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बनारस : काशी विद्यापीठ के दलित शिक्षक को बर्खास्त करने पर कुलपति की आलोचना

"दलित लेक्चरर की बर्खास्तगी देश के संविधान और सनातक संस्कृति पर कुठाराघात है। इस शिक्षक ने आस्था से ऊपर संविधान को रखा है तो इसमें गलत क्या है? काशी विद्यापीठ के कुलपति की तानाशाही भारतीय समाज को तालिबानी संस्कृति की ओर ले जाने और हिटलरवादी मानसिकता को पुख्ता करने का क़दम है।"
kashi vidyapeeth teacher

''महिलाएं नवरात्रि के दौरान नौ दिन व्रत रखने के बजाय संविधान और हिंदू कोड बिल पढ़ें तो उनका ज़्यादा भला होगा। उनकी ज़िंदगी गुलामी और डर से आज़ाद हो जाएगी। जय भीम।''

यह वाक्य है फेसबुक के एक पोस्ट काजो बनारस के महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के एक दलित शिक्षक डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम ने लिखी है। फेसबुक पर संविधान को आस्था के ऊपर रखना आरएसएस को नागवार गुजरा। उसकी छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद ने महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर में बखेड़ा खड़ा कर दिया। परिषद से जुड़े स्टूडेंट्स ने घंटों उपद्रव किया। नारेबाजी और प्रदर्शन करने के बाद धार्मिक भावना आहात होने का मुद्दा लेकर वो कुलपति प्रो. आनंद के त्यागी से मिलने जा पहुंचे तो वे मानो प्रदर्शनकारियों के आगे नतमस्तक हो गए। कुलपति के निर्देश पर विश्वविद्यालय की रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय ने इस दलित शिक्षक को न सिर्फ बर्खास्त किया है, बल्कि महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में उनके प्रवेश पर पाबंदी भी लगा दी।

डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के प्रतिभाशाली स्टूडेंट और अतिथि शिक्षक रहे हैं। वह राजनीति शास्त्र के शिक्षक थे। बनारस के प्रबुद्धजन डॉ.मिथिलेश के साथ खड़े हैं। दलित शिक्षक की बर्खास्तगी को लेकर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति प्रो.आनंद के.त्यागी की अब देश भर में छीछालेदर हो रही है। प्रगतिशील तबके के लोगों का कहना है ''शिक्षक का काम ही वैज्ञानिक चेतना फैलाना है। डॉ. गौतम ने संविधान को आस्था से ऊपर रखा है और ऐसा करना कोई गुनाह नहीं है। दलित शिक्षक के खिलाफ कुलपति और कुलसचिव द्वारा की गई इस कार्रवाई न सिर्फ शर्मनाक है, बल्कि इसकी जितनी कड़ी भर्त्सना की जाए वह कम है।'' 

मामले ने क्यों पकड़ा तूल?

28 सितंबर 2022 को महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के दलित शिक्षक डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम ने अपने फेसबुक वाल पर संविधान पढ़ने के बाबत चंद सतरें लिखी तो राष्ट्रीय सेवक संघ के लोग उबलने लगे। इनके फेसबुक पोस्ट के जवाब में कई लोगों ने गालियां लिखी और भद्दे-भद्दे कमेंट्स किए। भद्दे चित्र भी पोस्ट किए। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, 29 सितंबर को एबीवीपी से जुड़े कुछ स्टूडेंट्स अचानक उग्र हो गए। आनन-फानन में एक मनगढ़ंत पोस्टर तैयार कर विश्वविद्यालय में दुष्प्रचार शुरू कर दिया गया। प्रदर्शनकारियों का जत्था विश्वविद्यालय परिसर में घूम-घूमकर ''जय श्रीराम और जय माता दी'' के नारा लगाने लगा। डा.गौतम राजनीति शास्त्र के गेस्ट लेक्चरर थे। उनकी फैकल्टी के बाहर भी नारेबाजी की गई। आंदोलन करने वालों में वो लोग भी शामिल थे जिन्होंने बीते सालों में दलित शिक्षक प्रो. सुशील गौतम (फिजिकल एजुकेशन के डीन) और ओबीसी शिक्षक केएन जायसवाल (वाणिज्य संकाय के डीन हैं) की पिटाई की थी। 

किसने दिया बर्खास्तगी का आदेश?

मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, दलित शिक्षक पर मुकदमा दर्ज कराने के लिए एबीवीपी से जुड़े स्टूडेंट्स सबसे पहले सिगरा थाने पहुंचे और पुलिस पर दबाव डाला। पुलिस ने फेसबुक पोस्ट के आधार पर कोई भी मामला दर्ज करने से साफ इनकार कर दिया। वहां उनकी दाल नहीं गली तो शिक्षक की बर्खास्तगी की मांग को लेकर विश्वविद्यालय परिसर में नारेबाजी और प्रदर्शन करने लगे। बाद में उनका जत्था कुलपति दफ्तर पर पहुंचा और वहां भी प्रदर्शन करना शुरू कर दिया। फिर वो कुलपति प्रो. आनंद त्यागी के दफ्तर में घुस गए। बर्खास्त शिक्षक डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम कहते हैं, ''महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के कुलपति के ऊपर हमारी बर्खास्तगी के लिए इस कदर दबाव बनाया गया कि उन्हें आरएसएस और  अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के आगे नतमस्तक होना पड़ा। कुलपति प्रो. आनंद त्यागी  ने आनन-फानन में रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय बुलाया और उन्हें मेरी बर्खास्तगी का आदेश जारी करने का निर्देश दिया। कुलपति एबीवीपी के दबाव में इस कदर आ गए कि शिकायत मिलने के कुछ ही घंटों में उन्होंने हमें न सिर्फ बर्खास्त करा दिया, बल्कि विश्वविद्यालय परिसर में घुसने पर भी पाबंदी लगाने का हुक्म भी जारी कर दिया।''

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ दलित शिक्षक के फेसबुक पोस्ट के बाद हुई कार्रवाई को लेकर देश भर में बवाल मचा हुआ है। विश्वविद्यालय प्रशासन ने शिक्षक के प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया है। इस मामले में विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय कहती हैं, ''डॉ गौतम के कृत्य से छात्र नाराज थे। इनके पोस्ट से परिसर में शांति व्यवस्था भंग हो रही थी। इससे विश्वविद्यालय की परीक्षाओं पर असर पड़ सकता था। ऐसे में मुझे विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से राजनीति विज्ञान विभाग के गेस्ट लेक्चरर डॉ मिथिलेश कुमार गौतम को हटाने का निर्देश मिला तो तो हमने आदेश जारी कर दिया। विश्वविद्यालय नियमावली के तहत मिथिलेश कुमार गौतम को तत्काल प्रभाव से बर्खास्त करते हुए परिसर में प्रवेश करने पर प्रतिबंधित कर दिया गया है। डॉ. गौतम अब विश्वविद्यालय परिसर में किसी भी दशा में नहीं घुस सकते हैं।''

''न्यूजक्लिक'' से बातचीत में डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम कहते हैं, ''इस घटना ने हमारे सामाजिक और आर्थिक पहलुओं पर ठेस पहुंचाई है। हमने सोशल जस्टिस पर पीएचडी की है। स्टूडेंट्स को बेहतरीन शिक्षा दी है। हमारे काम की हर किसी ने तारीफ की है। स्टूडेंट्स ने भी  और शिक्षकों ने भी। हम तो विश्वविद्यालय की हर प्रमुख गतिविधि में शामिल होते रहे हैं। बेहतरीन शिक्षक के तौर पर हमें सम्मानित भी किया जाता रहा है। हमने संविधान की बात कही है, कोई अनर्गल बात नहीं की है जिसे तूल दिया जाए। आरएसएस और सत्तारूढ़ दल के लोग सरकारी मशीनरी पर दबाव बनाकर हमारे खिलाफ फर्जी मामला दर्ज कराना चाहते हैं। हमें जान का खतरा है। हमें लगातार धमकियां दी जा रही हैं और जाति सूचक गालियां भी।

''सत्तारूढ़ दल भाजपा को जब वोट लेने की बारी आती है तब हम जैसे प्रगतिशील दलित हिन्दू हो जाते हैं। भाजपा के लोग दलितों के घर भोजन करने चले आते हैं और बाद में दलित और अछूत बताकर हमारे खिलाफ मुहिम छेड़ दी जाती है। मेरे खिलाफ एक्शन एकतरफा और बिना किसी बुनियाद के आधार पर लिया गया है। मैं न्याय के लिए लंबी लड़ाई लड़ूंगा। हमें सिर्फ बनारस ही नहीं, पूर्वांचल समेत देश भर से प्रगतिशील लोगों का सहयोग मिल रहा है।'' 

देश भर में मचा बवाल

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ में दलित शिक्षक की बर्खास्तगी को लेकर कई दलित संगठन विरोध में खड़े हो गए हैं। भीम आर्मी की महिला विंग ने डॉ. गौतम का समर्थन करते हुए कहा है, '' विश्वविद्यालय को अपने अधिकार का दुरुपयोग कर रहा है। क्या महिलाओं को हिन्दू कोड बिल और संविधान पढ़ने की सलाह देना अपराध है? '' दलित शिक्षक के खिलाफ हुई कार्रवाई को लेकर काशी विद्यापीठ की बहुजन इकाई के स्टूडेंट्स बेहद गुस्से में हैं। उन्होंने कुलपति को जवाबी ज्ञापन सौपा है और कहा है कि अगर निर्दोष शिक्षक की बर्खास्तगी वापस नहीं ली गई तो देश भर में विरोध प्रदर्शन शुरू किया जाएगा।''

विश्वविद्यालय प्रशासन को ज्ञापन सौंपने के बाद छात्र नेता अरविंद कुमार ने कहा, '' महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ प्रशासन ने पीड़ित टीचर डॉ. मिथिलेश कुमार गौतम को बिना नोटिस दिए ही पद से बेदखल कर दिया। आखिरकार, वो किसी के फेसबुक पोस्ट के आधार पर कार्रवाई कैसे कर सकता है। यह विश्वविद्यालय का अधिकार नहीं है कि वह साइबर सेल का काम करे। डॉ.गौतम ने अगर विश्वविद्यालय परिसर अथवा क्लास रूम में किसी की आस्था को ठेस पहुंचाई होती, तो एक मामला बनता। सोशल मीडिया पर राइट टू फ्रीडम ऑफ स्पीच एंड एक्सप्रेशन के तहत कोई अपनी बात रख रहा है, तो उसे निलंबित किया जाना कानूनी तौर पर गलत और संविधान विरोधी है। दलित शिक्षरक की बर्खास्तगीपूरी तरह अन्यायपूर्ण है। विश्वविद्यालय प्रशासन का यह रवैया तानाशाही वाला है।'' ज्ञापन देने वालों में अरविंद कुमार, पिंटू कुमार जैश, पंकज कुमार निगम शामिल थे।

इस बीच देश के जाने-माने पत्रकार दिलीप मंडल ने ट्वीट कर इस मुद्दे को गरमा दिया है। उन्होंने कहा है की दलित शिक्षक की बर्खास्तगी के मामले पर बहुजन समाज के लोग ट्वीट कर अपना गुस्सा जता रहे हैं। उन्होंने अपने ट्वीट में लिखा है, ''एक पोस्ट को लिखने के कारण यूपी में एक टीचर को नौकरी से हटा दिया गया है। इसका जवाब ये है कि मैं इसे शेयर करके लाखों लोगों तक पहुंचाउंगा। अगर इसमें कुछ असंवैधानिक या गैरकानूनी है तो यूपी सरकार मुझ पर कार्रवाई कर सकती है। एक शिक्षक पर कार्रवाई करना बेहद शर्मनाक है। शिक्षक का काम ही वैज्ञानिक चेतना फैलाना है। संविधान के तहत ये उनका कर्तव्य है।''

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हृदय रोग विभाग के अध्यक्ष प्रो.ओम शंकर निर्दोष दलित शिक्षक की बर्खास्तगी के लिए सीधे तौर पर कुलपति प्रो.आनंद के. त्यागी को जिम्मेदार मानते हैं। वह कहते हैं, ''भारतीय संविधान देश के हर व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी देता है। संविधान को आस्था से ऊपर रखा गया है। शिक्षक डॉ.मिथिलेश गौतम ने तुलनात्मक ढंग से अपनी बात रखी है। उन्होंने संविधान के वैल्यू के बताया है, जो किसी भी तरह से आपराधिक कृत्य नहीं है। उनके ऊपर की गई किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई संविधान के मूल्यों और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हनन है। जिन लोगों ने डॉ.गौतम के ऊपर कार्रवाई की है उन पर सख्त एक्शन होना चाहिए। कुलपति प्रो.आनंद के. त्यागी का निर्णय पूरी तरह गैर-संवैधानिक और अनुचित है। इनका यह कृत्य समाज में भेदभाव को बढ़ावा देता है। दलित शिक्षक पर कुलपति की यह कार्रवाई एक पढ़े-लिखे व्यक्ति द्वारा समाज में अंधविश्वास को बढ़ावा देने जैसा है। यह कृत्य संविधान की मूल भावनाओं के खिलाफ भी है। कुलपति के खिलाफ उचित कार्रवाई के लिए पीड़ित पक्ष को बड़ी अदालतों में अर्जी देनी चाहिए। साथ ही असंवैधानिक कृत्य में लिप्त कुलपति और दलित शिक्षक की बर्खास्तगी का आदेश जारी करने वाली रजिस्ट्रार सुनीता पांडेय के भेदभावपूर्ण व्यवहार और गैर-संवैधानिक निर्णय के लिए उन्हें पद से तत्काल हटा दिया जाना चाहिए। दुर्भावना से ग्रसित लोगों के दबाव में आकर विश्वविद्यालय प्रशासन का नतमस्तक हो जाना घोर निंदनीय है।

कुलपति का कृत्य शर्मनाक

काशी पत्रकार संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप श्रीवास्तव ने शिक्षक की बर्खास्तगी पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा है, ''सिर्फ बनारस ही नहीं, देश भर की शिक्षण संस्थाएं ज्ञान और शिक्षा का केंद्र न बनकर रूढ़िवादिता का केंद्र बनती जा रही हैं। अगर शिक्षक के खिलाफ कार्रवाई न होती तब आश्चर्य की बात होती। एक सुनियोजित साजिश के तहत तर्कशक्ति को खत्म करने की मुहिम चलाई जा रही है। प्रबुद्ध वर्ग जानता है कि तर्कहीन समाज मुर्दे की तरह होता है। काशी विद्यापीठ लेक्चरर ने अपने फेसबुक पोस्ट पर कोई गलत बात नहीं लिखी है। जिन शक्तियों की देश की राजनीति पर प्रभुत्व है वो मौजूदा संविधान को ही खत्म करने पर तुली हैं। ऐसे में संविधान वकालत करने वाले किसी शिक्षक को भला कैसे बर्दाश्त किया जा सकता है? ''

प्रदीप यह भी कहते हैं, ''महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ जैसी संस्था की स्थापना ही राजनीतिक, मानसिक और आर्थिक गुलामी से संघर्ष के लिए ही हुई थी। इस शिक्षण संस्थान में कुलपति जैसे पद पर आसीन होकर शर्मनाक कार्रवाई करना चिंता का भाव जगाता है। अगर इसका मजबूत प्रतिरोध नहीं हुआ तो भारतीय संविधान और लोकतंत्र दोनों ही खत्म हो जाएगा। आरएसएस उसकी छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद धार्मिक आस्था को सिर्फ इसलिए संविधान से ऊपर रखना चाहती है, ताकि उसकी राजनीतिक पूंजी बनी रहे और नई बीजेपी के ढांचे के भीतर जिंदा रहे। हिंदू साख़ को लगातार चमकाते हुए वोट बैंक बिखरने से रोका जा सके। ऐसे में अगर प्रबुद्ध समाज सोया रहा और जुल्म-ज्यादती बर्दास्त करता रहा तो यह सिलसिला और तेज हो जाएगा। फिर तो फासिस्टवाद के सामने हर किसी को नतमस्तक होना पड़ेगा।''

गौर करें तो भाजपा के हुकूमत में आस्था हमेशा से संविधान पर भारी पड़ती रही है। साल 2014 से जब से मोदी सरकार सत्ता में आई है तब से कई ऐसी चीज़ें सामने आईं जिन्हें आस्था और राष्ट्रवाद के तौर पर पेश किया गया। सिनेमा घरों में फ़िल्म शुरू होने से पहले बजने वाले राष्ट्रगान के समय खड़े होना अनिवार्य किया गया। कई लोगों ने राष्ट्रगान बजने के वक़्त अपनी सीट से उठने से इनकार किया तो उनकी पिटाई के वाक़ये भी सामने आए, हालांकि बाद में इसे अनिवार्य से स्वैच्छिक कर दिया गया। बाद में लोगों के खान-पान पर बहस शुरू हुई और बीफ़ खाने के शक में पीट-पीटकर जान भी ले ली गई। बनारस में जब से ज्ञानवापी का बवाल खड़ा हुआ है तब से यह भी सवाल उठाया जाने लगा है कि बनारसियों को क्या लिखना चाहिए और क्या नहीं लिखना चाहिए? स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि संविधान और मानवता अब संकीर्णता के आगे बौनी पड़ने लगी है।

दलित हितों से लिए दशकों से संघर्षरत डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं, ''संविधान अलग-अलग विचारों को रखने की आजादी देता है, जिसमें आस्तिकता और नास्तिकता दोनों शामिल है। सनातन संस्कृति में शास्त्रार्थ करने का अधिकार प्राप्त है। ईश्वर के अस्तित्व को न मानने वाले भी हैं। दलित लेक्चरर की बर्खास्तगी देश के संविधान और सनातक संस्कृति पर कुठाराघात है। इस शिक्षक ने आस्था से ज्यादा ऊपर संविधान को रखा है तो इसमें गलत क्या हैकाशी विद्यापीठ के कुलपति की तानाशही भारतीय समाज को तालिबानी संस्कृति की ओर ले जाने और हिटलरवादी मानसिकता को पुख्ता करने का कदम है। मानवाधिकार जननिगरानी समिति इस मामले में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग में शिकायत दर्ज कराएगी। साथ ही कुलपति के खिलाफ एक्शन की मांग उठाएगी, क्योंकि वह संविधान से ज्यादा संकीर्णता और अंधविश्वास को बढ़ावा दे रहे हैं। कुलपति और रजिस्ट्रार का यह कृत्य दलित विरोधी और शर्मनाक है।''

विवि प्रशासन के निशाने पर दलित

काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में कला इतिहास विभाग के प्रोफेसर महेश प्रसाद अहिरवाल ने भी इस मुद्दे पर विश्वविद्यालय प्रशासन को आड़े हाथ लिया है। ''न्यूजक्लिक'' से बातचीत में उन्होंने कहा, ''यह अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। डॉ.मिथिलेश गौतम की बर्खास्तगी गैरकानूनी और असंवैधानिक है। उनके वक्तव्य में किसी की धार्मिक भावनाओं को आहत करने जैसी कोई बात नहीं है। काशी विद्यापीठ प्रशासन को एकतरफा कार्रवाई से बचना चाहिए था। अच्छा होगा कि डॉ.गौतम के खिलाफ कार्रवाई रोकी जाए और कुलपति अपना निर्णय वापस लेते हुए उन्हें बहाल करें। इस तरह की कार्रवाई तानाशाही का प्रतीक है और संविधान प्रदत्त अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला है। सिर्फ फेसबुक पर विचार रखने भर से ऐसी कार्रवाई से यह साफ प्रतीत होता है कि दलित समुदाय विश्वविद्यालय प्रशासन के निशाने पर है। दलित उनके आसान शिकार बन गए हैं। विश्वविद्यालय प्रशासन सांप्रदायिक और देश विरोधी तत्वों के दबाव में आकर काम कर रहा है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता आरके गौतम का कहना है कि संविधान को आस्था से ऊपर रखना कोई गुनाह नहीं है। वह कहते हैं, "डॉ.मिथिलेश गौतम के एक-एक शब्दों को पढ़िए। फेसबुक पर लिखी इनकी चंद सतरें क्या कार्रवाई योग्य थीं? फिर कुलपति ने किसके दबाव में एक्शन लिया? आखिर बर्खास्तगी का मामला कहां से बनता है? क्या कुलपति आरएसएस के गुलाम हो गए हैं? आस्था और जातिवाद को आगे रखकर कोई कार्रवाई करते हैं तो आप समस्या को समस्या ख़त्म नहीं करते, बल्कि उसे जोर-शोर से आगे बढ़ाते हैं। ऐसे में तो अभिव्यक्ति की आज़ादी पर हमले बढ़ते चले जाएंगे।''

''संविधान पढ़ने की वकालत करना गुनाह कतई नहीं हो सकता। इससे न हिंसा फैलती है और न ही नफ़रत। जिन लोगों ने आस्था को आगे रखकर संविधान पर हमला बोला है कार्रवाई तो उनके खिलाफ होना चाहिए। हमारा संविधान  कहता है कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में असहमति ज़ाहिर करना शामिल है  और यह बहुत अहम भी है। अपने मुल्क में अगर संविधान पर ही सवाल उठने लगेगा तो देश की जेलों में जगह ही नहीं बचेगी जाएगा।''

समाजवादी जन परिषद के राष्ट्रीय महासचिव अफलातून कहते हैं, ''संविधान और हिन्दू कोड विधेयक के निर्माण में डॉ.भीमराव अंबेडकर की अहम भूमिका रही। जब हिन्दू कोड बिल लाया गया था उस समय आरएसएस के मुखिया एमएफ गोलवर्कर ने उसका विरोध किया था। आरएसएस की कल्पना थी कि हिन्दू राष्ट्र का समाज पुरुष सत्तामत्मक होगा और जाति प्रथा भी होगी। संघ और गोलवर्कर के मौजूदा उत्तराधिकारियों द्वारा युवा शिक्षक डॉ.मिथिलेश गौतम को निशाना बनाना कोई अचरज की  बात नहीं है। विचारों की आजादी पर यह विश्वविद्यालय प्रशासन का प्रहार है। सड़ी सोच वाले लोगों का मुकाबला करने के लिए हर प्रबुद्धजन को आगे आना होगा, जिनकी देश के संविधान और स्वस्थ समाज के निर्माण में आस्था है। राष्ट्रीय आंदोलन के क्रम में गांधी जी की प्रेरणा से स्थापित इस शिक्षण संस्थान में दुर्भाग्यपूर्ण घटना हुई है, जिससे देश भर में काशी का नाम कलंकित हुआ है। प्रगतिशील चिंतकों की बड़ी जमात काशी विद्यापीठ से ही निकली है। काशी विश्वनाथ मंदिर में दलित प्रवेश की मुहिम में इसी संस्था के प्रो.राजाराम शास्त्री, प्रो.दूधनाथ चतुर्वेदी, प्रो.कृष्णनाथ, प्रो.रमेश चंद्र तिवारी को आज भी याद किया जाता है। मौजूदा कुलपति प्रो. आनंद के. त्यागी ने दलित प्रोफेसर को बर्खास्त करके काशी विद्यापीठ की महान प्रगतिशील परंपरा पर शर्मनाक ढंग से कुठाराघात किया है।''

(लेखक बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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