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गेहूं के दाम बढ़े, राशन की ख़रीद में आई गिरावट 

ऐसा लग रहा है कि सरकार अपने खाद्यान्न कुप्रबंधन के कारण हुई तबाही के प्रति उदासीन है।
Wheat
छवि सौजन्य: पीटीआई

नवीनतम उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के ज़रिए किया जाने वाला गेहूं के वितरण का आवंटन इस वर्ष नाटकीय रूप से गिर गया है। इससे स्वाभाविक रूप से अनाज़ के उठान यानी जरूरतमंद परिवारों को वितरण में कमी आई है।

खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा हर महीने जारी खाद्यान्न बुलेटिन के अनुसार अक्टूबर 2022 तक केंद्रीय खाद्यान्न पूल से 115 लाख टन गेहूं आवंटित किया गया था, जिसमें से 103 लाख टन का वितरण हुआ है। 2021 की तुलना में अक्टूबर तक 139 लाख टन का आवंटन और 123 लाख टन का वितरण किया जा चुका है। नीचे दिया गया चार्ट गिरावट की इस प्रवृत्ति को दर्शाता है।

लगभग 80 करोड़ लोग अपनी खाद्य जरूरतों के लिए पीडीएस यानि राशन प्रणाली पर निर्भर हैं, जबकि एक वर्ष में अनाज़ की उपलब्धता में लगभग 16 प्रतिशत की गिरावट आई हैं जिससे इन परिवारों को भारी नुकसान हुआ होगा। सरकार ने कुछ गायब हुए गेहूं के बदले चावल की पेशकश की कोशिश की है लेकिन दिए जा रहे चावल की गुणवत्ता कथित तौर पर अच्छी नहीं है, और किसी भी मामले में, लोग अनाज़ में किए इस किस्म के ज़बरदस्ती बदलाव से खुश नहीं हैं।

गेहूं की कीमतों में तेजी

इसलिए, परिवारों को अपनी दैनिक जरूरतों को पूरा करने के लिए गेहूं, या आटा खरीदने के लिए खुले बाजार में जाना पड़ रहा है। खुले बाजार में गेहूं/आटे की सीमित आपूर्ति और बढ़ती मांग, थोक व्यापारियों और बिचौलियों के लिए वरदान साबित हुई है। गेहूं की रिकॉर्ड फसल के बावजूद, पिछले दो वर्षों में, खासकर इस वर्ष की शुरुआत के बाद से, बाजार में इसकी कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हुई है।

जैसा कि नीचे दिया गया चार्ट दिखाता है, अक्टूबर 2020 और अक्टूबर 2022 के बीच गेहूं के थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में 26 प्रतिशत की जबरदस्त वृद्धि हुई है। डेटा आर्थिक सलाहकार के कार्यालय से लिया गया है, जो सरकार के लिए थोक मूल्य सूचकांक (WPI) डेटा को इकट्ठा करता है और प्रकाशित भी करता है।

इसी अवधि में, खाद्य वस्तुओं के थोक मूल्य सूचकांक में लगभग 8 प्रतिशत की वृद्धि हुई है और दालों और धान के लिए मूल्यों में 6 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। स्पष्ट रूप से, गेहूं की कीमतों में किसी भी सामान्य प्रवृत्ति से काफी अधिक वृद्धि हुई है। यह सीधे तौर पर गेहूं की खरीद में गिरावट के कारण है, जिससे पीडीएस के माध्यम से गेहूं का वितरण ठप हो गया है।

इसी अवधि में गेहूं/आटा की उपभोक्ता (या खुदरा) कीमतों में भी लगभग 18 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जैसा कि नीचे दिए गए चार्ट में दिखाया गया है, जो सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय द्वारा बनाए गए डेटा वेयरहाउस से लिया गया है।

उपभोक्ता कीमतों की तुलना में थोक कीमतों में अधिक वृद्धि का मतलब है कि आने वाले महीनों में खुदरा कीमतें ऊंची बनी रहेंगी क्योंकि थोक वाला गेहूं उपभोक्ताओं धीरे-धीरे पहुंचेगा। 

भारत के प्रमुख अनाजों में से गेंहू की कीमतों में आए इस बड़े उछाल से परिवारों के पहले से ही संकटग्रस्त बजट में एक बड़ा असर पड़ता है। कई अन्य आवश्यक वस्तुओं- सब्जियां, दूध, खाना पकाने के तेल और रसोई गैस की भी कीमतें इसी तरह बढ़ रही हैं, और जिसके चलते आम लोगों को अपने खर्च में कटौती करनी पड़ी है।

खाद्यान्न स्टॉक का हाल?

यह स्पष्ट लगता है कि बढ़ती कीमतों पर काबू पाने के लिए सरकार अपने स्टॉक से गेहूं जारी कर सकती है। लेकिन यहीं से गेहूं संकट का सबसे अशुभ आयाम स्पष्ट हो जाता है। खाद्य और सार्वजनिक वितरण विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, पर्याप्त खरीद के अभाव में, नवंबर में केंद्रीय गेहूं का स्टॉक 15 साल के निचले स्तर पर यानि 210.46 लाख टन पर आ गया है।

इस गिरावट का पैमाना पिछले साल के नवंबर के गेहूं के स्टॉक स्तर 419.8 लाख टन की तुलना में दिखाया गया है। यह लगभग 100 प्रतिशत की गिरावट है। या, इसे और अधिक सरलता से देखा जाए तो, स्टॉक पिछले वर्ष की तुलना में आधा है। हालांकि, वर्ष के इस समय में गेहूं के भंडारण का मानक 205.2 लाख टन है। मौजूदा स्तर इससे महज 5 लाख टन ज्यादा है।

दरअसल, सिर्फ गेहूं ही नहीं चावल भी है, जिसका स्टॉक कम है। मौजूदा स्टॉक पिछले नवंबर के 229.22 लाख टन की तुलना में 165.97 लाख टन है - यह लगभग 28 प्रतिशत की गिरावट है। चावल का स्टॉक इसलिए गिर गया है क्योंकि सरकार ने पीडीएस के माध्यम से चावल वितरित करके गेहूं की कमी की भरपाई करने की कोशिश की है।

इस संकट का कारण खाद्यान्न आपूर्ति का घोर कुप्रबंधन है  

जैसा कि इस साल की शुरुआत में न्यूज़क्लिक में बताया गया था, कि मार्च-अप्रैल में गर्मी की लहर के कारण गेहूं की फसल को नुकसान हुआ था और इससे जुड़े सरकार के कई गलत फैसलों की वजह से यह संकट और बढ़ गया था। शुरू में, सरकार यूक्रेन युद्ध के कारण बढ़ती अंतरराष्ट्रीय कीमतों का लाभ उठाने के लिए गेहूं के निर्यात के बारे में बड़ा हल्ला मचा रही थी। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने व्यापारियों से आपदा में अवसर का फायदा उठाने और अच्छा मुनाफा कमाने की सलाह दी थी। इसलिए, व्यापारियों ने किसानों से बड़ी मात्रा में गेहूं खरीदा, जो अन्यथा इसे सरकारी खरीद एजेंसियों को बेचते थे। तब सरकार को अचानक गेहूं के निर्यात चैनलों के इस मोड़ के खतरे का एहसास हुआ और उसने पूरे विचार को बदल दिया। जिसकी वजह से लाखों टन गेहूं एक तरफ व्यापारियों/निर्यातकों के पास बचा हुआ पड़ा है तो दूसरी तरफ सरकारी गोदाम खाली पड़े हैं।  

इस बीच, भारत के गरीब वर्गों - जिसका अर्थ है देश के अधिकांश - को अत्यधिक कीमतों पर गेहूं/आटा खरीदकर इसकी कीमत चुकानी पड़ रही है, जो 1960 के दशक की ऐसी ही स्थितियों की याद दिलाती है।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित रिपोर्ट को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

Wheat Prices Zoom, Ration Offtake Falls

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