आरएन रवि का नगालैंड का राज्यपाल बनने के मायने
भारत सरकार की तरफ से इंडो-नगा वार्ता के वार्ताकार आरएन रवि को 20 जुलाई को नगालैंड का नया राज्यपाल नियुक्त किया गया है। इस घोषणा के बाद मिली जुली प्रतिक्रियाएं आई हैं। कुछ लोगों का मानना है कि इनके नियुक्ति से वार्ता को गति मिलेगी जबकि अन्य लोगों का मानना है कि इससे वार्ता में रुकावट पैदा होगी।
लगता है ये प्रतिक्रियाएं उन अटकलों के आधार पर हैं कि रवि अब वार्ताकार नहीं होंगे और अगर किसी नए व्यक्ति को वार्ता के लिए नियुक्त किया जाता है तो उन्हें नए सिरे से इसकी शुरुआत करनी होगी। हालांकि हालिया रिपोर्टों से संकेत मिलता है कि ऐसी परिस्थिति नहीं आएगी। नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नगालैंड (इसाक-मुइवा) [एनएससीएन(आई-एम)] ने अभी तक उनकी नियुक्ति पर कोई प्रेस विज्ञप्ति जारी नहीं किया है।
हालांकि, राज्यपाल और वार्ताकार के रूप में दोहरी भूमिका संभालने पर आरएन रवि को इंडो-नगा शांति वार्ता में किसी भी अन्य वार्ताकार की तुलना में अब तक सबसे ज्यादा शक्ति प्राप्त होगी। ये अनुच्छेद 371 ए के प्रावधानों में निहित है।
अनुच्छेद 371 ए में नगालैंड के लिए विशेष प्रावधान हैं। विशिष्ट कानून (कस्टमरी लॉ) के संदर्भ में यह नगालैंड को काफी स्वायत्तता प्रदान करता है। हालांकि राज्यपाल अपने कर्तव्यों के मामले में इसी तरह लगभग स्वायत्त हैं।
खंड (1)(बी) के अनुसारः
'नगालैंड के राज्यपाल का नगालैंड राज्य में विधि-व्यवस्था के संबध में तब तक विशेष उत्तरदायित्व रहेगा जब तक इस राज्य के गठन के ठीक पहले नगा पहाड़ी त्युएनसांग क्षेत्र में विद्यमान आंतरिक अशांति, उसकी राय में, उसमें या उसके किसी भाग में बनी रहती है और राज्यपाल, इस संबंध में अपने कृत्यों का निर्वहन करने में की जाने वाली कार्रवाई के बारे में अपने व्यक्तिगत निर्णय का इस्तेमाल मंत्रि-परिषद से परामर्श के पश्चात् करेगा: बशर्ते यदि यह प्रश्न उठता है कि कोई मामला ऐसा मामला है या नहीं जिसके संबंध में राज्यपाल से इस उपखंड के अधीन अपेक्षा की गई है कि वह अपने व्यक्तिगत निर्णय का इस्तेमाल करके कार्य करे तो राज्यपाल के अपने विवेक के अनुसार लिया गया निर्णय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जाएगी कि उसे अपने व्यक्तिगत निर्णय का प्रयोग करके कार्य करना चाहिए था या नहीं : बशर्ते यह और कि यदि राज्यपाल से प्रतिवेदन मिलने पर या अन्यथा राष्ट्रपति का यह समाधान हो जाता है कि अब यह आवश्यक नहीं है कि नगालैंड राज्य में विधि-व्यवस्था के संबंध में राज्यपाल का विशेष उत्तरदायित्व रहे तो वह, आदेश द्वारा, निर्देश दे सकेगा कि राज्यपाल का ऐसा उत्तरदायित्व उस तारीख से नहीं रहेगा जो आदेश में विनिर्दिष्ट की जाए;'
अब तक नगालैंड के राज्यपाल को विधि-व्यवस्था के प्रति विशेष जिम्मेदारियों से मुक्त करने का कोई आदेश नहीं दिया गया है। इसके अलावा राज्यपाल द्वारा इस संबंध में की गई किसी भी कार्रवाई पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता है। इस तरह राज्यपाल के पास काफी शक्ति है।
रवि के नेतृत्व में ही अगस्त 2015 में भारत सरकार और एनएससीएन (आईएम) के बीच समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे। बाद में वे इस फ्रेमवर्क समझौते में अन्य नगा नेशनल पॉलिटिकल ग्रुप्स (एनएनपीजी) को शामिल करने में कामयाब रहे। इसके अलावा उन्होंने वार्ता में जुड़े समूहों को दोषी ठहराते हुए वार्ता की धीमी प्रगति पर भी टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा था कि वे व्यावहारिक समाधान तलाशने को तैयार नहीं हैं, अर्थात् अन्य मांगों के साथ अलग झंडा और पासपोर्ट के संबंध में।
नगालैंड के निवर्तमान गवर्नर पीबी आचार्य ने कहा था कि 2019 में अंतिम समझौते पर हस्ताक्षर किए जाएंगे। हालांकि 2015 के बाद से समय-समय पर अलग-अलग समय सीमा के संबंध में इस तरह के बयान दिए गए हैं। इसलिए अगर नयी तारीख को यह सफल हो जाता है तो राज्यपाल और वार्ताकार दोनों की भूमिकाओं को एक साथ निभाना होगा।
यह स्पष्ट है कि संप्रभुता की मांग को छोड़ दिया गया है और विशिष्ट साझा संप्रभुता के साथ प्रतिस्थापित किया गया है। इसके अलावा लगता है कि क्षेत्रीय एकीकरण को भी नकार दिया गया है। ऐसा प्रतीत होता है कि छोड़े जाने वाले सभी प्रतीकात्मक मांगें हैं, जो 'भारत के उत्तर पूर्वी राज्यों में सुरक्षा स्थिति पर' गृह मामलों की संसदीय स्थायी समिति की 213 वीं रिपोर्ट में भी शामिल हैं।
यह संभव है कि नगालैंड के नए राज्यपाल नगालैंड में वित्त और भर्ती की समस्या को दूर करने के लिए नगा आंदोलन के अपने पद और ज्ञान का इस्तेमाल करेंगे। यह ध्यान में रखते हुए कि एनएससीएन (आईएम) ने अरुणाचल प्रदेश के सुदूर पूर्वी भाग में मज़बूत उपस्थिति विकसित की है और अभी भी उत्तरी मणिपुर में मज़बूत पकड़ है, यहां से धन और भर्ती प्रक्रिया शुरू हो सकती है।
दूसरी ओर ऑपरेशन सनशाइन के भाग एक और दो को ध्यान में रखते हुए वह भारत के नगा सशस्त्र राजनीतिक संगठनों और म्यांमार के बीच अंतिम ब्रेक में निर्णायक भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि सबसे बड़ी चुनौती यह सुनिश्चित करनी होगी कि असंतुष्ट समूह फिर से संघर्ष शुरू न करें।
अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।