भारत इज़रायल की 'किलिंग होम डोमिसाइड' नीति अपना रहा है
प्रयागराज में, मोहम्मद जावेद के घर का विध्वंस, स्पष्ट रूप से मुसलमानों को अपने अधीन करने की भारतीय जनता पार्टी की चौंकाने वाली रणनीति को दर्शाता है। चाहे फिर उन्हें जो भी अपमान और अन्याय सहना पड़े, लेकिन उनका विरोध करना मना है। प्रयागराज प्रशासन ने यह संदेश तब देना चाहा जब उन्होंने जावेद को पैगंबर मोहम्मद के खिलाफ की गई अभद्र टिप्पणी के खिलाफ प्रयागराज में 10 जून के विरोध प्रदर्शन के कथित आयोजक के रूप में पहचाना - और फिर जल्दी से उनके घर को ध्वस्त कर दिया।
लेकिन जिसे जावेद का घर बताया गया है, वह उनकी पत्नी परवीन फातिमा के नाम पर पंजीकृत था, जैसा कि इंडियन एक्सप्रेस ने दर्शाया है। इस घर को फातिमा को उनके पिता ने उपहार में दिया था। यह तथ्य जावेद के घर से उस अतिक्रमण को हटाने के प्रशासन द्वारा दिए गए नोटिस, जिसे कथित अतिक्रमण को हटाने का कारण बताया गया है, वह कानूनी रूप से गलत है। दंपति का घर निर्जन हो गया है।
ऐसा लगता है कि देश की हुकूमत एक खास समुदाय को पीड़ा देने और आतंकित करने के लिए इजरायल की प्लेबुक से रणनीति उधार ले रही है। जावेद के भाग्य की तुलना महमूद और दाउद शकीरात से करें, जो दो भाई हैं जो जनवरी तक पूर्वी यरुशलम में अलग-अलग घरों में रहते थे।
उस महीने, इज़राइली पुलिस ने दोनों भाइयों को नोटिस भेजकर कहा कि वे अपने घरों को 24 घंटे के भीतर ध्वस्त कर दें। नोटिस में आगे कहा गया अन्यथा नगर पालिका उनके घरों को तोड़ देगी। भाइयों ने पहला विकल्प चुना, क्योंकि यदि इस्राइली नियंत्रित यरुशलम नगर पालिका उनके दो घरों को तोड़ती तो उसकी लागत भी उन्हे ही वहन करनी पड़ती और साइट पर श्रमिकों के पीने के पानी की लागत भी उन्हे हे उठानी पड़ती।
तीन साल की कानूनी लड़ाई के बाद और इजरायली अदालत के फैसले के बाद शकीरात को नोटिस जारी किया गया था कि उनके पास नगर पालिका से आवश्यक भवन परमिट नहीं था। लेकिन दोनों भाइयों के परमिट हासिल करने की संभावना नगण्य थी क्योंकि यरुशलम में 93 प्रतिशत फिलिस्तीनियों को जानबूझकर परमिट देने से मना कर दिया गया था।
इज़रायल की नकल करना
इस आधार पर कि उनके मालिकों के पास परमिट नहीं है, इस बहाने से फिलिस्तीनी घरों को इजरायल द्वारा ध्वस्त कर दिया जाता है – जिन्हे पटमिट देने की पहले से मनाही थी - इजरायल ने उग्रवादियों के पारिवारिक आवासों को गिराने की अपनी पूर्व नीति को बदल दिया है। इस तरह का हर विध्वंस फिलिस्तीनी परिवारों को एक सीधा संदेश था कि उन्हें अपने परिवार के सदस्यों को उग्रवाद में शामिल होने से रोकना चाहिए और अपने घरों के नष्ट होने की संभावना को कम करना चाहिए।
दंडात्मक विध्वंस के रूप में वर्णित, इस नीति ने व्यक्ति के कृत्य के लिए सामूहिक दंड देने की नीति को अपनाया है। इसके खिलाफ न केवल वैश्विक आक्रोश था, बल्कि इजरायलियों ने भी महसूस किया कि इसकी विध्वंस रणनीति अधिक से अधिक फिलिस्तीनियों को अपने भूमि पर इजरायल के कब्जे के प्रतिरोध में शामिल होने के लिए उकसा रही थी।
एक पुनर्विचार की सख्त जरूरत थी।
इजरायली कमेटी अगेंस्ट हाउस डिमोलिशन के आंकड़े बताते हैं कि फिलिस्तीनी घरों का विध्वंस वर्षों से जारी है। ऐसा करने के कारणों में केवल कुछ बदलाव किए गए हैं। इस प्रकार, दंडात्मक विध्वंस 1983 में 12 से बढ़कर 2003 में 227 हो गए थे और फिर 2005 में घटकर केवल चार रह गए थे। उसके बाद कई वर्षों तक यह आंकड़ा शून्य पर रहा।
हालांकि, प्रशासनिक कारणों से विध्वंस, जैसे बिल्डिंग परमिट नहीं होना, 2002 में 405 से बढ़कर 2016 में 1094 हो गया था, फिर यह संख्या 2020 में 865 तक नीचे आ गई थी। नगर पालिका के नियमों का उल्लंघन घरों को नष्ट करने के मामले में सामूहिक दंड देने का अधिक उचित कारण लगता है। विश्व में गुस्सा यह देख एक हद तक शांत हो गया था, कि यहूदी खुद अपनी सरकार की प्रचंड विनाश की नीति का विरोध कर रहे थे।
भारत ने नगर पालिका नियमों को लागू करने के मामले में दंडात्मक विध्वंस के इज़राइल के तरीके को अपनाया है। अप्रैल में, जब रामनवमी के जुलूसों के दौरान मुस्लिम विरोधी नारे लगाने पर झड़पें हुईं, गुजरात और मध्य प्रदेश में घरों और दुकानों को समतल करने के लिए बुलडोजर भेजे गए थे, ये वे राज्य हैं जहाँ भाजपा शासन करती है, और दिल्ली में, जहाँ पार्टी नगरपालिका को नियंत्रित करती है। गौरतलब है कि दिल्ली पुलिस मोदी सरकार के अधीन काम करती है।
शाहबाज खान मध्य प्रदेश के सेंधवा शहर के उन लोगों में शामिल थे, जिनके घर मलबे में ढेर कर दिए गए थे। उन्होंने बीबीसी को बताया, "मेरी पत्नी और बहन रो रही थीं और पुलिस से विनती कर रही थी कि हमें अपना सामान ले जाने दें- कम से कम कुरान को लेने दो - लेकिन उन्होंने उनकी गुहार को नहीं सुना।"
चाहे मध्य प्रदेश हो या दिल्ली या गुजरात, भाजपा ने दावा यही किया कि विध्वंस सिर्फ अतिक्रमण विरोधी अभियान का हिस्सा था। लेकिन कोई भी उनकी पार्टी पर विश्वास नहीं करता है, यहां तक कि उसके समर्थक भी नहीं, जो मानते हैं कि सरकार द्वारा आदेशित विनाश मुसलमानों को जुलूस के दौरान नारेबाजी करने वाले नारों का जवाब देने के लिए मुसलमानों को दी गई सामूहिक सजा थी।
डोमिसाइड या किलिंग होम
इस तरह के विध्वंस को डोमिसाइड कहा जाना चाहिए, एक ऐसा शब्द जिसे कनाडाई शिक्षाविद जे डगलस पोर्टियस ने गढ़ा है। इस शब्द को डोमिसाइड: द ग्लोबल डिस्ट्रक्शन ऑफ होम में विस्तार से समझाया गया है, जिसे पोर्टियस और एक अन्य कनाडाई शिक्षाविद सैंड्रा ई॰ स्मिथ ने 2001 में लिखा था। वे यह पूछते हुए शुरू करते हैं कि घर सिर्फ एक घर क्यों नहीं है, यह लोगों के लिए बेहद मायने रखता है।
प्रतिदिन बाहरी दुनिया का चक्कर लगाने के बाद, हम सभी, पोर्टियस और स्मिथ लिखते हैं, "खुशी से अपने घरों में फिर से प्रवेश करते हैं - ऐसे स्थान जो बाहरी दुनिया के मुक़ाबले शांत शरणस्थल हैं; वह स्थान जहाँ हम वास्तव में खुद को महसूस कर सकते हैं और अपने अस्तित्व का प्रदर्शन और पोषण कर सकते हैं; और सबसे बढ़कर, हम जिन स्थानों पर, एकाग्रता, पहचान और सुरक्षा का अनुभव कर सकते हैं।" इसलिए, उनका तर्क यह है कि घर के मालिक की इच्छा के विरुद्ध जानबूझकर उसके घर को ध्वस्त करने को डोमिसाइल कहा जाना चाहिए।
वे लिखते हैं, "संक्षेप में कहा जाए तो डोमीसाइड घर की हत्या है ... डोमिसाइड घर की जानबूझकर की गई हत्या है।" हत्या के इस रूप में तय लक्ष्य हैं और, जैसा कि नरसंहार के मामले में होता है, जिसे एक सुपर पावर यानि अक्सर हुकूमत द्वारा अंजाम दिया जाता है।
हुकूमत के लक्ष्यों में हवाई अड्डों, सड़कों, जल विद्युत परियोजनाओं, कार्यालयों और वाणिज्यिक परिसरों का निर्माण शामिल हो सकता है। डोमिसाइड की एक रणनीति जिसे युद्ध में लागू किया जाता है, उग्रवाद विरोधी अभियानों में, और जातीय सफाई के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाता है और साथ ही उस क्षेत्र को सजातीय बनाने और उस पर दावा करने के लिए लागू किया जाता है। "यहूदि 1945 के बाद फिलिस्तीन में बाढ़ की तरह आ गए थे, और 1948 और 1967 में लगभग एक मिलियन फिलिस्तीनियों के खिलाफ डोमिसाइल लागू किया गया था," दोनो लेखक बताते हैं, कि विडंबना यह है इसे एक ऐसे धार्मिक समूह द्वारा किया गया जिन्हे हिटलर के जर्मनी में डोमिसाइड और नरसंहार दोनों का सामना करना पड़ा था।
जाहिर है, नरसंहार की तुलना में डोमिसाइड कम भयावह है। पोर्टियस और स्मिथ कहते हैं, "जबकि डोमिसाइड की जरूरत के मुताबिक यह जरूरी है कि पीड़ित घर के नुकसान को झेलने के लिए जीवित रहें और शायद अपने जीवन का पुनर्निर्माण करें, जबकि नरसंहार के पीड़ित की मौत ही सज़ा होती है।" फिर भी डोमेसाइड से बहुत तकलीफ़ होती है क्योंकि "घर ... किसी की पहचान और आत्म-पहचान के सबसे गहरे घावों में से एक हो सकता है, क्योंकि ये दोनों चीजें मानसिक स्वास्थ्य पर असर डालती है, जो घर की वस्तुओं और संरचनाओं में बस्ती हैं जिन्हें हम संजोते हैं।"
शक्तिशाली अधिकारी डोमिसाइल का सहारा लेते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि घर प्रत्येक व्यक्ति के लिए केंद्रीय है, और इसके विनाश से घर में रहने वालों को परेशानी होगी, यह परवीन फातिमा के परिवार के सदस्यों की ब्रीफिंग से भी स्पष्ट है।
पोर्टियस और स्मिथ बड़े पैमाने पर घरेलू हत्या पर ध्यान केंद्रित करते हैं, लेकिन वे घर की जानबूझकर हत्या के व्यक्तिगत मामलों का भी हवाला देते हैं। उदाहरण के लिए, अल्बर्ट ड्राइडन ने उत्तरी इंग्लैंड के बस्टफील्ड में अपने हाथों से अपना घर बनाया था। 1988 में, स्थानीय योजना विभाग ने दावा किया कि ड्राइडन ने उसकी अनुमति के बिना ऐसा किया था। जब ड्राइडन अपने घर को बचाने की सारी अपील हार गया, तो स्थानीय विभाग ने इसे समतल करने के लिए एक बुलडोजर भेजा।
ड्राइडन के घर को गिरते हुए देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई। निराश ड्राइडन ने भीड़ पर गोली चला दी। जिसे गोली लगी वह व्यक्ति योजना विभाग का निदेशक हैरी कोलिन्सन था। पोर्टियस और स्मिथ लिखते हैं, "उनके पड़ोसी, जेल में बंद ड्राइडन के कदम को चरमपंथ के समान मानते हैं, लेकिन कुछ लोग हैं जो उन्हें निजी संपत्ति के अधिकारों और घर की पवित्रता के बारे में शहीद का दर्ज़ा देते हैं।"
लेखक भारत से भी एक उदाहरण का हवाला देते हैं, हालांकि एक काल्पनिक उदाहरण, भले ही भारत ने अपने इतिहास में बड़े पैमाने के डोमिसाइड्स देखें हैं। वे कैवसजी का हवाला देते हैं, जो रोहिंटन मिस्त्री के प्रसिद्ध उपन्यास ‘सच ए लॉन्ग हिस्टरी’ के एक पात्र हैं, जो भगवान से कहते हैं: "कोई और जगह नहीं मिली? यहाँ हमेशा सारी की सारी परेशानी रहती है,? अंधेरा, बाढ़, आग, लड़ाई? ऐसा टाटा पैलेस में क्यों नहीं? राज्यपाल की हवेली में क्यों नहीं होता है।”
पोर्टियस और स्मिथ, विशेषता के साथ नोट करते हैं कि, "वह [कैवसजी] गलत व्यक्ति को डांट रहा है, क्योंकि यह सिर्फ वे हैं जो डोमिसी नहीं झेलते हैं - अर्थात् व्यवसायी और सरकारी लोग - जो इस अपराध को करते हैं। टाटा पैलेस और गवर्नर की हवेली इन हमलों से सुरक्षित हैं।" इस सूची में, 2022 में, अदानी और अंबानी के नाम जुड़ गए हैं, हिंदुत्व के पैदल सैनिक हैं, जो नफरत का प्रचार करते हैं, और नूपुर शर्मा जैसे व्यक्तित्व, जिनकी पैगंबर को नीचा दिखाने की सजा भाजपा से निलंबन थी, न कि उनके घर का विध्वंस।
डोमिसाइड भेदभावपूर्ण है। यह कुछ समूहों को उनके अधिकारों से वंचित करने के बारे में है; वे भारत के असमान नागरिक हैं, उनमें आदिवासी सबसे आगे हैं। सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास का प्रधानमंत्री का नारा भारत की डोमिसाइड की नीति के पीड़ितों के लिए एक क्रूर मजाक के रूप में लगना चाहिए, जो जंगलों और दूरदराज के इलाकों से लेकर उसके शहरी दिल तक फैला हुआ है, जहां मुस्लिम बड़े पैमाने पर रहते हैं।
लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें।
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