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मोरक्को की सत्ताधारी पार्टी को संसदीय चुनावों में मिली भारी हार

राजशाही-समर्थक नेशनल रैली फॉर इंडिपेंडेंट्स ने 'डेमोक्रेटिक वे' पार्टी सहित अधिकांश वामपंथी और प्रगतिशील वर्गों से चुनावों में बढ़त हासिल कर ली है।
मोरक्को की सत्ताधारी पार्टी को संसदीय चुनावों में मिली भारी हार

गुरुवार 9 सितंबर को मोरक्को के संसदीय चुनावों के लिए घोषित प्रारंभिक परिणाम में सत्तारूढ़ जस्टिस एंड डेवलपमेंट पार्टी (पीजेडी) ने 2016 में हुए पिछले चुनावों में जीती अपनी 125 सीटों में से अधिकांश सीटों को खो दिया है। विपक्षी राजशाही-समर्थक नेशनल रैली फॉर इंडिपेंडेंट्स (एनआरआई) और ऑथेंटिसिटी एंड मोडर्निटी पार्टी (पीएएम) को बड़ी बढ़त मिली है जिससे त्रिशंकु संसद की संभावना बढ़ गई है।

कुल 395 सीटों में से अब तक घोषित प्रारंभिक परिणामों के अनुसार पीजेडी ने सिर्फ 12 सीटों पर जीत हासिल की है। वहीं एनआरआई और पीएएम 97 और 78 सीटें जीत चुकी हैं।

अरब आंदोलन के बाद देश में साल 2011 में नया संविधान अपनाने के बाद से तीसरे संसदीय चुनावों के लिए ये मतदान बुधवार 8 सितंबर को हुआ। इसमें देश के 25.2 मिलियन पात्र मतदाताओं में से केवल 50% से अधिक मतदाताओं ने भाग लिया। फिर भी यह साल 2016 के पिछले चुनावों की तुलना में अधिक था। उस समय केवल 43% मतदान हुआ था।

कोविड-19 महामारी के प्रकोप और समाज के कई वर्गों और कई राजनीतिक दलों द्वारा मतदान का बहिष्कार करने का आह्वान करने के चलते बुधवार को संभवतः कम मतदान हुआ। वामपंथी और प्रगतिशील वर्गों ने दावा किया है कि इस प्रक्रिया में लोकतंत्र पूरी तरह अनुपस्थित है।

अधिकारियों द्वारा लोगों को वोट देने के लिए आग्रह करने के लिए काफी समय लगाने और प्रयास करने के बावजूद मोरक्को में कुल 25.2 मिलियन योग्य मतदाताओं में से केवल 17.5 मिलियन मतदाता सूची में पंजीकृत हैं और वोट देने के योग्य हैं।

इस चुनाव के लिए देश की चुनावी प्रणाली को बदल दिया गया था जहां प्रोपोजल रिप्रेजेंटेशन का एक प्रकार लागू किया गया है। यह इस बार सत्तारूढ़ पीजेडी के नुकसान के लिए काम किया होगा और संसद में अधिक विविध प्रतिनिधित्व होगा।

देश में 2011 का संविधान मोरक्को को एक संवैधानिक राजतंत्र बनाता है। मोरक्को इस साल के चुनाव का उपयोग राजा द्वारा नियुक्त समिति द्वारा तैयार किए गए 'नए विकास मॉडल' के लिए समर्थन प्राप्त करने की उम्मीद कर रहा है। हालांकि, समाज के कई वर्गों का मानना है कि मौजूदा राजनीतिक व्यवस्थाएं और संस्थान उनकी आकांक्षाओं के अनुरूप नहीं हैं। देश में मानवाधिकार आंदोलन और नागरिक समाज लोकतांत्रिक स्वतंत्रता में खतरनाक गिरावट, विशेषकर उग्रवादियों और विपक्षी संगठनों पर बढ़ते हमले की ओर संकेत देते रहे हैं। इसके चलते बहिष्कार का आह्वान किया गया है।

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