Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

कठुआ गैंगरेप-हत्या मामला : सुप्रीम कोर्ट ने नाबालिग़ आरोपी को माना बालिग़, अब एडल्ट की तरह होगा ट्रायल

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को नाबालिग़ घोषित करने वाले निचली अदालत और हाईकोर्ट के फ़ैसले को रद्द कर दिया है।
बकरवाल समुदाय
image credit- social media

जम्मू-कश्मीर का बहुचर्चित कठुआ दुष्कर्म और हत्या मामला एक बार फिर सुर्खियों में है। साल 2018 की जनवरी में एक आठ साल की एक बच्ची के साथ गैंग रेप, प्रताड़ना और हत्या मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अंतिम आरोपी को नाबालिग मानने से इनकार कर दिया है। अदालत ने कहा है कि आरोपी शुभम सांग्रा को वयस्क मानते हुए उसके खिलाफ मुकदमा चलेगा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को नाबालिग घोषित करने वाले निचली अदालत और हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया है।

ता दें कि इस सनसनीखेज गैंग रेप के बाद देश भर में ग़ुस्सा देखा गया था। इस घटना के बाद जम्मू-कश्मीर के साथ ही देश में भी इस घटना को लेकर विरोध प्रदर्शन हुए थे और दोषियों को सख़्त सज़ा देने की मांग की गई थी। इस मामले के सामने आने के बाद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इसकी चर्चा हुई। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने भी इस घटना की कड़ी निंदा की थी।

जम्मू-कश्मीर पुलिस की क्राइम ब्रांच ने इस मामले में साल 2018 में आरोप पत्र दायर किए और सात लोगों को अभियुक्त बनाया। आरोप पत्र में क्राइम ब्रांच ने बताया था कि बच्ची का अपहरण करने के बाद उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया था और नशीली दवाइयां खिलायी गई थीं। पुलिस ने ये भी बताया था कि बच्ची का बलात्कार और हत्या करने के बाद उसे उस इलाके के एक मंदिर में चार दिनों तक रखा गया था।

जम्मू-कश्मीर से बाहर पठानकोट की सेशन कोर्ट में हुआ सुनवाई

साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई जम्मू-कश्मीर से बाहर पठानकोट की सेशन कोर्ट में रोज़ाना करने का आदेश दिया था। पूर्व सरकारी अधिकारी सांजी राम को इस मामले का मास्टरमाइंड माना जा रहा था। साल 2019 में पठानकोट की फास्ट ट्रैक अदालत ने सात में से छह अभियुक्तों को दोषी ठहराया। सांजी राम को भी उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई थी। जबकि सबूतों के अभाव में सांजी राम के बेटे को अदालत ने रिहा कर दिया था। सांजी राम के अलावा परवेश कुमार, दो स्पेशल पुलिस ऑफिसर दीपक कुमार और सुरेंदर वर्मा, हेड कॉन्स्टेबल तिलक राज और सब-इंस्पेक्टर आनंद दत्ता को इस मामले में दोषी ठहराया गया था। पुलिसकर्मियों को सबूतों को मिटाने में दोषी ठहराया गया था। हालांकि बाद में अदालत ने पूर्व पुलिस सब इंस्पेक्टर आनंद दत्ता और हेड कांस्टेबल तिलक राज को ज़मानत दे दी थी।

इसे भी पढ़ें: कठुआ की मासूम को इंसाफ, तीन दोषियों को उम्र कैद, तीन पुलिसवालों को 5 साल की सज़ा

फिलहाल जिस अंतिम आरोपी शुभम सांग्रा की बात हो रही है, उसे मामले की शुरुआत में नाबालिग बताया गया था। लेकिन बाद में हुई जांच से साबित हुआ था कि घटना के समय वो बालिग था। अब सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि शुभम सांग्रा पर भी बतौर एडल्ट केस चलाया जाए। जस्टिस जेबी पारदीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी आरोपी की उम्र तय करने के लिए अगर कोई पुख्ता सबूत नहीं है तो ऐसी स्थिति में 'मेडिकल राय' को ही सही तरीका माना जाएगा।

ध्यान रहे कि इससे पहले जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने शुभम पर जुवेनाइल कोर्ट में चल रही कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। जम्मू-कश्मीर सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील की थी, जिस पर सुप्रिम कोर्ट ने नोटिस जारी किया था। हाईकोर्ट ने आरोपी को जुवेनाइल ही माना था। इससे पहले CJM कठुआ ने भी आरोपी को जुवेनाइल ही माना था। जम्मू कश्मीर सरकार ने नगरपालिका और स्कूल रिकॉर्ड के बीच अंतर का हवाला दिया था।

इस मामले में कब क्या हुआ?

  • नाबालिग बच्ची 10 जनवरी 2018 को गुम हुई थी और 17 जनवरी को उसका शव मिला था।

  • जम्मू और कश्मीर सरकार ने 23 जनवरी 2018 को मामले की जांच राज्य पुलिस की क्राइम ब्रांच को सौंपी थी।

  • क्राइम ब्रांच ने 10 फ़रवरी 2018 को एक स्पेशल पुलिस ऑफ़िसर दीपक खजुरिया को गिरफ़्तार किया।

  • 4 मार्च 2018 को बीजेपी के दो मंत्री चौधरी लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा ने कठुआ में 'हिंदू एकता मंच' की रैली को संबोधित किया और मामले की सीबीआई जांच की मांग की।

  • 5 अप्रैल 2018 को इस पूरी घटना के मुख्य अभियुक्त सांझी राम ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

  • क्राइम ब्रांच ने 10 अप्रैल 2018 को इस मामले में कठुआ की एक अदालत में आरोप-पत्र दाख़िल किया था।

  • आरोप पत्र दाख़िल करते समय कठुआ के कई वकीलों ने अदालत के बाहर हंगामा किया और पुलिस को आरोप-पत्र दाख़िल करने से रोकने की कोशिश की थी।

  • 13 अप्रैल 2018 को बीजेपी के दो मंत्री लाल सिंह और चंद्र प्रकाश गंगा से पार्टी ने इस्तीफ़ा माँगा।

  • आरोप-पत्र दाख़िल होने के बाद अदालत ने मामले की सुनवाई के लिए 18 अप्रैल 2018 की तारीख़ दी।

  • 16 अप्रैल 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू और कश्मीर सरकार से इस बात का जवाब माँगा कि पीड़िता के परिवारवालों ने मामले के ट्रायल को राज्य से बाहर कराए जाने की मांग की है।

  • 18 अप्रैल 2018 को पहली सुनवाई में क्राइम ब्रांच से कहा गया कि सभी आरोपियों को आरोप-पत्र की कॉपी दी जाए।

  • सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर 7 मई 2018 की तारीख़ दी थी। दरअसल, पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाख़िल कर केस का ट्रायल जम्मू और कश्मीर से बाहर कराने की मांग की थी।

  • इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने मामले को पंजाब के पठानकोट में ट्रांसफर कर दिया था।

  • 10 जून, 2019 को इस मामले में अदालत का फैसला सामने आया। गांव के सरपंच और तीन पुलिसकर्मियों समेत छह लोगों को बच्ची के बलात्कार और हत्या का दोषी करार दिया गया।

मामले का एक शर्मनाक पहलू और राजनीति

गौरतलब है कि इस मामले का एक शर्मनाक पहलू ये भी रहा कि बच्ची के साथ बलात्कार और उसकी हत्या करने के आरोपियों के समर्थन में तिरंगा लेकर रैलियां निकाली गईं, जुलूस निकाला गया। उसमें बीजेपी के दो पूर्व मंत्री भी शामिल थे। बाद में उन्हें भारी विरोध के चलते इस्तीफा देना पड़ा था। गैंगरेप मामले में अभियुक्तों के समर्थन में रैली निकालने जैसी घटना भारत में शायद पहली बार हुई होगी। इसके अलावा जम्मू और कश्मीर के बीच भी एक खाई चौड़ी होती नज़र आई। जम्मू के कुछ लोग जहां अभियुक्तों के समर्थन में तिरंगा लेकर रैलियां निकाल रहे थे, तो वहीं, दूसरी ओर कश्मीर में पीड़ित बच्ची को इंसाफ़ दिलाने को लेकर आम लोगों ने भी प्रदर्शन किए। यहां तक की मीडिया भी इस मामले में बंटी नज़र आई।

मामला यहीं समाप्त नहीं होता है। गैंगरेप के इस मामले को अभियुक्तों के समर्थकों ने राष्ट्रवाद का मसला बनाकर एक समुदाय को टारगेट करने की कोशिश की। जांच के अनुसार, इस साज़िश का मक़सद मुस्लिम बकरवाल गुर्जरों को डराकर भगाना था ताकि वे अपनी ज़मीनें बेचकर वहां से चले जाएं। इसके अलावा गुर्जरों की ज़मीन पर कब्ज़ा करने के आरोप भी लगाए गए। उस वक्त इसमें थोड़ी कामयाबी भी होती दिखाई दी, क्योंकि पीड़िता के परिजनों समेत गुर्जर समुदाय के कुछ लोग उस इलाक़े को तब छोड़ चुके थे।

कुल मिलाकर देखें तो इस मामले में न्यायालय ने तेजी से सुनवाई की और इसलिए घटना के डेढ़ साल बाद ही दोषियों की सज़ा मुक्कमल हो सकी। कठुआ गैंगरेप मामले की जांच में सामने आए तथ्य भी इसे असामान्य बनाते हैं। आठ साल की मुस्लिम बच्ची, मंदिर में गैंगरेप, फिर हत्या और आरोपियों के समर्थन में तिरंगा रैलियां ये कुछ कड़ियां इस पूरे मामले की धुंधली तस्वीर को साफ करती हैं।

इसे भी पढ़ें: जम्मू-कश्मीर में यौन हिंसा के मुजरिम को क़ानून अब भी संरक्षण देता है, क्या कठुआ मामला इसे बदल पाएगा?

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest