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नर्मदा घाटी से प्रधानमंत्री के नाम खुला पत्र : मन की बात या मनमानी बात?

माननीय नरेन्द्र मोदी जी,
नमस्कार!

भारत के प्रधानमंत्री के पद पर बहुत ही विषेष प्रचार-प्रसार एवं अभियान के द्वारा आप विराजमान हुए, तब न केवल आप और आपके भाजपा दल को वोट देने वाले 31 प्रतिषत मतदाता, किन्तु माने तो 80 प्रतिषत से अधिक भारत के नागरिक आपकी मन की बात प्रत्यक्ष में कैसी उतर आएगी, इस पर सोच रहे थे। कई सारी चुनाव-पूर्व आम सभाओं में दूर से देखी आपकी प्रतिमा और सुने हुए वायदे कहॉ तक टिकेगे या बदलेंगे, आप देश को किस नई राह पर ले जाना चाहेंगे, आदि सवाल लेकर भी खडे थे। हम, नर्मदा घाटी के लोग, मात्र आपकी विकास की अवधारणा जानना चाहते थे लेकिन उसके पहले सरदार सरोवर परियोजना पर आपके विचार, आपकी नियोजन पद्धति और दूरदर्षिता के साथ विस्थापन जैसे मानवीय मुद्दे पर आपकी संवेदना भी परख रहे थे। 

                                                                                                                

12 जून, 2014, आपके सत्ता हासिल करने के बाद का 17वाँ दिन था। उसी दिन आपने और आपने ही निर्णय लिया कि बांध को 17 मीटर आगे बढायेंगे। आपकी अपनी स्टाईल के अनुसार आपने ‘17’ आंकडे को प्रचारित करना शायद तय किया होगा, लेकिन आप यह भी जानते होंगे कि इन 17 मीटर्स में ही नही, इसके नीचे पहले से ही बने बांध की चपट में आयें क्षेत्र की स्थिति कैसी भयावह है? 

अगर नहीं, तो आप को इसकी जानकारी लेनी चाहिये थी। सामाजिक न्याय एवं सषक्तिकरण मंत्रालय के तहत गठित पुनर्वास उपदल की राय तो लेनी ही चाहिये थी! इस मंत्रालय के तथा पर्यावरण मंत्रालय के मंत्री महोदय कुछ चकित और काफी अनभिज्ञ पाये गये, जब कि वे न केवल निर्णयकर्ता थे बल्कि इतनी बडी परियोजना को अंतिम रुप देने से पहले आपसे क्या उनकी अपेक्षा नहीं थी कि कुछ सलाह-मषविरा तो हो जाए? जल संसाधन मंत्री तो नर्मदा की भक्तिन रही हैं। आप निष्चित उनका नर्मदा से रिष्ता जानते होंगे, लेकिन आपने तो उन्हें गंगा मंत्री बना दिया. वे भूल गयी नर्मदा और वादे भी। पर नर्मदा न उन्हें भूलेगी न शायद माफ भी करेगी।

आपकी राजनीतिक निर्णय प्रक्रिया और विकास का मॉडल, दोनों पर अ-जनतांत्रिक और संवादहीन होने के आरोप लगाते हुए भी मैं आपको यह पत्र लिखने की हिम्मत कर रही हूँ क्यों कि कहीं न कहीं आज भी मन कहता है कि सरदार सरोवर की सच्ची हकीकत, उससे हो रहा बेहद, बेरहम विस्थापन, उलट-पुलट और साथ-साथ भ्रष्टाचार, पुनर्वास बाकी होते हुए हजारों परिवारों का भविष्य, घाटी की पीढियों पुरानी संस्कृति और समृद्ध प्रकृति की हानि किसी सच्चे, संवेदनषील इन्सान को चुभे बिना नहीं रहेगी। आपके वक्तव्यों, घोषणाओं और मन की बातों को कभी कभार सुनने के बाद भी पूछने की इच्छा होती है,क्या आप एक संवेदनषील इन्सान नहीं है? आप अब केवल गुजरात के मुख्यमंत्री नहीं रहे,देश के प्रधानमंत्री और अंतराष्ट्रीय स्तर के प्रचारक बन गये हैं। किसी भी तरह अब आप प्रांतवादी या सांप्रदायिक बनकर पेष नहीं आ सकते हैं। आपको सीना हीं नही, दिल भी बड़ा करना होगा.. इसलिए भी इस पत्र द्वारा कुछ अपने मन बातें भेज रही हूँ। शायद मे आपके दिल को हुए ? 

मोदीजी, आपने चुनाव प्रचार में देश के भाइयों और बहनों को कई जगह के भाषणों से (सिवाय नर्मदा किनारे के बडवानी शहर में हुए 15 मिनट के भाषण से) सुनाया कि महाराष्ट्र को 400 करोड और म.प्र को 800 करोड रु. तक की बिजली सरदार सरोवर से मुफ्त मिलनी है लेकिन पूर्व प्रधानमंत्रीजी या काँग्रेस-यूपीए सरकार उसे रोकते रहे। आप भली भाँती जानते हैं कि एक अंतर्राज्यीय परियोजना होते हुए, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश को केवल जो बनेगी, जितनी बनेगी, उस बिजली में केवल 27 और 56 प्रतिषत हिस्सा मिलेगा... जिसके लिए करोडों का पूंजीनिवेष भी इन्हीं राज्यों का होगा ! इन राज्यों के 33 और 193 गाँव (एक नगर के सहित) मिलकर 226 गाँव, हजारों घर, उपजाऊ खेती, फलोद्यान, जंगल, दुकानें, षालाएँ, मंदिर-मस्जिद, लाखांे पेड, मछली, सब कुछ खोने वाला है।

क्या इसकी कोई कीमत नहीं ? तो गुजरात के, 1961 में पहले परियोजना की कालोनी के लिए 6 आदिवासी गाँव, डूब के लिए 19 गॉव, नहरों में 23,500 परिवार और अब पर्यटन और सरदार सरोवर को जोडने में लक्ष्य बनाये जा रहे 70 गावों के आदिवासीयों के त्याग की कीमत तो षून्य ही मानी जाएगी? क्या आप जानते हैं कि उन भरे-पूरे म.प्र. के गावों में आज भी हजारों-हजार परिवार उनकी जीविका के साथ, जीवित हैं, जिन्हें आपने डुबाने का फैसला लिया है? गुजरात के अंदर की हिंसा की चर्चा तो कम से कम हुई, यह हत्या भी चुपचाप हो ऐसी तो आपकी मंषा नहीं? आपने 122 मीटर से 139 मीटर तक बांध की उंचाई बढाने का निर्णय गोपियनता के साथ लिया और उसके नतीजे पर ही नहीं तो सरदार सरोवर या नर्मदा पर भी आप और आपके मंत्री चुप्पी साधे हुए हैं। इस भयावह कहानी पर, इसमें जो भ्रष्टाचार और अत्याचार है और होगा, उस पर कोई षब्द न निकले, ना ही चर्चा का मौका मिले, क्या यही उद्देष्य है? लेकिन सत्य कब तक छिपाया जा सकता है, मोदीजी? आप भलीभाँति जानते ही हैं.......। 

सरदार सरोवर के सवाल और मुद्दे कई सारे हैं, लेकिन विस्थापन का मुद्दा सबसे गंभीर ! तीनों राज्यों के विस्थापितों को, अच्छी पुनर्वास नीति (जो ट्रिब्यूनल के सामने म.प्र. व महाराष्ट्र ने इस बांध का विरोध करने से बनी थी) होते हुए भी, पूर्ण अमल, सही नियोजन, समयपर कानूनी प्रक्रिया का अभाव एवं भ्रष्टाचार पर रोक न लगाने से कुछ सफलता के बावजूद असफलता साबित हुई है जिसके कारण आज हजारों परिवारों को पुनर्वास के कानूनी हक भी नहीं मिल पाये हैं। यह नतीजा हुआ है, शासन की ओर से पहले से ही विस्थापन की मात्रा का सही अंदाज नही लगाने से लेकर, जमीन या जीविका के साथ पुनर्वास का नियोजन भी न करने के कारण। 

वैसे कॉर्पोरेटस के लिए जमीन तो हर राज्य में उपलब्ध है, जैसे 25,000 हेक्टर म.प्र. के मुख्यमंत्री ने जाहिर किया ही है, लेकिन विस्थापितों को पथरीली, पहाडी, कही शाला या तालाब तो कही पर कालोनी बनी है, या चरागाह की बंजर जमीन, खेती के नाम पर लेना क्या मंजूर हो सकता है? तो 10,500 से अधिक परिवारों को जमीन मिलने के बाद अब बचे हूए हजारों, जमीन के पात्र आदिवासी, किसानों का क्या? म.प्र. के गरीब, महिला, विधवाओं और अन्य कुछ हजार परिवारों को घर प्लॉट भी नहीं मिले है। विषेषतः म.प्र. में जो वसाहटे बनी है, वहॉ सुविधाओं की हालात बदतर है। नर्मदा घाटी में पूरी जिन्दगी बिता चुके त्यागी लोगों को पानी भी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नही है। गुजरात में पुनर्वसित होकर बरसों बीते, महाराष्ट्र में भी वही स्थिति, लेकिन आज भी जिन्हें कानूनी हक नही मिला या आधा अधूरा मिला हैं वे भी लड रहे हैं। कुल मिलकर 45,000 से अधिक परिवारों के लिए संघर्ष कोई चुनावी टक्कर नही, जीवन का हिस्सा है। 

भ्रष्टाचार आज भाजपा को घेरकर बैठा है। व्यापंम घोटाला हमारे विस्थापितों के पोल-खोल करने से उजागर हो चुका है, नर्मदा घोटाला इसकी खबर राज्य सरकार और केन्द्रीय ऑथारिटी को है, तो आपको भी होगी ही, तो फिर श्सबका पुनर्वास जमीन के साथ भी हो चुका है,श् यह दावा सरासर झूठ है या नहीं? जिनकी फर्जी रजिस्ट्रियाँ तो 2000 से अधिक निकलेगी, उन परिवारों को भी जमीन नहीं मिली है। अन्य कोई पैसा न लेने वाले परिवारों या आधा पैसा न लेने वालों का हक भी कैसे नकारा गया है, आप ही पूछे। जानकारी यह भी लीजिए कि आज के रोज, डूब क्षेत्र में ही कितने हजार परिवार है और पुनर्वसाहटों में कितने? आप जैसे अंतर्राष्ट्रीय ख्याति के नेता को यह सब हकीकत पता होनी ही चाहिए। घर प्लॉट वितरण में भ्रष्टाचार, पुनर्वास स्थलों पर निर्माणकार्यो में भ्रष्टाचार! कुल मिलकर कानून अनुसार, गुजरात को ही पानी का लाभ सर्वाधिक है, उसके बदले में गुजरात द्वारा पुनर्वास के लिए आबंटित किए गए 1,000 करोड रु. तक तो भ्रष्टाचार से व्यर्थ ही गये हैं। 

इस बात को म.प्र. क्यों नही स्वीकार कर रहा? नर्मदा घाटी विकास प्राधिकरण खुद शामिल होना कैसे टाल रहा है, झूठा प्रचार और झूठे शपथ पत्र भरकर सबकुछ ठीक और पुनर्वास पूरा क्यों बता रहें है? नर्मदा नियंत्रण प्राधिकरण ने भी इसे पूरा अनदेखा किया हैं। सभी संबंधित जैसे न सारे देश को, वैसे ही क्या आपको भी भ्रमित कर रहें है? गुजरात के वित्तीय संसाधन इस भ्रष्टाचार में खत्म हो रहें है, तो इस पर आपकी चुप्पी क्या व्यापम में षिवराजसिंह जी की चुप्पी से अलग हैं? 

प्रधानमंत्री जी, पुनर्वास के ही बारे में आप हजारो मजदूरों, मछुआरो की बात भी देखे,! जरा किसी से इतना तो अध्ययन करवा ले कि 1994 से 2000 तक म.प्र. ने क्या क्या किया? ट्रिब्यूनल ने 1979 में फैसला दिया तब बांध का विरोध करने वाले महाराष्ट्र एवं म.प्र. के हजारो विस्थापितों के लिये जमीन, घर प्लाट, सुविधाओं के साथ पुनर्वास स्थल बनाकर बांध के लाभ क्षेत्र में या अपने अपने राज्य में सिंचित जमीन का प्रावधान था या नही? भूमिहीनों को वैकल्पिक व्यवसाय की बात लिखित सर्वोच्च न्यायालय में रखी गई थी या नही? क्या इस बात का अमल अब तक हुआ है? गुजरात और महाराष्ट्र में भी आज सैकड़ो परिवार पुनर्वास के बाकी है। कही घर-प्लाट तो 150 कि.मी. पर जमीन, वह भी कागज पर, दिखाकर पुनर्वास होने का झूठा दावा लोगों को बसा नही पाया है - पोल तो खुल ही गई है। क्या ऐसे लोगों को बसाने के पहले पानी भरना ष्जल समाधिष् नहीं होगी? 

पूर्व प्रधानमंत्री जी ने यह न होने देने का आष्वासन सर्वोच्च अदालत में रखा था। क्या आप इस पद की गरिमा और आष्वासन की जिम्मेदारी मानेंगे? विकास की घोड़दौड़ में पुलिस बल के सहारे आप म.प्र एवं महाराष्ट्र के 45,000 से अधिक परिवारों को, धरमपुरी जैसे नगर को हटाएंगें और सरदार पटेल स्टेच्यू ऑफ युनिटी के इर्दगिर्द के गुजरात के भी 70 गावों के आदिवासियों को भी हटा भी देंगे शायद, लेकिन क्या उससे नर्मदा की ही नही, क्या आपकी सरकार की शान भी बढेगी? 

आखिर यह सब, प्रधानमंत्री जी, फिर भी कुछ समर्थनीय होता अगर सरदार सरोवर का लाभ सही में सूखाग्रस्तों और किसानों को मिलता। आपके गुजरात में तो नर्मदा का पानी अधिकतर कंपनियों को, जैसे 30 लाख लीटर प्रतिदिन कोकाकोला को, उससे दुगुना मोटर कारखानों को देना और किसानों की खेती, सिंचाई के बदले जमीन अधिग्रहित करके या खरीद कर कंपनियों को देना जारी हैं। देश के सामने आज नही तो कल यह उजागर होगा तब क्या होगा? सूखाग्रस्त भी विकासग्रस्त होंगे तो उनका आक्रोष आपकी सत्ता को भी हिला देगा जरूर ! 

तो बस इतना ही। अब 245 गावों में जीवित लाखांे लोगों को नहीं डूबाना आपके हाथ में हैं। लेकिन आप चाहें तो सच्चाई की जांच करवाकर, इस तरह किसी भी विकास की परियेाजना को विनाषकारी बना देने से रोक सकते हैं। लाखों को डूब के अत्याचार से बचा सकते हैं, कम से कम पुनर्वास पूरा करने तक और आज गुजरात उठा नही पाता है, ऐसे 80 प्रतिषत जलाषय के पानी को उपयोग में लाने के पहले गेट न लगाए और जलाषय में 121.92 मी. के आगे कोई पानी न भरें। 

आपको बस इतना ही कहना है, मानो आपके मन की बात जनता को बताना है कि क्या आप गंगा को ही पवित्र और जीवित नदी मानते हैं? नर्मदा क्या सौतेली माँ है? अड़ाणी, अम्बानी जैसे पूंजीपतियों के लिये बिना पुनर्वास के हजारों परिवारों केा उजाड़ना क्या मानवीय विकास मानेंगे? दुनिया की सबसे पुरानी नर्मदा की संस्कृति को इस तरह आपकी ष्मनमानी बातष् से खत्म करना क्या गरिमामय माना जायेगा? 

प्रधानमंत्रीजी, आप इतने माध्यमों से जन-जन से संवाद करते है, सोषल मीडिया की तारीफ भी करते हैं,...... तो कृपया सरदार सरोवर के किसी भी मुद्दे पर ही सही, कुछ तो बोलिऐ। आइए सरदार सरोवर की जरूरत व जमीनी हकीकत एक बार समझ ले और फिर तय करें। इस परियोजना पर सत्यवादी तरीके से राष्ट्रीय बहस क्यों न चलाए? आप तैयार है तो हम भी तैयार है। रास्तेंपर, सभा गृह में या सोषल मीडिया में भी! संगठित विस्थापितों से चर्चा तो कीजिए। आखिर आप इतने बड़े देश के प्रधानमंत्री हैं।

जवाब की अपेक्षा में .....
मेधा पाटकर 

सौजन्य: संघर्ष संवाद
 

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