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पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था की तमन्ना और सातवें नंबर की फिसलन

विश्व बैंक के ताज़ा आंकड़ों के मुताबिक 2018 में भारत ने दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा खो दिया है। अब वह दुनिया की सातवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है।
economy of india

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने साल 2019-20 का बजट भाषण देते हुए कई बार देश को अगले पांच साल में 'फाइव ट्रिलियन डॉलर इकोनॉमी' यानी 5लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने की बात कही। इसके अगले दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वाराणसी में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए भी इसी को देश का बड़ा लक्ष्य बताया। 

अगर मोदी के पांच ट्रिलियन डॉलर का सपना पूरा हो जाता है तो भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यस्था बन जाएगा लेकिन यह इतना आसान नहीं है। अभी अर्थव्यवस्था की जो हालत है उसे देखकर लगता है कि मोदी सरकार के दौर में अर्थव्यवस्था सिर्फ ख्वाब ही दिखाते रह गई। 

आर्थिक मोर्चे पर भारत के लिए लगातार निराशाजनक खबरें ही सामने आ रही हैं। विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक 2018 में भारत ने दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का दर्जा खो दिया है और एक बार फिर ब्रिटेन और फ्रांस उससे आगे हो गए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक 2018 में भारत2.73 ट्रिलियन डॉलर के साथ दुनिया की सातवीं बड़ी अर्थव्यवस्था रहा।

जबकि इससे पहले 2017 के जो शुरुआती आंकड़े आए थे उनसे पता चला था कि भारत फ्रांस को पीछे छोड़कर दुनिया की सातवीं बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया था। फिर उसी साल के ही सबसे नए आंकड़े आए और स्पष्ट हुआ कि असल में भारत ने ब्रिटेन को भी पीछे छोड़ दिया था और वह पांचवें स्थान पर था। 2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2.65 ट्रिलियन डॉलर का था और उसके बाद 2.64 ट्रिलियन के साथ ब्रिटेन छठवें और 2.59ट्रिलियन डॉलर के साथ फ्रांस सातवें स्थान पर था।

लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था का यह दर्जा ज्यादा दिन तक कायम नहीं रह सका। विश्व बैंक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक अगले ही साल ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था बढ़कर 2.82 ट्रिलियन डॉलर और फ्रांस की अर्थव्यवस्था 2.78 ट्रिलियन डॉलर हो गई। जबकि इनके मुकाबले भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 2.73 ट्रिलियन डॉलर पर थम गया।

इसका मतलब है कि इस बीच भारत की अर्थव्यवस्था में महज 3.01 फीसदी की ही बढ़ोत्तरी हुई। वहीं ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में 6.81 और फ्रांस की अर्थव्यवस्था में 7.33 फीसदी का विस्तार हुआ। फिलहाल 2018 में 20.49 ट्रिलियन डॉलर के साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था पहले नंबर है और 13.61ट्रिलियन डॉलर के साथ चीन की अर्थव्यवस्था दूसरे नंबर पर है।

अर्थशास्त्री इस सूची में भारत के पिछड़ने की वजह डॉलर के मुकाबले में रुपये में आई गिरावट को मानते हैं। बिजनेस स्टैंडर्ड से बात करते हुए रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स में मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत कहते हैं, ‘2017 में रुपये की कीमत तीन प्रतिशत बढ़ी थी लेकिन अगले साल पांच प्रतिशत नीचे चली गई। यही वजह है कि दो साल पहले के मुकाबले बीते साल डॉलर के हिसाब से भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर धीमी रही।’

इसके अलावा अब भारत की आर्थिक वृद्धि दर में गिरावट आई है। ग्लोबल रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने चालू वित्तीय वर्ष (2019-20) में भारत की अनुमानित जीडीपी वृद्धि दर को घटाकर 6.9 फीसदी कर दिया है। इससे पहले यह 7.1 फीसदी था।

नवभारत टाइम्स की खबर के मुताबिक एजेंसी ने ऐसा कमजोर मानसून और वैश्विक मंदी के चलते किया है। पहली तिमाही (अप्रैल-जून) में कई आर्थिक मोर्चों पर कमजोर नतीजों को देखते हुए भी ऐसा किया गया है। क्रिसिल का कहना है कि चालू वित्तीय वर्ष की पहली छमाही में देश की वृद्धि दर सुस्त रह सकती है। 

दूसरी ओर, मनी कंट्रोल के मुताबिक जुलाई महीने में शेयर बाजार का प्रदर्शन 2002 के बाद पहली बार इतना खराब रहा है। 17 साल में पहली बार हुआ है जब जुलाई महीने में सेंसेक्स में 5.68 प्रतिशत की गिरावट आई है। सेंसेक्स में 500 कंपनियां दर्ज हैं। 50 फीसदी कंपनियों के शेयर दो अंकों में गिरे हैं।

इसी तरह पिछले साल सितंबर से मांग की कमी और अर्थव्यवस्था में आई गिरावट के कारण भारतीय ऑटोमोबाइल उद्योग भी संकट का सामना कर रहा है। इसी हफ्ते गुरुवार को निसान के बाद दो और बड़ी ऑटोमोबाइल कंपनी बजाज और मारुति सुज़ुकी ने कहा कि उनकी बिक्री में भारी गिरावट आई है। जहां बजाज ऑटो की बिक्री जुलाई में पांच प्रतिशत गिरकर 3,81,530 वाहन हुई, वही दूसरी तरफ मारुति सुज़ुकी की बिक्री में जुलाई महीने में33 प्रतिशत की भारी गिरावट आई है। इसके चलते लाखों मजदूरों की नौकरियों पर संकट आया हुआ है। 

जून महीने में कोर सेक्टर का ग्रोथ चार साल में सबसे कम रहा है। 0.2 प्रतिशत। मई में इस सेक्टर का ग्रोथ रेट 4.3 प्रतिशत था। एक महीने में 4.3प्रतिशत से 0.2 प्रतिशत आने का मतलब है बिजली की गति से फैक्ट्रियां ठंडी पड़ गई होंगी। 50 महीने में यह सबसे अधिक गिरावट है। कोयला, कच्चा तेल, प्राकृतिक गैस, रिफाइनरी उत्पाद, खाद, स्टील, सीमेंट और बिजली उद्योग को कोर सेक्टर कहा जाता है।

विदेशी निवेशकों ने जुलाई महीने में भारतीय शेयर बाज़ार से 12,000 करोड़ निकाल लिए हैं। पिछले 9 महीने में यह सबसे अधिक है। अक्टूबर 2018 में28,921 करोड़ निकाल लिया गया था। टैक्स के अलावा यह भी कारण है कि इन निवेशकों को लगता है कि भारत की अर्थव्यवस्था की रफ्तार थम रही है। कारपोरेट की कमाई घट गई है। उपभोक्ता कम खरीदारी कर रहा है। तो वहीं, भारत के सरकारी बैंकों का एनपीए इतना बढ़ गया है कि लोन देने से बच रहे हैं।

इसके अलावा दुनिया की दो सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में ट्रेड वार चल रहा है। अमेरिका और चीन में चल रही इस लड़ाई का असर भारत पर भी पड़ रहा है। कुल मिलाकर हमारी अर्थव्यवस्था की हालत बद से बदतर है, लेकिन सरकार सिर्फ पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के सपने बेच रही है। लोगों के पास नौकरियां नहीं है, लेकिन सरकार इसे लेकर चिंतित नहीं दिखाई दे रही है। 

फिलहाल अगर इन सारे तथ्यों को छोड़ भी दें तो 2024 तक पीएम मोदी ने पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने का जो लक्ष्य रखा है उसे वर्तमान वृद्धि दर के सहारे हासिल करना काफी मुश्किल लगता है।

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