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ज्ञानवापी तहखाना हिंदुओं को सौंपने वाले जज सरकारी यूनिवर्सिटी के लोकपाल नामित, मसाजिद कमेटी ने उठाए सवाल

डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार बृजेंद्र सिंह ने डॉ.एके विश्वेश को लोकपाल नियुक्त किए जाने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि बनारस के पूर्व जिला जज को अगले तीन साल के लिए लोकपाल नियुक्त किया गया है।
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उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित ज्ञानवापी मस्जिद के व्यास तहखाने को हिंदुओं को सौंपने और वहां पूजा शुरू कराने का फैसला सुनाने वाले डिस्ट्रिक जज डॉ.अजय कृष्ण विश्वेश को योगी सरकार ने डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय का लोकपाल नियुक्त किया है। डॉ.विश्वेश ने अपने रिटायरमेंट के दिन ही यह आखिरी फैसला सुनाया था। बीजेपी सरकार द्वारा सरकारी यूनिवर्सिटी के लोकपाल पद का तोहफा दिए जाने पर अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और कई अधिवक्ताओं ने गंभीर सवाल खड़े किए हैं।   

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में लोकपाल का दायित्व स्टूडेंट्स की बेहतरी के लिए काम करना और उनके बीच पैदा होने वाले आपसी तनाव व संघर्ष को सुलझाना है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ इस विश्वविद्यालय के चेयरपर्सन हैं। डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के सहायक रजिस्ट्रार बृजेंद्र सिंह ने डॉ.एके विश्वेश को लोकपाल नियुक्त किए जाने की पुष्टि की है। उन्होंने कहा है कि बनारस के पूर्व जिला जज को अगले तीन साल के लिए लोकपाल नियुक्त किया गया है।

डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के प्रवक्ता यशवंत विरोडे के हवाले से कहा है कि डॉ.विश्वेश को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नए दिशा-निर्देशों के तहत नियुक्ति दी गई है। आयोग ने कहा है कि हर विश्वविद्यालय में छात्रों की शिकायतों के निवारण के लिए एक लोकपाल की नियुक्ति आवश्यक है। बनारस के पूर्व जिला जज डॉ.विश्वेश इस विश्वविद्यालय के पहले लोकपाल होंगे।

डिस्ट्रिक जज डॉ.एके विश्वेश ने अपने सेवाकाल के अंतिम दिन 31 जनवरी 2024 को फैसला सुनाते हुए ज्ञानवापी के तहखाने में हिंदुओं को पूजा करने की इजाजत दी थी। इससे पहले उन्होंने ज्ञानवापी परिसर में एएसआई सर्वे का आदेश भी दिया था। अंजुमन इंतजामिया मसाजिद कमेटी ने डिस्ट्रिक जज से मांग की थी कि एएसआई सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने से रोकने के उपाय किए जाएं। इस मामले में भी डिस्ट्रिक जज ने मसाजिद कमेटी की मांग को ठुकरा दिया था।

कौन हैं डॉ. विश्वेश?

डॉ अजय कृष्‍ण विश्वेश मूलरूप से हरिद्वार के रहने वाले हैं। उनका जन्‍म सात जनवरी, 1964 को हुआ था। उन्‍होंने कुरुक्षेत्र के सीनियर मॉडल स्‍कूल से साल 1981 में बीएससी, 1984 में एलएलबी और 1986 में एलएलएम किया। 20 जून, 1990 को उनकी न्‍यायिक सेवा की शुरुआत हुई। उत्‍तराखंड के कोटद्वार में उनकी पहली पोस्टिंग मुंसिफ मजिस्‍ट्रेट के रूप में हुई। साल 1991 में उनका ट्रांसफर सहारनपुर हो गया। इसके बाद वह देहरादून के न्‍यायिक मजिस्‍ट्रेट बने। 31 जनवरी 2024 को बनारस में जिला जज पद से रिटायर हुए और एक महीने के अंदर ही लोकपाल का पद हासिल कर लिया।

बनारस के डिस्ट्रिक जज डॉ.एके विश्वेश उत्तर प्रदेश में विवादास्पद मंदिर-मस्जिद विवादों से जुड़े पहले न्यायाधीश नहीं हैं, जिन्हें सेवानिवृत्ति के बाद सरकारी पद दिया गया है। अब से पहले साल 2021 में, बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में सभी 32 आरोपियों को बरी करने करने वाले सेवानिवृत्त डिस्ट्रिक जज सुरेंद्र कुमार यादव को योगी आदित्यनाथ सरकार ने यूपी में उप लोकायुक्त पद पर नियुक्ति दी थी। यादव ने भी अपने सेवाकाल के आखिरी दिन पर बाबरी मस्जिद विध्वंस से संबंधित एक मामले में 32 आरोपियों को बरी करने का फैसला सुनाया था।

सुरेंद्र कुमार यादव सीबीआई की विशेष अदालत के न्यायाधीश भी थे। उन्होंने 30 सितंबर 2020 को बीजेपी के सीनियर लीडर एलके आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह आदि को बरी कर दिया था।

रिटायरमेंट के तत्काल बाद विवादित मामलों में फैसला सुनाने वाले जजों को बड़े ओहदों पर नियुक्ति ने न्यायपालिका की आज़ादी और उसकी निष्पक्षता संदेह के घेरे में आ गई है। जब देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश रंजन गगोई और रंगनाथ मिश्र को राज्यसभा भेजा गया था तब भी उनके फैसलों पर सवाल उठे थे। राज्यसभा के आधिकारिक पोर्टल के मुताबिक सदस्य के तौर पर गोगोई का ट्रैक रिकॉर्ड कुछ खास नहीं है।

हिल गया जनता का विश्वास 

उत्तर प्रदेश बार काउंसिल के पूर्व अध्यक्ष एवं बनारस के वरिष्ठ अधिवक्ता हरिशंकर सिंह ने पूर्व जिला जज की सरकारी यूनिवर्सिटी में लोकपाल पद पर नियुक्ति पर सवाल उठाते हुए कहा है कि इसने आम लोगों के विश्वास को हिला दिया है। वह कहते हैं, ''बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट में मुस्लिम पक्ष चीख-चीखकर गुहार लगाता रहा कि व्यास तहखाने में कभी पूजा नहीं हुई। वादी पक्ष ने इस तहखाने में पूजा शुरू कराने के लिए कोई नया आवेदन नहीं दिया था। हिन्दू पक्ष का पुराना आवेदन जिसमें रिसीवर नियुक्ति की गई थी, वह निर्णित हो चुका था। इसके बावजूद बिना किसी नए लिखित प्रार्थना-पत्र के डिस्ट्रिक जज ने अपने विवेक से व्यास तहखाने में पूजा शुरू कराने का आदेश पारित कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद की बाड़ को किसी भी कीमत पर परिवर्तित नहीं करने का आदेश दिया था, लेकिन प्रशासन ने उस आदेश को भी नहीं माना और सात घंटे के अंदर ही पूजा शुरू करा दी।''

एडवोकेट हरिशंकर सिंह यह भी कहते हैं, ''हमारा सवाल सभी रिटायर जजों के मनोनयन पर नहीं, किसी रिटायर्ड जज के फैसले के तत्काल बाद उसके मनोनयन पर जल्दबाजी दिखाने पर है। हैरानी सिर्फ इस बात पर है कि इतना जल्द नोमिनेशन इन्हें कैसे मिल गया। यह एक नई परंपरा है जिससे आने वाले दिनों में न्यायपालिका कलंकित होगी। साथ ही कोर्ट की निष्पक्षता और देश की अखंडता भी प्रभावित होगी।''

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के संयुक्त सचिव एसएम यासीन ने बनारस के डिस्ट्रिक जज एके विश्वेश के रियाटरमेंट के कुछ ही दिन बाद डॉ. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय में लोकपाल पर नियुक्ति पर आश्चर्य व्यक्त किया है। न्यूजक्लिक से बातचीत में वह कहते हैं, ''आस्था कुछ भी नहीं है। सब कुछ बिकाऊ है। बस खरीदने वाला चाहिए। भारत में जब विदेशी आए तो उन्होंने बोली लगाई और बहुत कुछ खरीद लिया। इतिहास इस बात का गवाह है कि सत्ता बचाने के लिए बहुत से सामंतों ने अपनी बहन-बेटियों को तस्तरी में सजाकर हुक्मरानों को पेश किया। बहुतों ने ओहदे पाने के लिए इसी तरह के नुस्खे अपनाए। अब हम न्यायपालिका को बिकते हुए देख रहे हैं।''

यासीन यह भी कहते हैं, ''रिटायरमेंट के दिन आखिरी फैसला सुनाकर जज अब ओहदा पाने लगे हैं। ज्ञानवापी के मामले में भी यही फैसला हुआ है। यह देश के लिए बुरा है। आखिर हम किससे शिकायत करें? अयोध्या मामले में भी सुप्रीम कोर्ट ने साफ़ शब्दों में कहा था कि मुसलमानों को उस जगह से बेदख़ल करना क़ानूनी तौर पर सही नहीं था। 450 साल पुरानी एक मस्जिद से मुसलमानों को इबादत करने से ग़लत तरीक़े से रोका गया। फिर भी फैसला हमारे पक्ष में नहीं आया। हमें यह समझ में नहीं आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट आखिर पूजा स्थल कानून 1991 पर फैसला सुनाने में विलंब क्यों कर रहा है?''

सुप्रीम कोर्ट पहुंचा मामला

ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर व्यास जी तहखाना केस में बड़ा अपडेट यह है कि यह मामला अब शीर्ष अदालत में पहुंच गया है। हिंदू पक्ष ने भी एक कैविएट याचिका दाखिल की है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर व्यास तहखाने में पूजा-अर्चना रोकने की तत्कालीन प्रदेश सरकार की कार्रवाई को अवैध करार देते हुए अंजुमन इंतेजामिया की अपील सोमवार को खारिज कर दी थी।

न्यायमूर्ति रोहित रंजन अग्रवाल की अदालत ने कहा था कि साल 1993 में वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के दक्षिणी तहखाने में पूजा अनुष्ठान बिना किसी लिखित आदेश के तत्कालीन प्रदेश सरकार द्वारा रोकने की कार्रवाई अवैध थी। फिलहाल पूजा रोकने का कोई औचित्य नहीं है। हिंदू पक्ष के दावे के मुताबिक साल 1993 तक व्यास परिवार ने तहखाने में धार्मिक अनुष्ठान किया। बाद में मुलायम सिंह की सरकार ने वहां धार्मिक अनुष्ठान रोकवा दिया था।

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