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यूपी में सूखे की दस्तकः मानसून के इंतज़ार और आंसुओं की धुंध से पथराने लगीं किसानों की बूढ़ी आंखें

ग्राउंड रिपोर्टः आषाढ़ में बारिश न होने से पूर्वांचल के किसानों की आस्था खंडित होने लगी है और बुंदेलखंड में अन्नदाता का भरोसा डिगने लगा है। वह भरोसा जो मौसम विज्ञानियों ने कुछ महीने पहले किसानों को दिया था। बारिश के आसार दूर-दूर तक नज़र नहीं आ रहे हैं।
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उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल व बुंदेलखंड में किसानों की बूढ़ी और अनुभवी आंखें पथराने लगी हैं। वे आंखेंजिन्हें लहलहाते खेतों को देखने की आदत थी। वो बूढ़ी देहजिन्हें खेतों की मेड़ पर हर बरसात में रपट जाने की आदत थी, मानसून की बेरुखी के चलते वो उल्लास और उमंगविहीन हो गई हैं। वजहसमूचे पूर्वांचल और बुंदेलखंड में धान की रोपाई और खरीफ की फसलों की बुवाई नहीं हो पाई है। खरीफ की जो फसलें पहले बोई गई थीं वह भी सूखकर दरकने लगी हैं। पिछले साल काले-कजरारे बादलों ने आषाढ़ में झमाझम बारिश की थी और अबकी इंतजार के बाद यदा-कदा आ तो रहे हैं, लेकिन ललचाकर चले जा रहे हैं।

आषाढ़ में बारिश न होने से पूर्वांचल के किसानों की आस्था खंडित होने लगी है और बुंदेलखंड में अन्नदाता का भरोसा डिगने लगा है। वह भरोसा जो मौसम विज्ञानियों ने कुछ महीने पहले किसानों को दिया था। आषाढ़ का आसमान जेठ की तरह तप रहा है। बारिश के आसार दूर-दूर तक नजर नहीं आ रहे हैं। कई बार मौसम बनते-बनते रह जाता है तो कई बार बादल और धूप, लुकाछिपी करते नजर आते हैं।

बादलों की बेरुखी से यूपी में रोपी गई धान की 25 फीसदी फसल खराब हो चुकी है। राज्य के कुल 75 जिलों में से 67 ऐसे हैंजहां बारिश न होने से स्थिति लगातार बिगड़ती दिखाई दे रही है। पूर्वांचल का हाल तो सूखे की मार झेलने वाले बुंदेलखंड से भी बदतर है। इस इलाके में कुछ ऐसी ही स्थिति साल 2002, 2004 और 2009 में भी पैदा हुई थी। उस समय अलनीनो को असर से बारिश में कमी दर्ज की गई थी। साल 2012 में भी मानसून ने किसानों को तगड़ा धोखा दिया था। दशकों बाद ऐसी स्थिति आई है जब पूर्वांचल और बुंदेलखंड में आषाढ़ महीने में बादलों ने किसानों को धोखा दिया है।

दगा दे रहे बादल

बनारस के चोलापुर प्रखंड के देवरिया गांव के प्रगतिशील किसान अशोक सिंह के खेतों में धान की नर्सरी एक महीने से अधिक दिनों की हो गई है। बारिश के इंतजार में बैठे इस किसान की उम्मीदें टूटती जा रही हैं। अपने चरी के खेत में घड़रोजों को भगाने के लिए हांका लगाने में जुटे अशोक सिंह कहते हैं, "अबकी बहुत बुरा हाल है। खेती का सत्यानाश हो गया। सालों बाद इस तरह के हालात पैदा हुए हैं। हम अपने खेतों की जुताई कर चुके हैं। एक हफ्ते के अंदर बारिश नहीं हुई तो सब मटियामेट हो जाएगा। पंपसेट अथवा ट्यूबवेल से धान के फसलों की सिंचाई संभव नहीं है। पहले हम 25 बीघे में धान की खेती करते थेलेकिन इस बार 15 बीघा ही लगाएंगे। एक एकड़ धान की फसल पंपसेट से सींचने पर सरकार की एक लाख रुपये की बिजली खर्च होती है। धान की पैदावार करने वाले किसानों को प्रति बीघा 15-20 हजार रुपये अनुदान देकर इसकी खेती पर रोक लगा देनी चाहिए। इससे भूजल सुधरेगा और दलहनी-तिलहनी फसलों का रकबा भी बढ़ जाएगा।"

वाराणसी-गाजीपुर हाईवे पर स्थित है चंद्रावती गांव। यहां एक छोटा सा बाजार भी है। यहां मिले विजय कुमार मौर्यजो कृषक सेवा केंद्र चलाते हैं। इनके प्रतिष्ठान पर खाद-बीज के अलावा कीटनाशक दवाओं की बिक्री होती है। विजय कहते हैं, "हर साल जुलाई महीने में हमारे दुकान पर किसानों की लाइन लगा करती थी। किसान हमारा इंतजार करते थे और अबकी सूखे जैसे हालात के चलते हम किसानों की बाट जोह रहे हैं। खाद-बीज की बिक्री पांच-दस फीसदी भी नहीं हो रही है। बारिश की उम्मीद में रोपी गई धान की फसलें सूख रही हैं।

यही हाल उर्दमूंगअहरहज्वार और बाजरे का भी है। सरकार किसानों का भला चाहती है तो पंपसेट चलाने के लिए सस्ता डीजल मुहैया कराए। हर आदमी को काम दे। महंगाई आसमान छू रही है। हालात इतने विकट हो गए हैं कि अन्नदाता की आमदनी आधी भी नहीं रह गई है। यह स्थिति तब है जब डबल इंजन की सरकार ने किसानों की आय कुछ ही बरस में दोगुनी करने का दावा किया था। मुफ्त का राशन और नमक देकर गरीबों को भरमाया जा रहा है। किसानोंमजदूरों और गरीबों का भ्रम टूटेगा तो तब क्या होगा?"

बनारस के भंदहाकला निवासी प्रगतिशील किसान वल्लभ पांडेय अपने खेतों की जुताई कराते हुए मिले। जब बारिश ही नहीं हो रही है तो फिर खेत की जुताई क्योंइस सवाल पर वह कहते हैं, "बारिश होते ही हम धान की रोपाई शुरू कर देंगे। इसी उम्मीद के भरोसे खेतों की जुताई कर रहे हैं। बनारस में मानसूनी बारिश ही धान और खरीफ की अन्य फसलों के लिए सहारा है। दो-चार दिन और बारिश नहीं हुई तो खेती चौपट हो जाएगी। रोपाई भी मुश्किल हो जाएगी, क्योंकि अभी नहरें भी नहीं चल रही हैं। ऐसे में धान के बहन को बचा पाना कठिन होगा।"

 बारिश के लिए तरस रहे किसान

यूपी में मानसून देर से दाखिल हुआ और आने के बाद ही निष्क्रिय पड़ गया। दक्षिणी-पश्चिमी मानसून की रफ्तार धीमी पड़ने से बारिश नहीं हुई और धान की खेती पिछड़ती चली गई। आषाढ़ में  जेठ जैसी गर्मी पड़ने से किसानों की दिक्कतें बढ़ रही हैं। दरअसल, यूपी में सबसे कम बारिश पूर्वांचल इलाके में हुई है। जुलाई महीने में नौ तारीख तक पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में सिर्फ 15.3 मिमी (16.3 फीसदी) बारिश हो पाई। इस महीने बुंदेलखंड में 25.5 मिमी (30.9 फीसदी), मध्यांचल में 25.6 मिमी (32.1 फीसदी) और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 27.7 मिमी (40.3 फीसदी) बारिश रिकार्ड की गई। 09 जुलाई 2022 तक औसतन 81.5 मिमी बारिश होनी चाहिए, लेकिन हुई सिर्फ 22.6 मिमी (27.7 फीसदी)। आंकड़ों पर गौर किया जाए तो यूपी में समूचे पूर्वांचल में स्थिति चिंताजनक है। इस इलाके के किसान चिलचिलाती धूप में अपनी धान की नर्सरी बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।

साल 2021 में 12 जून को ही मानसून यूपी में दाखिल हो गया था। एक सप्ताह के अंतराल के बाद मानसून तेजी से सक्रिय हो गया थालेकिन इस बार उसने किसानों को दगा दे दिया। पूर्वांचल के साथ ही बुंदेलखंड में खेत सूखे पड़े हैं। यही स्थिति पश्चमी उत्तर प्रदेश और मध्यांचल की भी है। यूपी के ज्यादातर जिलों का तापमान जुलाई महीने में 40 डिग्री से ऊपर चला गया है। बंगाल की ओर से आ रही पुरवा हवा खूब बह रही। इसके बावजूद पूरा उत्तर भारत बादलों की मेहरबानी के लिए तरस रहा है।

जून के आखिरी दिनों में एक-दो दिन बारिश जरूर हुईमगर उसके बाद यूपी का मौसम बेरहम हो गया। कुछ ही दिनों में सावन दस्तक देने वाला है और मानसून का हाल यह है कि खेतों में काम करने वाले किसानों के शरीर का पसीना ही नहीं सूख पा रहा है। मानसून की यह बेरुखी सिर्फ किसानों अथवा फसलों पर ही कहर नहीं बरपा रही हैबल्कि दूरगामी नतीजों का संकेत भी दे रह है।

सूखे जैसे हालात

मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक जेपी गुप्ता कहते हैं, "सोनभद्र से उत्तर प्रदेश में दाखिल होने के बाद 29 जून को मानसून समूचे यूपी को कवर कर चुका हैलेकिन बारिश में लंबा अंतराल आ गया है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में अभी मौसम ऐसा ही बना रहेगाजबकि पश्चिमी यूपी में सोमवार से झमाझम बारिश के आसार हैं।" हालांकि वाराणसी स्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय के मौसम वैज्ञानिक प्रो. मनोज कुमार श्रीवास्तव कहते हैं कि पूर्वांचल और बुंदेलखंड में फिलहाल बारिश की उम्मीद कतई नहीं है। वह कहते हैं, "वाराणसी में सुबह का तापमान 30 डिग्री है तो दिन में पारा 39.6 डिग्री पर पहुंच जा रहा है। हवा में नमी 80 फीसदी हैलेकिन आसमान में बादलों का कहीं अता-पता नहीं है। मानसूनी टर्फ सेंट्रल इंडिया की ओर चला गया हैजिसके चलते यूपी-बिहार में बंगाल की खाड़ी से हवा भारी मात्रा में नमी तो लेकर आ रही हैलेकिन बारिश का माहौल नहीं बन पा रहा है।"

प्रो. श्रीवास्तव यह भी बताते हैं, " जब मानसूनी हवाएं एक जगह इकट्ठा होती हैं तो वहां कम दबाव का क्षेत्र बनता है। वहां बादल बनते हैं और हवाओं के साथ नमी भी एकत्र होती है। इससे उन क्षेत्रों में बारिश होती है। मानसूनी टर्फ दो स्थितियों में बनता है। पहला तब जब जिस क्षेत्र में हवा का दबाव कम होता है। दूसरी स्थिति में जब हवा का बहाव पूरब और पश्चिम की ओर होता है तब दोनों ओर से हवाएं टकराती हैं। हवाओं के टकराने पर मैदानी इलाकों में बारिश होती है। यही मानसून टर्फ हैजो कि इस समय एमपी के दक्षिणी इलाके और महाराष्ट्र की ओर है। पूर्वांचल और बुंदेलखंड के कुछ इलाकों में बादल दिख रहे हैंलेकिन वो बरसने में सक्षम नहीं हैं। 15 जुलाई से पहले यूपी में मानसूनी बादलों के पहुंचने की उम्मीद नहीं है। संभव है कि किसानों को अभी एक हफ्ते तक इंतजार करना पड़ सकता है।" 

हालांकि यूपी के कृषि महकमे के अफसरों का दावा है कि राज्य में 12 फीसदी धान की रोपाई हो चुकी है। मिर्जापुर के कृषि उप निदेशक अशोक उपाध्याय कहते हैं" इस समय सूखे जैसे हालात है, लेकिन स्थिति उतनी बुरी नहीं है, जितनी उम्मीद की जा रही है। लगता है कि स्थिति जल्द बदलेगी और बादल झूमकर बरसेंगे। वह कहते है, '' देखिए साठ के दशक में और अस्सी के दशक में जो सूखा आया था। इस बार भी वैसी स्थिति पैदा होगी, यह कहना कठिन है। मिर्जापुर और बनारस ही नहींसमूचे यूपी में मानसून कमजोर है। मानूसनी बारिश न होने से जिन किसानों ने अपने संसाधन से धान की रोपाई कर दी है उन्हें अब बारिश का इंतजार है। छोटे और मझोले किसान आसमान की तरफ ही टकटकी लगाने को मजबूर हैं।"

प्रयागराज मंडल के संयुक्त निदेशक रमेश चंद्र मौर्य पूर्वांचल के कई जिलों में काम कर चुके हैं। वह कहते हैं"बारिश न होने से अभी तक धान की मुख्य फसल ही नहीं रोपी जा सकी है। जिन किसानों ने बारिश की उम्मीद में उर्दमूंग और मक्के की खेती की हैवह फसलें भी सूख रही हैं। दिन का तापमान 38 से 40 डिग्री के बीच है। जिन लोगों ने धान की रोपाई किसी तरह से कर रखी हैवह झुलस रही है। प्रयागराज मंडल में करीब 83 फीसदी निजी साधनों से खेती होती है। हालांकि जब तक मानसूनी बारिश नहीं होगीतब तक निजी संसाधन वाली फसलें भी बेदम ही रहेंगी। मिर्जापुर और सोनभद्र में 60 से 70 फीसदी खेती मानसूनी बारिश के भरोसे होती है। दोनों जिलों के बांध लबालब भर जाते हैं तभी खरीफ और रबी की फसलों की सिंचाई हो पाती है। दोनों पहाड़ी जिलों में खेतों में बड़े-बड़े दर्रे नजर आ रहे हैं। किसानों का हाल यह है कि वो दिन-रात आसमान में टकटकी लगाए बादलों का इंतजार कर रहे हैं। यह इस इल के में जब बारिश होती है तभी किसान नर्सरी डाल पाते हैं।"

श्री मौर्य कहते हैं"चंदौलीगाजीपुर और बनारस में 50 फीसदी खेतों के लिए सिंचाई की सुविधा नहीं है। मानसूनी बारिश न होने से बहुत से किसानों ने अभी तक नर्सरी नहीं डाली है। खासतौर पर उन इलाकों में जहां किसान बारिश पर निर्भर रहते हैं। जिन किसानों ने पंपसेट अथवा ट्यूबवेल से नर्सरी डाल रखी है वह तैयार हो चुकी है, लेकिन रोपाई लायक बारिश नहीं हो सकी है। पूर्वांचल के ज्यादातर इलाकों में धान के साथ-साथ उड़दमूंगमक्का और अरहर की बुआई में विलंब हो रहा है। कुछ किसानों ने मई महीने में ढैंचे की बुआई कर रखी थीलेकिन बारिश न होने से उसकी पलटाई संभव नहीं हो पा रही है। धान की नर्सरी अब 25 से 28 दिन पुरानी हो चली है और रोपाई नहीं हुई तो उसका असर उत्पादकता पर पड़ेगा। पहले दस जुलाई तक अरहर और मक्के की बुआई हो जाया करती थी मगर इस बार मानसून ने दगा दे दिया। डीजल महंगा होने की वजह से सिंचाई का व्यय भार किसान वहन नहीं कर पा रहे हैं।"

वाराणसी के कृषि उप निदेशक अनिल कुमार सिंह किसानों को सलाह देते हुए कहते हैं"मौजूदा हालात में धान की रोपाई करने से ज्यादा लाभ नहीं होने वाला। एक पखवाड़े तक बारिश नहीं होती है तो दिक्कत ज्यादा होगी। अगर धान की रोपाई नहीं हो पा रही है तो बाजराअरहरउर्दमक्काज्वार की खेती की तैयारी कर देनी चाहिए। जिन लोगों ने ट्यूबवेल से धान की रोपाई की है उसमें कम पानी लगाएं। साथ ही यूरिया का छिड़काव कम कर दें। मौसम अनुकूल होने पर ही उर्वरकों का इस्तेमाल करें। धान के बेहन में सिंचाई सुबह-शाम करेंअन्यथा उसे बचा पाना मुश्किल है। बनारस में अभी तक सिर्फ 12 हजार हेक्टेयर में खरीफ की फसलों की खेती की जा सकी हैजबकि लक्ष्य 68 हजार का है। इस जिले में खरीफ की मुख्य फसल धान है।"

सिर्फ पूर्वांचल ही नहींबुंदेलखंड इलाके में स्थिति काफी भयावह है। बांदाचित्रकूटमहोबा और हमीरपुर में स्थिति गंभीर है। ये वो जिले हैं जहां सिर्फ वर्षा के भरोसे ही समूची खरीफ की खेती होती है। बांदा के उप निदेशक (कृषि रक्षा) डा.एलबी यादव कहते हैं"चित्रकूटबांदामहोबा और हमीरपुर में अभी तक सिर्फ 20 मिली मीटर ही बारिश हो सकी है। सर्वाधिक बारिश महोबा में हुई है। पिछले साल इसी अवधि में 120 मिली बारिश हुई थी। फसल बोने की बात तो दूरइस इलाके के किसानों ने अभी खेतों की ओर रुख ही नहीं किया है।"

"बुंदेलखंड के सभी जिलों में मानसूनी खेती (बारिश आधारित) के रूप में मुख्य रूप से ज्वारबाजरातिल आदि की पैदावार होती है। बारिश के उम्मीद में जिन किसानों ने उर्द और मूंग की खेती कर दी थी वह सूखने की कगार पर है। यहां खेती की कौन कहेआषाढ़ में यहां पीने के पानी का जबरदस्त संकट बरकरार है। बांदा और हमीरपुर जिले में स्थिति काफी विस्फोटक हो गई है। अगर समय से मानसूनी बारिश नहीं हुई तो इस इलाके के किसानों को भीषण संकट से जूझना पड़ सकता है। तब किसानों की मुश्किलें काफी बढ़ जाएंगी, क्योंकि इस इलाके के खेत की मिट्टी भी अलग तरह की है। बारिश खत्म होते ही पानी का संकट गहराना शुरू हो जाता है।"

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले के भरुआ सुमेरपुर इलाके में डेढ़ दशक पहले कुछ इसी तरह के हालात बने थे। उस समय खरीफ की फसलें बोने के बाद सूख गई थीं। जो थोड़ी फसलें बची भी थीं, वह कटाई से पहले ही खेतों में सूखकर कांटा हो गई थीं। उस साल हमीरपुर जिले के 12 किसान फांसी के फंदे पर झूल गए थे। साल 2007 में भी बुंदेलखंड में भीषण सूखा पड़ा था, जो तिल की फसलों को लील गया था। उर्द, अरहर, ज्वार, मूंग की फसलें अक्टूबर में कटने से पहले ही पानी न मिलने के कारण सूख गई थीं। कर्ज को बोझ तले दबे कई किसानों ने सुसाइड कर लिया था। आत्महत्या की ज्यादातर घटनाएं पचकुरा बुजुर्ग, पत्योरा, टेढ़ा, चंदपुरवा बुजुर्ग, इंगोहटा, विदोखर और कलौलीजार में हुई  थीं।

बुंदेलखंड में मुख्य रूप से ज्वार, अरहर, मूंग, तिल, उड़द की फसलें होती हैं। हमीरपुर के प्रगतिशील किसान संतोष सिंह और राधेश्याम तिवारी कहते हैं, "अगर 15 जुलाई तक बारिश बारिश नहीं होती है तो खरीफ की खेती का कोई मतलब नहीं रह जाएगा। दशकों बाद ऐसा समय आया है जब आषाढ़ में मानसूनी बारिश नहीं हुई है। हालात ऐसे ही रहे तो किसान खरीफ की फसल बोने से वंचित रह जाएंगे। हमीरपुर से मिलती-जुलती तस्वीर बुंदेलखंड के सभी जिलों में है। मानसून मेहरबान नहीं हुआ तो किसानों और मजदूरों के सामने भूखों मरने की नौबत पैदा हो जाएगी।"

खाली हाथ कामगार

पूर्वांचल 80 फीसदी कामगार खेती से जुड़े हैं। खेती-किसानी ठप होने से भट्ठे पर काम करने वाले मजदूर भी बेकार बैठे हैंक्योंकि इन दिनों ईंटों की पथाई का कामबंद है। साड़ी और गलीचे बुनने वाले जो कारीगर आषाढ़ में खेतों में काम करते दिखते थेवो कहीं नजर नहीं आ रहे हैं। साखतौर पर बनारस और भदोही इलाके में ऐसी ही स्थिति है। किसान नेता रामजनम कहते हैं,  "रोजी-रोटी की तलाश में मजदूरों का पलायन शहरों की ओर हो रहा है। चंदौलीगाजीपुरभदोहीसोनभद्रमिर्जापुरबलियाआजमगढ़मऊदेवरिया ही नहींपश्चिमी बिहार के श्रमिकों का जखेड़ा बनारस पहुंच रहा है। कुछ रिक्शा चला रहे हैं तो कुछ ईंट-गारा ढो रहे हैं। मानसून की बेरुखी की काली छाया जैसे-जैसे गहरी होगीश्रमिकों का पलायन और तेजी से बढ़ेगा। अगर सूखा पड़ा तो मजदूरी सस्ती हो जाएगीतब कामगारों को पेट भरना कठिन हो जाएगा। बादलों की बेरुखी से शहरों में अभी हाहाकार जैसी स्थिति नहीं हैलेकिन ग्रामीण इलाकों में स्थिति भयावह होने लगी है। खेती-किसानी ठप है और मजदूर खाली हाथ बैठे हैं।"

चोलापुर के बबियांव गांव के प्रगतिशील किसान शैलेंद्र सिंह रघुवंशी कहते हैं"मानसून का यही हाल रहा तो किसानों के जेवर साहूकारों के दहलीज तक पहुंच जाएंगे। तेलदूधदाल और सब्जियों के दाम पहले से ही आसमान छू रहे हैं। मध्यम वर्ग ने अभी से अनाज जुटाना शुरू कर दिया है।" चंदौली के बरौझी निवासी काश्तकार प्रभात पटेल कहते हैं"सिर्फ मानसून ही नहींसरकारी मशीनरी भी किसानों के साथ लुका-छिपी का खेल खेल रही है। डीएपी खाद का संकट बढ़ गया है और जरूरी सामानों के दाम आसमान छूने लगे हैं। हालात यही रहे तो स्थिति और भी ज्यादा भयावह हो सकती है। सूखे की आहट से न सिर्फ जमाखोरी शुरू हो गई हैबल्कि जरूरी सामानों की कीमतें भी अभी से बढ़नी शुरू हो गई हैं। राशनदाना-पानी और कपड़ा जैसी बुनियादी चीजें हासिल कर पाना आम आदमी के बस में नहीं रह जाएगा।"

पूर्वांचल के जाने-माने किसान नेता चौधरी राजेंद्र सिंह कहते हैं"यहाँ सूखे जैसे हालात बनते नजर आ रहे हैं। किसानों के चेहरे पर मायूसी साफ-साफ दिखाई दे रही है। अगर आने वाले दिनों में अच्छी वर्षा नहीं होती है तो फसलों के उत्पादन पर इसका असर देखने को मिलेगा। खेती में कम पानी का असर रोजमर्रा के चीज़ों की क़ीमतों पर भी साफ दिखने लगा है। खाने-पीने की जरूरी चीजों की क़ीमतें बढ़ गई है। चीनी के दाम में भी उछाल आने की आशंका है, क्योंकि बारिश काफी कम होने से गन्ने की पैदावार कम होने की आशंका जताई जा रही है।"

चौधरी यह भी कहते हैं, "केंद्र सरकार ने बफर गोदाम से बड़ी मात्रा में खाद्यान्न रूस भेज दिया है। अगर देश में सूखे की नौबत खड़ी हुई तो देश भुखमरी की कगार पर खड़ा हो सकता है। ऐसे में सरकार को खाद्यान्न संकट से उबारने के लिए अभी से प्रयास शुरू कर देना चाहिए। यूपी की योगी सरकार को चाहिए कि वह अफसरों की आपात बैठक बुलाकर किसानों को सिंचाई के लिए सस्ता डीजल मुहैया कराने का बंदोबस्त कराएं। सरकारी नलकूप पूरी क्षमता से चलाए जाएं। साथ ही खराब पड़े ट्रांसफार्मरों को मुहिम चलाकर ठीक कराया जाए। जो किसान धान नहीं लगा पा रहे हैं उन्हें मुफ्त में उड़दमूंगज्वारबाजरे का बीज वितरित किया जाए।"

(बनारस स्थित विजय विनीत वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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