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ख़बरों के आगे-पीछे: ड्रोन डील विवाद, राज्यपालों की वफ़ादारी, विश्वकप वेन्यू पर बहस व अन्य ख़बरें

ड्रोन डील विवाद समेत राज्यपालों में वफ़ादारी साबित करने की होड़, केजरीवाल के विज्ञापन ख़र्च, विश्वकप शेड्यूल पर बहस और अजित पवार के राजनीतिक करियर पर अपने साप्ताहिक कॉलम में चर्चा कर रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार अनिल जैन।
Khabron Ke Aage Peechhe

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अमेरिका यात्रा में हुए प्रीडेटर ड्रोन ख़रीदने के करार को लेकर भी राफ़ेल जैसा विवाद शुरू हो गया है। यह दिलचस्प संयोग है कि राफ़ेल विमानों के सौदे के समय भी तब के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर मौजूद नहीं थे और प्रीडेटर ड्रोन के सौदे के समय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी मौजूद नहीं रहे। दूसरा सवाल इसकी कीमत को लेकर उठाया जा रहा है, जिस पर रक्षा मंत्रालय ने सफाई दी है कि विपक्ष जिस कीमत का हवाला दे रहा है वह अंतिम नहीं है। कीमत को लेकर अभी बातचीत होनी है और मोलभाव के बाद ही कीमत तय होगी। मीडिया की खबरों के मुताबिक 31 प्रीडेटर ड्रोन यानी एमक्यू-9बी की कीमत तीन अरब डॉलर यानी तीन सौ करोड़ डॉलर है। इस लिहाज़ से एक ड्रोन की कीमत करीब 10 करोड़ डॉलर का यानी आठ सौ करोड़ रुपए है। इसमें से 16 ड्रोन स्काई गार्डियन यानी वायु सेना के लिए हैं और 15 सी गार्डियन यानी नौसेना के लिए हैं। विपक्ष का आरोप है कि ब्रिटेन ने यही ड्रोन सवा करोड़ पाउंड में यानी करीब 115 से 120 करोड़ रुपए में ख़रीदा है, जबकि भारत आठ सौ करोड़ रुपए में ख़रीद रहा है। कीमत में आठ गुना तक अंतर बताया जा रहा है। बताया जा रहा है कि जनरल एटॉमिक्स नाम की जो कंपनी इसे बनाती है उसके सीईओ भारतीय मूल के विवेक लाल है, जो पहले रिलायंस समूह के साथ काम कर चुके हैं। कंपनी यही ड्रोन अमेरिका को किस कीमत पर बेचती है उसका भी एक आंकड़ा चर्चा में है। सो, कुल मिला कर अंतिम तौर पर सौदा होने से पहले ही सौदे के तौर-तरीके और कीमत को लेकर विवाद खड़ा हो गया है।

राज्यपालों में वफादारी साबित करने की होड़!

विपक्ष शासित राज्यों के राज्यपालों में खुद को केंद्र सरकार का वफादार साबित करने की होड़ लगी हुई है। इस होड़ में वे अपने राज्यों की सरकारों को नीचा दिखाने और उनके कामकाज में रोड़े अटकाने के लिए आए दिन कुछ न कुछ करते रहे हैं। ऐसा करते हुए वे नैतिकता, अपने पद की गरिमा, संवैधानिक मर्यादा और कानून तक को खूंटी पर टांग देते हैं। इस सिलसिले में तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने मुख्यमंत्री एमके स्टालिन की सलाह या सिफारिश के बगैर ही बीते गुरूवार को राज्य के आबकारी मंत्री वी. सेंथिल बालाजी को मंत्रिपरिषद से बर्खास्त कर दिया। बर्खास्तगी का आदेश दोपहर में जारी किया गया था, लेकिन महज़ पांच घंटे बाद राज्यपाल ने खुद ही अपने फैसले को स्थगित कर दिया और कहा कि अब वे इस मामले में अटॉर्नी जनरल की राय लेंगे। कुछ समय पहले इन्हीं राज्यपाल महोदय ने राज्य के 'तमिलनाडु’ नाम पर ऐतराज़ जताते हुए उसका नाम बदलने का सुझाव दिया था, क्योंकि तमिलनाडु नाम में उन्हें अलगाव की बू आ रही थी। उधर पश्चिम बंगाल में राज्यपाल सीवी आनंद बोस ने 20 जून को राजभवन में हठपूर्वक पश्चिम बंगाल का स्थापना दिवस मनाया। ऐसा उन्होंने बंगाल विभाजन के दुखद इतिहास और उसके मद्देनज़र मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के ऐतराज़ को नज़रअंदाज़ करते हुए किया। पश्चिम बंगाल में राज्यपाल रहते हुए जगदीप धनखड़ ने भी राज्य सरकार को खूब परेशान किया था। उन्हें पदोन्नत कर उप राष्ट्रपति बना दिया गया। केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान भी ऐसे ही राज्यपालों में शुमार किए जाते हैं। महाराष्ट्र में भी इसी तरह के एक राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी हुए हैं, जो ज़्यादा वफादारी दिखाने के चक्कर में पार्टी के लिए बोझ बनते जा रहे थे, लिहाजा कुछ दिनों पहले उन्हें घर बैठा दिया गया।

राहुल को लेकर पसोपेश में भाजपा

राहुल गांधी का राजनीतिक भविष्य चाहे जो हो, आज के समय की हकीकत यह है कि वे कांग्रेस में किसी पद पर या सांसद न होते हुए भी भाजपा के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को समझ में नहीं आ रहा है कि राहुल गांधी की सक्रियता को लेकर पार्टी को क्या रूख अपनाना चाहिए। कभी तो राहुल के किसी बयान या एक्शन पर प्रतिक्रिया देने के लिए केंद्रीय मंत्रियों, भाजपा प्रवक्ताओं की फौज मैदान में आ डटती है तो कभी पार्टी की ओर से कहा जाता है कि हम राहुल गांधी को गंभीरता से नहीं लेते हैं। जैसे ही राहुल ने अभी हाल में हिंसा प्रभावित मणिपुर जाने का ऐलान किया तो सोशल मीडिया में भाजपा के कई नेताओं और समर्थकों ने सवाल उठाया कि वे कौन हैं, जो मणिपुर के दौरे पर जा रहे हैं? यह भी कहा गया कि वे न तो कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और न ही सांसद तो फिर किस 'हैसियत' से मणिपुर जा रहे हैं? एक तरफ भाजपा के लोग खुद ही राहुल गांधी को आम आदमी ठहरा रहे हैं और उनकी 'हैसियत' पूछ रहे हैं तो दूसरी ओर राहुल गांधी के खिलाफ मुंह खोलने के लिए हमेशा तैयार रहने वाली केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने प्रेस कांफ्रेन्स करके आरोप लगाया कि राहुल गांधी अपनी अमेरिका यात्रा में जॉर्ज सोरोस के फाउंडेशन से मदद लेने वाली एक महिला सुनीता विश्वनाथ से मिले थे। उन्होंने कहा कि राहुल को बताना चाहिए कि क्यों मिले थे? अब सवाल है कि जब राहुल आम आदमी है और उनकी कोई 'हैसियत' नहीं है तो फिर वे किससे मिले, इससे क्या फर्क पड़ता है और उन्हें क्यों किसी को जवाब देना चाहिए कि वे किससे मिले?

भाजपा ने तेलंगाना में उम्मीदें छोड़ी

तेलंगाना में पिछली बार भाजपा ने 117 में से सिर्फ तीन विधानसभा सीट जीती थीं लेकिन उसके बाद 2019 के लोकसभा चुनाव में 17 में से चार सीट जीत गई। उसके बाद से ही भाजपा तेलंगाना में मेहनत कर रही थी और अच्छा प्रदर्शन करने की बहुत उम्मीदें कर रही थी। के. चंद्रशेखर राव की सरकार के खिलाफ दस साल के सत्ता विरोधी माहौल को देखते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा लगातार तेलंगाना के दौरे कर रहे थे। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी पिछले एक साल में चार मर्तबा तेलंगाना की यात्रा की। लेकिन अब भाजपा का तेलंगाना अभियान ठंडा पड़ रहा है। यही नहीं पार्टी के प्रादेशिक नेताओं के बीच आपसी कलह भी गहराती जा रही है, जिसे सुलझाने की कोशिश अमित शाह और नड्डा दोनों कर रहे हैं। पिछले हफ्ते तेलंगाना के दो भाजपा नेताओं एटेला राजेंदर और के. राजगोपाल रेड्डी ने दिल्ली में शाह और नड्डा से मुलाकात की। इस मुलाकात में बीएल संतोष और तरुण चुघ भी मौजूद थे। राजेंदर पहले मुख्यमंत्री केसीआर की पार्टी में थे और रेड्डी कांग्रेस से भाजपा में आए हैं। दोनों नेता ज़मीनी हैं और दोनों ने बताया कि संगठन में बहुत गड़बड़ी है और पार्टी की चुनावी तैयारी बहुत अच्छी नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस ने यह प्रचार शुरू कर दिया है कि अंदरखाने केसीआर और भाजपा में इस बात पर समझौता हो गया है कि विधानसभा चुनाव में भाजपा केसीआर की मदद करेगी और लोकसभा चुनाव में केसीआर भाजपा की मदद करेंगे। पिछले दिनों केसीआर ने प्रधानमंत्री मोदी को अपना बेस्ट फ्रेंड बताया तो उसके बाद उनके बेटे केटीआर ने दिल्ली आकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मुलाकात की।

क्रिकेट की नई राजधानी अब अहमदाबाद

विश्व क्रिकेट का मक्का लंदन के लॉर्ड्स को कहा जाता है। इसी तर्ज पर भारत में क्रिकेट का मक्का या क्रिकेट की राजधानी मुंबई या कोलकाता को माना जाता है। मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम और कोलकाता के ईडन गार्डेन हर बड़े मैच की मेजबानी करते रहे हैं। लेकिन अब तस्वीर बदल गई है। अब भारतीय क्रिकेट की नई राजधानी अहमदाबाद है और हर बड़े मैच की मेजबानी नरेंद्र मोदी स्टेडियम करता है। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट परिषद ने एकदिवसीय क्रिकेट के विश्व कप मुकाबले का जो कार्यक्रम जारी किया है उससे यह बात और स्थापित हुई है। इस विश्व कप का उद्घाटन और फाइनल मैच समेत लगभग सारे बड़े मैच नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खेले जाएंगे। विश्व कप का सबसे रोमांचक और चर्चित मुकाबला भारत और पाकिस्तान का होता है और यह मुकाबला भी इसी स्टेडियम में होगा। अगर क्रिकेट की उप राजधानी की बात करें तो उस रूप में हिमाचल प्रदेश का धर्मशाला उभर रहा है। विश्व कप में होने वाले 48 मैचों में से पांच मैच धर्मशाला स्टेडियम में खेले जाएंगे, जबकि मोहाली और तिरुवनंतपुरम के शानदार स्टेडियमों में एक भी मैच नहीं खेला जाएगा। केरल और पंजाब के नेताओं ने इस पर सवाल उठाया है। विश्व कप से पहले आईपीएल मुकाबलों के भी बड़े मैच नरेंद्र मोदी स्टेडियम में खेले गए। फाइनल भी उसी मैदान पर हुआ। गौरतलब है कि पहले इस स्टेडियम का नाम सरदार पटेल स्टेडियम था, जिसका नाम बाद में नरेंद्र मोदी स्टेडियम कर दिया गया। यह दुनिया का सबसे बड़ा स्टेडियम है, जिसमें एक लाख 32 हज़ार लोगों के बैठने की जगह है।

विज्ञापन खर्च को लेकर केजरीवाल निशाने पर

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार के विज्ञापनों को लेकर विपक्ष के और खास कर कांग्रेस के निशाने पर हैं। पिछले दिनों वे राजस्थान के गंगानगर में रैली करने गए थे तब उन्होंने राज्य की कांग्रेस सरकार पर चारों तरफ होर्डिंग, पोस्टर लगाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि अगर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने काम किया होता तो उन्हें इतना प्रचार करने की ज़रूरत नहीं थी। उस समय कांग्रेस नेताओं ने केजरीवाल को निशाना बनाते हुए कहा था कि इससे बड़ी विडंबना नहीं हो सकती है कि जो नेता सबसे ज़्यादा खर्च विज्ञापन पर करता है, वह दूसरी पार्टी पर ज़्यादा विज्ञापन करने का आरोप लगा रहा है। कांग्रेस के इन आरोपों की अब पुष्टि हो गई है और वह भी दिल्ली के उप राज्यपाल की ओर से जारी आंकड़ों के ज़रिए। उप राज्यपाल विनय सक्सेना ने केजरीवाल को चार पन्नों की चिट्ठी लिखी है, जिसमें कांग्रेस की मुख्यमंत्री रहीं शीला दीक्षित के कामकाज की तारीफ की गई। स्वास्थ्य और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में उनके किए कामों का उन्होंने ज़िक्र किया है। इसके साथ ही उन्होंने दोनों सरकारों के विज्ञापन का आंकड़ा भी दिया है। उन्होंने लिखा है कि 2009-10 से 2013-14 के बीच शीला दीक्षित की सरकार में विज्ञापन पर 4.80 लाख रुपए रोज़ाना का खर्च था, जबकि 2015 के बाद, जब से अरविंद केजरीवाल की सरकार बनी है, उनकी सरकार का विज्ञापन पर रोज़ाना का खर्च 1.20 करोड़ रुपए है। यानी शीला दीक्षित की सरकार के मुकाबले केजरीवाल की सरकार विज्ञापन पर 40 गुना ज़्यादा खर्च करती है। पहले दिल्ली सरकार के विज्ञापन देश भर के अखबारों और टीवी चैनलें में आते थे और अब दिल्ली व पंजाब सरकार दोनों के विज्ञापन देश भर में छपते और दिखते हैं।

ट्विटर के वेरिफायड अकाउंट से परेशान पार्टियां

ट्विटर का अकाउंट वेरिफाई करने के लिए पैसे लेने की एलन मस्क की योजना ने भारत में राजनीतिक दलों को हैरान-परेशान कर रखा है। ट्विटर अकाउंट के लिए अब नौ सौ रुपए महीने पर ब्लू टिक मिल रहा है या अकाउंट वेरिफाई हो रहा है। इसका मतलब यह है कि ऐसे अकाउंट से होने वाले ट्वीट पर लोग भरोसा करते हैं और उसे सहज रूप से री-ट्वीट भी करते हैं। मुश्किल यह है कि सभी पार्टियां या पार्टियों के समर्थक या आम लोग भी किसी भी नाम से अकाउंट बना कर उसे वेरिफाई करा रहे हैं। उन अकाउंट्स से ऐसे ट्वीट हो रहे हैं, जो पार्टियों की विचारधारा से अलग हैं या पार्टियों और उनके नेताओं को मुश्किल में डालने वाले हैं। इससे सारी पार्टियां परेशान हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक आम आदमी पार्टी या उसके नेताओं के नाम से दो दर्जन से ज़्यादा वेरिफाइड अकाउंट्स बन गए है। मिसाल के तौर पर एक अकाउंट 'आतिशी आप मिशन 2024’ के नाम से है। इस अकाउंट से पिछले रविवार को एक ट्वीट हुआ था, जिसमें अरविंद केजरीवाल की अमित शाह को गुलदस्ता देते हुए फोटो है और लिखा गया है कि केजरीवाल ने दिल्ली में आज अमित शाह से भेंट की और उन्हें आम आदमी पार्टी में शामिल होने का न्योता दिया। एक दूसरे ट्वीट में कहा गया कि आम आदमी पार्टी राजस्थान में 200 सीटों पर नोटा के साथ गठबंधन करके उम्मीदवार उतारेगी। एक ट्वीट में 2024 का चुनाव जीतने पर सभी यात्रियों के लिए ट्रेन यात्रा मुफ्त करने का वादा किया गया था। इस तरह के कई ट्वीट्स आप के कार्यकर्ता री-ट्वीट भी कर रहे हैं। इससे पार्टी बेहद परेशान है। कांग्रेस के कई नेताओं के नाम का भी पैरोडी अकाउंट बना हुआ है, जिससे उलटा-सीधा ट्वीट किया जाता है।

अजित पवार की राजनीति पर लगेगा पूर्णविराम?

महाराष्ट्र में एनसीपी की राजनीति दिलचस्प हो रही है। लगता है कि पार्टी के सुप्रीमो शरद पवार अपने भतीजे अजित पवार के राजनीतिक करिअर पर पूर्णविराम लगाने की तैयारी कर रहे हैं। उन्होंने अपनी बेटी सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बना कर एक तरह से पार्टी की कमान उनके हाथ में सौंप दी है। इसके जवाब में अजित पवार ने प्रदेश में पार्टी राजनीति अपने हाथ में लेने का प्रयास किया तो शरद पवार ने वहां भी उनके इरादों पर पानी फेरने के लिए पार्टी के पुराने नेता छगन भुजबल को आगे किया गया है। जिस दिन अजित पवार ने प्रदेश अध्यक्ष पद पर दावेदारी की उसके अगले दिन भुजबल ने कहा कि वे प्रदेश अध्यक्ष बनना चाहते हैं। भुजबल पार्टी के बहुत पुराने नेता है और शरद पवार के बेहद भरोसेमंद है। वे महाराष्ट्र की राजनीति के बड़े ओबीसी चेहरों में से एक है। उनकी दावेदारी का मतलब है कि शरद पवार का समर्थन उनको होगा। वे यह समझा सकते हैं कि पार्टी को ओबीसी चेहरा आगे करने की ज़रूरत है, क्योंकि पारंपरिक रूप से एनसीपी मराठा मतदाताओं की पार्टी मानी जाती है। सो, अगर मराठा, मुस्लिम और ओबीसी का समीकरण बनेगा तो पार्टी के लिए बेहतर होगा। अभी जयंत पाटिल पांच साल से प्रदेश अध्यक्ष हैं। सो, उनको हटना है। अगर अजित पवार उनकी जगह प्रदेश अध्यक्ष बनने मे कामयाब हो जाते हैं तो महाराष्ट्र की राजनीति में उनका दबदबा बना रहेगा। अगर वे अध्यक्ष नहीं बन पाते है तो उनके करिअर का ढलान शुरू हो जाएगा।

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