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ब्लैक राइस के न खरीददार, न बाजार, फिर भी किसानों के मालामाल होने का सफ़ेद झूठ बोल रही डबल इंजन की सरकार !

"चंदौली के तत्कालीन डीएम नवनीत सिंह चहल ने ब्लैक राइस से होने वाली कमाई को न जाने क्यों तिल का ताड़ बना दिया? उनके जाते ही झूठे सब्जबाग उजड़ गए और सरकार की कलई खुल गई। सारा का सारा शो फ्लॉप हो गया। हमें तो यही लगता है कि सरकार भी नौटंकी करती है। कोई भी कह सकता है कि यह फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी का खेल है। साफ शब्दों में कहें तो ब्लैक राइस से बंपर कमाई की उम्मीद महज सफेद झूठ है और जुमला भी। इसकी खेती से मुनाफे की उम्मीद करना व्यर्थ है।"
black rice
ब्लैक राइस की फसल

30 नवंबर 2020- वाराणसी में देव दीपावली के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, "चंदौली का ब्लैक राइस (Black Rice) किसानों के घरों में समृद्धि ला रहा है। दो साल पहले काले चावल के प्रयोग किया गया था। 400 किसानों को उगाने के लिए दिया गया था। सामान्य चावल  35-40 रुपया किलो बिकता है और यह 300 रुपये के भाव में बिक रहा है। ब्लैक राइस को विदेशी बाजार भी मिल गया है। पहली बार ऑस्ट्रेलिया और कतर को यह चावल निर्यात हुआ है। जहां धान का एमएसपी 1800 रुपये है, वहीं काला चावल 8500 प्रति क्विंटल बिका है। चंदौली में 1000 किसान परिवार ब्लैक राइस की खेती कर रहे हैं।"

20 मार्च 2022- मन की बात कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी ने चंदौली के ब्लैक राइस की तारीफ करते हुए इसकी खेती को "वोकल फॉर लोकल" का सटीक उदाहरण बताया। कहा, "चंदौली का ब्लैक राइस देश ही नहीं, विदेश में भी सुर्खियां बटोर रहा है। किसानों को लागत की तुलना में लगभग चार गुना अधिक यानी 60 रुपये प्रति किलो के हिसाब से भुगतान किया जा रहा है। यह चावल चंदौली के किसानों के घरों में समृद्धि लेकर आ रहा है।"

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चंदौली जिले के जिस ब्लैक राइस की तारीफ तमाम मंचों से लगातार करते आ रहे हैं, वह किसानों के लिए अब सिर्फ एक जुमला बनकर रह गया है। ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों ने इसकी खेती से मुंह मोड़ लिया है। स्थिति यह है कि कृषि महकमे के अफसरों के पास इस बात का कोई आंकड़ा नहीं है कि इस बार कितने किसानों ने ब्लैक राइस उगाया है और कितनी पैदावार हुई है? चंदौली के पत्रकार पवन मौर्य कहते हैं, "डबल इंजन की सरकार सिर्फ इसी बात से मगन है कि ब्लैक राइस को ‘कलेक्टिव मार्क’ यानी विशेष उत्पाद की मान्यता मिल गई है। चंदौली कृषि उत्पाद में यह मार्क दिलाने वाला सूबे का इकलौता जिला है। इस धान को लेकर यह तक दावा किया जा रहा है कि जब से चंदौली के ब्लैक राइस की तारीफ संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी संस्था यूएनडीपी (UNDP) ने की है, उसके बाद से इसकी महत्ता बढ़ गई है।"

"कोरा सच यह है कि चंदौली में ब्लैक राइस का उत्पादन करने वाले किसानों के मालामाल होने का लगातार दावा करने वाली सरकार के दावे छलावा साबित हो रहे हैं। जिस ब्लैक राइस से किसानों के मालामाल होने दावा किया जा रहा है, हकीकत में वह सफेद झूठ है। सरकार और उसकी मशीनरी आज तक ब्लैक राइस का न तो खरीददार ढूंढ पाई है और न ही बाजार। नतीजा सामने है। साल 2020 में चंदौली के किसानों ने ब्लैक राइस का बंपर पैदावार किया था, जिसमें से करीब 650 कुंतल उपज चंदौली के नवीन मंडी के गोदाम में चूहे और गिलहरी अपना निवाला बना रहे हैं। इससे भी कई गुना अधिक ब्लैक राइस किसानों के घरों में है, जिसे बिकवाने का जोखिम उठाने के लिए न तो प्रशासन तैयार है और न ही चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी।"

चंदौली जनपद अविभाजित बनारस का हिस्सा है, जिसकी सीमाएं पीएम नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र से जुड़ी हुई हैं। नीति आयोग के आंकड़ों को सच मानें तो यह जनपद देश के सबसे ज्यादा पिछड़े जिलों में से एक है। भाजपा नेत्री मेनका गांधी के सुझाव पर साल 2018 में तत्कालीन कलेक्टर नवनीत सिंह चहल और तत्कालीन उपकृषि निदेशक आरके सिंह की पहल पर मणिपुर से 1200 रुपये प्रति किलो की दर से 12 किलो चाक हाउ (काले चावल) के बीज लाकर खेती के लिए किसानों को बांटा गया। करीब 30 किसानों ने इसकी खेती की शुरुआत की। उन्हें काफी महंगे दर पर बीज मिला और इन सभी किसानों ने एक से लेकर आधा एकड़ में धान लगाया। किसानों की मेहनत रंग लाई। सेहत के लिए फायदेमंद समझे जाने वाले ब्लैक राइस की बंपर पैदावार करके किसानों ने सरकार को अपनी मेहनत का लोहा मनवा दिया। गंगा, कर्मनाशा और चंद्रप्रभा नदियों के मैदानी इलाकों में ब्लैक राइस की बंपर पैदावार हुई। इसका फायदा यह हुआ कि सरकार ने ब्लैक राइस को ‘एक जनपद एक उत्पाद’ (ओडीओपी) योजना में चयनित कर लिया।

प्रधानमंत्री की ब्रांडिंग और चंदौली के तत्कालीन कलेक्टर नवनीत चहल के दावों पर भरोसा करते हुए किसानों ने साल 2019 से 2021 तक इस उम्मीद में ब्लैक राइस की खेती की कि उनकी उपज हाथो-हाथ बिक जाएगी और वो मालामाल हो जाएंगे। धान की विपणन व्यवस्था में फिसड्डी चंदौली के अफसरों ने ब्लैक राइस बेचने के लिए आज तक कोई पुख्ता प्रबंध नहीं किया, जिसके चलते इसके उत्पादकों में गहरी हताशा और नाराजगी है। ब्लैक राइस की खेती में अपने सुनहरे भविष्य का सपना देखने वाले किसानों को सरकारी मशीनरी कई सालों से झूठा दिलासा दे रही है। पिछले तीन सालों से ब्लैक राइस के लिए बाजार और खरीददारों की तलाश चल रही है।image

झूठे सब्जबाग में फंस गए किसान

साल 2020 में देव-दीपावली के मौके पर बनारस आए पीएम नरेंद्र मोदी ने चंदौली के किसानों की शान में खूब कसीदे पढ़े। वाह-वाही में उन्होंने यह तक कह दिया कि चंदौली के किसान 850 रुपये किलो की दर से ब्लैक राइस बेच रहे हैं और तीन गुना कमाई कर रहे हैं। ब्लैक राइस ने खुशहाली का बड़ी गलियारा खोला है। शहाबगंज प्रखंड के हिनौती के किसान जय सिंह कहते हैं, ---ब्लैक राइस के बारे में अब तक जितने भी दावे किए गए, सभी खोखले निकले। किसानों को ब्लैक राइस की कीमत 8500 रुपये प्रति कुंतल यानी 85 रुपये प्रति किलो से ज्यादा कभी मिली ही नहीं। कुछ किसानों को 3500 से 7000 रुपये प्रति कुंतल की दर से अपनी उपज बेचनी पड़ी। काफी जद्दोजहद के बाद साल 2020 में करीब 600 कुंतल ब्लैक राइस सुखबीर एग्रो कंपनी के जरिए न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, कतर, आईटीसी, चौपाल सागर, जैविक हाट, आर्गेनिक बाजार मुंबई में बिका। सैकड़ों किसान कई सालों से अपनी उपज लेकर सरकार के भरोसे बैठे हुए हैं।----

चंदौली में ब्लैक राइस के उत्पादन को बढ़ावा देने और बाजार तलाशने के लिए चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी (सीकेसी) का गठन किया गया है। इसके अध्यक्ष शशिकांत राय और सचिव हैं वीरेंद्रनाथ सिंह। संस्था की पहल पर ही किसानों ने साल 2020 में चंदौली के किसानों से 12,00 कुंतल धान बेचने के लिए दिया। पिछले दो सालों में किसी तरह से करीब 450 कुंतल धान 70,000 से 50,000 रुपये प्रति कुंतल की दर पर बिक पाया। बाकी ब्लैक राइस चंदौली के नवीन मंडी समिति के गोदाम में पड़ा है। संस्था के अध्यक्ष शशिकांत राय दावा करते हैं, "चंदौली के किसानों की उपज इसलिए नहीं बिक पा रही है क्योंकि यहां कलर अडेंटीफाई करने वाली मशीनें नहीं हैं। चंदौली के किसानों का करीब 1600 कुंतल चावल ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका और संयुक्त अरब अमीरात में अच्छी कीमत में बिक चुका है।  दिल्ली, मुंबई, बंगलुरू, पंजाब के अलावा भारतीय बाजारों में भी ब्लैक राइस की अच्छी डिमांड है। हम अमेजन के जरिये फुटकर में भी सस्ता ब्लैक राइस बेच रहे हैं। हमारी संस्था जो भी चावल निर्यात करती है उसकी रकम सीधे किसानों के खाते में ट्रांसफर कर दी जाती है।"

चंदौली के बरहनी प्रखंड के अमड़ा गांव के 57 वर्षीय किसान शशिकांत यह भी दावा करते हैं, " यदि मुनाफे को देखे तो सामान्य धान की खेती में अधिक पानी, यूरिया, डीएपी, फास्फोरस, पोटास और कीटनाशक डालना पड़ता है। लेकिन, ब्लैक राइस की खेती में रासायनिक खाद की जरूरत नहीं पड़ती और उपज भी अच्छी होती है। हमारे यहां से सोनभद्र, गाजीपुर, प्रयागराज और मिर्जापुर के किसान बीज ले गए और खेती कर रहे हैं। शुरू के दिनों में ब्लैक राइस की क्वालिटी को लेकर कुछ दिक्कतें भी सामने आई थीं, लेकिन किसानों ने इसे उगाने की तकनीक अब अच्छी तरह से सीख ली है। ब्लैक राइस का उत्पादन बढ़ाने के लिए नए किसानों को ट्रेनिंग दी जा रही है, ताकि इसकी ग्लोबल मार्केट में इसकी डिमांड में इजाफा किया जा सके। हम चाहते हैं कि किसान गोबर से निर्मित ऑर्गेनिक खाद के जरिये ब्लैक राइस की खेती करें, ताकि गुणवत्ता अच्छी हो। हमारे यहां अच्छी मिलिंग (धान से छिलका हटाने की हाईटेक मशीन) की व्यवस्था नहीं है। लाचारी में किसानों को सस्ती दरों पर अपनी उपज बेचनी पड़ रही है।"

चंदौली के जिला कृषि अधिकारी बसंत दुबे बताते हैं, "चंदौली में उत्पादित ब्लैक राइस की मार्केटिंग और ब्रांडिंग के लिए भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान में भेजकर इसके गुण और फायदे विवरण मंगाने पर विचार किया जा रहा, ताकि उसके पैकेट पर छापा जा सके। इसकी बिक्री में आने वाली मुश्किलों को दूर करने के लिए सार्थक प्रयास किए जा रहे हैं। अभी 1000 कुंतल ज्यादा ब्लैक राइस धान की बिक्री होनी है। प्रयागराज और सोनभद्र में भी किसानों का धान बिक्री के लिए रखा हुआ है। साल 2021 में करीब 400 हेक्टेयर में ब्लैक राइस की खेती की गई, लेकिन बिक्री की स्थिति उत्साहवर्धक नहीं है। मौजूदा साल में इस धान के उत्पादन और रकबे के बारे में कृषि विभाग के पास कोई पुख्ता आंकड़ा मौजूद नहीं है।"image

मेहनत ज्यादा, मुनाफा कम

1960 के दशक से पहले पूर्वांचल में धान की कम से कम सौ से अधिक ऐसी प्रजातियां उगाई जाती थीं, जिन्हें उनकी बेहतरीन खुशबू के लिए जाना जाता था। पिछले कुछ दशकों से खुशबूदार चावल के नाम पर केवल बासमती को भारत के इकलौते अंतरराष्ट्रीय ब्रांड के तौर पर प्रचारित जा रहा है। कोरा सच यह है कि प्योर बासमती की नस्ल पूरी तरह खत्म हो चुकी है। ब्लैक राइस की बात करें तो किसानों के मुताबिक, इसे उगाने में कई तरह की कठिनाइयां हैं। यह धान पूरी तरह ऑर्गेनिक है जिसके लिए बहुत अधिक श्रम की जरूरत पड़ती है। कुछ किसानों को शुरू में नुकसान का सामना करना पड़ा, क्योंकि उन्होंने आदतन रासायनिक खाद और दवाओं का इस्तेमाल कर लिया। अब इसकी खेती पर मिलने वाला रिटर्न असाधारण है, क्योंकि काले चावल की उत्पादकता 25 क्विंटल/हेक्टेयर होती है। यह करीब पांच फीट की ऊंचाई तक बढ़ता है। अच्छे रिटर्न के बावजूद चंदौली के किसानों को काले चावल की मार्केटिंग में समस्याएं आ रही हैं, क्योंकि इसके लिए इस क्षेत्र को जीआई (जियोग्राफिकल इंटीकेशन) टैग नहीं मिला है। काले चावल के लिए जीआई टैग पिछले साल मणिपुर को दिया गया था।

कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, ब्लैक राइस धान की एक कमजोर प्रजाति है। हल्की हवा लगने पर इसकी फसल गिर जाती है और किसानों को काफी नुकसान उठाना पड़ जाता है। दूसरी बात, पूर्वांचल के बाजारों में ब्लैक राइस  की कहीं कोई डिमांड नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय बाजारों तक यह चावल पहुंचाने के लिए किसानों के पास जानकारी का अभाव है। यही कारण है कि ज्यादातर किसान अब काला चावल के दूसरे विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं। अंतराष्ट्रीय बाजार में ब्लैक राइस 250 से 1500 रुपये प्रति किलो के भाव पर बेचा जा रहा है। इसकी खेती पर प्रति कुंतल खर्च करीब 36,000 (किसान के श्रम सहित) रुपये आता है और बिक रहा है सिर्फ 45,000 से 50,000 रुपये प्रति कुंतल के भाव पर। कम मुनाफे के चलते इसकी खेती से किसान मुंह मोड़ने लगे हैं। अब कोई इसे बोने के लिए तैयार नहीं है। चंदौली के एक किसान पंचम मौर्य कहते हैं, "बाजार मिलेगा तभी इस धान की खेती हो पाएगी। पूरे जिले से गायब हो गई है। शायद कोई मुर्ख होगा जो बोया होगा। विदेशों में भी लोग ब्लैक राइस के गुणों से अनजान है। कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक, ब्लैक राइस की संकर किस्मों या हाइब्रिड बीज बनाने पर शोध कार्य जारी है।"

गुणकारी ब्लैक राइस से मोह भंग

चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी लिमिटेड के निदेशक हैं रतन सिंह कहते हैं, " ब्लैक राइस एक मेडिसनल उत्पाद है। एंटीऑक्सीडेंट्रस से भरपूर ब्लैक राइस में विटामिन ई, फाइबर और प्रोटीन भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसका सेवन करने से रक्त शुद्ध होता है और साथ ही चर्बी कम करके वजन घटाने में मददगार है और पाचन शक्ति को भी बढ़ाता है। राइस शरीर के बुरे कोलेस्ट्रॉल को भी घटाता है जो दिल के लिए अच्छा माना जाता है। इससे हर्ट अटैक आने की आशंका घटती है। एंटीऑक्सीडेंट्रस से भरपूर होने की वजह से ये हमारे इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है। साथ ही शरीर के विषैले तत्वों को भी बाहर निकालता है, त्वचा को चमकदार बनाता है और आंखों के लिए भी फायदेमंद है।"

"ब्लैक राइस को डाइबिटीज और अर्थराइटिस के मरीजों के स्वास्थ्य के लिहाज से भी अच्छा माना जाता है। देश के डॉक्टर जब तक इसे खाने के लिए रिकमेंड नहीं करेंगे तब तक यह न पॉपुलर होगा और न ही ब्रांड बनेगा। अगर कोई खरीद भी ले तो ब्लैक राइस खा नहीं पाएगा, क्योंकि इसमें कोई सुगंध नहीं है। मुधमेह और हृदय रोग के लिए ब्लैक राइस रामबाण है, लेकिन वो हमारे उत्पाद को जब तक रिकमेंड नहीं करेंगे, वो अपने देश में बिकेगा नहीं। इसे जब तक डॉक्टर प्रोमोट नहीं करेंगे, तब तक ये सफल नहीं होगा।"

ब्लैक राइस के जरिये खुद की ब्रांडिंग करने वाले चंदौली के तत्कालीन कलेक्टर नवनीत सिंह चहल ने इसी जिले के किसानों के बूते साल 2019-20 का प्रधानमंत्री एक्सीलेंस अवॉर्ड हासिल किया, लेकिन अन्नदाता के नसीब कुछ आया तो सिर्फ और सिर्फ हताशा। पूर्वांचल के किसानों को यकीन नहीं आ रहा है कि उनका ब्लैक राइस कभी बिक पाएगा, क्योंकि उनके पास फंड नहीं, व्यापारी नहीं और एक्सपोर्ट का कोई जरिया नहीं है। चंदौली के पत्रकार राजीव सिंह कहते हैं, "सरकार और कृषि महकमे के अफसरों के झांसे में आकर जिन किसानों ने पिछले तीन-चार सालों तक ब्लैक राइस की खेती की, वो अपना माथा पीट रहे हैं। इन्हें समझ में नहीं आ रहा है कि अपनी उपज आखिर कहां बेचें?  ब्लैक राइस की खेती करने वाले किसानों के आंखों में सिर्फ आंसुओं की धुंध है। खेती का ये रास्ता तो इन्हें हताशा की ओर ले जा रहा है।"image

न बाजार, न खरीददार

पूर्वी उत्तर प्रदेश में चंदौली को धान का कटोरा कहा जाता है और यहां धान का बंपर उत्पादन होता है। इस जिले में करीब 2, 56, 000 किसान धान उगाते रहे हैं। पिछाड़ की बारिश के चलते साल 2022 में खरीफ सीजन में धान की खेती का लक्ष्य घटकर 1,13, 600 हेक्टेयर पर आ गया। ब्लैक राइस की खेती का तो कोई लक्ष्य ही तय नहीं किया जा रहा है। नतीजा, चंदौली जिले के बरहनी, सकलडीहा, चहनियां, चंदौली, चकिया, शहाबगंज और मुगलसराय प्रखंड के जलालपुर, कांटा, अमड़ा, नौबतपुर, चकिया, सिकंदरपुर, घुरहूपुर, शहाबगंज, तियरा, उरगांव, चहनियां, तेजोपुर, सुगाई, सिधाना, नेवादा, बगही, भुजना, दुधारी समेत तमाम गांवों के किसानों ने ब्लैक राइस को हमेशा के लिए बाय-बाय कह दिया। कुछ किसानों ने एक-दो कट्ठा ब्लैक राइस की खेती की है, लेकिन बेचने के लिए नहीं, बल्कि बीज तैयार करने के लिए। चंदौली से शुरू हुई ब्लैक राइस की खेती अब गाजीपुर, सोनभद्र, मीरजापुर, बलिया, मऊ और आजमगढ़ तक पहुंच गई है, लेकिन इसके खरीदार कहां है? इसका जवाब किसी के पास नहीं है।

चंदौली में शहाबगंज प्रखंड के भुड़कुड़ा गांव के प्रगतिशील किसान हैं विनोद सिंह। ब्लैक राइस का नाम आते ही इनका दर्द टीस मारने लगता है। ‘न्यूजक्लिक’ से बातचीत में कहते हैं, "हमने तो इस उम्मीद के साथ कि ब्लैक राइस की खेती की थी कि हमारी आय दोगुनी हो जाएगी। खेती में हमारा प्रयोग सफल रहा। उत्पादन तो खूब किया, लेकिन उसे खरीदने वाले नहीं मिले। सरकार और अफसरों के जुमले के भंवर में हमारा भविष्य ही डूब गया। हम इसे अपनी बदनसीबी कहें, या फिर छल, जो ब्लैक राइस की खेती करके लुट गए।"

"अस्सी हजार प्रति कुंतल ब्लैक राइस बेचने का सपना दिखाने वाले अफसर अब यह बताने के लिए तैयार नहीं है कि हम अपनी उपज कहां बेचें? उत्साहजनक बाजार नहीं मिलने से साल 2021 में सिर्फ 50 हेक्टेयर में ब्लैक राइस की खेती हुई। सिर्फ चंदौली ही नहीं, समूचे पूर्वांचल के अधिसंख्य किसानों ने इसकी खेती से तौबा कर लिया है। अपनी इज्जत बचाने के लिए इस बार सिर्फ उन्हीं किसानों ने थोड़ा सा ब्लैक राइस उगाया है जो चंदौली काला चावल समिति के पदाधिकारी अथवा सक्रिय सदस्य हैं।"

चंदौली के जलालपुर गांव के किसान चंद्रशेखर कुमार मौर्य चंदौली काला चावल फार्मर प्रोड्यूशर कंपनी से जुड़े हैं। वह कहते हैं, "प्रधानमंत्री के मुंह से चंदौली तारीफ के शब्द सुनकर पूर्वांचल के किसान गदगद हो जाते हैं, लेकिन उनके झूठे सपने लेकर हम क्या करें? हमारी खुशी तो तभी से आंसू बनकर बह रही है जब से हम इसका बाजार बताने के लिए अफसरों से गुहार लगा रहे हैं। अकेले हम ही नहीं हैं, ब्लैक राइस की खेती करने वाले सभी किसान रो रहे हैं। शुरुआती दिनों में इसकी खेती का अनुभव अच्छा रहा, लेकिन सरकारी नुमाइंदों ने हमारे उत्पाद को बेचने के लिए कोई बाजार खोजा ही नहीं। नतीजा, धान उत्पादक किसान कर्ज के दलदल में फंसे तो फंसते ही चले गए।"

चंद्रशेखर यह भी कहते हैं, "जब सपना तोड़ना ही था तो दिखाया ही क्यों? हम तो चिंटू जिया, सोनम और मंसूरी मोटे अनाज से ही अपना पेट भर लेते थे। ब्लैक राइस लेकर हम कहां जाएं? ब्लैक राइस की खेती के लिए हमने बैंक से लोन लेकर खेती की थी, लेकिन उपज बिक नहीं पाई। खेती पर लगा सारा पैसा डूब गया। हमारे जैसे कई बच्चों की पढ़ाई और तमाम बेटियों की शादियां तक रुक गईं। तमाम किसानों के घरों में आज भी ब्लैक राइस सड़ रहा है और बैंक का ब्याज बढ़ रहा है। हम तो सरकार की बातों में फंसकर ठगे गए। हमने ब्लैक राइस की खेती अब हमेशा के लिए छोड़ दी है।"

चंदौली के शहाबगंज प्रखंड के खिचलीं के प्रगतिशील किसान राम अवध सिंह कहते हैं, "चंदौली में वोकल फॉर लोकल का नारा मजाक बनकर रह गया है। हमारा ब्लैक राइस कोई नहीं पूछ रहा है। खरीददार तो आ नहीं रहे, अलबत्ता मुर्गी पालने वाले हमारे धान का भाव लगा रहे हैं चार से छह रुपये किलो। गौर करने की बात है कि इस धान की खेती से हमारी कितनी तौहीन हो रही है? ब्लैक राइस की खेती चंदौली के किसानों के लिए जी का जंजाल बन गई है। हमें तो सरकारी संरक्षण की दरकार है। निजी कंपनियों के भरोसे बेड़ा पार होने वाला नहीं है। हमारे उत्पाद को बेचने और खरीदने की जिम्मेदारी खुद सरकार उठाए। पहले सपना दिखाना और बाद में जुमलेबाजों की तरह भरमाकर छोड़ देना ठीक नहीं है। जब पहले का ब्लैक राइस गोदाम और किसानों के घरों में भरा है और नहीं बिक पा रहा है तो किसान इसकी खेती क्यों करेंगे? फिलहाल तो पहले के चावल को खपाने में ही हमारे पसीने छूट रहे हैं। रिश्तेदारों और शुभचिंतकों को मुफ्त में चावल देकर ब्लैक राइस से अपना पीछा छुड़ा लेना चाहते हैं।"

ब्लैक राइस के लिए बाजार न मिलने से परेशान किसान राम अवध यह भी कहते हैं, "चंदौली के किसानों के समझ में आ गया है कि हमारी आंखों में धूल झोकी जा रही है। कोई बताए कि ब्लैक राइस से कौन मालामाल हुआ? हमें तो कोई भगीरथ नहीं दिख रहा जो हमारे ब्लैक राइस को बिकवा सके। चंदौली के किसानों को पता चल गया है कि इसकी खेती से कोई लाभ नहीं होने वाला है। काला चावल की डिमांड इसलिए भी नहीं है कि वो खाने में बेस्वाद है। चंदौली के तत्कालीन डीएम नवनीत सिंह चहल ने ब्लैक राइस से होने वाली कमाई को न जाने क्यों तिल का ताड़ बना दिया? उनके जाते ही झूठे सब्जबाग उजड़ गए और सरकार की कलई खुल गई। सारा का सारा शो फ्लॉप हो गया। हमें तो यही लगता है कि सरकार भी नौटंकी करती है। कोई भी कह सकता है कि यह फर्जीवाड़ा और धोखाधड़ी का खेल है। साफ शब्दों में कहें तो ब्लैक राइस से बंपर कमाई की उम्मीद महज सफेद झूठ है और जुमला भी। इसकी खेती से मुनाफे की उम्मीद करना व्यर्थ है।"

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आंकड़ों में चंदौली का ब्लैक राइस

वर्ष किसान  रकबा उत्पादन
2018 30 10 बीघा 04 क्विंटल
2019 200 100 हेक्टेयर 1129 क्विंटल
2020 275 100 हेक्टेयर 1300 क्विंटल
2021 125  50 हेक्टेयर 500 क्विंटल
2022 ------- ------- -------

*साल 2022 में ब्लैक राइस की खेती का ब्योरा कृषि विभाग के पास उपलब्ध नहीं है।

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