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बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाया जाना बेहद ज़रूरी: न्यायमूर्ति चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाया जाना बेहद ज़रूरी इसलिए है, क्योंकि यह राष्ट्र एक-एक नागरिक से की गयी कुछ प्रतिबद्धताओं और उनके अधिकारों के वादे के दम पर बना था और एकजुट हुआ था।
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़
जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़

सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने शनिवार को कहा कि बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियों पर सवाल उठाया जाना बेहद ज़रूरी इसलिए है, क्योंकि यह राष्ट्र एक-एक नागरिक से की गयी कुछ प्रतिबद्धताओं और उनके अधिकारों के वादे के दम पर बना था और एकजुट हुआ था।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा, “धार्मिक स्वतंत्रता का वादा, लोगों के बीच बराबरी का वादा, लिंग, जाति या धर्म से परे जाकर राज्य के अनुचित हस्तक्षेप के बिना भाषण और कहीं भी आने-जाने की मौलिक स्वतंत्रता का वादा और जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के स्थायी अधिकार का वादा है। बहुसंख्यकवादी प्रवृत्तियां जब भी और जिस तरह भी सर उठाती हैं, हमारे संवैधानिक वादे की इसी पृष्ठभूमि में उन पर सवाल उठाया जाना बेहद ज़रूरी है।”

उन्होंने कहा कि संविधान ने न सिर्फ़ हमें औपनिवेशिक अधीनता से मुक्त नागरिकों में बदल दिया, बल्कि एक ऐसी राजव्यवस्था से मुक़ाबला करने की बड़ी चुनौती भी स्वीकार की, जो जाति, पितृसत्ता और सांप्रदायिक हिंसा की दमनकारी व्यवस्थाओं से त्रस्त थी।

वह भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (CJI) न्यायमूर्ति वाई वी चंद्रचूड़ की 101वीं जयंती समारोह के लिए आजोयित एक कार्यक्रम में बोल रहे थे। ग़ौरतलब है कि वाई वी चंद्रचूड़, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ के पिता थे। यह कार्यक्रम पुणे स्थित एक प्रमुख शैक्षिक ट्रस्ट शिक्षा प्रसार मंडली (SPM) के सहयोग से आयोजित किया गया था।

जलवायु बचाने की लड़ाई लड़ रही कार्यकर्ता ग्रेटा थुनबर्ग की सक्रियता की सराहना करते हुए न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा कि उनका उदाहरण हमें दिखाता है कि बड़े बदलाव लाने के लिहाज़ से किसी व्यक्ति की बहुत छोटी उम्र का होना या उसका मामूली होना मायने नहीं रखता।

निजता के अधिकार के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा कि कोविड-19 महामारी ने लोगों के जीवन में प्रौद्योगिकी के दखल को तेज़ कर दिया था और यह हमारे समाज के आकार और ढांचे को निर्धारित करती है।

उन्होंने कहा,“ निजता का यह अधिकार हमारे अपने निर्णय लेने की हमारी स्वतंत्र क्षमता, सूचना तक पहुंच और राज्य या निजी निगरानी से आज़ादी में सन्निहित है।”

जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़ को याद करते हुए जस्टिस उदय उमेश ललित ने कहा कि वह पहली बार नागपुर में आयोजित एक सेमिनार में उनसे मिले थे। बाद में उन्होंने बतौर एक छात्र सुप्रीम कोर्ट की अपनी पहली यात्रा को याद किया, जहां उन्होंने न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ को कोर्ट नंबर-1 में विशेष न्यायालय विधेयक की सुनवाई की अध्यक्षता करते हुए देखा था। वह ख़ुद को भाग्यशाली मानते हैं कि पूर्व सीजेआई के सामने सर्वोच्च न्यायालय में उन्होंने अपने पहले केस के लिए बहस की थी।

जस्टिस ललित ने कहा कि उनके (जस्टिस वाई वी चंद्रचूड़) के कई फ़ैसले और राय इस समय भी भारत के क़ानूनों को परिभाषित करते हैं। एक उदाहरण का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, “राम जेठमलानी ने संसद में एक विधेयक पेश किया था कि आपातकाल के दौरान हुई ज़्यादतियों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतों का गठन किया जाये। भारत के राष्ट्रपति ने उस बिल के औचित्य पर सर्वोच्च न्यायालय से सलाहकारी राय मांगी थी। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि इस विधेयक का खंड 7 विशेष न्यायालयों के सेवानिवृत्त और मौजूदा न्यायाधीशों, दोनों ही की नियुक्ति की बात करता है। उन्होंने कहा कि सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की नियुक्ति को कार्यपालिका आसानी से अपने हिसाब से तय कर सकती है और इस तरह, अदालतों की निष्पक्ष प्रकृति इससे प्रभावित होती है। इस तरह, इसके ख़िलाफ़ उनकी वह सिफ़ारिश सभी अधिनियमों में एक सुसंगत परपंरा रही है, चाहे पोटा (आतंकवाद रोकथाम अधिनियम), टाडा (आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां), एनआईए (राष्ट्रीय जांच एजेंसी) और इसी तरह के अधिनियमों तहत ही विशेष अदालतें क्यों न बनायी गयी हों।”

न्यायमूर्ति ललित के मुताबिक़, न्यायमूर्ति वाई वी चंद्रचूड़ द्वारा दिये गये तीन और फ़ैसले भारत के संवैधानिक इतिहास में मील के पत्थर थे। वे फ़ैसले थे- ओल्गा टेलिस बनाम बॉम्बे नगर निगम, मिनर्वा मिल्स लिमिटेड बनाम भारत संघ, और संकल्प चंद शेठ बनाम भारत संघ।

अधिवक्ता सदानंद फड़के ने उन्हें सभी पुणेवासियों का गौरव बताया। उन्होंने गर्व महसूस करते हुए कहा कि पूर्व मुख्य न्यायाधीश ने उनके ट्रस्ट के नूतन मराठी विद्यालय से अपनी शिक्षा शुरू की थी और पुणे में आईएलएस लॉ कॉलेज में अपनी शिक्षा पूरी की। उन्होंने बतौर एक आम आदमी उनकी तारीफ़ की और एक क़िस्सा सुनाया कि उन्होंने एक बार पुणे के सदाशिव पेठ की सड़क पर लकड़ी के बल्ले से फ़ौलादी हाथों से उन्हें क्रिकेट खेलते हुए तब देखा था, जब पदोन्नत होकर सुप्रीम कोर्ट जाने वाले थे।

जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ का जन्म 12 जुलाई 1920 को पूना (अब पुणे) में हुआ था। उन्होंने बॉम्बे (अब मुंबई) स्थित एलफ़िंस्टन कॉलेज से इतिहास और अर्थशास्त्र के स्नातक किया था और बाद में प्रतिष्ठित आईएलएस लॉ कॉलेज, पुणे से कानून की डिग्री हासिल की थी। वह 1943 में बॉम्बे हाई कोर्ट में बतौर एक वकील दाखिल हुए थे। बाद में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट में बतौर न्यायाधीश नियुक्त किया गया और 1972 में सुप्रीम कोर्ट में पदोन्नत हुए। वह सात साल और चार महीने तक भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे,यह कार्यकाल किसी भी मुख्य न्यायाधीश का अबतक का सबसे लम्बा कार्यकाल है और वह 1985 में सेवानिवृत्त हो गये थे।

साभार: द लीफ़लेट

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

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