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दूध गंगा के बचाव में आगे आया एनजीटी

डॉ राजा मुजफ्फर भट पिछले कई वर्षों से सरकारी एजेंसियों की वजह कश्मीर में दूध गंगा नदी को व्यापक रूप से प्रदूषित होने के बारे में लिखते रहे हैं और लेकिन उनके इन अथक प्रयासों के बावजूद, इस समस्या को दूर करना तो दूर, सरकार ने इसे समस्या मानने से भी इनकार कर दिया है। आखिरकार, उन्हें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल का रुख करना पड़ा, जिसने इस प्रकरण की जांच के लिए एक संयुक्त समिति के गठन का आदेश दिया है। 
Doodh Ganga
दूध गंगा का एक प्रतीकात्मक चित्र

कश्मीर की झेलम नदी की एक प्रमुख सहायक नदी दूध गंगा के लगातार प्रदूषण को रोकने में सरकार पूरी तरह से विफल रही है। लिहाजा, इस मुद्दे को गंभीरता से अपने संज्ञान में लेते हुए, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण (नेशनल ग्रीन ट्रिब्यून/एनजीटी) ने पांच सदस्यीय संयुक्त समिति के गठन एक निर्देश जारी किया है और इसकी एक तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है। 

न्यायमूर्ति आदर्श कुमार गोयल की अध्यक्षता वाली एनजीटी की प्रधान पीठ ने 18 अक्टूबर को अपने एक विस्तृत आदेश में कहाः

“ऐसा प्रतीत होता है कि पर्यावरण और सार्वजनिक स्वास्थ्य के प्रति पूर्वाग्रह रखते हुए लिए जल अधिनियम का लगातार बेलगाम उल्लंघन किया जा रहा है। इस प्रकार, ट्रिब्यूनल के हस्तक्षेप के लिए कहा जा सकता है। तदनुसार, हम अधिकारियों को इन तथ्यों को सत्यापित करने और कानून के मुताबिक इसके निदान के लिए उचित कार्रवाई करने का निर्देश देते हैं। हम सीपीसीबी, जम्मू-कश्मीर पीसीसी, उपायुक्त, श्रीनगर और बडगाम और निदेशक, शहरी स्थानीय निकाय, जम्मू-कश्मीर की एक पांच सदस्यीय संयुक्त समिति का भी गठन करते हैं। इसमें, राज्य पीसीबी अनुपालन और समन्वय की एक नोडल एजेंसी होगी। यह संयुक्त समिति दो सप्ताह के भीतर कभी भी बैठक कर सकती है और विवादित स्थलों के दौरा कर सकती है।’’

मैंने राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण का रुख क्यों किया? 

मुझे जम्मू-कश्मीर में एक प्रशासनिक प्राधिकरण के रूप में एनजीटी के समक्ष याचिका दायर के एक तरह से विवश होना पड़ा। इसलिए कि श्रीनगर नगर निगम, बडगाम के जिला प्रशासन और शहरी स्थानीय निकाय निदेशालय ने खास तौर से कश्मीर में दूध गंगा को बचाने की दिशा में कोई काम ही नहीं किया, तब जबकि मैंने पिछले पांच वर्षों के दौरान इस मसले को कई बार उनके संज्ञान में लाया था।

मैंने दूध गंगा में प्रदूषण पर काफी विस्तार से लिखा है और इस साल अप्रैल में मैंने सेब के बागों में कीटनाशकों के छिड़काव से दूध गंगा के प्रदूषित होने के विषय पर लीफ्लेट के लिए एक विस्तृत लेख भी लिखा था। 

मैं कुछ कार्यकर्ताओं के एक समूह के साथ इस गर्मी के मौसम में ग्लेशियर तक गया था, जो दूध गंगा का स्रोत है। यह ग्लेशियर समुद्र तल से 4 किमी की ऊंचाई पर है। इस दौरे के पीछे हमारा मकसद इस नदी को साफ रखने के प्रति जनता एवं सरकार में एक जागरूकता पैदा करना थाI मैंने अधिकारियों से दूध गंगा को प्रदूषण मुक्त करने की अपील करते हुए एक वीडियो भी बनाया। 

लेकिन इस वीडियो के सोशल मीडिया पर वायरल होते रहने के बावजूद प्रशासन ने कोई जवाब नहीं दिया। 

जब मैंने पाया कि सरकार इस मुद्दे पर पूरी तरह से गैरजवाबदेह है, तो मेरे पास नई दिल्ली में एनजीटी के समक्ष याचिका दायर करने के अलावा और कोई रास्ता नहीं बच गया था। मैंने दूध गंगा की रक्षा की अपील करने के अलावा, ममथ कुल की सुरक्षा के लिए भी एनजीटी के हस्तक्षेप की मांग की। ममथ कुल झेलम की ही एक और सहायक नदी है, जो कश्मीर के बडगाम शहर होकर गुजरती है। 

बडगाम की नगर समिति पिछले 15 वर्षों से अधिक समय से अपने सभी नगरपालिका ठोस अपशिष्ट (MSW) को ममथ कुल के तट के पास डंप कर रही है, जो जल (प्रदूषण की रोकथाम और नियंत्रण) अधिनियम, 1974 (जल अधिनियम) का स्पष्ट उल्लंघन है। 

दूध गंगा का प्रदूषण 

दूध गंगा का मायने दूध की नदी है। यह बडगाम और पुंछ जिलों के बीच पीर पंजाल पहाड़ों पर अवस्थित हिमनदों से निकलती है। इस छोटी-सी नदी पांच लाख से अधिक आबादी को पीने के पानी की आपूर्ति करती है, जो आज से कुछ दशक पहले तक अपने नाम के अनुसार दूधिया चमक लिए हुआ करती थी। परंतु इसके बाद से बडगाम और श्रीनगर जिलों में बड़े पैमाने पर जारी शहरीकरण के कारण स्थानीय लोगों और प्रशासन ने दूध गंगा को एक गंदे नाले में बदल दिया है।

दूध गंगा का सबसे बड़ा प्रदूषक श्रीनगर नगर निगम (एसएमसी) है, जो बिना किसी उपचार के अपने सभी तरल अपशिष्ट, जिसमें खतरनाक अपशिष्ट और मानव मल शामिल हैं, को नदी में पंप कर रहा है। 

विश्व बैंक के समर्थन से, एसएमसी निचले इलाकों में बाढ़ को रोकने के लिए श्रीनगर शहर में लगभग 50 अंतर्वर्त्ती (इंटरमीडियरी) पंप स्टेशनों (आइपीएस) का निर्माण कर रहा है। श्रीनगर के ऊपरी इलाकों नाटीपोरा, बरजुल्ला, बुल बुल बाग और माग्रे पोरा में एसएमसी के सिटी ड्रेनेज डिवीजन द्वारा चार पंप स्टेशनों को अपग्रेड किया जा रहा है। यह काम जोर-शोर से चल रहा है। इसके बाद,बाढ़/तूफान के पानी को दूध गंगा में बहा दिया जाएगा। 

यह जल अधिनियम का घोर उल्लंघन है। इस अधिनियम की धारा 24(बी) कहती है कि कोई भी व्यक्ति जानबूझकर अथवा किसी भी अन्य मामले में किसी भी धारा में प्रवेश करने की अनुमति नहीं देगा, जिसका मतलब, या तो सीधे-सीधे अथवा समान मामलों के संयोजन में, धारा के पानी के उचित प्रवाह को बाधित करना हो सकता है, जिसकी वजह से या इसी तरह के अन्य कारणों के परिणामस्वरूप नदी के प्रदूषण के पर्याप्त रूप से बढ़ने की संभावना है।

जम्मू-कश्मीर राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, जिसे अब प्रदूषण नियंत्रण समिति (पीसीसी) कहा जाता है, ने दूध गंगा में जल प्रदूषण के मुख्य स्रोतों के रूप में एसएमसी के 13 जल निकासी स्टेशनों की पहचान की है। इनमें से किसी भी ड्रेनेज स्टेशन को अपशिष्ट जल या दूध गंगा में बहने वाले तरल अपशिष्ट के उपचार के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) उपलब्ध नहीं कराया गया है। वास्तव में, दूध गंगा में ऐसे किसी भी तरह के कार्य के लिए एक भी क्रियाशील (फंक्शनल) एसटीपी नहीं है। 

दूध गंगा का प्रदूषित पानी भी होकरसर आर्द्रभूमि में प्रवेश करता है, जो आर्द्रभूमि (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2017 का दोहरा उल्लंघन है। 

एसएमसी इंजीनियरों का दावा है कि पंप स्टेशन केवल तूफान के पानी को ही दूध गंगा में बहाते हैं, लेकिन ये पंप स्टेशन वास्तव में हर तरल या अर्ध-ठोस कचरे को नदी में बहा देते हैं। एक बार जब इन पंप स्टेशनों की क्षमता बढ़ा दी जाती है, तो यह कल्पना करना मुश्किल हो जाता है कि दूध गंगा में कितना अधिक तरल कचरा डाला जाएगा। 

जल की गुणवत्ता पर प्रदूषण नियंत्रण समिति की रिपोर्ट

लगभग 50 साल पहले, श्रीनगर के बाहरी इलाके में क्रालपोरा इलाके में दूध गंगा जल निस्पंदन संयंत्र (वाटर फिल्ट्रेशन प्लांट) नामक एक संयंत्र की स्थापना की गई थी। दूध गंगा से कच्चा पानी एक पहाड़ी पर ले जाया जाता है और वहां उसे क्लोरीन गैसीकरण के माध्यम से संसाधित (प्रोसेस्ड) किया जाता है।

फिल्ट्रेशन प्लांट द्वारा आपूर्ति किया जाने वाला पेयजल पीने के योग्य नहीं है, क्योंकि उसमें चदूरा शहर और एवं उसके आसपास के इलाकों से भारी मात्रा में तरल और ठोस कचरा क्रालपोरा में आता है, जो पानी को प्रदूषित करता है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे दूषित पानी को क्लोरीन गैस से कतई शुद्ध नहीं किया जा सकता है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए खुद ही नुकसानदेह है। 

इस वर्ष सितंबर में तैयार की गई पीसीसी की एक निरीक्षण रिपोर्ट के अनुसार, दूध गंगा से विभिन्न स्थानों पर एकत्र किए गए नमूनों के विश्लेषण से यह संकेत मिलता है कि सोगम, चदूरा और बाघी-ए-मेहताब में अपस्ट्रीम स्पॉट में पानी विश्लेषित भौतिक-रासायनिक (फिजियोकेमिकल) मानकों के संदर्भ में 'क्लास बी' (आउटडोर बाथिंग ऑर्गनाइज्ड) के लिए तय सीमा के दायरे में है। 

दूसरी ओर, नदी के निचले हिस्से में, यानी बघाट, पुराने बरजुल्ला और तेंगपोरा क्षेत्रों में, पानी की गुणवत्ता 'डिजॉल्व्ड ऑक्सीजन' और बायोकेमिकल ऑक्सीजन मांग' के मापदंडों के लिए 'क्लास बी' मानदंड के अनुरूप भी नहीं थी। यह रिपोर्ट में पेश किया गया विखनिजित (डिमिनिंग) अभियोग है:

“नदी के निचले प्रवाह में तुलनात्मक रूप से निम्न गुणवत्ता का कारण जल निकाय में हानिकारक अपशिष्ट का समावेश हो सकता है। यह...इंगित करता है कि ऊपरी प्रवाह (अपस्ट्रीम) और निचले प्रवाह (डाउनस्ट्रीम) में पानी की गुणवत्ता विश्लेषण किए गए भौतिक-रासायनिक मापदंडों के संदर्भ में 'क्लास बी' (आउटडोर बाथिंग ऑर्गनाइज्ड) मानक के लिए तय अनुमेय सीमा को पूरा करती है। 

हालांकि इस धारा के किनारे ठोस कचरे के विशाल ढेर देखे गए थे। नगर निगम बडगाम ममठ धारा की परिधि में ठोस कचरा डंप कर रहा है। 

दूध गंगा नदी के तट पर विभिन्न स्थानों पर स्थापित जलनिष्कासन (डी-वाटरिंग) पंप स्टेशन अभी भी चालू हैं और नदी में अनुपचारित अपशिष्ट जल प्रवाहित करते हैं। ठोस कचरे के वैज्ञानिक निष्पादन के संबंध में संबंधित नगरपालिका अधिकारियों द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है क्योंकि दूध गंगा के तट पर ठोस कचरे की डंपिंग बेरोकटोक जारी है। चदूरा कस्बे से उत्पन्न ठोस कचरे को नगर समिति चदूरा दूध गंगा के तट पर अबशर कॉलोनी के पास डंप कर रही है। [मूल में जोर]” 

प्रदूषण फैलाने वाली एजेंसियों के कान उमेठे जाने चाहिए 

यह गंभीर चिंता का विषय है कि जम्मू-कश्मीर सरकार, जल जीवन मिशन, स्वच्छ भारत मिशन और अन्य राष्ट्रीय प्रमुख कार्यक्रमों के तहत भारी धनराशि प्राप्त करने के बावजूद, पीने के पानी के स्रोतों को साफ करने या ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन के काम में उनका सदुपयोग करने में फेल हो गई है। 

दूध गंगा के आसपास निर्माण कार्य करके या उन्हें जारी रहने देकर पर्यावरण कानूनों के उल्लंघन करने के लिए एसएमसी को दंडित किया जाना चाहिए। इसने जल पंप स्टेशनों के निर्माण पर सैकड़ों करोड़ रुपये खर्च किए हैं, लेकिन दूध गंगा के आसपास एक भी एसटीपी नहीं लगाया है। बडगाम के जिला प्रशासन को दूध गंगा और ममठ कुल दोनों में भारी मात्रा में ठोस और तरल कचरे की डंपिंग रोकने के लिए भी कार्य करना चाहिए,जो पिछले कई वर्षों से जारी है। 

(राजा मुजफ्फर भट श्रीनगर के एक कार्यकर्ता, स्तंभकार और स्वतंत्र शोधकर्ता हैं। वह एक्यूमेन इंडिया फेलो हैं। आलेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)

यह लेख मूल रूप से दि लीफ्लेट में प्रकाशित हुआ था। 

अंग्रेजी में मूल रूप से प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 

NGT Comes to the Rescue of Kashmir’s Doodh Ganga

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