Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

खेलों में राजनीति का घालमेल और यौन शोषण की भयानक तस्वीर

देश के अधिकांश खेल संघों की कमान या तो राजनेताओं के पास है, या फिर ताक़तवर पुरुषों के पास। ऐसे में महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा और उनकी सुनवाई की क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।
protest
फ़ोटो साभार: AP

भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर उठते सवालों और पहलवानों के प्रदर्शन ने देश ही नहीं विदेशों में काफी सुर्खियां बटोरीं। लगभग 36 दिनों तक दिल्ली के जंतर-मंतर बैठे पहलवानों का प्रदर्शन फिलहाल 15 जून तक शांत है, लेकिन ये संघर्ष अभी खत्म नहीं हुआ। हालांकि खेलों में यौन हिंसा के मामले सिर्फ कुश्ती संघ और ब्रजभूषण सिंह तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि दूसरे खेलों से भी ऐसे कई आरोप पहले भी सामने आ चके हैं।

सबसे पहले समझते हैं कि खेलों में यौन उत्पीड़न के मामले को आखिर कैसे देखा जाता है? कई लोग अभी भी इस संशय में हैं कि क्या ये मामले कार्यस्थल या वर्किंग प्लेस पर हुए उत्पीड़न के कानून यानी POSH एक्ट 2013 के अंतर्गत आते भी हैं या नहीं? तो इसका जवाब हां है, क्योंकि सेक्शुअल हैरेसमेंट ऑफ़ वूमेन एट वर्कप्लेस में खेल के कार्यस्थल, स्पोर्ट्स इंस्टीट्यूट, स्टेडियम और खेल परिसर सभी आते हैं। इसके अलावा कोई वेन्यू जो या तो आवासीय हो सकता है या जहां प्रशिक्षण होता हो या ऐसी किसी प्रकार की खेल से जुड़ी गतिविधि होती है, उन सभी को इसमें शामिल माना जाएगा।

सेक्शुअल हैरेसमेंट ऑफ़ विमेन एट वर्कप्लेस (POSH एक्ट 2013)

इस कानून के मुताबिक अगर किसी कार्यस्थल पर 10 से ज़्यादा लोग काम करते हैं, तो उसे एक आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) बनानी चाहिए। इस समिति का काम यौन उत्पीड़न की शिकायतों को सुनना और उसका निपटारा करना होता है। हालांकि नेशनल स्पोर्ट्स डेवलपमेंट कोड ऑफ़ इंडिया (एनएसएफ़) 2011 में कहा गया है कि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना एनएसएफ़ और खेल से जुड़ी संस्थाओं का काम है। साथ ही इसमें ये भी कहा गया है कि यौन उत्पीड़न की रोकथाम करना, नियमों के बारे में बताना और ऐसे मंच होने चाहिए, जहाँ महिलाएं ऐसे मुद्दों को उठा सकें।

लेकिन एक सच्चाई ये भी है कि देश के 30 राष्ट्रीय खेल संघों में से 16 ऐसे हैं जहां कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन शोषण से बचाने वाले 'यौन उत्पीड़न रोकथाम अधिनियम' के तहत अनिवार्य आंतरिक शिकायत समिति है ही नहीं और इसकी किसी को पड़ी भी नहीं है। कई बार स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ़ इंडिया ने महिला खिलाड़ियों केे प्रशिक्षण लिए मेल कोचों को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट भी बनाए, लेकिन कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि वो कभी लागू ही नहीं हो पाएं।

एक नज़र भारतीय खेल संघों में आईसीसी की स्थिति पर

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि भारतीय जिम्नास्टिक महासंघ (जीएफआई), भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआई), भारतीय हैंडबॉल महासंघ (एचएफआई), भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) और भारतीय वॉलीवॉल महासंघ (वीएफआई)- वे खेल महासंघ हैं जहां आईसीसी है ही नहीं।

भारतीय जूडो महासंघ (जेएफआई), भारतीय स्क्वैश रैकेट्स महासंघ (एसआरएफआई) और भारतीय बिलियर्ड्स एवं स्नूकर महासंघ (बीएसएफआई) में आईसीसी तो है लेकिन उसमें केवल तीन-तीन सदस्य हैं।भारतीय एमेच्योर कबड्डी महासंघ (एकेएफआई) में भी आईसीसी है और उसमें केवल दो सदस्य हैं.

भारतीय बैडमिंटन संघ (बीएआई), भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई), भारतीय बास्केटबॉल महासंघ (बीएफआई), भारतीय ट्रायथलॉन महासंघ (आईटीएफ), भारतीय यॉटिंग संघ (वाईएआई), भारतीय कयाकिंग एवं केनोइंग संघ (आईकेसीए) और भारतीय भारोत्तोलन महासंघ (डब्ल्यूएफआई) में कोई बाहरी सदस्य नहीं है। वहीं, भारतीय बॉलिंग महासंघ (बीएफआई) के पास आईसीसी या किसी भी समान तंत्र का कोई सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रिकॉर्ड नहीं है। ऐसे में ये समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं कि यहांं महिला खिलाड़ियों की स्थिति क्या होगी।

खैर, शुरुआत उन मामलों से जो बीते कुछ सालों में खेल जगत में यौन शोषण की घिनौनी सच्चाई लेकर खबरों में आए। इसमें से कुछ मामलों पर चर्चा-बहस हुई, कईयों पर कार्रवाई देखने को मिली तो कुछ जांच के लंबे भवंडर में उलझ गए, इनका बाद में क्या हुआ, यह सामने नहीं आ पाया। हालांकि विशेज्ञों की मानें, तो ये कुछ ही मामले हैं, जो सामने आ रहे हैं और जबकि बहुत सारे मामले तो सामने ही नहीं आ पाते।

इस साल मई के महीने में जिस समय राजधानी के जंतर-मंतर पर पहलवान धरने पर बैठे थे, ठीक उसी समय 18 मई, को असम के सोल गांव में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के ट्रेनिंग सेंटर में एक तैराकी कोच के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की गई। कोच मृणाल बसुमतारी पर एक महिला भारोत्तोलन कोच और कई महिला एथलीटों, जिसमें नाबालिग भी शामिल हैं उनके यौन शोषण का आरोप लगा। साई ने कोच को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और असम पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई। इस मामले में जांच अभी चल रही है।

इससे पहले मुंबई में अप्रैल के महीने में एक 56 वर्षीय बैडमिंटन कोच पर दस वर्षीय लड़की का यौन शोषण करने का आरोप लगा। शिकायत के मुताबिक़ कोच ने लड़की के साथ ड्रेसिंग रूम में अनुचित व्यवहार किया था। पुलिस ने इस मामले में कोच को गिरफ़्तार किया, लेकिन बाद में उसे मुंबई की विशेष अदालत से जमानत मिल गई। हालांकि कोर्ट ने सुनवाई के दौरान ये भी कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली सफलता आपका बचाव नहीं हो सकती।

थोड़ा और पहले मार्च में एक और शोषण की खबर सामने आई। इसमें उत्तराखंड के क्रिकेट कोच नरेंद्र शाह पर देहरादून में नाबालिग महिला खिलाड़ियों से यौन शोषण और छेड़छाड़ का आरोप लगा। खबरोंं की माने तो, इसके बाद 65 वर्षीय नरेंद्र शाह ने आत्महत्या करने की कोशिश की जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया। इस मामले में आगे क्या हुआ, इसकी फिलहाल कोई खास खबर नहीं है।

इस साल 2023 की शुरुआत में भारतीय हॉकी टीम के पूर्व कप्तान, बीजेपी नेता और हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह के ख़िलाफ़ मामले ने तूल पकड़ा। संदीप सिंह पर महिला खिलाड़ी और जूनियर कोच के यौन शोषण करने और धमकाने का आरोप लगा था। इसके बाद संदीप ने खेल मंत्रालय से तो इस्तीफा दे दिया लेकिन आज भी वो कैबिनेट मंत्री के रूप में उनका पद बरकरार है।

खेलों में यौन शोषण के मामलों की भयानक तस्वीर

यह तो हुई कुछ इस साल के प्रमुख मामलों की बातें अब अगर बीते पांच सालों की ओर देखें तो खेलों में यौन शोषण के मामलों की तस्वीर और भयानक है। और आपको याद दिला दें कि ये तब है, जब बहुत से मामले रिपोर्ट ही नहीं होते। इस संबंध में सरकारी आंकड़ों को देखें तो, 28 जुलाई 2022 को राष्ट्रीय जनता दल के राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा का राज्यसभा में पूछे सवाल का जवाब सामने आता है, जिसमें खुद केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया है कि जनवरी 2017 से जुलाई 2022 के बीच भारतीय खेल प्रतिष्ठानों में यौन उत्पीड़न के 30 शिकायतें मिली थीं, जिनमें दो शिकायतें गुमनाम थीं। मंत्रालय ने यह स्पष्ट नहीं किया कि क्या कार्रवाई हुई, लेकिन उसने दावा किया कि सभी 30 मामलों में उचित क़दम उठाए गए।

बीते साल जून 2022 में, महिला साइकिलिस्ट ने भारतीय साइकिलिंग टीम के मुख्य कोच आरके शर्मा पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था। महिला खिलाड़ी का कहना था कि शर्मा ने उन्हें पहले अपने कमरे में रहने के लिए मजबूर किया और फिर शारीरिक संबंध बनाने को लेकर नेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस से निकालने की धमकी दी। इस मामले में साई ने जांच समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद भारतीय साइकिलिंग टीम के मुख्य कोच आरके शर्मा के साथ अनुबंध रद्द कर दिया था।

इसी महीने जून 2022 में भारतीय फुटबॉल भी यौन शोषण को लेकर सुर्खियों में आया था। भारत की महिला अंडर-17 टीम के सहायक कोच एलेक्स एम्ब्रोस पर एक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने का मामला दर्ज किया गया था। इस मामले में भी एलेक्स को निलंबित कर दिया गया था। .जवाब में एलेक्स ने अपने ऊपर लगे आरोपों से इनकार करते हुए अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ को क़ानूनी नोटिस तक भेज दिया। लेकिन आगे इस मामले में क्या कार्रवाई हुई कोई खास खबर नहीं है।

चेन्नई में प्रसिद्ध एथलेटिक्स कोच पी नागराजन पर जुलाई 2021 में सात महिलाओं ने मानसिक शोषण सहित यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे। शिकायत करने वाली लड़कियों का आरोप थे कि कोच ने फिजियोथेरेपी और स्ट्रेचिंग के दौरान महिला एथलीटों को अनुचित तरीके से छुआ। इसके बाद नागराजन गिरफ़्तार हुए और उनके ख़िलाफ़ आईपीसी और पॉक्सो की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया।

फेमस खेल क्रिकेट भी यौन शोषण को लेकर जनवरी 2020 में सुर्खियों में आया। जब दिल्ली में एक क्रिकेट कोच पर नाबालिग़ महिला खिलाड़ी से छेड़छाड़ का आरोप लगा। पीड़ित लड़की ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया था। इस मामले में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था।

द इंडियन एक्सप्रेस की साल 2020 की एक इन्वेस्टिगेटिव रिपोर्ट के मुताबिक, '2010 से 2020 के बीच भारतीय खेल प्राधिकरण के पास यौन शोषण के 45 मामले दर्ज किए गए थे। उन मामलों में से 29 मामलों में खिलाड़ियों ने कोचों के ख़िलाफ़ आरोप लगाए थे। कोच के अलावा खेल संघों के प्रशासकों और अधिकारियों पर भी यौन शोषण के आरोप लग चुके हैं। भारतीय हॉकी संघ के पूर्व अध्यक्ष केपीएस गिल, बीसीसीआई के सीईओ रहे राहुल जौहरी समेत कई बड़े नाम शामिल हैं।

इसमें कोई दो राय नहीं कि लंबे समय से खेलों को राजनीति से दूर करने की मांग चली आ रही है, जिसके चलते पहले भी कई बार विरोध प्रदर्शन देखने को हैं, बावजूद इसके कई खेल संघों में बड़े पदों पर राजनेताओं या उनके परिजन का दबदबा अभी भी बरकरार है।

खेल संघों के शीर्ष पदों पर राजनेताओं का क़ब्ज़ा

कुश्ति महासंघ- बृजभूषण शरण सिंह 2011 से भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष के पद पर हैं। दबंग नेता की छवि वाले बृजभूषण 988 में बीजेपी के साथ जुड़े और 1991 में पहली बार उत्तर प्रदेश की गोंडा लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे। उसके बाद वह 5 बार और सांसद रह चुके हैं। उनके ऊपर हत्या समेत कई केस भी चल रहे हैं।

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड- केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के बेटे जय शाह BCCI के सचिव हैं, जबकि कांग्रेस सांसद राजीव शुक्ला इसके उपाध्यक्ष हैं। इससे पहले भी BCCI के शीर्ष पदों पर राजनेता काबिज रहे हैं। केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर 2016 से 2017 के बीच BCCI अध्यक्ष रहे थे, जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने पद से हटा दिया था। ठाकुर से पहले राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) प्रमुख शरद पवार भी BCCI के अध्यक्ष रह चुके हैं।

भारतीय बैडमिंटन संघ- असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा वर्तमान में भारतीय बैडमिंटन संघ (BAI) के अध्यक्ष भी हैं। सरमा को 2022 से 2026 तक दूसरे कार्यकाल के लिए निर्विरोध चुना गया था। इससे पहले उन्हें पहली बार 2017 में BAI प्रमुख के रूप में चुना गया था।

टेबल टेनिस फेडरेशन ऑफ इंडिया- हरियाणा के उपमुख्यमंत्री और जननायक जनता पार्टी (JJP) नेता दुष्यंत चौटाला की पत्नी मेघना अहलावत TTFI की अध्यक्ष हैं। इससे पहले चौटाला खुद भी TTFI के अध्यक्ष रह चुके हैं, लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले साल पूर्व पदाधिकारियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी।

राइफल एसोसिएशन ऑफ इंडिया- पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता कैप्टन अमरिंदर सिंह के बेटे रणिंदर सिंह 2010 से 2022 तक NRAI के अध्यक्ष रहे। सिंह 2021 में चौथी बार NRAI के अध्यक्ष चुने गए थे, लेकिन खेल मंत्रालय ने कहा था कि राष्ट्रीय खेल कोड के मुताबिक कोई व्यक्ति 12 साल से अधिक समय तक किसी खेल संघ का पदाधिकारी नहीं तरह सकता। उसके बाद सिंह को अपना पद छोड़ना पड़ा था।

साइक्लिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया- पंजाब के पूर्व मंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा भी लंबे समय से CFI के अध्यक्ष की जिम्मेदारी संभाल रहे हैं।

हॉकी इंडिया- पूर्व हॉकी खिलाड़ी और ओडिशा में सत्तारूढ़ बीजू जनता दल (BJD) के पूर्व राज्यसभा सांसद दिलीप टिर्की सितंबर, 2022 से हॉकी इंडिया के अध्यक्ष हैं।

भारतीय तीरंदाजी संघ- केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा भी वर्तमान में AAI के अध्यक्ष हैं।

गौरतलब है कि भारत के अधिकांश खेल संघों की कमान या तो राजनेताओं के पास है, या ताक़तवर नौकरशाहों के पास या फिर अमीर कारोबारी पुरुषों के हाथों में है। खेल मंत्रालय भी इन्हीं लोगों की धाक है, ऐसे में महिला खिलाड़ियों की सुरक्षा और उनकी सुनवाई की क्या स्थिति होगी, इसका अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है।

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest