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मालदीव को लोकतंत्र चाहिए, न कि भारतीय हस्तक्षेप

यमीन की सरकार इस द्वीपीय राष्ट्र में लोकतांत्रिक आकांक्षाओं का गला घोंट रही है, वहीं भारतीय हस्तक्षेप से केवल अराजकता बढ़ेगी।
maldives

मालदीव में 26 प्रवाल द्वीप और 192 अलग-अलग द्वीप हैं। इस देश में आपातकाल जैसी स्थिति बन गई है। आंतरिक राजनीतिक अशांति क़ायम है। इस बीच मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपने पड़ोसी देश भारत को सैन्य कार्रवाई करने को कहा है। भारत में यह माँग उठने लगी है कि अपने “हितों की पुनःस्थापन” के लिए ऑपरेशन कैक्टस (1988 में मालदीव में भारतीय सैन्य अभियान) को दोहराया जाए।

भारतीय विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि सरकार सावधानीपूर्वक स्थिति की निगरानी कर रही है और "लोकतंत्र और कानून के शासन की भावना में, मालदीव सरकार के सभी संस्थाओं के लिए जरूरी है कि वो सर्वोच्च न्यायालय (मालदीव के सर्वोच्च न्यायालय) के आदेश का सम्मान करें और उसका पालन करें।"

भारत के पक्ष को उत्तेजक बताते हुए पूर्व राजनयिक और राजनीतिक विश्लेषक एमके भद्र कुमार ने कहा कि "2 फरवरी को विदेश मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति ने मालदीव सरकार द्वारा अपनी आंतरिक राजनीति के संबंध में एक निश्चित कार्रवाई की मांग की"।

उन्होंने आगे कहा कि "इस्तेमाल किया गया शब्द" इम्प्रेटिव" अर्थात अनिवार्य था जो औपनिवेशिक युग और गनबोट डिप्लोमेसी (gunboat diplomacy) की वापसी की याद दिलाता है"।

रक्षा स्रोतों के हवाले से कुछ रिपोर्टों के मुताबिक़, भारतीय सेना (विशेष बल सहित) और नौसेना को "पूरी तरह अभियान की तैयारी" पर रखा गया है। लेकिन विशेषज्ञों का तर्क है कि मालदीव की स्थिति 1988 से बिल्कुल अलग है और भारतीय सैन्य अभियान इस द्वीप को केवल अराजकता की ओर धकेलेगा।

राजनीतिक ड्रामा

सोमवार की रात आपातकाल की घोषणा के कुछ ही घंटों के बाद मालदीवियन नेशनल डिफेंस फोर्स (एमएनडीएफ) के सैनिक ने माले की राजाधानी में स्थित सुप्रीम कोर्ट पर धावा बोल दिया। नौ घंटे की घेराबंदी के बाद सैनिकों ने मुख्य न्यायाधीश अब्दुल्ला सईद और जस्टिस अली हमीद को गिरफ़्तार कर लिया। माले की सड़कों पर इस तरह का उठापटक सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद देखा गया जब अदालत ने राष्ट्रपति अब्दुल्ला यामीन को पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद और पूर्व उपराष्ट्रपति अहमद अदीब सहित शीर्ष विपक्षी नेताओं को रिहा करने के लिए कहा था। अदालत ने एक संक्षिप्त बयान में कहा कि अनुचित प्रभाव के बिना निष्पक्ष जांच होने तक उन्हें अवश्य छोड़ा दिया जाना चाहिए।

उनकी राजनीतिक संभावनाओं को लेकर चिंतित अदालत ने अपना आदेश वापस लेने से इनकार कर दिया। यामीन ने संसद स्थगित कर दिया और राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाने के सुप्रीम कोर्ट के सभी आदेशों को अप्रभावित करने के लिए सेना को आदेश दिया। माना जाता है कि नहीद की रिहाई से इस साल के आख़िर तक होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में यमीन की संभावनाओं को झटका लग सकता है।

दोनों न्यायाधीशों पर रिश्वत लेने और सरकार के ख़िलाफ़ तख़्तापलट की योजना बनाने का आरोप लगाया गया था।

यामीन ने अपने सौतेले भाई और पूर्व राष्ट्रपति मैमून अब्दुल गयूम को भी गिरफ़्तार कर लिया। गयूम ने मालदीव के पहले लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए राष्ट्रपति नाहीद को सत्ता सौंपने से पहले 30 वर्षों तक आधिकारिक तौर पर देश पर शासन किया था। जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को विश्व की नज़रों में लाने के लिए नाहीद ने पानी के भीतर कैबिनेट बैठक की थी जो नाहीद के राष्ट्रपति काल की प्रमुख घटना है।

अशांत अतीत

ठीक छह साल पहले यानी 7 फरवरी को नाहीद को अपने नायब मोहम्मद वाहीद को सत्ता सौंपने के लिए मजबूर किया गया था। नाहीद ने तब गयूम के वफ़़ादारों पर उनकी सरकार के ख़िलाफ़ तख़्तापलट की योजना बनाने का आरोप लगाया था। यामीन चुनाव जीतने के बाद 2013 में सत्ता में आए। विपक्षी पार्टियों का दावा था कि धांधली से चुनाव जीता गया है। तब से यह द्वीपीय राष्ट्र यामीन सरकार द्वारा "विरोधियों को कैद करने, स्वतंत्र रूप से बोलने पर रोक लगाने और न्यायपालिक पर दबाव डालने" का साक्षी बन गया। यमीन के राष्ट्रपति काल में मालदीव में बढ़ते इस्लामीकरण को देखा गया। पिछले साल अप्रैल में एक ब्लॉगर और कार्यकर्ता यमीन रशीद को धार्मिक रूढ़िवाद और सरकारी प्रतिष्ठानों के ख़िलाफ़ उनके राजनीतिक व्यंग के कारण कथित तौर पर मौत के घाट उतार दिया गया था।

2015 में नाहीद को आतंकवाद के आरोपों में दोषी ठहराया गया था और उसे 13 साल की सजा सुनाई गई थी, जिसे आलोचकों और एमनेस्टी इंटरनेशनल ने "राजनीतिक रूप से प्रेरित"बताया। नाहीद ने ब्रिटेन में राजनीतिक शरण ली। यहां वे इलाज के लिए गए थें।

सत्तावादी नेतृत्व के अलावा, यामीन पर भ्रष्टाचार, गड़बड़ी और अंतरराष्ट्रीय मनी लॉन्ड्रिंग का आरोप लगाया गया था। अल जज़़ीरा की एक 2016 की डॉक्यूमेंट्री 'स्टीलिंग पैराडाइज' का दावा है कि "उन्होंने 1 मिलियन डॉलर नक़दी से भरा एक बैग हासिल किया और इसमें इतना नक़दी था कि इसे " ले जाना मुश्किल था।"

यमीन की सत्ता वापसी के दरम्यान उनके और उनके सौतेले भाई गयूम के बीच के संबंध ख़राब हो गए और गयूम ने विपक्ष का साथ दिया। गयूम की निष्ठा अभी भी सुरक्षा बलों के बीच क़ायम है और यह बताया गया कि उनकी गिरफ़्तारी के लिए आने वाले कुछ अधिकारियों ने उन्हें सलामी भी दी।

विदेशी पक्ष

जैसा कि राजनीतिक विश्लेषकों का तर्क है कि एशियाई प्रतिद्वंदी भारत और चीन दो ऐसे राष्ट्र हैं जिनका इस हिंद महासागरीय देश पर गहरा असर है।

भारत परंपरागत तौर पर मालदीव को अपना "हर मौसम के साथी" अर्थात बुरे-भले में साथ देने वाले देश के रूप में मानता था और 1988 में गयूम सरकार को बचाने के भारत ने सैन्य अभियान शुरू किया था। माले में पैराट्रूपर लैंडिंग और नौसैनिक जहाजों की तैनाती करने वाले इस अभियान (कैक्टस) ने पीपुल्स लिबरेशन ऑर्गेनाइजेशन ऑफ तमिल ईलम(पीएलओटीई) की सहायता से अब्दुल्ला लुतुफी के नेतृत्व में मालदीव के एक समूह द्वारा तख़्तापलट का प्रयास विफल कर दिया।

नशीद ने एक बार कहा था कि भारत और मालदीव के बीच संबंध 'ऐतिहासिक' और '2,000-3,000 साल पुराना' हैं।

हाल ही में यमन सरकार द्वारा चीन के साथ राजनीतिक और आर्थिक संबंधों को मजबूत करने प्रक्रिया शुरू करने के बाद भारत और मालदीव के बीच संबंध ख़राब हो गया है। पिछले साल चीन और मालदीव ने सड़क निर्माण, मुक्त व्यापार, मानव संसाधन, महासागर, पर्यावरण, स्वास्थ्य सेवा और वित्त जैसे 12 प्रमुख समझौतों पर हस्ताक्षर किया था। इसके अलावा मालदीव में चीनी कंपनियों को प्रमुख बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को दिया जा रहा है जबकि भारतीयों को इससे दूर रखा जा रहा है।

नई दिल्ली स्थित कार्नेगी इंडिया के कॉन्सटैंटिनो जेवियर ने कहा, "जैसा कि भारत खुद को हिंद महासागर क्षेत्र में प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित करने की कोशिश करता है ऐसे में मालदीव बेहद महत्वपूर्ण हो गया है।" यामीन ने "निश्चित रूप से चीन तक अपनी पहुंच बढ़ा ली है, ताकि पश्चिम के दबाव से दूर रह सके और भारत का भी प्रभाव कम हो सके।"

भारत को घेरने के लिए बीजिंग की 'मोतियों की माला' की रणनीति के हिस्से के रूप में मालदीव में चीन के बढ़ते प्रभाव को भारत देखता है।

चीन ने अपनी तरफ से मालदीव में किसी भी सैन्य हस्तक्षेप को लेकर चेतावनी दी है और कहा है कि बातचीत के माध्यम से राजनीतिक संकट का हल किया जाना चाहिए। चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने बीजिंग में कहा, "हमें उम्मीद है कि मालदीव के विभिन्न दल बातचीत के ज़रिए मतभेदों को ठीक तरह से सुलझाएंगे, जितनी जल्दी हो सके सामान्य स्थिति को फिर से बहाल किया जाए और राष्ट्रीय तथा सामाजिक स्थिरता बनाए रखें।"

राष्ट्रपति चुनाव

जैसा कि मालदीव में अशांति बरक़रार है ऐसे में सुरक्षा बलों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। सुरक्षा बलों में से कुछ लोग अभी भी पूर्व राष्ट्रपति गयूम के प्रति वफ़ादार हैं और यह सुरक्षा सेवाओं में विभाजन के कारण हो सकता है।

इस वर्ष के आख़िर में राष्ट्रपति चुनाव होना निर्धारित है और किसी विपक्ष के बिना ये चुनाव एक तमाशा होगा क्योंकि ज़्यादातर विपक्षी नेता अब भी जेल में हैं। रिहा किए जाने के बावजूद दोषी ठहराए जाने के चलते नशीद चुनाव नहीं लड़ पाएंगे।

इस पृष्ठभूमि में चीन-प्रेमी यामीन को सत्ता में वापस आने को लेकर भारत चिंतित है। पहले से ही नेपाल में कम्युनिस्ट गठबंधन की जीत से भारत की रूढ़िवादी मोदी सरकार के लिए चिंता की बात थी। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत सरकार पर कट्टर राष्ट्रवाद को बढ़ावा देने और देश में लोकतांत्रिक अधिकारों को नियंत्रित करने का आरोप लगा है।

लेकिन 'लोकतंत्र या कानून और व्यवस्था' के नाम पर भारत द्वारा मालदीव में किसी तरह का हस्तक्षेप करना अंतरराष्ट्रीय कानून का संपूर्ण उल्लंघन और एक बड़ा भूल होगा। हमने देखा है कि दुनिया भर में अफगानिस्तान से लेकर इराक तक लोकतंत्र के लिए 'विदेशी सैन्य हस्तक्षेप' के बाद क्या हुआ है। इस तरह के क़दम से लोकतंत्र को छोड़कर केवल अराजकता ही पैदा हुई।

राजनीतिक विशेषज्ञों का तर्क है कि लोकतंत्र हासिल करने के लिए मालदीव में राजनीतिक और न्यायिक सुधार की तत्काल ज़रूरत है। जनआंदोलन केवल यामीन की सत्तावादी और न्यायिक अक्षमता को बदल सकता है जो वर्तमान में देश को बर्बाद कर रहा है।

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