कमजोर हो सकता है और यहां तक कि यह नाटो को भी अक्षम कर सकता है।

मजे की बात यह है कि, हालांकि, यह वाशिंगटन में खोने का समय नहीं है क्योंकि इस मोड पर भी, मास्को वार्ता प्रक्रिया को फिर से शुरू करने के लिए कीव पर दबाव डाल रहा है। वास्तव में, मंगलवार को एक महत्वपूर्ण घटना में, यूक्रेन ने इस्तांबुल (तुर्की, रूस और संयुक्त राष्ट्र सहित) में संयुक्त समन्वय केंद्र को लिखित गारंटी दी कि कृषि उत्पादों के निर्यात के लिए नामित मानवीय गलियारों और यूक्रेनी बंदरगाह, रूसी सैन्य अभियान या हमलों का हिस्सा नहीं रहेंगे। कीव ने आश्वासन दिया है कि "समुद्री मानवीय गलियारे का इस्तेमाल केवल काला सागर पहल और संबंधित जेसीसी विनियमन के प्रावधानों के अनुसार किया जाएगा।"

पहले से ही, बाइडेन प्रशासन ने अपने अनुमान में एक भयानक गलती कर चुका है जिसमें उसने मान लिया था कि पश्चिमी आर्थिक और अन्य प्रतिबंधों के भार से रूसी अर्थव्यवस्था का पतन हो जाएगा और युद्ध रूस में एक शासन परिवर्तन का कारण बनेगा। जबकि हुआ इसके विपरीत, आईएमएफ भी मानता है कि रूसी अर्थव्यवस्था स्थिर हो गई है।

रूसी अर्थव्यवस्था के अगले साल तक विकास दर्ज करने की उम्मीद है, वह भी पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में, जो उच्च मुद्रास्फीति और मंदी में डूब रही है, जबकि रूस की तरक्की दुनिया के लिए यादगार पल होने जा रही है।

यह कहना काफी होगा, कि अमेरिका और उसके सहयोगी का रूस पर प्रतिबंध लगाने विचार गलत पड़ गया है। दूसरी ओर, रूस का नेतृत्व अमेरिका के सदियों पुराने वैश्विक प्रभुत्व को चुनौती देने वाली बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था की ओर आगे बढ़ते हुए मजबूत हो रहा है।

मूल रूप से यह पूंजीवादी व्यवस्था ही है जो इस संकट के लिए जिम्मेदार है। हम वर्तमान में द्वितीय विश्व युद्ध में हुए विश्व के पुनर्विभाजन के बाद से ज्ञात सबसे लंबे और सबसे गहरे संकट से पीड़ित हैं। साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपने संकट से बाहर निकलने की उम्मीद में दुनिया को फिर से विभाजित करने के लिए एक बार फिर युद्ध की तैयारी कर रही हैं, जैसा कि उन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध से पहले किया था।

बड़ा सवाल यह है कि रूस की प्रतिक्रिया क्या होने वाली है। यह निश्चित है कि यूक्रेन में अमेरिकी सैनिकों की उपस्थिति के संबंध में वाशिंगटन में रहस्योद्घाटन पर मास्को को आश्चर्य नहीं हुआ है। इसकी बहुत कम संभावना है कि रूस इस पर कोई घटिया प्रतिक्रिया का सहारा लेगा।

यूक्रेन का तथाकथित 'जवाबी हमला' विफल हो गया है। इसने कोई क्षेत्रीय लाभ या कोई महत्वपूर्ण सफलता नहीं हासिल किया है। लेकिन यूक्रेनी सेना को हजारों की संख्या में भारी नुकसान हुआ है और उनके सैन्य उपकरणों में घात लगी है। रूस ने बढ़त हासिल कर ली है और वह इसके प्रति सचेत है। रूस के फ्रंटलाइन पर बढ़ाने के साथ-साथ, अब यह स्पष्ट हो रहा है कि रूसी सेना लगातार इस पहल पर कब्जा कर रही है।

न तो अमेरिका और न ही उसके नाटो सहयोगी महाद्वीपीय युद्ध लड़ने की स्थिति में हैं। इसलिए, यह पूरी तरह से अमेरिकी सैनिकों पर निर्भर करेगा कि वे यूक्रेन में घूमकर  अमेरिका निर्मित हथियारों का ऑडिट करें ताकि वे खुद मुसीबत से बच सकें और अपने शरीर और आत्मा को एक साथ रख सकें। कौन जानता है, पेंटागन भी मास्को के साथ 'टकराव' को कम करने का फैसला कर ले, जैसा कि सीरिया में हुआ था!
 
यह दर्शाता है कि, रूस के गंभीर दृष्टिकोण के मुताबिक, यूक्रेनी धरती पर अमेरिकी हथियारों का ऑडिट करना कोई बुरी बात नहीं हो सकती है। इस बात का वास्तविक खतरा है कि अमेरिका द्वारा आपूर्ति किए गए हथियार यूरोप तक पहुंच सकते हैं और उस खूबसूरत मैनीक्योर बगीचे को जंगल में बदल सकते हैं (जैसे यूक्रेन या अमेरिका) - जिसे समझने के लिए हाल ही में यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख जोसेप बोरेल द्वारा इस्तेमाल किए गए आश्चर्यजनक रूपक का सहारा लिया जा सकता है।

एम॰के॰ भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रह चुके हैं। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित साक्षात्कार को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

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