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झारखण्ड: भूख से एक और मौत!

झारखंड में पिछले 10 महींनो में 12 लोगों को अपनी जान भूख के कारण गँवानी पड़ी है।
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झारखंड में भुखमरी के कारण एक और मौत का मामला सामने आया है। झारखंड के रामगढ़ ज़िले के मांडू प्रखंड में 40 वर्षिय आदिवासी राजेंद्र बिरहोर नामक व्यक्ति की मौत भूख के कारण हो गई।

समाचार एजेंसी ‘भाषा’ से बात करते हुए मृत व्यक्ति की पत्नि शांति देवी ने बताया कि तमाम कोशिशों के बावजूद उनके परिवार का राशन कार्ड नहीं बन पाया। वो आगे बताती है  कि उनके पति को पीलिया था और उसके पास इतने पैसे नहीं थे कि वो डॉकटरों द्वारा बतायी गयी खाने की चीज़ें और दवाईयाँ खरीद सकें। राशन कार्ड न होने की वजह से परिवार सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत सबसिडी वाला अनाज भी प्राप्त नहीं मिल पाया।

छह: बच्चों के पिता राजेंद्र बिरोहर परिवार में एकमात्र कमाने वाले सदस्य थे। उन्हें हाल ही में बीमार होने के कारण स्थानीय राजेंद्र  इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस में भर्ती करवाया गया था और इलाज के बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी दे दी गई।

पत्नी के अनुसार उसके पति राजेंद्र के पास आधार कार्ड था उसके बावजूद राशन कार्ड नहीं बन पाया। राजेंद्र के नाम पर एक एकड़ 80 डिसमिल सरकारी जमीन मिली थी लेकिन वह परती (खाली पड़ी) है। इसके अलावा उसकी पत्नी इधर-उधर से भीख मांग बच्चों को खिलाती थी। मगर पति की बीमारी पड़ने के बाद वह भीख मांगने भी नहीं जा पाती थी, घर में अनाज बिल्कुल खत्म हो गया था।

इतना सब हो जाने के बावजूद स्थानीय प्रशासन और झारखंड की भाजपा सरकार इसे भूख से हुई मौत मानने को राज़ी नहीं है। स्थानीय खंड विकास अधिकारी (बी.डी.ओ) मनोज कुमार गुप्ता ने मौत की वजह भूख मानने से साफ इनकार कर दिया है। उन्होंने मृतक़ राजेंद्र के घर का दौरा कर दावा किया कि मौत बीमारी के कारण हुई हैI

हाँलाकि बी.डी.ओ ने यह स्वीकार किया है कि परिवार के पास राशन कार्ड नहीं था। खानापूर्ति करते हुए उन्होंने परिवार को अनाज और 10,000 रूपये दिए है। साथ ही आश्वासन दिया कि इस बात की जाँच की जाएगी कि क्यों परिवार का नाम राशन पाने वालों की सूची में नहीं था।

गौरतलब है कि जहाँ कुपोषित बच्चों का राष्ट्रीय औसत 35.7 फीसदी है, वहीं झारखंड में यह औसत 45.3 फीसद है। वहीं राज्य की शीशू मृत्यू दर 29 है (प्रत्येक 1000 पर)। यह आकड़े दर्शाते हैं कि झारखंड मे कुपोषण की स्थिति कितनी भयावह है।

झारखंड में भूख से मौत का यह कोई पहला मामला नहीं है। राइट टू फूड कैम्पेन नामक संस्थान द्वारा पिछले महिने जारी कि गई रिपोर्ट के अनुसार झारखंड में पिछले 10 महींनो में 12 लोगों को अपनी जान भूख के कारण गँवानी पड़ी है। इन पूरे मामलों पर उचित कार्यवाही करने की बजाए सरकार यह साबित करने में  जुट जाती है कि यह मौत भूख कि वजह से नहीं हुई है।

इससे पहले बीते जून महीनें में भी इसी तरह की घटना सामने आई थी। झारखंड के गिरिडीह जिले के मधुबन थाना क्षेत्र के मगरगढ़ी गांव की रहने वाली सावित्री देवी की मौत हो गई थी। परिजनों के मुताबिक, सावित्री की मौत भूख के कारण हुई थी। उनका कहना था कि सावित्री देवी को तीन दिनों तक खाना नहीं मिला, जिस वजह से मौत हो गई।

सावित्री के परिजनों ने आरोप लगाया था कि प्रशासनिक लापरवाही की वजह से सावित्री का राशन कार्ड नहीं बन पाया। सावित्री इस संबंध में सभी जरूरी कागजात दो महीने पहले ही विभाग को सौंप चुकी थी। 65 वर्षीय सावित्री देवी के दो बेटे हैं जो काम के सिलसिले में बाहर रहते थे। उनकी कमाई इतनी नहीं है कि वे घर पर पैसा भेज सकें। सावित्री देवी को वृद्धावस्था पेंशन भी नहीं मिलती थी।

भूख से मौत का ऐसा ही एक स्तबध कर देने वाला मामला अक्टूबर 2017 में झारखंड के सिम्डेगा से सामने आया था। जब 11 साल की संतोषी कि 4 दिनों से भूखे रहने के कारण मौत हो गई थी। संतोषी की माँ के मुताबिक जिस समय बेटी की मौत हुई तो उसकी ज़ुबां पर भात (उबले हुए चावल) शब्द था। लड़की की माँ को जब राशन लेने के लिए गई तो उसे यह कह कर वापस भेज दिया गया कि उसका राशन कार्ड आधार से लिंक नही है।

इस मामले में भी उचित कदम उठाने के बजाए शर्मसार करने वाली बात यह है कि साशन प्रशासन यह बताने में लग गया कि मौत भूख के ना होकर बीमारी के कारण हुई है।

सार्वजनिक वितरण प्रणाली, खाद्य सुरक्षा कानून जैसी तमाम योजना होने के बावजूद अगर किसी नागरिक की मौत भूख के कारण होती है तो यह पूरी व्यवस्था की नाकामी है। विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने के बावजूद अगर देश के किसी कोने में कोई भूख के कारण मरता है तो यह देश के विकास पर प्रश्न चिह्न लगाता है।

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