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ज्ञानवापी केसः इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा मुस्लिम पक्ष

"ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हम आख़िरी सांस तक क़ानूनी लड़ाई लड़ते रहेंगे। कोई भी चीज किसी को तश्तरी में सजाकर नहीं देंगे। सभी मामलों को हम सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेंगे। इस सिलसिले में अंजुमन इंतेजामिया कमेटी जल्द की बैठक करने जा रही है।"
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फाइल फ़ोटो। PTI

उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बनारस के ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित जिन पांच याचिकाओं को खारिज किया है उसे मुस्लिम पक्ष सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देगा। मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी जल्द ही इस मामले में बैठक करने जा रही है। इस बीच मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना अरशद मदनी ने एक बड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा है कि हम सुप्रीम कोर्ट का फैसला मानेंगे। सुप्रीम कोर्ट हमारी कोर्ट है और उस पर हमारी आस्था है। देश में प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का सम्मान होना चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के जस्टिस रोहित रंजन अग्रवाल की अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद से संबंधित पांच याचिकाओं की सुनवाई 08 दिसंबर 2023 को पूरी करने के साथ ही फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिन्हें 18 दिसंबर 2023 को खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति रंजन अग्रवाल ने फैसला सुनाते हुए कहा कि साल 1991 में वाराणसी की अदालत में दायर मूल वाद पोषणीय (सुनवाई योग्य) है और यह पूजा स्थल अधिनियम, 1991 से निषिद्ध नहीं है। यह मुकदमा दो प्रमुख समुदायों को प्रभावित करता है। यह मुकदमा चलने योग्य है। हाईकोर्ट ने कहा मस्जिद परिसर में या तो मुस्लिम चरित्र या हिंदू चरित्र हो सकता है और मुद्दे तय करने के चरण में इसका फैसला नहीं किया जा सकता है। हम वाराणसी जिला ट्रायल कोर्ट को छह महीने में मुकदमे का फैसला करने का निर्देश देते हैं। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने निचली अदालत से कहा कि वह छह महीने के अंदर मामले की सुनवाई पूरी करे, क्योंकि यह देश के दो बड़े समुदायों के बीच तनाव पैदा कर सकता है।"

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने सिविल वाद की पोषणीयता पर मुस्लिम पक्ष की आपत्ति को आधारहीन करार देते हुए कहा कि परिसर का सर्वे कराने के आदेश में कोई कानूनी खामी नहीं है। कोर्ट ने सभी अंतरिम आदेश भी समाप्त कर दिए हैं। उल्लेखनीय है कि अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी की ओर से तीन और यूपी सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड की ओर से दो याचिकाएं दाखिल गई की गई थीं। तीन मामले बनारस कोर्ट में साल 1991 में दायर केस की पोषणीयता से जुड़े थे। दो अन्य याचिका एएसआई सर्वेक्षण के खिलाफ दायर की गई थी। साल 1991 में भगवान आदि विश्वेश्वर विराजमान के मित्रों ने बनारस के डिस्ट्रिक कोर्ट में याचिका दाखिल की थी।

हिंदू पक्ष ने ज्ञानवापी मस्जिद पर अपना दावा जाते हुए विवादित परिसर को हिंदुओं को सौंपने की मांग उठाई थी। साथ ही वहां पूजा-अर्चना का अधिकार मांगा था। मुस्लिम पक्ष ने साल 1991 के प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का हवाला देते इस केस की पोषणीयता पर सवाल उठाया था। हाईकोर्ट ने सुनवाई के बाद आठ दिसंबर को चौथी बार अपना फैसला सुरक्षित रखा था।

ज्ञानवापी मस्जिद मामले से जुड़ी अदालती प्रक्रिया 1991 में शुरू हुई। इस साल स्वयंभू ज्योर्तिलिंग भगवान विश्वेश्वर की ओर से वाराणसी की अदालत में पहली याचिका दायर की गई थी। प्राचीन मूर्ति स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की ओर से सोमनाथ व्यास, रामरंग शर्मा और हरिहर पांडेय इस मुकदमे में बतौर वादी शामिल थे। याचिकाकर्ताओं ने तीन मांग रखी थी। पहली मांग, पूरे ज्ञानवापी परिसर को काशी विश्वनाथ मंदिर का हिस्सा घोषित किया जाए। दूसरी मांग, ज्ञानवापी परिसर से मुस्लिम पक्ष को हटाया जाए। तीसरी मांग यह थी कि विवादित मस्जिद ही गिरा दी जाए।

हिंदू पक्ष की याचिका को चुनौती देते हुए अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी और उत्तर प्रदेश सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने कहा कि यह मांग पूजा स्थल अधिनियम 1991 का उल्लंघन करती है। इस अधिनियम के अनुसार, किसी भी उपासना या पूजा स्थल के धार्मिक चरित्र को नहीं बदला जा सकता है। कानून के मुताबिक 15 अगस्त, 1947 को जो उपासना स्थल (अयोध्या विवाद को छोड़कर) जैसे थे, उन्हें उसी स्थिति में रखा जाए, उन्हें बदला नहीं जा सकता।

इसके जवाब में याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि ज्ञानवापी विवाद देश की आजादी के पहले का है और ऐसे में यह मामला पूजा स्थल अधिनियम 1991 के तहत नहीं आता। 1993 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्थगनादेश लगाकर परिसर की यथास्थिति बहाल रखने का आदेश दिया था। साल 1998 में बनारस की जिला अदालत ने मस्जिद के सर्वे की इजाजत दी थी। इस मामले में अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख किया। मुस्लिम पक्ष का कहना था कि इस विवाद को सिविल कोर्ट में तय नहीं किया जा सकता है।

मार्च 2021 में ज्ञानवापी मामले में सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे के नेतृत्व में एक खंडपीठ सुनवाई करने बैठी कि यह मामला पूजा स्थल अधिनियम 1991 के दायरे में आएगा कि नहीं?  अगस्त 2021 में इस मुद्दे ने तब तूल पकड़ा जब हिंदू समुदाय की पांच महिलाओं ने बनारस की अदालत में ज्ञानवापी परिसर के भीतर हिंदू देवताओं की उपासना की अनुमति मांगी। अप्रैल 2022 में वाराणसी डिस्ट्रिक कोर्ट ने ज्ञानवापी परिसर का सर्वे कराने का निर्देश दिया। तब अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने निचली अदालत के सर्वे के फैसले को बरकरार रखा।

बनारस डिस्ट्रिक कोर्ट ने बाद में ज्ञानवापी मस्जिद का भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को सर्वे करने का निर्देश दिया। हाईकोर्ट में राहत न मिलने पर मस्जिद कमेटी सुप्रीम कोर्ट पहुंची, लेकिन उसने भी एएसआई द्वारा किए जाने वाले साइंटिफिक सर्वे पर स्टे लगाने से इनकार कर दिया। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हालिया फैसले में डिस्ट्रिक कोर्ट को छह महीने में इस मामले की सुनवाई पूरी करने का भी आदेश दिया है।

हाईकोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम धर्मगुरु मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे कराने में कोई हर्ज नहीं। जहां भी सर्वे सही होगा वहां मस्जिद ही निकलेगी। अयोध्या में बाबरी मस्जिद वाली जगह हमारी थी। उसके बदले में अगर मस्जिद के लिए ज़मीन दी जाए तो हम उसे लेने के पक्ष में नहीं हैं। दूसरी ओर, ज्ञानवापी मस्जिद की देखरेख करने वाली संस्था अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट की ओर रुख करने का संकेत दिया है।

कमेटी के संयुक्त सचिव एमएम यासीन ने ‘न्यूजक्लिक’ से कहा, "ज्ञानवापी मस्जिद मामले में हम आखिरी सांस तक कानूनी लड़ाई लड़ते रहेंगे। कोई भी चीज किसी को तश्तरी में सजाकर नहीं देंगे। सभी मामलों को हम सुप्रीम कोर्ट में चैलेंज करेंगे। इस सिलसिले में अंजुमन इंतेजामिया कमेटी जल्द ही बैठक करने जा रही है। ज्ञानवापी का मामला सिर्फ मुसलमानों का मामला नहीं है। यह मुद्दा सभी धर्मों से जुड़ा है। चाहे वह बौद्ध, जैन, सिख अथवा ईसाई ही क्यों न हों। ज्ञानवापी का मुद्दा भारत के भविष्य का मुद्दा है। जनता को यह सोचना है कि देश में सर्वधर्म संभाव रहेगा या एक ही धर्म का वर्चस्व रहेगा। हम सेक्युलर विचारधारा के लोगों से अपील करना चाहेंगे कि आप हमारे हाथ मजबूत करें, क्योंकि यह भारत के भविष्य का मसला है।"

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