NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
जम्मू-कश्मीर के लोगों के नागरिक अधिकारों का सम्मान होना चाहिए
संदीप पाण्डेय: जरूरत इस बात की है कि जम्मू व कश्मीर में तुरंत चुनाव कराकर वहां विधान सभा को बहाल किया जाए और फिर यदि विधान सभा केंद्र सरकार के फैसलों पर मुहर लगा देती है तो ठीक अन्यथा ये फैसले वापस लिए जाने चाहिए।
संदीप पाण्डेय
12 Aug 2019
कश्मीर (फाइल फोटो)

जम्मू कश्मीर में जो किया गया है वह अप्रत्याशित है। बिना जम्मू व कश्मीर के एक भी व्यक्ति को विश्वास में लिए हुए उसके बारे में दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की सरकार ने संविधान और संसद का उपयोग कर जम्मू व कश्मीर में सेना लगा कर लोकतंत्र को खत्म कर दिया। इसकी पीड़ा को तब तक नहीं समझा जा सकता जब तक हम अपने को जम्मू व कश्मीर के लोगों की जगह रख कर नहीं देखेंगे।

कल्पना कीजिए कि आज इंग्लैंड व अमेरिका मिलकर संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद में एक प्रस्ताव ले आएं कि भारत की चुनी हुई सरकार देश का शासन कर पाने में अक्षम हैं क्योंकि उसका कानून व्यवस्था अथवा अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण नहीं रह गया और इसलिए इंग्लैण्ड से एक सलाहकार को भेजा जाए जो भारत जाकर चुनी हुई सरकार की शासन संचालन में मदद करे।

वह सलाहकार आता है और आने के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ को भारत की चुनी हुई सरकार को बर्खास्त करने की सिफारिश कर देता है। रूस, चीन जैसे देश थोड़ा बहुत विरोध करते हैं किंतु चूंकि वे अब पाकिस्तान के भी अच्छे मित्र हैं इसलिए अपनी वीटो शक्ति का इस्तेमाल नहीं करते। चुनी हुई सरकार भंग हो जाती है और इंग्लैंड के सलाहकार को गवर्नर जनरल का दर्जा देकर उसका शासन कायम कर दिया जाता है। 

शांति व्यवस्था बनाए रखने के उद्देश्य से संयुक्त राष्ट्र संघ की एक सेना देश में आ जाती है जिसमें अन्य देशों के सैनिक शामिल हैं। चूंकि ये सैनिक भारतीय लोगों से परिचित नहीं हैं वे जब चाहे किसी भी भारतीय से अपनी पहचान साबित करने को कहते हैं। पहचान पत्र आदि मांगते हैं। पहचान पत्र न दिखा पाने पर स्थानीय लोगों का उत्पीड़न करते हैं। हाथ ऊपर करके खड़ा रहने को कहते हैं। मारते-पीटते भी हैं। 

भारतीय विदेशी सैनिकों द्वारा अपमानित होने पर खून का घूंट पीकर रह जाते हैं। कहीं किसी समूह ने विरोध प्रदर्शन किया तो उस पर छर्रे के बौछार निकलने वाली बंदूकों से छर्रे बरसाए जाते हैं। इसमें कई बच्चों या महिलाएं की भी आंखें चली गईं। 

भगत सिंह या चंद्रशेखर आजाद से प्रेरणा लेकर जो क्रांतिकारी देशभक्त विद्रोह की कोशिश करते हैं उन्हें गिरफ्तार कर आतंकवादी घोषित कर दिया जाता है। फिर अचानक एक दिन भारत में विदेशी सेना की उपस्थिति बढ़ा दी जाती है। मीडिया पर प्रतिबंध लग जाता है। भारत की कोई खबर बाहर नहीं जाती और बाहर की कोई खबर भारत नहीं आ पाती। देश के लोगों को पता भी नहीं चलता है और इंग्लैण्ड की संसद भारत के गवर्नर जनरल की सहमति से भारत के संविधान को खत्म करने का निर्णय लेती है और भारत के स्वतंत्र राष्ट्र का दर्जा समाप्त कर उसे अपना उपनिवेश बना लेती है। 

इंग्लैंड की रानी पुनः भारत की राष्ट्र प्रमुख बन जाती हैं। चूंकि भारत से कोई खबर बाहर नहीं आ रही है इसलिए दुनिया को बता दिया जाता है कि भारतीय इस निर्णय से बहत खुश हैं। कुछ ऐसे भारतीयों का साक्षात्कार सार्वजनिक कर दिया जाता है जो इस बात की संस्तुति कर देते हैं कि पूर्व में अंग्रेजों के समय का शासन बहुत अच्छा था और स्वतंत्रता के बाद तो भारतीय नेताओं और अधिकारियों ने मिलकर देश को खूब लूटा है।

यदि किसी भारतीय नागरिक को यह पढ़ कर कष्ट पहुंचा हो तो उसे समझ लेना चाहिए कि कश्मीरी कैसा महसूस कर रहे होंगे।

यदि नरेंद्र मोदी सरकार मानती है कि कश्मीर में जो किया गया वह सही है और वहां के लोग भी यही चाहते थे तो वहां इतनी बड़ी तादाद में सेना क्यों लगा रखी गई है? सेना तो लोगों की आवाज दबाने के लिए है। लोग कह रहे हैं कि भारत के लोग इस फैसले से सहमत हैं। किंतु कश्मीर के बाहर रहने वालों को क्या कश्मीर के सम्बंध में निर्णय लेने का अधिकार है? किसी भी जगह के भविष्य का निर्णय वहां के निवासी लेंगे अथवा बाहर के?

कश्मीर के लोगों पर तो भारत सरकार भरोसा ही नहीं कर रही। अलगाववादी नेताओं को छोड़ दिया जाए, जो मुख्य धारा के राजनीतिक दलों के नेता हैं जिनके बल पर जो भी दिखावे के लिए जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र चला, उन्हें भी अपराधियों की तरह नजरबंद कर रखा गया है।

महबूबा मुफ्ती के साथ तो भारतीय जनता पार्टी ने मिलकर सरकार चलाई। उन्हें इस लायक भी नहीं समझा गया कि उन्हें विश्वास में लिया जाए? 

असल में नरेंद्र मोदी-अमित शाह को मालूम था कि महबूबा मुफ्ती या उमर अब्दुल्ला उनका प्रस्ताव स्वीकार ही नहीं करेंगे। इसीलिए संसद में बहस के दौरान फारूक अब्दुल्ला जैसे वरिष्ठ नेता को उपस्थित ही नहीं होने दिया गया। उन्हें भी नजरबंद कर लिया गया और संसद में बता दिया गया कि उनकी तबियत खराब है। 

अमित शाह ने संसद में कहा कि वे उन्हें कनपटी पर पिस्तौल लगा कर संसद में नहीं ला सकते किंतु हकीकत है कि पुलिस ने फारूक अब्दुल्ला को घर से निकलने ही नहीं दिया।

11 अगस्त, 2019, रविवार को शाम 6 से 7 बजे गांधी प्रतिमा हजरतगंज, लखनऊ पर कश्मीर के लोगों के समर्थन में और कश्मीर में लोकतंत्र बहाल करने को लेकर एक मोमबत्ती प्रदर्शन होने वाला था। स्थानीय पुलिस के आग्रह पर बकरीद व स्वतंत्रता दिवस को देखते हुए इस कार्यक्रम को 16 अगस्त तक स्थगित किया गया। इसके बावजूद पुलिस सुबह साढे़ दस बजे से ही मुझे घर पर नजरबंद किए हुई थी जिसका पता तब चला जब मैं अपनी पत्नी अरुंधती धुरू के कहने पर डेढ़ बजे डबलरोटी लेने घर से निकला।

पुलिए ने बताया कि मुझे 4 बजे तक घर से बाहर न निकलने का आदेश है। कश्मीर में तो लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी पर पूरी तरह रोक लगी ही हुई है कश्मीर के बाहर भी कोई सरकार से अलग राय रखे तो उसकी अभिव्यक्ति की आजादी पर रोक लगी है।

यह अपने लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है। जब लखनऊ में यह हाल है तो जम्मू-कश्मीर में कैसा होगा इसकी कल्पना ही भयावह है।

कई लोग ऐसी बेतुकी बातें कर रहे हैं कि अब कश्मीर में जमीन खरीदेंगे व वहां की लड़की से शादी करेंगे। यह घटिया पितृसत्तामक सोच जमीन व महिला दोनों को उपभोग की वस्तु के रूप में ही देखती है।

यह सोच ये भी साबित करती है कि भाजपा के जो नेता या उनके समर्थक ऐसी बाते कह रहे हैं उन्हें कश्मीर के लोगों से कोई लगाव नहीं और न ही वे उनका भला चाहते हैं। अतः कश्मीर को भारत में पूरी तरह से मिलाने की पीछे उनकी नीयत में खोट है। वे कश्मीर को अपना उपनिवेश बना उसका दोहन करना चाहते हैं।

जरूरत इस बात की है कि जम्मू व कश्मीर में तुरंत चुनाव करा वहां विधान सभा को बहाल किया जाए और फिर यदि विधान सभा केंद्र सरकार के फैसलों पर मुहर लगा देती है तो ठीक अन्यथा ये फैसले वापस लिए जाने चाहिए। 

एक बार जम्मू-कश्मीर की सरकार पर भरोसा कर वहां का शासन-प्रशासन बिना केंद्र के हस्तक्षेप के उनकी जिम्मेदारी पर छोड़ कर देखना चाहिए। सेना को अंदरूनी इलाकों से हटा सीमा पर ले जाना चाहिए और अंदरूनी कानून-व्यवस्था स्थानीय पुलिस के हवाले कर देनी चाहिए। 

वर्तमान में कश्मीर में आतंकवादियों की संख्या करीब तीन सौ है जो नरेंद्र मोदी के पहली बार प्रधान मंत्री बनने पर करीब अस्सी थी। उत्तर प्रदेश जैसे राज्य में कुलदीप सिंह सेंगर जैसे दुर्दांत अपराधियों की संख्या तीन सौ से कम नहीं होगी। यदि उत्तर प्रदेश सरकार अपनी पुलिस के बल पर इन अपराधियों से निपट सकती है तो जम्मू-कश्मीर की सरकार क्यों नहीं? 

इन अपराधियों व आतंकवादियों में बहुत अंतर नहीं है। कुलदीप सिंह सेंगर के लोग दिन दहाड़े सीधे वरिष्ठ पुलिस अफसरों पर एक से ज्यादा बार गोली चला चुके हैं। सिर्फ तीन सौ आतंकवादियों की वजह से पूरे जम्मू-कश्मीर की जनता को कैद जैसी स्थिति में रख सजा देना कहां तक न्यायोचित है?

जम्मू-कश्मीर के लोगों को भी वही नागरिक अधिकार प्राप्त हैं जो भारत के अन्य राज्यों के लोगों को, जिनका सम्मान होना चाहिए।

(संदीप पाण्डेय सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के उपाध्यक्ष और रमन मैग्सेसे पुरस्कार विजेता हैं। ये लेखक के निजी विचार हैं।)

Narendra modi
Amit Shah
Article 35(A)
Jammu and Kashmir
Kashmir Valley
Kashmir conflict
Militancy
Self-determination
Article 370

Trending

'मेरे नाम पर नहीं'… न CAB, न NRC; जंतर-मंतर पर गूंजा नारा
मोदी सरकार ने किया आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपईया
CAB: देश भर में आक्रोश, निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर  
जामिया में पुलिस और छात्रों के टकराव की पूरी कहानी
पूर्वोत्तर भारत में CAB के खिलाफ प्रदर्शन की ख़बरों पर सरकारी 'फ़रमान' के मायने
चुनाव और रोज़गार का मुद्दा : झारखंड की बेरोज़गारी दर देश के औसत से भी ऊपर

Related Stories

constitution of india
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
झूठी शपथ से अच्छा है कि संविधान से सेक्युलर शब्द ही हटा दिया जाए!
15 December 2019
हमारे नेता जब सांसद बनते हैं तो संविधान की शपथ ग्रहण करते हैं। हम सब लोग जानते हैं, कसमें झूठी ही खाई जाती हैं। लेकिन संविधान बनाने वाले लोग शायद म
congress rally
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
"मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है, माफ़ी नहीं मांगूंगा"
14 December 2019
दिल्ली: 14 दिंसबर को कांग्रेस ने दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में ''भारत बचाओ रैली"आयोजित किया। इस रैली में मनमोहन सिंह, सोनिय
VNS Police
रिज़वाना तबस्सुम
प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में लोगों को विरोध प्रदर्शन का अधिकार नहीं?
14 December 2019
वाराणसी : नागरिकता संसोधन बिल (CAB) जो अब कानून बन चुका है, के विरोध में देश भर में लगातार धरना प्रदर्शन जारी हैं, लेकिन प्रधानमंत

Pagination

  • Next page ››

बाकी खबरें

  • air india
    प्रभात पटनायक
    अगर निजी कम्पनी सार्वजनिक क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में सक्षम है तो सरकार क्यों नहीं?
    15 Dec 2019
    यह नव-उदारवादी राजकोषीय शासन की विकृति पर लेख का दूसरा हिस्सा है। यहाँ बताया गया है कि किस प्रकार हिंदुत्व मठाधीश, जिनका कॉर्पोरेट-वित्तीय कुलीनतंत्र से बहुत क़रीब का रिश्ता है, सार्वजनिक क्षेत्र को…
  • constitution of india
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    झूठी शपथ से अच्छा है कि संविधान से सेक्युलर शब्द ही हटा दिया जाए!
    15 Dec 2019
    सोशलिस्ट और सेक्युलर (समाजवादी और पंथनिरपेक्ष या धर्मनिरपेक्ष), इन्हीं दो शब्दों के कारण ही हमारे सांसदों को संविधान की झूठी सौगंध खानी पड़ती है...। डॉ. द्रोण का व्यंग्य स्तंभ ‘तिरछी नज़र’
  • protest
    राजेश जोशी
    जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएँगे
    15 Dec 2019
    ‘इतवार की कविता’ में वरिष्ठ कवि राजेश जोशी की कविता।
  • UK
    न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन
    क्यों जीती कंज़र्वेटिव पार्टी ?
    14 Dec 2019
    यूनाइटेड किंगडम के आम चुनाव में कंज़र्वेटिव पार्टी ने जीत दर्ज करते हुए बहुमत के आंकड़े 326 को पार कर लिया। लेबर पार्टी इस चुनाव में हार गयी और इसे 203 सीट मिले।
  • congress rally
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    "मेरा नाम राहुल सावरकर नहीं, राहुल गांधी है, माफ़ी नहीं मांगूंगा"
    14 Dec 2019
    पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी ने शनिवार को दिल्ली के रामलीला मैदान में ‘भारत बचाओ’ रैली आयोजित की।
  • Load More
सदस्यता लें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें