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भारत में गेहूं की बढ़ती क़ीमतों से किसे फ़ायदा?

अनुभव को देखते हुए, केंद्र का निर्यात प्रतिबंध अस्थायी हो सकता है। हाल के महीनों में भारत से निर्यात रिकॉर्ड तोड़ रहा है।
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फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध छिड़ने के बाद, काला सागर क्षेत्र के माध्यम से निर्यात में गिरावट आने के बाद सरकार ने कहा कि भारत के घरेलू गेहूं बाजार की कीमतों में जैसे आग लग गई है। भारत में गेहूं की कीमतें पिछले तीन महीनों में रिकॉर्ड पर पहुंच गई हैं। कुछ हाजिर बाजारों में कीमतें 25 प्रतिशत तक बढ़ गई हैं जो सरकार के न्यूनतम समर्थन मूल्य 20,150 रुपये के मुकाबले 25,000 प्रति मीट्रिक टन तक बढ़ गई है। निर्यात व्यापार के अनुसार, भारत का गेहूं निर्यात 2021-22 में रिकॉर्ड 7.85 मिलियन टन पर पहुंच गया है।

भारत ने बांग्लादेश, दक्षिण कोरिया, श्रीलंका, ओमान, कतर और अन्य देशों को भी गेहूं का निर्यात किया है। अधिकांश निर्यात सौदे 225 डॉलर और 335 डॉलर प्रति टन फ्री ऑन बोर्ड (यानि एफओबी) के बीच के थे। अप्रैल में, भारत ने कहा था कि वह 2022 से 2023 के बीच 10 मिलियन टन गेहूं का निर्यात करने का लक्ष्य रखता है। नतीजतन, घरेलू बाजार में गेहूं की कीमतें बढ़ने लगीं। और, अपेक्षित रूप से, समर्थन मूल्य पर सरकारी खरीद में एक साल पहले की तुलना में 50 प्रतिशत से अधिक की गिरावट आई है। सरकार गेहूं के निर्यात पर रोक लगाकर अब स्थानीय कीमतों को शांत करने की कोशिश कर रही है।

पिछले महीने ही भारत ने रिकॉर्ड 14 लाख टन गेहूं का निर्यात किया था। व्यापारियों ने मई में करीब 15 लाख टन निर्यात करने के लिए नए सौदों पर हस्ताक्षर किए थे। सरकार ने कहा कि वह उस निर्यात की अनुमति देगी जिसके लिए लेटर ऑफ क्रेडिट पहलेसे जारी किए जा चुके हैं और जो विभिन्न देशों के अनुरोध पर "उनकी खाद्य सुरक्षा जरूरतों को पूरा करने" की कोशिश कर रहे हैं। सरकार ने एक्सपोर्ट ऑर्डर रद्द करने के मामले में अप्रत्याशित परिस्थितियों जैसे युद्ध, मजदूरों के न आने और खराब मौसम को संदर्भित करने वाले अप्रत्याशित घटना क्लॉज को लागू नहीं किया है। गेहूं के निर्यात पर तुरंत प्रतिबंध लगाने के पीछे सरकार द्वारा दिया गया एक कारण उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख गेहूं उत्पादक राज्यों में प्रचलित "बेहद गर्म मौसम" है।

भारत के कुल गेहूं उत्पादन में उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी करीब 38 फीसदी है। भारत चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक देश है। चीन के 135 मिलियन टन के मुकाबले देश ने पिछले साल लगभग 109 मिलियन टन गेहूं का उत्पादन किया था। दिलचस्प बात यह है कि 2021 में चीन का गेहूं आयात 16.6 प्रतिशत बढ़कर 9.77 मिलियन टन हो गया था। दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक रूस, लगभग 86 मिलियन टन का उत्पादन करता है। पिछले हफ्ते, भारत के कृषि मंत्रालय ने कहा कि इस साल देश का गेहूं उत्पादन लगभग तीन प्रतिशत घटकर 106 मिलियन टन हो सकता है - 2014-15 के बाद यह पहली गिरावट है।

चीन (1.44 अरब) और भारत (1.39 अरब) की आबादी के आकार को देखते हुए, जो एक-दूसरे के करीब हैं, भारत के पास गेहूं के निर्यात को सही ठहराने का कोई कारण नहीं है। जाहिर है, देश का तथाकथित गेहूं और चावल निर्यात का अधिशेष, देश के गरीब लोगों के पेट की कीमत पर हो सकता है। चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक भी है, जो सालाना लगभग 148 मिलियन टन उत्पादन करता है। यह चावल का आयात भी करता है। भारत, दूसरा सबसे बड़ा चावल उत्पादक, लगभग 122 मिलियन टन का उत्पादन करता है और चावल का एक प्रमुख निर्यातक है। भारत ने 2021-22 में 150 से अधिक देशों को चावल का निर्यात किया था।

वाणिज्यिक खुफिया महानिदेशालय (DGCI) के अनुसार, भारत ने 2019-20 में 2 बिलियन अमेरिकी डॉलर के गैर-बासमती चावल का निर्यात किया था, जो 2020-21 में बढ़कर 4.8 बिलियन डॉलर और 2021-22 में 6.11 बिलियन डॉलर हो गया था। 2021 में भारत का चावल निर्यात कुल 21.4 मिलियन टन था, जो पिछले वर्ष की तुलना में 46 प्रतिशत अधिक था। बांग्लादेश 2021 में 2.48 मिलियन टन भारतीय चावल का सबसे बड़ा खरीदार था, इसके बाद नेपाल, बेनिन और चीन का स्थान आता है। भारत की लगभग 20 प्रतिशत गरीब आबादी, बाजरा और मक्का जैसे सस्ते अनाज पर गुजर करती है, जिसका उपयोग पशुओं के चारे में भी किया जाता है।

मूल रूप से, भारत ने देश में कीमतों को नियंत्रित करने के लिए गेहूं के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया है। सरकार को इस साल भीषण गर्मी के कारण गेहूं का उत्पादन कम होने का भी डर था। लेकिन ये रिपोर्ट किए गए घटनाक्रम शायद ही समझा पाते हैं कि क्यों, कुछ ही दिन पहले ही, सरकार ने इस साल एक करोड़ टन से अधिक गेहूं के निर्यात का रिकॉर्ड लक्ष्य का फैसला किया था। इस महीने की शुरुआत में प्रधानमंत्री के निर्यात आश्वासन के बारे में क्या कहें? गेहूं के निर्यात पर भारत के अचानक प्रतिबंध ने कई देशों को परेशान कर दिया है। इसने कनाडा, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया जैसे पारंपरिक निर्यातक देशों में उत्पादन के मुद्दों और युद्धग्रस्त काला सागर क्षेत्र में खराब आपूर्ति के कारण पहले से ही तंग आपूर्ति के कारण विश्व बाजारों को एक नया झटका दिया है।

सामान्य समय में, रूस और यूक्रेन दोनों मिलाकर, एक साथ दुनिया के सबसे बड़े गेहूं आपूर्ति स्रोत हैं। भारत के इस फैसले ने जी-7 ब्लॉक को खास तौर पर परेशान कर दिया है। 1-2 मई को जर्मनी की अपनी यात्रा के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि भारत असामान्य स्थिति से प्रभावित देशों को खाद्यान्न की आपूर्ति कर सकता है। भारत ने इस साल गेहूं के निर्यात की संभावना का अनुमान लगाने के लिए नौ देशों में एक व्यापार प्रतिनिधिमंडल भेजने की भी योजना बनाई है। हालांकि, कहा यह जा रहा है कि हाल ही में अनुमानित उत्पादन में कमी ने सरकार के रुख को अचानक बदल दिया है। घरेलू खाद्य सुरक्षा के लिए निर्यात पर अंकुश लगाया गया है, जबकि भारत अब कह रहा है कि वैश्विक बाजार में अनाज की कोई कमी नहीं है।

फिर भी, अनुभव के अनुसार, इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि कम उत्पादन के पूर्वानुमान के बावजूद भी भारत का गेहूं निर्यात प्रतिबंध लंबे समय तक चलेगा। 2014-15 में भी, जब भारत का अनाज उत्पादन तेजी से गिरा था, व्यापारी गेहूं, चावल और मक्का का निर्यात करने में कामयाब रहे थे, हालांकि उनका संयुक्त निर्यात 29 प्रतिशत गिरकर 13.5 मिलियन टन हो गया था। बहुत कुछ व्यापार में हेरफेर की क्षमता पर निर्भर करता है, जो लगभग हर साल अनाज का निर्यात और आयात करने का प्रबंधन करता है। विडंबना यह है कि भारतीय व्यापारी साल दर साल नियमित रूप से गेहूं का आयात कर रहे हैं।

 

जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है, 2016-17 से भारत ने सबसे अधिक गेहूं आयात किया है।  आयातकों ने ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस और यूक्रेन से 2.7 मिलियन टन गेहूं खरीदा, और उस वर्ष बाद में 1.2 मिलियन टन अनाज का अनुबंध किया गया है। विरोधाभासी रूप से, भारत ने 2016 में गेहूं के निर्यात से भी 50 मिलियन डॉलर कमाए हैं। वास्तव में, निजी व्यापारी गेहूं, चावल, अनाज, चीनी और खाद्य तेलों के आयात, निर्यात और कीमतों को नियंत्रित करते हैं, चाहे कोई भी सरकार या राजनीतिक दल सत्ता में हो। गेहूं के निर्यात पर सरकार का नवीनतम प्रतिबंध, अधिक से अधिक, एक अस्थायी उपाय ही लगता है।

 

ऐसी संभावना है कि जून के अंत तक गेहूं निर्यात पर से प्रतिबंध हटा दिया जाएगा या शर्तों को नरम कर दिया जाएगा। निर्यात प्रतिबंध के एक हफ्ते से भी कम समय के बाद कुछ घरेलू बाजारों के व्यापारियों ने पहले ही गेहूं की कीमतों में कमी कर दी है। कीमतों में यह गिरावट स्पष्ट रूप से इंगित करती है कि व्यापारी कृषि-बाजार को कैसे नियंत्रित करते हैं। घरेलू गेहूं बाजार में कीमतों में उतार-चढ़ाव भी आगामी दक्षिण-पश्चिम मानसून के रुख पर निर्भर करेगा। सरकार के मौसम विभाग (IMD) ने एक हफ्ते पहले भविष्यवाणी की थी कि चक्रवात आसनी और करीम की वजह से इस साल मानसून जल्दी आएगा।

 

आईएमडी ने 2022 में सामान्य दक्षिण-पश्चिम मानसून की भविष्यवाणी की है। यानि बारिश का लगभग समान वितरण का अनुमान है, हालांकि कुछ खास इलाकों में कम बारिश हो सकती है। पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश के पश्चिमी हिस्से को छोड़कर, अधिकांश अन्य गेहूं उत्पादक राज्यों में जून के मध्य तक अच्छी बारिश होने की उम्मीद है। दक्षिण-पश्चिम मानसून आमतौर पर जुलाई के पहले सप्ताह में उन उत्तर-पश्चिमी राज्यों में सेट होता है। हालांकि, इससे घरेलू गेहूं की कीमतों में गिरावट की संभावना नहीं है।

 

(आईपीए सेवा)

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