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दक्षिण अफ़्रीका : लॉकडाउन की वजह से बेघर लोगों की स्थिति बेहद ख़राब

दक्षिण अफ़्रीका में तालाबंदी लागू होने के बाद से ही जोहानिसबर्ग की सड़कों पर गश्त लगाते सुरक्षा बलों को डंडों के साथ बेघर लोगों का पीछा करते देखा गया। बाद में दोपहर के समय ऐथेक्विनी नगरपालिका में आठ झोपड़ियों को ध्वस्त कर दिया गया जबकि इस बीच डरबन में 17 को ध्वस्त करने के लिए चिन्हित कर लिया गया है।
दक्षिण अफ़्रीका
दक्षिण अफ़्रीका के डरबन में 17 झोपड़ियों में से एक को ध्वस्त करने के लिए बनाए गए चिन्ह का एक दृश्य।

दक्षिण अफ़्रीका में 27 मार्च की आधी रात से COVID-19 के प्रसार को रोकने के लिए राष्ट्रपति सिरिल रामफ़ोसा द्वारा 21 दिनों के लॉकडाउन का आदेश लागू कर दिया गया है। हालाँकि सुरक्षा बलों पर आरोप लग रहे हैं कि वे झुग्गी वासियों और बेघर लोगों, जो कि इस प्रकोप में सबसे दयनीय हालात में हैं के खिलाफ कठोरतापूर्वक पेश आ रहे हैं।

लॉकडाउन के अमल में आते ही सुरक्षा बलों ने देश की वाणिज्यिक राजधानी कहे जाने वाले जोहानिसबर्ग शहर में गश्त लगानी शुरू कर दी थी। एसोसिएटेड प्रेस (एपी) ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि सुरक्षा बलों ने सड़कों को खाली कराने का काम अपने हाथ में ले लिया है और लोगों पर चीखना-चिल्लाना और “अपने-अपने घरों में जाओ” के निर्देश देने शुरू कर दिए थे। और जो लोग बेघर बार के थे उने पीछे हाथों में डंडे लेकर भागी और उन्हें भागने पर मजबूर कर दिया है। करीब 3 बजे रात लगातार गोलाबारी होने की भी रिपोर्टिंग एपी की ओर से की गई है।

सेना को आदेश दिए गए हैं कि लॉकडाउन को अमल में लाने में वह पुलिस की मदद करे। असामान्य तौर पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति रामाफोसा सेना की वर्दी में नजर आये, जिसमें उन्होंने पुलिस और सैन्यबलों को लॉकडाउन लागू कराने के दौरान “दयालुता से बलप्रयोग” का आह्वान किया है।

"हमारे आमजन" अपने संबोधन में उन्होंने कहा "अभी बेहद आतंकित हैं, और हमें ऐसा कुछ नहीं करना चाहिए जिससे कि उनकी स्थिति और बदतर हो जाये।"

इससे पहले 23 मार्च को अपने लॉकडाउन की घोषणा वाले सम्बोधन में रामफौसा ने इस बात का दावा किया था कि सरकार इस बीच "बेघर लोगों” को समायोजित करने के लिए “स्वास्थ्यकर मानकों को पूरा करने वाले अस्थायी आश्रयों” की पहचान करने की प्रक्रिया में लगी है। “ऐसे ठिकानों को भी चिन्हित किया जा रहा है जहाँ पर उन लोगों को क्वारंटाइन और खुद को अलगाव में रखने की सुविधा मुहैय्या हो सकेगी जो लोग खुद को घरों में अलगाव में रख सकने की स्थिति में नहीं हैं।" इस दौरान देश में पाजिटिव मामलों की संख्या 402 तक पहुंच चुकी थी।

हालाँकि अभी तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी है, जबकि देश पहले से ही लॉकडाउन की स्थिति में है। दक्षिण अफ़्रीका में लगभग 2,00,000 लोग बेघर हैं। एक ऐसा देश जहाँ दुनियाभर में सबसे अधिक आर्थिक गैर-बराबरी है।

दुनिया भर में लगभग 15 करोड़ (कुल आबादी का 2%) लोग बेघर हैं, जो अपने सर पर छत के इंतजाम का बोझ वहन करने की स्थिति में न होने के कारण जीवन सड़कों पर ही काटते हैं। इसके अलावा दुनिया में 160 करोड़ ऐसे लोग भी हैं (दुनिया की आबादी का 20% से अधिक) जो "अपर्याप्त आवासीय सुविधाओं" के बीच रह रहे हैं। इन कामचलाऊ छोटी-छोटी झोपड़ियों और अस्थाई शिविरों, मलिन बस्तियों में ठुंसे हुए ये लोग ताजे पानी, शौचालय और अन्य बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं।

दक्षिण अफ्रीकी शहरों में ऐसी स्थितियों में रहने वाले लाखों लाख लोगों के लिए खुद को अलगाव में रख पाना, शारीरिक दूरी बना पान, बार-बार हाथ धोना और महामारी फैलने से रोकने के लिए आवश्यक अन्य सुरक्षा सावधानियों का पालन कर पाना असंभव है।

इसके अलावा भी इन झुग्गी वासियों और उनके बनाए अस्थाई बस्तियों को आये दिन प्रशासन के हाथों विध्वंस और हिंसक बेदखली का सामना करना पड़ता है, नतीजे के तौर पर वे अक्सर बेघरबार कर दिए जाते हैं।

झुग्गी-झोंपड़ी वासियों के आंदोलन अबाहलाली बेसमोंडोलो ने इस प्रकार उजाड़े जाने की मुहिम को COVID-19 के प्रसार को सीमित किये जाने वाले प्रयासों तक के लिए स्थगन की माँग की है। अबाहलाली 2005 से ही उचित आवासीय अधिकारों की लड़ाई लड़ता आ रहा है और झुग्गी-झोंपड़ी निवासियों के खुद की बस्तियों के निर्माण कार्य में सहायता पहुँचा रहा है।

अबाहलाली के साथ ही 26 अन्य सामाजिक न्याय संगठन भी बेदखली पर स्थगन लगाये जाने की मुहिम में शामिल हुए हैं और इस सम्बन्ध में संबंधित सरकारी निकायों को मिलकर एक पत्र प्रेषित किया है। पत्र में कहा गया है  "कोई भी इन्सान शारीरिक दूरी बनाये रखने की कसौटी पर भला कैसे खरा उतर सकता है, यदि वह खुद और उसका सामान सड़क किनारे खुली जगह पर पड़ा हो या खुले आसमान के नीचे सार्वजनिक स्थल पर पड़ा हो।"

भारी दबाव के बीच न्याय मंत्री रोनाल्ड लमोला ने लॉकडाउन से ठीक पहले अपने राष्ट्र के नाम संबोधन में इस बात का वचन दिया था कि इन 21 दिनों में किसी भी प्रकार की बेदखली नहीं की जाएगी।

लेकिन जैसे ही COVID-19 के कारण दक्षिण अफ़्रीका में पहली दो मौतों की पुष्टि हुई उसके अगले ही दिन दोपहर में ऐथेकविनी नगरपालिका में आठ झुग्गियों को ध्वस्त कर दिया गया था। तब तक देश में कुल पुष्ट मामलों की संख्या 1,000 पार कर चुकी थी। इस तोड़-फोड़ के लिए केल्विन सिक्योरिटी नामक एक निजी सुरक्षा एजेंसी की सेवाएं ली गईं।

इसके अलावा 17 अन्य झोपड़ियों की निशानदेही की गई हैं। अबाहलाली ने अपने बयान में कहा है “यह इस बात के संकेत हैं कि केल्विन सिक्यूरिटी एक बार फिर से लोगों को बेदख़ल करने के लिए वापस आने की योजना बना रही है। जिन आठ झोपड़ियों को ध्वस्त किया गया उनकी भवन सामग्री चकनाचूर कर दी गई और उसके छोटे-छोटे चूरे करके छोड़ दिया गया है। इस दौरान कई लोग चोटिल भी हुए हैं।“

अबाहलाली के बयान के अनुसार “कोर्ट का कोई आदेश नहीं दिखाया गया था, इसलिये जबरिया खाली कराये जाने की यह कार्यवाही पूरी तरह से गैर-क़ानूनी और आपराधिक थी। वे आपदा की राष्ट्रीय स्थिति को नियंत्रित करने वाले नियमों का भी उल्लंघन करने के अपराधी हैं।

संयुक्त राष्ट्र की आवास के अधिकार मामलों की स्पेशल रिपोर्टर लीलाणी फरहा ने अपने 21 मार्च के बयान में आह्वान किया था कि इस लॉकडाउन की अवधि के दौरान किसी भी प्रकार की बेदखली पर वैश्विक प्रतिबंध लगे, एक ऐसी रणनीति जिसे इस गंभीर प्रकोप से जूझ रहे कई देशों द्वारा लागू किया गया है।

वे कहती हैं "इस वायरस के प्रसार को रोकने के लिए एक वैश्विक नीति उभर कर सामने आई है: घर पर ही बने रहें और अपने हाथ धोते रहे।“ वे आगे कहती हैं "वैश्विक स्तर पर “घर पर ही बने रहें नीति” का तार्किक विस्तार यह है कि किसी भी प्रकार की बेदखली पर यह एक वैश्विक प्रतिबंध है। कोई निष्कासन, वो चाहे किसी का भी, कहीं भी, किसी भी कारण से न होने को सुनिश्चित किया जाना चाहिए। हर कोई अपने घर में रह सके इसे सुनिश्चित करना होगा।”

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

As South Africa Locks Down, the Homeless Left Most Vulnerable

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