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GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?

हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.

हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता. Financial year 2021-22 में GDP की 8.7% की बढ़ोतरी सरकार और कॉरपोरेट के गठजोड़ से बनी मीडिया की हेडलाइन में कोरोना के बाद अर्थव्यवस्था की रिकवरी की बात तो करती है लेकिन आम आदमी की जिंदगी पर नहीं? साल 1981 में ₹750 में जो सामान मिल जाता था वही सामान साल 2019 में तकरीबन 15 हजार में मिलता है।

जबकि देश में महज 10% कामगारों की महीने की आमदनी ₹25 हजार या उससे ज्यादा है।साल 1991 से लेकर 2019 की हालत यह है कि कारोबारियों ने कुल मुनाफे का तकरीबन आधे से अधिक हिस्सा 58% अपने पास रखा और महज 19% हिस्सा अपने मजदूरों को दिया। मतलब जीडीपी के आंकड़ें भले आर्थिक बढ़ोतरी की माया रचते हों लेकिन आर्थिक बढ़ोतरी का पैसा अमीरों की जेब में जा रहा है और आम लोग बद से बदतर होते जा रहे हैं। इस विषय पर हमारे सहयोगी ऑनिंद्यो चक्रवर्ती के साथ बातचीत।

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