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दलितों और महिलाओं पर बढ़ते अत्याचार के खिलाफ 2 अगस्त को वामदलों का ‘बिहार’ बंद

बिहार में नीतीश और भाजपा गठबंधन की सरकार के सत्ता में आने के बाद से दलितों और महिलाओं पर अत्याचार की घटनाओं में बढ़ोतरी हुई है|
बिहार बंद

बिहार में महिलाओं और दलितों के बढ़ते शोषण और 'संस्थागत' यौन शोषण के खिलाफ विरोध के लिए सीपीआई, सीपीआई(एम), सीपीआई(एमएल), एसयूसीआई(सी) और आरएसपी सहित कई वामपंथी दलों ने संयुक्त रूप से 2 अगस्त को 'बिहार बंद' का आह्वान किया है|
हाल ही में, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) ने बिहार भर में आश्रय घरों के सोशल ऑडिट कर एक रिपोर्ट जारी की, जिसके  बाद लड़कियों के साथ हो रहे गए यौन शोषण की एक भयानक कहानी प्रकाश में आई। मुजफ्फरपुर में एक बालिका सुधारगृह की बालिकाओं  ने ऑडिट के दौरान TISS के लोगों से कहा कि उन्हें आश्रय और सुधारगृह के प्रबंधकों और वहाँ आने वाले अन्य लोगों  द्वारा बार-बार बलात्कार किया जाता था। कई रिपोर्टों के मुताबिक, मुजफ्फरपुर के 'बालिका ग्रुह' में रहने वाली 44 लड़कियों में से कुल 34 क्रूर यौन उत्पीड़न हुआ हैं|

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विभिन्न तबकों के दबाव में, बीजेपी-जेडी(यू) सरकार के नेतृत्व में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने 26 जुलाई को केंद्रीय जाँचजाँच ब्यूरो (सीबीआई) को मामला सौंप दिया। वामपंथी दलों की माँग है कि सीबीआई जाँच की पटना उच्च न्यायालय  की निगरानी में की जानी चाहिएI इस मामले में में अब तक आश्रय घर, ब्रजेश ठाकुर के मालिक समेत 10 को अन्य आरोपियों को  गिरफ्तार किया जा चुका है। वामपंथी दल के नेताओं ने राज्य के सामाजिक कल्याण मंत्री मांजू वर्मा को तत्काल बर्खास्तगी की माँग  की है क्योंकि इस मामले में उनके पति का नाम भी सामने आया है।

अभी कुछ दिनों पहले बिहार एक दिलदहलाने वाली खबर सामने आई थी जिसमें बिहार के मुजफ्फरपुर के सुरैयाँ थाना क्षेत्र में एक 10 साल की बच्ची के साथ तीन लोगों ने बलात्कार किया और इस घटना के चश्मदीद उसके 8 साल के भाई की आँख फोड़ कर, दोनों की हत्या कर उनके लहुलुहान शव को पास के जंगल में फ़ेंक दिया था| |

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राज्य के सभी कोनों से यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर ऐसी ही रिपोर्टें आ रही हैं।

बिहार में नीतीश और भाजपा की गठबंधन सरकार आते ही बलात्कार की वारदात में तेज़ी से बढ़ोत्तरी हुई |                                                                         

दलितों का निष्कासन  

1 जुलाई को, मुसाहर समुदाय के लोग जिन्हें महा-दलितों के रूप में पहचाना जाता है,  उनके 100 से अधिक परिवारों के घर मधुबनी जिले के खुटौना ब्लॉक, मुगल गांव में सरकारी अधिकारियों ने ध्वस्त कर दिया था । तब से, पीड़ित खुटौना हाई स्कूल में आश्रय ले रहे हैं और राज्य सरकार को तुरंत उचित आवास सुविधाओं और आजीविका प्रदान करने के लिए अपने विरोध प्रदर्शन की माँग कर रहे हैं ।

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इसी तरह, हाल ही में साराय्या, मुजफ्फरपुर में एक ज़मीदार ने लगभग 60 दलित घरों को ध्वस्त कर दिया था। 26-27 जुलाई को, सीपीआई (एम) पोलितब्यूरो की  सदस्या सुभाषिनी अली और पार्टी के राज्य सचिव अवधेश कुमार ने अन्य नेताओं के साथ बेघर पीड़ितों का दौरा किया और 2 अगस्त के विरोध में शामिल होने के लिए एक अभियान का आवाहन किया।

अवधेश कुमार ने दावा किया कि राज्य सरकार महिलाओं, दलितों और उत्पीड़ित वर्गों पर बढ़ते अत्याचारों की जाँच करने में विफल रही है। भूमि के उत्पीड़न का जिक्र करते हुए कुमार ने न्यूजक्लिक को बताया: "राजनेताओं और पुलिस समेत सामंती भू-मालिकों के बीच गठबंधन है, जो महँगी भूमि को लेने के लिए धमकाने और अन्य अवैध साधनों से दलितों और गरीबों को अपने रहने के स्थान से बेदखल कर रहे हैं। जो की अभी उनके नियंत्रण में हैं।” उन्होंने कहा कि “वामदल  पीड़ितों के समर्थन में हैं और उन्हें अपने अधिकारों का दावा करने के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं। एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए सुभाषिनी अली ने राज्य सरकार से बेघर दलितों को तुरंत पुनर्वास करने की माँग की।

सीपीएम के राज्यसचिव अवधेश सिंह ने बताया कि “2 अगस्त के ‘बिहार बंद को  लेकर तैयारियाँ ज़ोर-शोर से चल रही हैं| उन्होंने बताया कि “इसको लेकर प्रचार गाड़ी गाँव–गाँव और कस्बे-कस्बे जा रही है और लोगों का भरपूर भी समर्थन मिल रहा है| कई नुक्कड़ सभाओं का भी आयोजन कर जनता में इस बंद को लेकर प्रचार किया जा रहा है”|

अवधेश सिंह  ने आगे कहा की “बिहार बंद से एक दिन पहले 1 अगस्त की शाम को पूरे बिहार में मशाल जुलूस निकाला जाएगाI 2 अगस्त को बिहार के हर ब्लॉक से लेकर जिला मुख्यालय पर विरोध प्रदर्शन करके इस बंद को सफल बनाने की योजना है|  अब इस बंद को बिहार की मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी समर्थन दिया है”|
दूसरी तरफ, देश भर में दलित संगठनों ने बीजेपी के नेतृत्व की केंद्र सरकार की दलित विरोधी नीतियों के विरोध में 9 अगस्त को "भारत बंद" का आह्वान किया है। वे अनुसूचित जातियों और जनजातियों (अत्याचार रोकथाम) अधिनियम को बहाल करने के लिए केंद्र सरकार की माँग कर रहे हैं, जो इस साल की शुरुआत में मार्च में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से कमज़ोर हो गया था।

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