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यूपी में बंद होते बूचड़खाने : केंद्र ने मांगा लिखित जवाब

बग़ैर किसी नोटिस यूपी में 6 से ज़्यादा बूचड़खाने बंद कर दिए गए जबकि ये सभी केंद्र सरकार के मानकों पर खरे उतरे थे।
Slaughterhouses
प्रतीकात्मक तस्वीर। PTI

अगर सवाल ये किया जाए कि ज़्यादा समझ रखने वाले और माहौल को बेहतरीन परखने वाले अधिकारी किसके पास हैं, केंद्र सरकार या फिर उत्तर प्रदेश सरकार के पास? जनता की समझ से तो दोनों के पास होने चाहिए क्योंकि ये हमारे ‘सरकार’ जो हैं।

मग़र हमारी ये दोनों सरकारें ख़ुद को अव्वल और दूसरे को नौसिखिया बताने में जुटी हैं। क्यों?क्योंकि इसका जवाब केंद्र सरकार की ओर से यूपी सरकार को भेजा एक लेटर ही दे रहा है। दरअसल इस लेटर के ज़रिए केंद्र सरकार ने राज्य सरकार से पूछा है - आप हमें ये बताइए कि जब हमारे अधिकारियों को उत्तर प्रदेश के स्लॉटर हाउसेज़ में कोई ख़ामी नज़र नहीं आई, वो हमारे सभी मानकों पर ख़रे उतरे, तो आपने 6 से ज़्यादा स्लॉटर हाउसेज़ को किस बिना पर बंद कर दिया? वो भी बग़ैर कोई नोटिस जारी किए। केंद्र सरकार ने लेटर के ज़रिए मुख्यमंत्री के मुख्य सचिव और प्रमुख सचिव से लिखित में जवाब मांगा है।

उत्तर प्रदेश सरकार ने क्या आधार बताकर बंद किया स्लॉटर हाउस?

केंद्र सरकार के विपरीत जाकर ये पूरी कार्रवाई प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की ओर से की गई। जिसमें इन स्लॉटर हाउसेज़ को पर्यावरण के लिए नुकसानदायक बताया गया। लेकिन बड़ी बात ये है कि जिन स्लॉटर हाउसेज़ को बंद किया गया उनमें से ज़्यादातर सालों से चल रहे हैं। जिन स्लॉटर हाउसेज़ को बंद किया गया उनमें अयोध्या से लेकर पश्चिमी यूपी के हापुड़, गाज़ियाबाद, संबल समेत कई ज़िले शामिल हैं।

यूपी से देश में सबसे ज्यादा एक्सपोर्ट होता मीट

भले ही उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बगैर किसी नोटिस मीट की कई एक्सपोर्ट यूनिट को बंद कर दिया हो लेकिन देश में सबसे ज्यादा मीट एक्सपोर्ट इसी प्रदेश से होता है। इससे राज्य और केंद्र दोनों ही सरकारों को बड़े पैमान पर राजस्व मिलता है। उसके बाद भी बिना किसी बड़े कारण यूनिट बंद कर दी जा रही थी। इसमें प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के कुछ अधिकारियों का हाथ था।

एपीडा के चेयरमैन ने लिखा पत्र

कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण(एपीडा) के चेयरमैन प्रमुख सचिव ने मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को पत्र लिखा है। अभिषेक देव की तरफ से प्रमुख सचिव मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को लिखे पत्र में कहा गया है कि किन मीट एक्सपोर्ट यूनिट को उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने बंद किया है।

इस लेटर में लिखा गया है कि बंद किए जाने से कुछ दिन पहले केंद्रीय एजेंसियों ने इनका निरीक्षण किया था। इस निरीक्षण के दौरान एक्सपोर्ट यूनिट में सभी मानक सही पाए गए थे। अब मानक पूरा होने के बाद बंद करने का कोई औचित्य नहीं है।

आपको बता दें कि पूरे देश में मीट एक्सपोर्ट की जितनी यूनिट है। उसमें 40 प्रतिशत यूनिट अकेले इसी प्रदेश में हैं। विभागीय आंकड़ों पर नजर डालें तो देश में मौजूदा समय में 71 मीट एक्सपोर्ट यूनिट है। इसमें से अकेले उत्तर प्रदेश में 31 यूनिट है। अब लंबे समय से इन यूनिटों के बंद होने से मीट के निर्यात पर असर पड़ रहा है। स्थिति यह है कि विदेश से जो ऑर्डर आते हैं उनकी सप्लाई नहीं हो रही है।

दरअसल यूनिट बंद होने से डिमांड और सप्लाई का समीकरण गड़बड़ हो गया है। इसका सीधा असर देश और देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। देशभर में मीट प्रोसेसिंग के 14 प्लांट हैं। जिसमें 9 उत्तर प्रदेश में स्थित हैं। 2022-23 में 3.194 बिलियन डॉलर का मीट उत्तर प्रदेश से एक्सपोर्ट किया गया था।

इससे पहले प्रदूषण नियंत्रण विभाग की कार्यशैली पर लगातार सवाल उठ रहे है। जिसके तहत मुख्य पर्यावरण अधिकारी विवेक राय को सस्पेंड भी कर दिया गया है। दरअसल इनके खिलाफ कई मीट यूनिट संचालकों ने शिकायत दर्ज कराई थी। मीडिया में ख़बरें तो ये भी हैं कि करीब 200 करोड़ रुपये से ज्यादा के घोटाले में इनका हाथ है। अयोध्या से लेकर संबल तक के मीट यूनिट संचालक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारियों के फैसलों पर सवाल उठा चुके हैं। इसको लेकर शिकायत भी की गई है। इसके बाद ही विवेक राय की जांच हुई तो पहली नजर में इनको दोषी मानते हुए सस्पेंड कर दिया गया है। इनके अलावा एक अन्य मुख्य पर्यावरण अधिकारी घनश्याम को भी सस्पेंड कर दिया गया है। बताया जा रहा है कि जो इनके अधिकार में नहीं था उसमें भी हस्तक्षेप कर इन लोगों ने यूनिट बंद कराने को लेकर आदेश जारी कर दिया था।

बूचड़खाने बंद होने से कौन परेशान?

भले ही राजनीतिक फायदा लेने के लिए बूचड़खाने बंद कर दिए जाएं मग़र इसका दूसरा पहलू बेहद खतरनाक है क्योंकि इसके कारण हज़ारों लोग बेरोज़गार तो होते ही हैं साथ में दूसरे कामों जैसे चमड़े का काम करने वाले लोगों को भी परेशानियों से जूझना पड़ता है। इसके अलावा किसानों को भी बहुत भारी नुकसान झेलना पड़ता है।

जैसे उत्तर प्रदेश के कानपुर को ही ले लीजिए। ये प्रदेश की आर्थिक राजधानी है। कानपुर में सबड़े बड़ा कारोबार चमड़े का होता है। चमड़े की बेल्ट से लेकर बैग और जूते कानपुर में बनते हैं। देशभर में कच्चा चमड़ा भी कानपुर से जाता है। कानपुर से हर साल करीब 12 अरब डॉलर का चमड़े का सामान विदेशों को निर्यात किया जाता है। ऐसे में आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि ये बूचड़खानों का बंद होना कितना बड़ा संकट पैदा कर सकता है।

इसके अलावा बूचड़खानों को बंद करने का फैसला सिर्फ कारोबारियों या मजदूरों को ही प्रभावित नहीं करेगा बल्कि किसानों पर भी इसका व्यापक असर पड़ेगा। 2019 के पशुधन जनसंख्या के अनुसार उत्तर प्रदेश में भैंस और गाय की तादाद में भारी इजाफा हुआ है। 2012 के मुकाबले भैंसों की संख्या में 28 फीसदी बढ़ोतरी हुई जबकि गाय की संख्या में 4.6 फीसदी इजाफा हुआ। बिना दूध वाली गाय और भैंस को पालना किसान के लिए बड़ी चुनौती होती है। आमतौर पर किसान उन्हीं मवेशियों को अपने पास रखते हैं जो या तो खेती के काम में आते हैं या जो दुधारू होते हैं। बाकी दूसरे मवेशियों को किसान बेच देते हैं। ऐसे मवेशियों को चारा खिलाना भी किसानों के लिए बड़ा संकट माना जाता है।

कुल मिलाकर ये कहना ग़लत नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश सरकार का ये फैसला जनहित में नज़र नहीं आता है। केंद्र सरकार ने जवाब मांगा है। अब देखना ये होगा कि इन स्लॉटर्स हाउसेज़ की बहाली दोबारा कब तक होती है।

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