काजीरंगा के गैंडों का अवैध शिकार

हाल ही में काज़ीरंगा नेशनल पार्क, असम में अवैध शिकार का एक मामला सामने आया. कुछ टूरिस्टों ने शनिवार की सुबह जंगल सफारी के दौरान एक मृत नर गैंडे का शव देखा, जिसका सींग निकला हुआ था | प्रभागीय वन अधिकारी ( divisional forest officer ) ने भी इस बात की पुष्टि की और बताया कि घटना स्थल से एक बुलेट हेड भी बरामद हुआ है.
काज़ीरंगा नेशनल पार्क शिकार के लिए कुख्यात है. साल 2017 -2018 में गैंडे के शिकार से जुड़ी छठी घटना है. लेकिन पिछले कुछ सालों से गैंडों के शिकार से जुड़े मामलें कम होते जा रहे हैं. आंकडें कहते हैं कि साल 2013,14,15,16,17 में क्रमशः 27,27,17, 18 गैंडों के अवैध शिकार हुए थे. और हर एक मामलें में गैंडों के शव से सींग निकाल लिए गये थे.
अब यह सवाल उठता है कि आखिर गैंडो के सींग को मरे हुए शव से क्यों निकला जाता है? इसका इस्तेमाल किस काम में किया जाता है ?
भारत में गैंडे के सींग के इस्तेमाल पर पाबन्दी है. इसलिए सींग को गैंडे से अलग करने के बाद मारह बॉर्डर (marah border) के रास्ते म्यांमार से होते हुए दक्षिण एशिया के बाकी देशो में तस्कर कर दिया जाता है , जैसे चीन , वियतनाम, जापान आदि . चीन ने कानूनी रूप से गैंडे के सींग के इस्तेमाल पर 1993 में प्रतिबन्ध लगा दिया था. इसलिए दक्षिण एशिया में अब वियतनाम गैंडे के सींग के बाजार के रूप में विकसित हो रहा है. गैंडे के सींग के चूरे का पाउडर पानी और शराब में मिला कर पीने का शौक है और इस शौक को वियतनाम के आमिर और अभिजात गलियों में जमकर पसंद किया जाता है.
वियतनाम की यह पारम्परिक मान्यता है कि गैंडे के सींग से कैंसर कि लाइलाज बीमारी ठीक हो जाती है. इस वजह से कैंसर से जूझने वाले लोग कीमोथेरेपी के बाद गैंडे के सींग से बनी पाउडर का इस्तेमाल करते हैं. इसलिए वियतनाम के आम गलियों में भी गैंडे के सींग कि खूब मांग है. इतनी खासियतों की वजह से कोकीन के मुकाबले अब गैंडे के सींग के पाउडर की कीमत ज्यादा हो गयी है .
आखिरकार अवैध शिकार की घटनाये ख़त्म क्यों नहीं हो रही :
पुलिस और इंटेलिजेंस रिपोर्ट के अनुसार "अंतराष्ट्रीय बाजार में सींग की कीमत बढ़ जाने पर अवैध शिकार की घटना भी बढ़ गयी है. गांव में रहने वाले आदिवासियों को गैंडे का शिकार करने की काफी अच्छी कीमत मिल जाती है. इसलिए ये लोग भी शिकार करने में शार्प शूटर का साथ देते है. इन लोगों को जंगल और गैंडो की आवाजाही के बारें में मालूम रहता है. पुलिस और इंटेलिजेंस ऑफिसियल के मुताबिक काजीरंगा के दक्षिणी और पूर्वी हिस्सों में करबी एंग्लोंग, गोलाघाट और मोरीगांव जिलों में 200 से अधिक लोगों को शिकार की गतिविधियों में शामिल पाया गया है.
डाउन टू अर्थ में प्रकाशित एक रिपोर्ट के तहत "भारत में सिर्फ 1997 का साल ऐसा गया है जब गैंडों के अवैध शिकार की एक भी घटनाये नहीं हुई और सबसे ज्यादा गैंडो के शिकार के मामलें 1992 में हुए थे. उस साल तकरीबन 49 गैंडो की हत्या सींग हासिल करने के लिए की गयी थी ".
डोबाहाटी बेलोगुरी धान के खेतों से घिरा गांव है. यह गाँव असम के गोलाघाट जिले के काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान के पूर्वी किनारे पर है. इस गाँव में मशिंग जनजाति के लोग रहते हैं और इस गांव को अवैध शिकारियो का गढ़ माना जाता है.
वन विभाग के रिकॉर्ड के तहत 75 गांवों में तकरीबन 50,000 लोग काजीरंगा पार्क के चारों ओर रहते हैं. ब्रह्मपुत्र नदी और इसके द्वीपों को शिकारियों द्वारा काजीरंगा पार्क में घुसने के तौर पर उपयोग किया जाता है. इनमें से कुछ द्वीपों में लोग रहते हैं. ज्यादातर मवेशी चरवाहे शिकारियों को आश्रय प्रदान करते हैं.
काजीरंगा पार्क यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साइट में भी शामिल है. वहाँ सिर्फ 369 स्टाफ मेंबर हैं और यही लोग सुरक्षा और पर्यटन से जुड़े रख रखाव का काम भी देखते हैं जबकि यहां पर तकरीबन 528 सदस्यों की जरूरत है. इसके साथ सुरक्षा गार्ड अभी भी पुरानी बंदूकों का इस्तेमाल करते हैं और वही दूसरी तरफ शिकारियों के पास आधुनिक तरह के हथियार है | इसलिए देखा जाये तो प्रशासन भी कही न कही जंगल की सुरक्षा करने में चूक रहा है और व्यवस्था भी काफी सुस्त है.
पर्यावरण के लिए गैंडो का क्या महत्व है ?
हर एक स्थानीय पर्यावरण में एक 'कीस्टोन'(keystone ) प्रजाति होती है , अगर ये 'कीस्टोन'प्रजाति के जानवर न रहे तो पूरा का पूरा पर्यावरण खतरे में आ जायेगा, उदाहरण के लिए, जब कृषि और शिकार की वजह से येलोस्टोन भेड़िये का नाश होने लगा तो , हिरण की आबादी में भी कमी आने लगी , जिससे पौधों की प्रजातियों में गिरावट आई। और गैंडो को सवाना का कीस्टोन प्रजाति कहा जाता है और पारिस्थितिक तंत्र(eco system ) में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं.| तो अगर ऐसी प्रजातियों ( species ) की संख्या खतरे में आती है तो पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचेगा .
और हालात सिर्फ भारत में नहीं खराब है , जहाँ गैंडो की संरक्षित जगहे है वहाँ वहाँ खतरा मंडरा रहा है | इसलिए इनको बचाने के लिए जल्द से जल्द कोई ठोस कदम उठाना चाहिए , नहीं तो गैंडे भी आने वाली पीढ़ी के लिए इतिहास बन के रह जायेंगे और किताबो और फिल्मो में ही देखकर रह जायेंगे.
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