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नाइजीरिया : मतदान से महज कुछ घंटे पहले क्यों स्थगित हुए चुनाव?
अब चुनाव 23 फरवरी को होंगे। इसके नतीजे नाइजीरिया के तेल पर सरकारी नियंत्रण सहित कई क्षेत्रों के भाग्य का फैसला करेगा।
पीपल्स डिस्पैच
18 Feb 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy: eNCA

नाइजीरिया में मतदान शुरू होने से महज पांच घंटे पहले एक आपात बैठक के बाद वहां की चुनाव कराने वाली संस्था इंडिपेंडेंट नेशनल इलेक्टोरल कमीशन (आईएनईसी) ने स्थानीय समय के मुताबिक क़रीब 3 बजे सुबह में घोषणा की कि 2019 के लिए होने वाले चुनावों को स्थगित कर दिए गया है। ये चुनावों 16 फरवरी को होने वाले थे।

कारणों का विस्तृत खुलासा किए बिना आईएनईसी ने इसका कारण सामान्य तौर पर चुनावी जटिलताओं को बताया। इससे पहले यह ख़बर आई थी कि नाइजीरिया पूर्व तथा उत्तरी क्षेत्र के मतपत्र ग़ायब थे।

राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के लिए नई तारीख 23 फरवरी निर्धारित की गई है जिसके बाद 9 मार्च को गवर्नर पद के लिए चुनाव होंगे।

सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ने एक दूसरे पर चुनावी जोड़-तोड़ का प्रयास करने का आरोप लगाते हुए आईएनईसी के फैसले की निंदा की है।

नाइजीरियाई चुनाव अफ्रीका का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक चुनाव है जो साल 2015 में सत्ता के पहले शांतिपूर्ण बदलाव के चार साल बाद हो रहा है। इस साल सेंटर-राइट पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के तत्कालीन सत्तासीन जोनाथन गुडलक सेंटर-लेफ्ट ऑल प्रोग्रेसिव कांग्रेस (एपीसी) के मुहम्मद बुहारी से हार स्वीकार कर लिया।

सैन्य तानाशाही की अवधि के बाद साल 1999 में लोकतंत्र बहाल होने के बाद पिछले सभी चुनावों के विपरीत उम्मीद की जाती है कि जातीय वोट बैंक नतीजे तय करने में निर्णायक नहीं होंगे क्योंकि सत्तासीन राष्ट्रपति बुहारी और उनके निकट प्रतिद्वंद्वी पीडीपी के अतिकू अबू बकर दोनों हौसा बोलने वाले मुस्लिम समाज से संबंध रखते हैं।

साल 2014 के मध्य में तेल की कीमतों में गिरावट के बाद से आर्थिक संकट को हल करने के लिए उम्मीदवारों ने जो प्रस्ताव पेश किया है उस पर इस बार मुख्य रूप से चुनाव लड़ा जा रहा है।

अर्थव्यवस्था को सुधारने और विविधता पैदा करने का वादा कर के बुहारी साल 2015 में सत्ता में आए थे।

हालांकि उन्होंने तेल की गिरती कीमतों में सुधार के नाम पर राष्ट्रपति पद संभाला लेकिन बुहारी मंदी से घिरी अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के अपने वादे को पूरा नहीं कर सके। ज्ञात हो कि इस देश को आधे से अधिक राजस्व तेल से आता है।

चार साल बाद पिछले साल के अंत तक बेरोज़गारी 23.1 प्रतिशत तक बढ़ गई थी जो साल 2010 के बाद सबसे अधिक है। विश्व बैंक के अनुमान के अनुसार आधी से अधिक आबादी प्रति दिन 1.90 डॉलर से कम में अपनी ज़िंदगी गुज़ारती है। साल 2014 में पूंजी का पलायन सफलतापूर्वक रुक नहीं सका और शेयर बाजार लगभग आधे से ज़्यादा तक गिर गया।

इसके अलावा तेल के क़ीमत के गिरावट की समस्या बढ़ती गई। आईएमएफ द्वारा निर्धारित कठोर उपायों के साथ एक निर्णायक अंतराल का निर्माण करने में विफल रही। नाइजीरियाई दशकों से स्वास्थ्य तथा शिक्षा सेवाओं से वंचित रहे।

राजकोषीय व्यवस्था के नाम पर सार्वजनिक ख़र्च को कम करके देश के महत्वपूर्ण तेल उद्योगों को इस हद तक प्रभावित किया है कि पिछले साल अक्टूबर तक रिफाइनरियों को मात्र 11 प्रतिशत की क्षमता तक ही संचालित किया गया था जिससे नाइजीरिया को अपने 90% तेल उत्पादों का आयात करने के लिए मजबूर होना पड़ा जबकि भारी मात्रा में कच्चे तेल का निर्यात किया हुआ।

हालांकि नवउदारवादी नीतियों को भंग करने और देश के लिए रणनीतिक महत्व के सार्वजनिक क्षेत्र को पुनर्जीवित करने की पेशकश के बजाय बुहारी के निकट प्रतिद्वंद्वी अतीकु अबू बकर जो तेल सहित कई क्षेत्रों के एक अमीर व्यापारी हैं उन्होंने वादा किया है अगर चुनाव जीत जाते हैं तो वे सार्वजनिक क्षेत्र की तेल रिफाइनरी निजी कंपनियों को बेच देंगे।

राजस्व के अपने सबसे बड़े स्रोत पर नियंत्रण खोने और इसके आयात को वित्त पोषित करने के लिए आवश्यक विदेशी मुद्रा के प्रत्यक्ष परिणामों के अलावा इस तरह के उपाय अगर किए गए तो भविष्य में किसी भी आर्थिक विविधता कार्यक्रम को शुरू करने के लिए सरकार की क्षमता को गंभीर रूप से सीमित कर देगा।

निजीकरण का विरोध करने वाले कुछ वर्गों के लिए सांत्वना जो हो सकती है वह ये कि अबू बकर ने घोषणा की है कि सार्वजनिक संपत्तियों की बिक्री से जुटाए गए राजस्व को संसाधन की कमी वाले क्षेत्र शिक्षा और स्वास्थ्य को आवंटित किया जाएगा। उन्होंने शिक्षा के लिए आवंटित बजट को मौजूदा 3 प्रतिशत से बढ़ाकर 25प्रतिशत और स्वास्थ्य सेवाओं को 3.9 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत करने का वादा किया है।

हालांकि अबू बकर ने इस पर कोई योजना नहीं बनाई है कि एक बार राजस्व समाप्त होने के बाद राशि के इस स्तर को कैसे कायम रखा जाएगा।

इस तरह के वित्तपोषण को जारी रखने की क्षमता का सवाल विशेष महत्व का है क्योंकि स्व-घोषित थैचराइट ने कॉर्पोरेट आयकर को कम करने की भी कसम खाई है जो कि उनके प्रस्तावित सुधारों के बाद अफ्रीका में सबसे कम होगा।

इसमें सबसे अधिक संदेह यह है कि अबू बकर और उनके सहयोगी स्वयं इन सुधारों के सबसे बड़े लाभार्थी हो सकते हैं जिसकी उन्होंने पेशकश की हैं। पिछले दशक में उपराष्ट्रपति के रूप में उनके कार्यकाल के दौरान जब उन्होंने तेल तथा गैस क्षेत्र के कुछ हिस्सों के निजीकरण का संचालन किया था जिसने अबू बकर के क़िस्मत को बदल दिया था।

इस अवधि में संभावित भ्रष्टाचार के संबंध में हाल ही में यूरेशिया समूह की एक रिपोर्ट में सामने आया था। साल 2010 में एक अमेरिकी सीनेट कमेटी की रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि अबू बकर की पत्नियों में से एक जो कि अमेरिकी है उन्होंने उन्हें अपनी अपतटीय होल्डिंग्स से 40 मिलियन डॉलर का धन संयुक्त राज्य अमेरिका में स्थानांतरित करने में मदद की थी जो उनके धन की "प्रकृति और स्रोत के बारे में सवाल" खड़े कर रहा है। वह वर्तमान में नाइजीरिया में भी जांच के दायरे में है।

दूसरी ओर पूर्व सैन्य तानाशाह बुहारी को व्यापक तौर पर एक परिवर्तित-लोकतंत्रवादी के रूप में पहचाना जाता है। उन्होंने निजीकरण के ख़िलाफ़ कड़ा रुख अपनाया है।

उन्होंने 5 बिलियन डॉलर की चीन की वित्त पोषित जलविद्युत परियोजना को पूरा करने, तेल क्षेत्र को पुनर्जीवित करने और रेलवे लिंक के माध्यम से सभी राज्यों को जोड़कर परिवहन बुनियादी ढांचे का विस्तार करने के लिए खर्च करने का संकल्प लिया है।

आर्थिक संकट के बीच कठोर नीतियों के तहत बुनियादी ज़रुरतों के लिए संघर्ष कर रहे श्रमिकों के लिए बुहारी ने न्यूनतम मज़दूरी में वृद्धि करने का वादा किया है।

एक ईमानदार के रूप में पहले से ही पहचाने जाने वाले बुहारी हालांकि बहुत सफल नहीं है। भ्रष्टाचार विरोधी प्रचारक बुहारी ने भ्रष्टाचार के लिए कड़ी सजा देने का वादा किया है।

दूसरी ओर अबू बकर ने खुद पर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों को खारिज करते हुए भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए दंडात्मक उपायों के बजाय सुरक्षात्मक उपायों की वकालत की है। इनमें निजीकरण शामिल है जिसको लेकर वे तर्क देते हैं कि अपारदर्शी आड़ के प्रति पारदर्शिता लाएगा जिसके पीछे सरकार के स्वामित्व वाले उद्यमों में सौदे किए जाते हैं।

इस्लामी आतंकवादी समूह बोको हरम के ख़तरे से निपटने के तरीकों को लेकर भी दोनों ही उम्मीदवारों के विचार अलग हैं।

बुहारी सेना के लिए संसाधनों में अधिक आवंटन की वकालत कर रहे हैं जबकि अबू बकर ने कहा है कि इस संगठन के लिए भर्ती को कम करने के लिए सबसे ग़रीब इलाक़ों में रोज़गार प्रदान करना उचित दायित्व होगा।

इन दोनों उम्मीदवारों के कड़े मुक़ाबले के बीच ये चुनाव बेहद महत्वपूर्ण होने जा रहा है। इसके नतीजे पर नाइजीरिया का तेल पर नियंत्रण, इसके सार्वजनिक क्षेत्र का भविष्य और बोको हरम के साथ संघर्ष का समाधान निर्भर करता है।

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