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'रोजगार अधिकार है' की कानूनी गारंटी के साथ रिक्त पड़े 6 लाख पद भरे यूपी सरकार: SYM की हुंकार

रोजगार की गारंटी के लिए कानून बनाने और रिक्त पदों को भरने की मांग यूपी में जोर पकड़ रही है। युवा नेताओं के अनुसार, सरकारी दावे और प्रोपेगेंडा के बावजूद यूपी में बेरोजगारी की स्थिति बेहद गंभीर है।
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प्रतीकात्मक तस्वीर।

"रोजगार की गारंटी के लिए कानून बनाने और रिक्त पदों को भरने की मांग यूपी में जोर पकड़ रही है। युवा नेताओं के अनुसार, सरकारी दावे और प्रोपेगेंडा के बावजूद यूपी में बेरोजगारी की स्थिति बेहद गंभीर है। राज्य के बड़े हिस्से से नौजवान दूसरे प्रदेशों में पलायन के लिए मजबूर हैं। यही नहीं उत्तर प्रदेश से पूंजी का भी पलायन हो रहा है। इन्वेस्टर्स समिट व रोजगार मेले जैसे सरकारी आयोजन महज प्रचार के लिए रह गए हैं। प्रदेश में न कोई नया उद्योग लग रहा है और न ही बाहर से पूंजी आ रही है। इसलिए प्रदेश में रोजगार सृजन को लघु कुटीर उद्योगों की मजबूती, कृषि क्षेत्र का विकास और कृषि आधारित उद्योग धंधे लगाने की अर्थव्यवस्था पर जोर देना होगा।"

दरअसल केंद्र सरकार के आकस्मिक बुलाए गए संसद के विशेष सत्र से उत्तर प्रदेश में भर्तियों का इंतजार कर रहे लाखों छात्र चिंतित हैं कि अगर शिक्षा आयोग के गठन और लंबित भर्तियों को लेकर सरकार का रवैया यूं ही गैरजिम्मेदाराना बना रहा तो भर्तियां कहीं आचार संहिता की भेंट न चढ़ जाएं। ऐसे में सरकार पर दबाव बनाने के लिए आज 5 सितंबर को प्रयागराज में युवा पंचायत बुलाई गई है। इसके लिए संयुक्त युवा मोर्चा के बैनर तले नागरिक समाज, अधिवक्ता, लेखक, शिक्षक, ट्रेड यूनियन, छात्र नेताओं आदि को आमंत्रित किया गया है। खास है कि नागरिक समाज, अधिवक्ता मंच समेत अन्य संगठनों ने संयुक्त युवा मोर्चा के रोजगार अधिकार अभियान का समर्थन किया है। संयुक्त युवा मोर्चा (SYM) की केंद्रीय टीम सदस्य राजेश सचान के अनुसार, सरकारी विभागों में रिक्त पदों को पारदर्शी तरीके से भरने का चुनावी वायदा था जिससे आज सरकार मुकर रही है। अरसे से ठप चयन प्रक्रिया तत्काल शुरू की जाए अन्यथा सरकार को खमियाजा भुगतना पड़ेगा। 

वहीं, युवा मंच अध्यक्ष अनिल सिंह ने कहा कि प्रदेश में 6 लाख से ज्यादा पद रिक्त पड़े हैं लेकिन इन पदों को भरने के वायदे को पूरा करने के बजाय सिर्फ और सिर्फ सरकार प्रोपेगैंडा में लगी है। उन्होंने आरोप लगाया कि जानबूझकर सरकार विवाद पैदा कर चयन प्रक्रिया बाधित कर रही है। ताजा उदाहरण विधानमंडल से पारित शिक्षा सेवा चयन आयोग विधेयक में शिक्षकों की सेवा सुरक्षा संबंधी माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड अधिनियम 1982 की धारा 21 को शामिल न करना है।

संयुक्त युवा मोर्चा टीम उत्तर प्रदेश के सदस्य ई राम बहादुर पटेल व अनिल पाल ने कहा कि युवा पंचायत में मुख्य रूप से शिक्षा आयोग का तत्काल गठन करने, टीजीटी और पीजीटी के विज्ञापन 22 में सभी रिक्त पदों (25 हजार सरकारी आंकड़ा है) को शामिल करने, प्राथमिक विद्यालयों के खत्म किए गए 1.39 लाख पदों को बहाल कर सभी रिक्त पदों पर चयन प्रक्रिया शुरू करने, एलटी व प्रवक्ता जीआईसी), पुलिस, तकनीकी संवर्ग आदि सभी रिक्त पदों को भरने के चुनावी वायदे को सरकार आम चुनाव के पहले भरने जैसे मुद्दों पर मुख्यमंत्री को ज्ञापन प्रेषित कर तत्काल मांगों को पूरा करने की अपील की जाएगी।

रोजगार के सवाल पर संयुक्त युवा मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस युवा पंचायत को सफल बनाने को छात्रों ने ताकत झोंक रखी है। युवा मंच अध्यक्ष अनिल सिंह ने बताया कि पंचायत में रोजगार अधिकार कानून बनाने, शिक्षा आयोग का तत्काल गठन और प्रदेश में रिक्त पड़े 6 लाख पदों को चुनाव के पहले भरने खासकर टीजीटी पीजीटी के विज्ञापन 22 में सभी रिक्त पदों (25 हजार सरकारी आंकड़ा है) को शामिल करने, प्राथमिक विद्यालयों के खत्म किए गए 1.39 लाख पदों को बहाल कर सभी रिक्त पदों पर चयन प्रक्रिया शुरू करने, एलटी व प्रवक्ता (जीआईसी), पुलिस, तकनीकी संवर्ग आदि सभी विभागों के रिक्त पदों को विज्ञापित करने, आउटसोर्सिंग पर रोक एवं चयन प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने जैसे मुद्दों को उठाया जाएगा।

देशभर में 1 करोड़ रिक्त पद भरने, संविदा व्यवस्था खत्म करने और रोजगार गारंटी कानून की मांग को लेकर देशव्यापी आंदोलन  

सालों पहले केंद्र सरकार में रिक्त पड़े 10 लाख पदों को एक साल में भरने की घोषणा प्रधानमंत्री मोदी द्वारा की गई थी, लेकिन अभी तक नोटिस लेने लायक प्रगति नहीं है। अकेले रेलवे में तकरीबन साढ़े तीन लाख पद रिक्त हैं। लेकिन कर्मचारियों की भारी कमी के बावजूद इन्हें भरा नहीं जा रहा है। सभी राज्यों में भी बड़े पैमाने पर पद रिक्त पड़े हैं। खास है कि सार्वजनिक क्षेत्र में रिक्त पड़े एक करोड़ पदों को भरने, आउटसोर्सिंग/संविदा व्यवस्था खत्म करने और रोजगार अधिकार को कानूनी दर्जा देने जैसे सवालों पर देशव्यापी आंदोलन के लिए 113 संगठनों द्वारा गठित संयुक्त युवा मोर्चा ने 15 जुलाई को दिल्ली कांस्टीट्यूशन क्लब में सम्मेलन किया था। युवा मंच संयोजक राजेश सचान के अनुसार, देश में रोजगार संकट आज सर्वाधिक ज्वलंत मुद्दा है। दरअसल रोजगार संकट के हल के लिए रोजगारविहीन अर्थव्यवस्था की जगह रोजगारपरक अर्थव्यवस्था की जरूरत है। लेकिन वैश्विक पूंजी के हित में संचालित नीतियों में बदलाव के लिए सरकार तैयार नहीं है।

यूपी में भी चुनावी वादा किया गया था कि सभी रिक्त पदों को समयबद्ध भरा जाएगा, लेकिन 6 लाख पद अरसे से रिक्त पड़े हुए हैं। नये आयोग के नाम पर चयन प्रक्रिया ठप है। इसमें से सर्वाधिक रिक्त पद, सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 1.26 लाख परिषदीय स्कूलों के हैं, जिन्हें भरने से ही सरकार इंकार कर रही है।

'रोजगार का अधिकार', देश में एक नए आंदोलन का आगाज, जन आयोग ने पिछले साल रोजगार और बेरोजगारी पर पेश की थी रिपोर्ट 

देश में बढ़ रही बेरोजगारी से निजात दिलाने को बड़े आंदोलन की तैयारी है। इसे लेकर शुरू किए गए, देश बचाओ अभियान के अंतर्गत गठित 'जन आयोग' द्वारा पिछले साल 11 अक्टूबर को रोजगार एवं बेरोजगारी विषय पर कांस्टीट्यूशन क्लब में रिपोर्ट पेश की गई थी। जेएनयू के पूर्व प्रोफेसर एवं प्रख्यात समाजशास्त्री डॉ. आनंद कुमार, इस आंदोलन के समन्वयक हैं। रिपोर्ट तैयार करने में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री प्रो. अरुण कुमार, अधिवक्ता प्रशांत भूषण और युवा हल्लाबोल के संस्थापक अनुपम सहित कई लोगों ने अपना योगदान दिया था। रिपोर्ट के साथ एक ड्राफ्ट भी तैयार किया गया है, जिसमें 'रोजगार के अधिकार', को मौलिक अधिकारों में शामिल कराने के लिए संविधान संशोधन को देश में आंदोलन छेड़ने को हुंकार भरी कि सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व युवा संगठनों से बातचीत कर फाइनल ड्राफ्ट तैयार होगा और उस पर कानून बनाने के लिए केंद्र सरकार से आग्रह किया जाएगा।

 महज 4 फीसदी रोजगार देता है पब्लिक सेक्टर: रिपोर्ट   

रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 15 से 29 साल की आयु वाले वर्ग को बेरोजगारी घेर रही है। जो अधिक शिक्षित हैं, उन्हें बेरोजगारी की चिंता ज्यादा सता रही है। युवा, सरकारी क्षेत्र से नौकरी की अधिक उम्मीद लगाए बैठे हैं। पब्लिक सेक्टर, जो केवल 4 फीसदी रोजगार देता है, वह बेरोजगारी की समस्या को हल नहीं कर सकता। सरकारी क्षेत्र में लंबे समय तक खाली पड़े पद नहीं भरे जाते हैं। सांगठनिक क्षेत्र, छह फीसदी वर्क फोर्स को रोजगार दे सकता है, लेकिन 94 फीसदी असांगठनिक क्षेत्र की ओर किसी का ध्यान नहीं है। सांगठनिक क्षेत्र में लोगों को रोजगार देने की दर 3.32 फीसदी से 2.47 के स्तर पर पहुंच गई है। देश में छह हजार बड़े व्यवसाय हैं। छह लाख लघु एवं मध्यम यूनिट हैं। छह करोड़ माइक्रो यूनिट हैं। अधिकांश रोजगार माइक्रो यूनिट में मिल रहा है। सरकार की अधिकांश नीतियां एमएसएमई सेक्टर के लिए बन रही हैं। यही सेक्टर, सरकार के पैकेज एवं दूसरी योजनाओं का लाभ उठाता है।
 
बेरोजगारी के लिए कई फैक्टर जिम्मेदार हैं।

रोजगार एक अवशिष्ट है, मार्केटाइजेशन में सप्लाई साइड, नीतियां व श्रम कमजोर है। 94 फीसदी असांगठनिक क्षेत्र में कोई सुरक्षा भाव नहीं है। असमानता बढ़ रही है तो वहीं मांग संकुचित है। तकनीकी परिवर्तन तेजी से हो रहे हैं। ब्लैक इकोनॉमी का आकार बढ़ रहा है। आर्थिक मोर्चे पर लग रहे झटकों ने असांगठनिक क्षेत्र को बड़ा नुकसान पहुंचाया है। देश में पूर्ण रोजगार नीति लागू हो। राइट टू वर्क के सामान्य आर्थिक पहलुओं पर गौर किया जाए। उत्पादन ढांचे में बदलाव हो। कृषि क्षेत्र, जो बड़े पैमाने पर रोजगार देता है, वहां सुधार अपेक्षित हैं। सोशल सेक्टर एवं सर्विस पर ध्यान देना होगा। शिक्षा पर जीडीपी का छह फीसदी खर्च बढ़ाया जाए। स्वास्थ्य पर तीन फीसदी खर्च हो। मनरेगा पर भी कम से कम जीडीपी का एक फीसदी खर्च हो। कंस्ट्रक्शन एवं ट्रेड सेक्टर उद्योग के साथ ही ट्राइबल अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देना होगा। अगले पांच साल में पूर्ण रोजगार के संसाधन जुटाने की जरूरत है। मौजूदा समय में सांगठनिक क्षेत्र में 30 मिलियन वर्कर हैं, जबकि असांगठनिक क्षेत्र में 398 मिलियन वर्कर हैं। 428 मिलियन वर्कर को काम मिल रहा है।

सरकार को 'रोजगार का अधिकार' जोड़ना होगा

प्रो. आनंद कुमार के अनुसार,, प्रशांत भूषण एवं दूसरे लोगों ने 'रोजगार का अधिकार' का जो ड्राफ्ट तैयार किया है, उसे मौलिक अधिकारों में शामिल कराना होगा। इसके अंतर्गत सभी जिलों में रोजगार अधिकारी नियुक्त हों। वहां पर नौकरी के लिए पंजीकरण कराना होगा। इस पंजीकरण के तीन माह के भीतर काम नहीं मिलता है तो सरकार उन्हें बेरोजगारी भत्ता दे। इसके लिए केंद्र, राज्यों को कोष मुहैया कराएगा। इस योजना का सालाना सरकारी ऑडिट होगा। 28 करोड़ लोगों को काम मिलेगा तो 270 लाख करोड़ रुपये की संपदा पैदा होगी। इसके लिए साढ़े 13 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे। देश में छह लाख छोटे उद्योगों को मदद की बात नहीं होती। प्रो. आनंद कुमार ने बताया कि रिपोर्ट और ड्राफ्ट पर चर्चा के लिए विभिन्न राज्यों का दौरा कर, अन्य संगठनों से बातचीत की जाएगी। सरकारी भर्ती प्रक्रिया तय समय पर पूरी हो। हर एक व्यक्ति को न्यूनतम आय पर रोजगार गारंटी मिले। बेरोजगार लोगों को 50 किलोमीटर के दायरे में ही न्यूनतम आय पर रोजगार दिया जाए। 

पब्लिक सेक्टर में जानबूझकर नौकरियों में देरी

युवा हल्लाबोल के संस्थापक अनुपम के अनुसार, सरकार को मॉडल एग्जाम कोड लागू करना होगा। हर व्यक्ति को न्यूनतम आय पर रोजगार गारंटी मिले। बेरोजगार लोगों को अपने घर के आसपास ही न्यूनतम आय पर रोजगार मिले। सरकारी उपक्रमों को बेचने की नीति बंद हो। अनुबंध आधारित नौकरी की बजाए स्थायी रोजगार उपलब्ध कराए जाए। देश की सत्तर प्रतिशत युवा आबादी को राष्ट्रीय आपदा बनाया जा रहा है। पब्लिक सेक्टर में जानबूझकर नौकरियों की किल्लत दिखाई जा रही है। रेलवे, एसएससी व दूसरे महकमों में नौकरी देने की तरीका बहुत खराब है। फार्म भरने से लेकर नियुक्ति पत्र मिलने के बीच इतना ज्यादा समय लगता है कि अधिकांश युवा उम्रदराज हो जाते हैं। केंद्र एवं राज्य सरकारों को मिलाकर देश में करीब एक करोड़ पद खाली हैं। सरकार इन पदों को भरने के लिए गंभीरता नहीं दिखाती। भर्ती निकलती है तो चिरकाल तक पूरी नहीं होती। 'मॉडल एग्जाम कोड', जिसमें भर्ती प्रक्रिया नौ माह में पूरी करने की बात कही गई थी, उसे तैयार कर सरकार को भेजा गया। भर्ती लेट चल रही है तो वह सरकार की जवाबदेही होगी। इन सिफारिशों की ओर सरकार ने कोई ध्यान नहीं दिया।

44 देशों में लागू है 'रोजगार का अधिकार' 

अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा के अनुसार, देश की तात्कालिक परिस्थितियों में 'रोजगार का अधिकार' होना बहुत जरूरी है। चीन और कोरिया सहित लगभग 44 देशों ने यह अधिकार लागू कर रखा है। भारत में ऐसा कोई अधिकार नहीं है। साल 2004 तक कृषि क्षेत्र में श्रम बढ़ रहा था। उसके बाद उत्पादन में कमी आई। करीब 44 फीसदी श्रम, कृषि क्षेत्र में था। उत्पादन का जीडीपी में योगदान 15 फीसदी था। साल 2012 में खुली बेरोजगारी का आंकड़ा एक करोड़ था। 2013 से 2019 के बीच यह आंकड़ा तीन करोड़ हो गया था। इसकी एक वजह, गैर कृषि क्षेत्र में रोजगार कम होना रहा है। हर साल लगभग साठ लाख युवा, जो 16-17 वर्ष की आयु के हैं, वे रोजगार की तलाश में निकलते हैं। श्रम बल में मिसिंग लेबर फोर्स के तत्व को देखा जाना चाहिए। देश में औद्योगिक उत्पादन को तव्वजो देनी होगी। रोजगार अधिकार पॉलिसी बनाना जरूरी है। मेक इन इंडिया, क्या एक ढिंढोरा बनकर रह गया है, इस सच्चाई पर जाना होगा। कलस्टर एमएसएमई को तव्वजो दी जानी चाहिए। यहां पर निवेश करने से रोजगार बढ़ेगा। स्वास्थ्य, शिक्षा, पुलिस व न्याय विभाग में रिक्त पदों को तुरंत भरा जाए। इससे प्रशासनिक व्यवस्था में सुधार आएगा और रोजगार बढ़ेगा। सामाजिक जुड़ाव, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे मामलों में पब्लिक सेक्टर का दायरा बढ़ाना चाहिए। सहकारीकरण की अवधारणा को स्वीकारना पड़ेगा।

साभार : सबरंग 

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