अवधी में ग़ज़ल: ...मंदिर मस्जिद पेट हमार न भरिहैं साहेब
1.
आँखी मूँद के पाँव तुम्हार न परिहैं साहेब
पढ़े लिखे हैं तो सवाल तो करिहैं साहेब
ना तो हम पंडित बन पइबे ना मौलाना
मंदिर मस्जिद पेट हमार न भरिहैं साहेब
कुछ कुछ अब सुलगें लागी हैं धीरज राखौ
गीली लकड़ी हैं जल्दी ना जरिहैं साहेब
तुम्हरे जुमलन का जलवा है अब लागत है
चीन पाक हमरे घर पानी भरिहैं साहेब
भक्त बिचारे का जानैं तुम का बोये हो
पाक जई जब फसल तो कटिहैं मरिहैं साहेब
जिन की रोजी रोटी छिन गे जरे बैठ हैं
आगी के पेड़न से फूल न झरिहैं साहेब
पुरखन की अनमोल धरोहर बेच रहे हैं
नालायक लरिका हैं अउ का करिहैं साहेब
...
2.
रोज पढ़ें रामायण गीता
झूठ बतायें म कोउ न जीता
घूरे के दिन बहुरि न पाये
परखे परखे इक जुग बीता
राम न उनके साथ गे बन मा
राम के साथ तो गई रहें सीता
अबहूँ समझत हो परजन का
तुम अपने जूतन के फीता
दिया बुझान है आस नहीं
आस बुझायें न देइ पलीता
इत्ती तेज न दौड़ लगाओ
खुल जायें जूतन के फीता
- ओम प्रकाश नदीम
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