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यूपी: बलिया के चंद्रशेखर विवि की नियुक्तियों पर उठे सवाल, 80 फ़ीसद पदों पर ब्राह्मणों की भर्तियां!

विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर कल्पलता पांडेय पर एसोसिएट प्रोफेसर के चार पदों पर प्रभावशाली अभ्यर्थियों, जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 ईडब्लूएस और अनारक्षित पदों में से 13 पर अपनी ही जाति के मनचाहे अभ्यर्थियों की नियुक्ति का आरोप है।
Chandrashekhar University

देश के 8वें प्रधानमंत्री चंद्रशेखर सिंह को यूं तो बलिया की शान कहा जाता है। लेकिन उनके नाम पर बना जिले का जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय इन दिनों नियुक्तियों में कथित तौर पर धांधली और अनियमितता के चलते सुर्खियों में है। आरोप है कि विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर कल्पलता पांडेय ने एसोसिएट प्रोफेसर के चार पदों पर प्रभावशाली अभ्यर्थियों, जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 अनारक्षित पदों में से 13 पर एक ही समुदाय के मनचाहे अभ्यर्थियों की नियुक्ति कर जातिवाद का एक बेहद बुरा उदाहरण पेश किया है। फिलहाल नियुक्तियों में गड़बड़ी को लेकर उत्तर प्रदेश सरकार ने तीन सदस्यीय जांच कमेटी का गठन किया है। तो वहीं इस मामले की गूंज अब इलाहाबाद हाईकोर्ट तक भी पहुंच गई है। कोर्ट में इस मामले पर सुनवाई जारी है।

बता दें जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय विधानसभा एक्ट द्वारा पारित एक स्टेट यूनिवर्सिटी है। इसकी स्थापना साल 2016 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा की गई थी। राज्य की राज्यपाल आनंदीबेन पटेल इस विश्वविद्यालय की कुलाधिपति हैं और इस विश्वविद्यालय के व्यय का वहन राज्य सरकार द्वारा ही किया जाता है। ये विश्वविद्यालय बीते दिनों अपने विस्तार को लेकर चर्चा में था, जिसे पक्षी अभयारण्य क्षेत्र में बिना मंजूरी के शुरू करने की खबरें सामने आई थीं।

क्या है पूरा मामला?

प्राप्त जानकारी के मुताबिक विश्वविद्यालय ने बीते साल दिसंबर 2021 में रिक्त एसोसिएट और असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों के लिए विज्ञापन जारी किया था। जिसके बाद नियुक्ति की पहली सूची इस साल 14 अगस्त और दूसरी सूची 29 अगस्त को जारी की गई। कुल मिलाकर दोनों सूचियों में एसोसिएट प्रोफेसर के चार पदों पर प्रभावशाली अभ्यर्थियों, जबकि असिस्टेंट प्रोफेसर के 16 आर्थिक रूप से कमजोर और सामान्य जाति के अनारक्षित पदों में से 13 पर एक ही ब्राह्मण समुदाय के लोगों का चयन हुआ, जो फिलहाल विवाद का विषय है।

इन भर्तियों की नियुक्ति लिस्ट देखकर आम लोगों के साथ-साथ अभ्यर्थी भी शासन-प्रशासन से सवाल पूछ रहे हैं कि क्या ईडब्लूएस कोटे के तहत सामान्य संवर्ग में किसी अन्य सामान्य जाति जैसे कि राजपूत, कायस्थ इत्यादि के योग्य अभ्यर्थी कुलपति महोदया प्रो कल्पलता पांडेय जी के सामने से नहीं गुजरे क्या? क्या अकादमिक योग्यता और साक्षात्कार में सिर्फ एक ही जाति विशेष के लगभग अस्सी प्रतिशत अभ्यर्थी ही योग्य थे ?

इस बीच नियुक्ति प्रक्रिया के तहत ली गई बहुविकल्पीय प्रकृति की लिखित परीक्षा पर भी सवाल उठे। अभ्यर्थियों का कहना था कि परीक्षा हॉल में दिया गया प्रश्न पत्र परीक्षा के उपरांत वापस ले लिया गया और उत्तर कुंजी जारी होने के बाद गलत सवालों पर आपत्ति के लिए समय दिया गया। परन्तु बिना प्रश्नपत्र के कोई भी अभ्यर्थी आपत्ति कैसे दर्ज कराता? मसलन, कुछ अभ्यर्थियों ने आरोप लगाया कि विश्वविद्यालय की ये प्रक्रिया अनुचित थी और कुछ विशेष लोगों को लाभ पहुंचाने हेतु ऐसा किया गया था।

चेतावनी के बावजूद आनन-फानन में विश्वविद्यालय ने जारी किया रिजल्ट

स्थानीय अखबारों में छपी खबर के अनुसार अनियमितता की पहली शिकायत इस संबंध में 28 जुलाई 2022 को राजभवन में ऋतु त्रिपाठी नाम से ईमेल के जरिए की गई। जिसके बाद एक पत्र 16 अगस्त 2022 को राजभवन से सहायक सचिव द्वारा जारी किया गया। जिसमें कुलपति को नियुक्ति में अनियमितता न करने और भर्ती प्रक्रिया में सावधानी बरतने का स्पष्ट निर्देश दिया गया। हालांकि इसके बावजूद आनन-फानन में विश्वविद्यालय ने साक्ष्य पत्रों को बिना वेबसाइट पर प्रस्तुत किए दोनों लिस्ट जारी कर दी।

मालूम हो कि इससे पूर्व भी कुलाधिपति द्वारा प्रदेश के सभी विश्वविद्यालयों के कुलपतियों को 17 जुलाई 2019 को एक पत्र जारी किया गया था। जिसमें तत्कालीन एच आर डी मंत्रालय, वर्तमान का शिक्षा मंत्रालय भारत सरकार के भी निर्देशों का हवाला देते हुए कहा गया था कि कोई भी आवश्यक सूचना औऱ कार्यवाही के सम्बंधित साक्ष्य पत्रों को विश्वविद्यालय अपनी वेबसाइट पर प्रस्तुत करे। इसके साथ ही अकादमिक नियुक्तियों इत्यादि में पारदर्शिता दिखाते हुए आवश्यक साक्ष्य पत्रों को भी अपनी वेबसाइट पर प्रस्तुत करे। लेकिन बलिया के जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय ने इन सभी बातों को ताक पर रखते हुए उम्मीदवारों के स्क्रूटनी और साक्षात्कार के लिए चयनित सूची विश्वविद्यालय के पोर्टल पर अपलोड नहीं की। परीक्षा का प्रश्नपत्र भी वेबसाइट पर उपलब्ध नहीं है।

इसके अलावा नाम न छापने की शर्त पर कई अभ्यर्थियों ने न्यूज़क्लिक को बताया कि असिस्टेंट प्रोफेसर पद पर नियुक्ति के लिए यूजीसी की गाइडलाइन है कि साक्षात्कार के लिए अकादमिक इंडेक्स में उन्हीं उम्मीदवारों को अनुभव का लाभ व नम्बर दिया जाएगा, जिन्होंने एडहॉक पर 57,700 रुपये वेतनमान पर कार्य किया है। परंतु जननायक चंद्रशेखर विश्विद्यालय में ऐसे कई उम्मीदवारों का चयन हुआ है, जिन्होंने इस वेतनमान पर कभी कार्य ही नहीं किया है लेकिन उन्हें अनुभव का नम्बर एकेडमिक इंडेक्स में जोड़कर उनको साक्षात्कार के लिए आमंत्रित कर उनका चयन भी किया गया।

भ्रष्टाचार पर ज़ीरो टॉलरेंस लेकिन गड़बड़ियों की झड़ी

इस मामले में मिशन आईटीआई ट्रस्ट वाराणसी के प्रबंधक सुधांशु सिंह ने भी एक पत्र राज्यपाल महोदया को लिखा है, जिसमें उन्होंने यूजीसी के तमाम गाइडलाइन्स का हवाला देते हुए इस पूरी नियुक्तिि प्रक्रिया को कठघरे में खड़ा किया है। तथा राज्यपाल महोदया को, जो विश्वविद्यालय की पदेन कुलाधिपति भी हैं, से शीघ्र अति शीघ्र पूरे विषय पर स्पष्टता और चयन प्रक्रिया को सार्वजनिक करने का आग्रह किया है।

गौरतलब है कि ये मामला लगभग महीने भर से स्थानीय मीडिया की सुर्खियों में है, लेकिन इसकी गंभीरता को न तो प्रदेश सरकार समझ रही है और न ही विश्वविद्यालय प्रशासन। भ्रष्टाचार पर जीरो टॉलरेंस का दावा करने वाली योगी सरकार की लगभग अब तक की ज्यादातर भर्तियां सवालों के घेरे में ही रही हैं। कभी वैकेंसी नहीं निकलती, तो कभी पेपर लीक हो जाते हैं। कभी नतीजों को नज़र लग जाती है, तो कभी सालों बाद भर्तियां ही रद्द हो जाती हैं। इन सब के बीच प्रदेश के हज़ारों करोड़ों नौजवानों के भविष्य अधर में लटके हुए हैं। लेकिन सरकार अपनी उपलब्धियां गिनाने में मस्त है।

नोट: इस संबंध में न्यूज़क्लिक ने यूनिवर्सिटी प्रशासन से भी उनका पक्ष जानने के लिए फोन के माध्यम से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन फिलहाल हमारा संपर्क नहीं हो पाया है। जैसे ही हमें आगे कोई भी जानकारी मिलेगी इस खबर को अपडेट किया जाएगा।

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