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"मर्जर नहीं, ये मर्डर है" : यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस

बैंकों के विलय के संबंध में सरकार के फ़ैसले का विरोध देशभर में देखने को मिल रहा है। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस के आह्वान पर बैंक कर्मियों ने शनिवार को काली पट्टी बांधकर शाखाओं में काम किया। इसे लेकर दिल्ली में तमाम संगठनों ने एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन भी किया।
bank protest

देश की अर्थव्यवस्था मंदी की चपेट में है, लेकिन सरकार 5 ट्रीलियन अर्थव्यवस्था का सपना लोगों को दिखा रही है। ऐसे में गिरती अर्थव्यवस्था को थामने के लिए वित्त मंत्री ने निर्मला सीतारमण ने 10 सरकारी बैंकों के विलय से चार बड़े बैंक बनाने की घोषणा की है। केंद्र सरकार के इस फैसले का विरोध देशभर में देखने को मिल रहा है। यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक यूनियंस (यूएफबीयू) के आह्वान पर बैंक कर्मियों ने आज, शनिवार को  काली पट्टी बांधकर शाखाओं में काम किया।

इसे लेकर दिल्ली के कनॉट प्लेस के इनर सर्कल में बैंक कर्मियों से जुड़े तमाम संगठनों ने एकजुट होकर विरोध प्रदर्शन किया।

प्रदर्शन में हिस्सा ले रहे अधिकारियों और कर्मचारियों का कहना है कि ये मर्जर बैंकों के निजीकरण की और एक कदम है। ये मर्जर नहीं मर्डर है।

बैंकों के मर्जर पर अखिल भारतीय बैंक कर्मचारी (एआईबीईए) संघ ने बयान जारी कर कहा, ''सरकार के प्रस्ताव (विलय के) बिना सोच-विचार कर लाए गए हैं। इनका कोई तार्किक आधार नहीं है। इसमें ना तो कमजोर बैंक का विलय मजबूत के साथ किया जा रहा है न ही यह भौतिक तौर पर समन्वय में आसान बैंकों का विलय किया जा रहा है।"

एआईबीए का कहना है कि कोलकाता मुख्यालय वाले यूनाइटेड बैंक का विलय दिल्ली मुख्यालय वाले पंजाब नेशनल बैंक के साथ किया जा रहा है। वहीं सिंडिकेट बैंक और केनरा बैंक जैसे एक ही क्षेत्र (दक्षिण भारत) में काम करने वाले बैंकों का विलय किया जा रहा है।

एआईबीईए के प्रदेश अध्यक्ष जे. पी शर्मा ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, केंद्र सरकार द्वारा जल्दबाजी में लिया गया ये निर्णय देश की आर्थिक स्थिति को और कमजोर करेगा। सरकार 5 ट्रिनियल अर्थव्यवस्था की बात कर रही है, लेकिन बैंकों की हालत खस्ता है। इसके लिए एनपीए वसूली की दिशा में कदम उठाने की आवश्यकता है,ना की मर्जर की। सरकार इसके जरिए हजारों लोगों की नौकरियां खा रही है। पहले भी मर्जर से कई दिक्कतें हुईं, जिसका खामियाज़ा आज तक बैंक कर्मचारी भुगत रहे हैं। ऐसे में ये पूरे सिस्टम को बर्बाद करने वाला कदम है।

उन्होंने आगे कहा कि सरकार अगर हमारी मांगें नहीं मानती तो हम बड़ा आंदोलन करेंगे। लेकिन बैंकों के जरिए उद्योगपतियों को लाभ पहुंचाने की सरकार की मंशा को सफल नहीं होने देंगे।

आरएसएस से जुड़ा भारतीय मजदूर संघ (बीएमएस) भी इस फैसले के ख़िलाफ़ है। बीएमएस से संबद्ध नेशनल ऑर्गनाइजेशन ऑफ बैंक वर्कर्स भी आज दिल्ली में हुए विरोध प्रदर्शन में शामिल हुई।

दिल्ली प्रदेश बैंक वर्कर्स के महासचिव अश्विनी राणा ने कहा कि, इससे पहले हुए मर्जर्स से अभी तक बैंक संभल नहीं पाए हैं। कई बैंकों ने अपनी शाखाएं बन्द कर दी हैं। ऐसे में ये मर्जर पहले ही असफल साबित हो चुका है, फिर इस अब फिर से क्यों लागू किया जा चूका है। हमारे सामने विदेशों के भी उदाहरण मौजूद हैं, जहां ये साबित हो चुका है कि जितना बड़ा बैंक होगा, उतना ही बड़ा नुकसान भी होगा। फिर भी सरकार निजीकरण थोपने के लिए ये मर्जर कर रही है।

अश्विनी का ये भी कहना है कि मर्जर से बैंकों का एकीकरण तो हो जाएगा लेकिन कर्मचारियों, अधिकारियों की सेवा शर्तों, प्रोमोशन, सीनियोरिटी, ट्रांसफर आदी का एकीकरण बहुत मुश्किल होगा। कर्मचारी पहले से ही लंबे समय से वेतन वृद्धि न होने कारण नाराज हैं ऐसे में ये निर्णय उनकी काम कि क्षमता को और कमजोर करेगा।

प्रदर्शनकारी राजेश दुग्गल ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि हमने सरकार को भारी मतों से चुनकर सत्ता इसलिए नहीं सौंपी थी कि, वो कामगार वर्ग को बर्बाद कर सके। हम सरकार के फैसले का विरोध करते हैं। सरकार इसके जरिए बैंकिंग सिस्टम को अस्थिर कर रही है। बड़े उद्योगपतियों की जेब भरने की तैयारी कर रही है।

प्रदर्शन में शामिल राजेंद्र ने न्यूज़क्लिक को बताया कि, इस मर्जर से आने वाले समय में बैंक कर्मचारियों की छटनी, शखाओं का बंद होना, नए कर्मचारियों की भर्ती पर रोक लगना, मौजूदा कामगारों की पदोन्नति ना होना, जैसे दुष्परिणाम सामने आएंगे।

बैंक में कार्यरत राहुल इस संबंध में बताते हैं कि वित्त मंत्रालय के अनुसार 17 , 18 अगस्त को बैंकों के क्षेत्रीय कार्यलय अनुसार और 22, 23 अगस्त को स्टेट लेवल बैंकर्स कमेटी की बैठकों का आयोजन किया गया और मंथन हुआ। लेकिन सरकार ने सभी सुझावों को दरकिनार करते हुए पहले से निर्धारित फैसले को सुना दिया है। अच्छा होता यदि सरकार इस फैसले से पहले सभी पक्षों से इस बारे बात करके कुछ निर्णय लेती।

गौरतलब है कि बैकों के विलय की घोषणा करते हुए वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि बैंकों के विलय का मकसद अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बैंकों को मजबूत करना है, जिससे देश को पांच हजार अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाया जा सके। सरकार ने पंजाब नेशनल बैंक (पीएनबी), केनरा बैंक, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया और इंडियन बैंक में अन्य बैंकों का विलय करते हुए चार बड़े बैंक बनाने की घोषणा की है। इस विलय के बाद देश में कुल सरकारी बैंकों की संख्या 12 रह जाएगी।

बैंक इंप्लाइज फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीईएफआई) के महासचिव देबाशीष बसु चौधरी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि यह फैसला बैंकिंग प्रणाली को कमजोर करने वाला है और वित्तीय समावेशन के उद्देश्य के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि हम सभी बैंक यूनियन साथ में इस फैसले का विरोध करेंगे। हमारे इस प्रदर्शन में भारत के सभी सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के नौ संघ और उनके प्रतिनिधित्व शामिल होंगे।

जाहिर है सरकार का ये फैसला बैंककर्मियों की समझ के परे है। इससे जुड़े कई सवाल हैं जिस पर सरकार ने चुप्पी साध रखी है। मर्जर के साथ ही विकास दर की खबरें भी सुर्खियों में हैं। पिछले कुछ दिनों से देश की अर्थव्यवस्था को लेकर तमाम चर्चाएं चल रही थी। लेकिन पहली तिमाही के नतीजे आने के बाद ये बात साबित हो गई है कि देश की आर्थित स्थिति ठीक नहीं है।

इस साल की पहली तिमाही की विकास दर पांच फीसदी रही है। ये आंकड़ा पिछले साल की तिमाही के मुकाबले 3 प्रतिशत यानी बहुत कम है। इतना ही नहीं ये गिरावट पिछले सात सालों में सबसे ज्यादा है।

सरकार की आर्थिक नीतियां लगातार विफल साबित हो रही हैं, इस दौरान हाजारों लोगों की नौकरियां चली गईं तो वहीं कई कतार में हैं। ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि सरकार 5 ट्रिलियन का सपना लोगों को क्यों दिखा रही है, जब वो मौजूदा हालात ही काबू में करने में असफल हो रही है। 

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