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संसद सदस्यों के निजी बिलों को कारगर कैसे बनाया जाए 

भारत के 70 से अधिक वर्षों के संसदीय इतिहास में, केवल 14 पीएमबी बिल हैं जिन्हें कानून के रूप में पारित किया गया है।
Parliament

हमारे अंतर्निर्मित संसदीय तंत्र के जरिए, साथ ही साथ मामूली संशोधन और समायोजन के साथ संसद सदस्यों के निजी विधेयकों को पुनर्जीवित करने में मदद मिल सकती है। 

हाल ही में पेश किए गए, कुछ संसद सदस्यों के निजी विधेयकों ('पीएमबी') ने उद्योगिक हल्कों और शिक्षाविदों के बीच दो मोर्चों पर एक बहस छेड़ दी है: i) जिन विषयों पर उन्होंने काम किया, और ii) पीएमबी का उद्देश्य और अधिकार क्या है। अक्सर, पीएमबी के विषय अकादमिक बहस से उत्पन्न होते हैं, चाहे वह समान नागरिक संहिता के मुद्दे पर हो, कर्मचारियों के काम के घंटों के बाद कार्यालय के फोन को अनदेखा करने का अधिकार का मसला हो, मृत्युदंड उन्मूलन या बेरोजगारी भत्ता आदि हो। पीएमबी का इस्तेमाल राजनीतिक मुद्दे को आगे बढ़ाने के लिए भी किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, पीएमबी ने पिछले साल संविधान की प्रस्तावना में संशोधन करके प्रस्तावना में से 'समाजवादी' शब्द को 'न्यायसंगत' से बदलने और पीएमबी ने 2019 में मंदिरों को सरकारी नियंत्रण से हटाने के लिए बिल पेश किए थे।

भारत के 70 से अधिक वर्षों के संसदीय इतिहास में, केवल 14 पीएमबी ऐसे हैं जिन्हें कानून के रूप में पारित किया गया है। पहला पीएमबी 1954 में पारित किया गया था – जिसे मुस्लिम वक्फ अधिनियम, 1954 के नाम से जाना जाता है, और आखिरी ऐसा पीएमबी 50 साल से अधिक समय पहले पेश किया गया था – जिसे सुप्रीम कोर्ट (आपराधिक अपीलीय क्षेत्राधिकार का विस्तार) अधिनियम, 1970 (अधिक के लिए तालिका 1 देखें) कहा जाता है। फिर भी, यह एक ऐसी जरूरत है जिसे हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था में हटाया नहीं जा सकता है।

भारत के 70 से अधिक वर्षों के संसदीय इतिहास में केवल 14 पीएमबी हैं जिन्हें कानून के रूप में पारित किया गया है।

पीएमबी की शुरुआत उन संसद सदस्यों ('सांसद') द्वारा की जाती है जो मंत्री नहीं हैं। अधिकांश सांसद मंत्री नहीं होते हैं, और वे अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के माध्यम से देश के बहुमत का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस प्रकार, अपने लोगों की जरूरतों का प्रतिनिधित्व करने के लिए इस विधायी उपकरण का होना जरूरी है, जिनका प्रतिनिधित्व सरकारी बिलों के माध्यम से नहीं किया जा सकता है, इसलिए ये लोकतांत्रिक प्रक्रिया और प्रतिनिधित्व को आगे बढ़ाने के लिए आवश्यक है।

तालिक 1

स्रोत: एलएस/आरएस वेबसाइट

मेरे कहने का तात्पर्य है कि पीएमबी की वर्तमान स्थिति खेदजनक है और उन पर चर्चा के लिए तत्काल सुधार की जरूरत है, जिसे हमारे अंतर्निर्मित संसदीय तंत्रों के साथ-साथ मामूली संशोधनों और समायोजन के इस्तेमाल से मदद मिल सकती है।

विचार-विमर्श की अवधि को बढ़ाना

वर्तमान लोकसभा (2019-24) में आठ सत्रों में से केवल चार में ही निजी कामकाज हुआ है। हालांकि, इसमें पीएमबी के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले समय का प्रतिशत बहुत कम था (एक से दो प्रतिशत के बीच)। यह शून्यकाल, छोटी अवधि की चर्चा और नियम 377 जैसे सभी प्रमुख संसदीय हस्तक्षेपों में सबसे कम था। इसी तरह, राज्यसभा में, तालिका 3 में विश्लेषण किए गए पिछले आठ सत्रों में, तीन सत्रों में कोई निजी सदस्य कामकाज़ नहीं हुआ था। 

सांसद आमतौर पर सांसद शुक्रवार को दिन के दूसरे पहर में अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए निकल जाते हैं, जिससे निजी कारोबार के संचालन में अधिक बाधा आती है। सांसदों ने मांग की है कि निजी कारोबार पर अधिक चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिए चर्चा को बुधवार को स्थानांतरित किया जाना चाहिए।

लोकसभा के मुक़ाबले, राज्यसभा ने पीएमबी पर चर्चा के लिए प्रतिशत के मामले में अधिक समय दिया है। उदाहरण के लिए, 255वें सत्र ने अपने कुल समय का लगभग 5.2 प्रतिशत पीएमबी पर समर्पित किया, जिसमें समय का एक बड़ा हिस्सा कंपनी (संशोधन) विधेयक, 2019 नामक पीएमबी पर चर्चा करने के लिए समर्पित था।

तालिक 2

स्रोत: लोकसभा वेबसाइट

*मानसून'20 में देरी हुई और कोविड-19 के कारण विंटर'20 सत्र रद्द कर दिया गया था

तालिका 3

स्रोत: राज्यसभा की वेबसाइट (कार्य का विवरण)

निजी सदस्य कारोबार के संचालन में सरकारी रुचि की कमी के अलावा, इसके लिए इतनी कम संख्या में दिनों का निर्धारण भी एक महत्वपूर्ण कारक निभाता है। लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 26(1) के तहत, शुक्रवार को अंतिम ढाई घंटे संसद सदस्यों के निजी मसलों/मुद्दों को उठाने के लिए आवंटित किए जाते हैं। नियम 26 का नियम अध्यक्ष को यह अधिकार देता है कि यदि सदन शुक्रवार को बैठक नहीं करता है तो वह इस समय को किसी अन्य दिन में आवंटित कर सकता है (राज्य परिषद में प्रक्रिया और कार्य संचालन नियमों के नियम 24 की शर्त (राज्य सभा) में भी यह समान खंड है। हालांकि, शुक्रवार को निजी कारोबार नहीं होने पर इसे शायद ही कभी लागू किया जाता है।

सांसद आमतौर पर शुक्रवार को दिन के दूसरे पहर तक, अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों के लिए निकल जाते हैं, जिससे निजी कारोबार के संचालन में और बाधा आती है। सांसदों ने मांग की है कि निजी कारोबार पर अधिक चर्चा को प्रोत्साहित करने के लिए चर्चा को बुधवार को स्थानांतरित किया जाना चाहिए। कनाडा में सामान्य परिस्थितियों में सदन में सप्ताह में चार बार निजी कारोबार किया जाता है। न्यूजीलैंड में, दूसरा बुधवार निजी कारोबार के लिए आवंटित है।

जब भी किसी शुक्रवार को निजी कारोबार नहीं हो पाता है तो उसकी हानी को पूरा करने के लिए  आवंटित शुक्रवारों की संख्या में वृद्धि कर उसे ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम की संसद ने कुछ अवसरों पर कानून और प्रस्तावों के माध्यम से निजी कारोबार के लिए शुक्रवारों की संख्या को बढ़ा दिया है।

समितियों की भागीदारी

समितियों की भागीदारी दो मोर्चों पर हो सकती है: i) सदस्यों के निजी विधेयकों और प्रस्तावों पर समिति, और ii) विभाग से संबंधित समितियां/चयन समितियां। लोकसभा नियमों के नियम 293 में सदस्यों के निजी विधेयकों और प्रस्तावों पर एक समिति का प्रावधान है। समिति के कार्यों में सभी पीएमबी का विश्लेषण शामिल है जो संविधान में संशोधन करना चाहते हैं, साथ ही समिति का काम, अन्य बातों के अलावा पीएमबी के प्रत्येक चरण की चर्चा के लिए समय निर्धारित करना और पीएमबी की विधायी क्षमता की जांच करना है।

लोकसभा की वेबसाइट पर उपलब्ध आंकड़ों से पता चलता है कि समिति का गठन अंतिम बार वर्ष 2017-18 में 16वीं लोकसभा में किया गया था, और तब से यह अस्तित्व में नहीं है। एक वर्ष के कार्यकाल समिति अब वर्तमान में अस्तित्व में नहीं है। इस स्थिति ने पीएमबी के विश्लेषण को खतरे में डाल दिया है। इस समिति की अनुपस्थिति के कारण निजी कारोबार का समय कम समय में कुछ सौ विधेयकों का परिचय मात्र बन गया है, और निजी कारोबार को सदन के अध्यक्ष और सरकार के विवेक छोड़ दिया गया है। उदाहरण के लिए, मौजूदा लोकसभा के सातवें सत्र में 101 मिनट में 145 पीएमबी पेश किए गए थे।

इस समिति की अनुपस्थिति के कारण निजी कारोबार का समय कम समय में कुछ सौ विधेयकों का परिचय मात्र बन गया है, और निजी कारोबार को सदन के अध्यक्ष और सरकार के विवेक छोड़ दिया गया है। उदाहरण के लिए, मौजूदा लोकसभा के सातवें सत्र में 101 मिनट में 145 पीएमबी पेश किए गए थे।

समिति विस्तृत चर्चा के लिए कुछ विधेयकों को सामने लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जैसा कि अन्य न्यायालयों में किया जाता है। नियम 294 (1) (बी) समिति को बिलों को श्रेणी ए और श्रेणी बी में वर्गीकृत करने की अनुमति देता है, जिसमें नियम 27 के अनुसार बी की तुलना में ए श्रेणी की वरीयता होगी। इसी तरह की प्रणाली यूके में मौजूद है, लेकिन वह एक विस्तृत स्पष्टता के साथ वहां मौजूद है।

यूके ने अपने पीएमबी कारोबार को और अधिक उप-विभाजित किया है और इसे बैलेट बिल कहा जाता है। प्रत्येक सत्र की शुरुआत में, बैकबेंचरों को एक मतपत्र में अपना नाम दर्ज करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। ड्रा निकाला जाता है और चयनित सांसदों (जिनकी संख्या कुल 20 होती है) को अपनी पसंद का कोई भी बिल पेश करने के लिए आमंत्रित किया जाता है। इन बिलों को बैलेट बिल के रूप में जाना जाता है, और निजी कारोबार के लिए चुने गए कुल 13 शुक्रवारों में से पहले सात शुक्रवार में पीएमबी को वरीयता दी जाती है। यह प्रक्रिया न केवल पीएमबी पर विस्तार से बहस करने का मौका देती है, बल्कि बैकबेंचरों की भागीदारी भी सुनिश्चित करती है। दिलचस्प बात यह है कि ब्रिटेन में उनकी भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए (स्थायी आदेश 14(4) के तहत एक बैकबेंच कारोबार समिति भी है।

इसी तरह, ऑस्ट्रेलिया में, निजी सदस्य कारोबार पर स्थायी समिति ने अपने नियमों में संशोधन किया और चर्चा के लिए चुने गए 20 में से कम से कम छह बिलों को "मतदान योग्य" होने की अनुमति दी। एक विश्लेषण से इस बात का भी पता चला है कि ऐसा करने से आम तौर पर पीएमबी पर चर्चा का समय बढ़ जाता है, और मतदान होने की संभावना भी बढ़ जाती है। भारत में, पीएमबी पर समिति की कोई सीमा नहीं है, और इसलिए सभी बिलों को श्रेणी ए के तहत रखा जाता है, जिससे चर्चा की संभावना कम हो जाती है।

अन्य मोर्चे पर पीएमबी को प्रोत्साहित करने के लिए समितियों का इस्तेमाल भी किया जा सकता है, इसके लिए पीएमबी के विषय पर सक्रिय रूप से वार्ता करना या समिति द्वारा संचालित बिलों के माध्यम से ऐसा किया जा सकता है। हाल ही में, यूके में एक पीएमबी जिसे बेघरता न्यूनीकरण विधेयक कहा जाता है, ने दो मामलों में एक अद्वितीय सफलता हासिल की: पहला, कि यह एक पीएमबी है जो अब देश में एक कानून है, और दूसरा, इसे स्थायी समिति से समर्थन मिला था। यू.के. में यह पहली बार हुआ है कि एक समिति की जांच ने सीधे एक बेलट बिल/निजी सदस्य के बिल को कानून बनाने मदद की है।

कनाडा में, सांसदों के पास स्थायी, विशेष या विधायी समिति द्वारा तैयार किए गए बिल के प्रस्ताव को तैयार करने का विकल्प होता है। इस तरह के प्रस्ताव पर निजी कारोबार के ज़रिए घंटों तक चर्चा की जाती है और यदि पारित हो जाता है, तो फिर यह समिति के लिए एक विधेयक तैयार करने और उसे सदन में पेश करने का आदेश बन जाता है।

इन स्थित से पता चलता है कि संसदीय नवाचार कैसे वास्तविक परिवर्तन ला सकता है। हर साल विभाग से संबंधित स्थायी समिति के गठन के बाद, हमारे सांसद बैठक कर सकते हैं और उन मुद्दों पर निर्णय ले सकते हैं जिन्हें वे अगले वर्ष कवर करेंगे। विभाग के विषय पर लंबित पीएमबी पर चर्चा उनके कामकाज में एक नवीनता हो सकती है। इसी तरह, लोकसभा नियमों के नियम 276 के तहत, समिति को किसी भी विषय पर विशेष रिपोर्ट लाने का अधिकार है, जो चर्चा के दौरान सामने आया है और जिसका संदर्भ की शर्तों में उल्लेख नहीं किया गया है।

सांसदों के लिए संसाधन

अकसर, सांसदों के पास ऐसा कोई साधन भी नहीं होता है जिससे वे फुलप्रूफ बिल का मसौदा तैयार कर सकें। इस प्रकार, हम देखते हैं कि कई घटिया या कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण पीएमबी को सदन में पेश किया जा रहा है। वर्तमान में, संसद सांसदों को पीएमबी का मसौदा तैयार करने में मदद करने के लिए कोई संसाधन या व्यक्ति उपलब्ध नहीं कराती है।

ऑस्ट्रेलिया पीएमबी प्रस्ताव तैयार करने के लिए सांसदों को संसदीय परामर्शदाता कार्यालय की सुविधा प्रदान करती है। कनाडा में पीएमबी का मसौदा तैयार करने में, विधायी परामर्शदाता की सुविधा प्रदान करता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे कनाडा के संविधान, वैधानिक कानूनों और विधायी और संसदीय प्रस्तावों के अनुरूप हैं, और क्या उन्हें शाही सहमति दी जानी चाहिए।

अकसर, सांसदों के पास ऐसा कोई साधन भी नहीं होते है जिससे वे फुलप्रूफ बिल का मसौदा तैयार कर सकें। इस प्रकार, हम देखते हैं कि कई घटिया या कानूनी रूप से त्रुटिपूर्ण पीएमबी सदन में पेश कर दी जाती हैं। 

वर्तमान में, हर सांसद को पीएमबी के मामले में किसी भी सहायता के लिए खुद के संसाधनों पर निर्भर रहना पड़ता है। कुछ सांसद ऐसे बिलों के लिए संसद सदस्य विधायी सहायक ('LAMP')  पर निर्भर रहते हैं, जो उन्हें गैर-लाभकारी संगठन (PRS) लेजिस्लेटिव रिसर्च द्वारा लंबे समय से चली आ रही (LAMP) फैलोशिप के हिस्से के रूप में प्रदान करते हैं। इस प्रकार, पीएमबी की सूची में, हम देखते हैं कि सूची में फ्रंट बेंचर्स के नाम अधिक हावी होते हैं।

पीएमबी के काम को सुचारु बनाना 

सदन में सदस्य भिन्न किस्म के हितों और विचारों का प्रतिनिधित्व करते हैं। अकसर, पीएमबी में उक्त भिन्न विचारों की परिणति होती है जो आवश्यक रूप से अकादमिक बहस को गति प्रदान नहीं करते हैं बल्कि इस विषय पर सरकार के कानूनों और नीतियों के मामले में एक सुराग के रूप में भी कार्य करते हैं। 2015 में, द्रविड़ मुनेत्र कड़गम के सांसद तिरुचि शिवा ने पीएमबी के तहत एक बिल पेश किया था, जिसे ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकार विधेयक, 2014 कहा जाता है, जिसे राज्यसभा द्वारा पारित किया गया था। सरकार ने सांसद से विधेयक को वापस लेने के लिए कहा (वह पीएमबी अंततः समाप्त हो गया) और सरकार ने ट्रांसजेंडर लोगों पर अपनी तरफ से एक व्यापक कानून लाने का वादा किया। फिर सरकारी विधेयक 2019 में संसद में पेश किया गया और पारित हुआ। 

विचार-विमर्श के समय में वृद्धि से केवल विधेयकों को पेश करने के बजाय बहस की गुणवत्ता में सुधार होगा। 16वीं लोकसभा में एक विश्लेषण के अनुसार, 900 पीएमबी में से केवल दो प्रतिशत पर ही चर्चा हुई और 14वीं लोकसभा में 328 ऐसे बिल पेश किए गए, जिनमें से केवल 14 पर ही चर्चा हुई।

पीएमबी के विषय अकसर, जनता को किसी मुद्दे पर संसद के रुख से अवगत कराते हैं। उदाहरण के लिए, दो पीएमबी पर हालिया चर्चा: अनिवार्य मतदान विधेयक, 2019 और जनसंख्या विनियमन विधेयक, 2019 ने दो महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित किया है और इसने शिक्षा जगत और नीतिगत हलकों में बहस छेड़ दी है।

समितियों की भागीदारी और संसाधनों की उपलब्धता इन पीएमबी की गुणवत्ता में सुधार कर सकती है और उन्हें अधिक प्रतिनिधिकारी बना सकती है, जिससे उनके कानून बनने की संभावना बढ़ जाती है। न्यूजीलैंड ने 2019 में एक पीएमबी पारित किया जिसे एंड ऑफ लाइफ चॉइस एक्ट 2019 कहा जाता है, और जो इच्छामृत्यु और सहायक आत्महत्या से संबंधित है। ऑस्ट्रेलिया में, हमने 2017 में विवाह संशोधन (धार्मिक स्वतंत्रता की परिभाषा) अधिनियम 2017 जैसे एक पीएमएबी को कानून बनते देखा है। 

आउटलुक ने, पीएमबी को "अकसर सुना जाता है, शायद ही उन पर कभी चर्चा की जाती है और शायद ही कभी उन्हें पारित किया जाता है" के रूप में परिभाषित किया। इन विचारोत्तेजक उपायों का उद्देश्य उपरोक्त को निम्न में बदलना है – कि, अकसर सुना जाए, अकसर उन पर चर्चा हो, और कभी-कभी उन्हें पारित भी किया जाए।

शशांक पांडे जावेद आबिदी फेलो, पूर्व लैंप फेलो और वकील हैं।

सौजन्य: द लीफ़लेट 

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः

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