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पीएम-किसान स्वीकार! कालिया पर तकरार? : क्या देश में दो आचार संहिता लागू हैं?

सवाल उठ रहा है कि अगर चुनाव के समय देशभर में प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना लागू हो सकती है तो ओडिशा में कालिया स्कीम को क्यों रोका जा रहा है?

model code of conduct

इस समय सारी पार्टियों के लिए मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी चुनाव आचार संहिता लागू है। लेकिन भाजपा के लिए अलग से शायद मोदी कोड ऑफ कंडक्ट लागू है। एक दिन प्रधानमंत्री अचानक राष्ट्रीय टेलीविजन पर आते हैं। राष्ट्र के नाम संबोधन देने लगते हैं। राष्ट्र के नाम संबोधन ऐसा जिससे ऐसा झलकता है कि एक वैज्ञानिक सफलता के बहाने चुनावी प्रचार किया जा रहा है। विपक्ष ख़ासकर सीपीएम इसकी शिकायत चुनाव आयोग में करते हैं, जांच कमेटी बनती है लेकिन अंत में चुनाव आयोग मोदी जी को क्लीन चिट दे देता है। इसी क्रम में राहुल गांधी द्वारा न्याय स्कीम के घोषणा पर नीति आयोग के अध्यक्ष राजीव कुमार दिया गया बयान भी शमिल है। जिसमें वह पूरी तरह से भाजपा के प्रवक्ता की तरह बात करते हुए सुनाई दे रहे थे। इन मामलों से बढ़कर अभी हाल में मामला सामने आया है ओडिशा का। यहां सत्ता पर काबिज बीजू जनता दल (बीजेडी) की शिकायत है कि एक मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट है लेकिन इसे अलग-अलग पार्टियों पर अलग मानकों से लागू किया जा रहा है। भाजपा के लिए अलग मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट और अन्य पार्टियों के लिए अलग मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट।  

बीजेडी की शिकायत है कि इलेक्शन कमीशन ने आदेश दिया है कि राज्य सरकार  कालिया स्कीम की तहत राज्य में और अधिक पैसा जारी नहीं कर सकती है। दरअसल कालिया  स्कीम के तहत राज्य की सरकार सामान्य वर्ग के किसानों को साल के दो फ़सली मौसम में कुल 10 हजार रुपये और अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के नागरिकों को कुल 12500 रुपये देती है।  राज्य सरकार ने किसानों को दी जाने वाली इस सहयोग राशि को बढ़ाना तय किया था। इलेक्शन कमीशन ने राज्य की इस कोशिश को रोक दिया। बीजू जनता दल के प्रवक्ता सस्मित पात्रा ने इस पर कहा है , " कालिया ( krishak assitance and income augumentation)योजना के तहत दिए जाने वाले पैसे में बढ़ोतरी और लाभार्थियों की पहचान मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट के लागू होने से पहले ही कर ली गई थी। मतलब  इससे जुड़े सारे प्रशानिक स्वीकृति को मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट से पहले जारी कर लिया गया।  इसलिए चुनाव आयोग द्वारा कालिया स्कीम के लिए जरूरी फंड को रोका जाना माने जाने योग्य आदेश नहीं है।" इस तरह से यह बात सही है तो यह साफ़ जाहिर होता है कि ओडिशा की राज्य सरकार द्वारा  किसी भी तरह के मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट का उल्लंघन नहीं किया जा रहा है।  क्योंकि नियम यह है कि मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट लागू होने के बाद कोई भी सरकार न तो किसी नई योजना की शुरुआत कर सकती है और न ही किसी पुरानी जनकल्याण से जुड़ी योजना के पैसे में बढ़ोतरी कर सकती है। सस्मित पात्रा यह भी कहते हैं  कि अगर कालिया स्कीम के बहुत बाद में आने वाली प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना लागू हो सकती है तो कालिया  स्कीम को क्यों रोका जा रहा हैओडिशा के मुख्यमंत्री  नवीन पटनायक तो यहां तक कहते हैं कि कालिया स्कीम के तहत एक भी किसान नहीं छूटेंगे और इसे लागू करने से हमें कोई भी नहीं रोका सकता है।  

यहां यह गौर करने वाली बात है कि प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना (पीएम-किसान) की घोषणा इसी साल बजट में की गयी थी।   इस बजट में मोदी सरकार ने वादा किया था  कि हेक्टेयर से कम जोत वाले किसानों को 6000 रुपये सालाना की डायरेक्ट सहायता 2000 रुपये की तीन किस्तों में दी जाएगी। इसके लिए सरकार ने इस साल के लिए 75000 करोड़ रुपये की व्यवस्था की है। और इसे बैक डेट में जाकर लागू किया। यानी बजट प्रस्तुत किया 1 अप्रैल 2019 से 31 मार्च 2020 के लिए  और योजना को लागू किया  2018 की दिसंबर की पहली तारीख से।  जिसका साफ़ मतलब है कि वह किसी भी तरह से किसानों के खातें में इस साल की पहली किस्त पहुंचाकर  चुनावी फायदा उठानी चाहती थी। यहां यह समझने वाली बात है कि यह सहायता सभी किसानों को नहीं मिलेगी।  किसानों का एक बहुत बड़ा वर्ग भूमिहीन है। आदिवासी किसानों की जमीन पट्टे पर ही है।  इनके पास जमीन का मालिकाना हक नहीं है। बहुत सारे किसान  दूसरे के जोत में जाकर काम करता है।  उसे इस योजना कोई फायदा नहीं होने वाला है। अभी तक सरकार के पास ऐसे कोई आंकड़ा नहीं है जिससे यह पता चला कि हेक्टयेर से कम जोत कितने हैं। सच्चाई यह है कि  इन सबसे निपटने के लिए सरकार के पास केवल महीने थे और तीन महीने में उसे इस योजना पर तक़रीबन 20 हजार करोड़ खर्च करने थे। सरकार ने इस योजना की पहली किस्त भी जारी कर दी है।  इसे सही से खंगाला जाए तो इसमें कई तरह के फर्जीवाड़े मिल सकते हैं।  लेकिन इसपर किसी भी प्रशासनिक तबके ने कोई भी आपत्ति नहीं जताई लेकिन ओडिशा के कालिया स्कीम पर चुनाव आयोग आपत्ति जता रहा है, जिस वजह से उसके ऊपर पक्षपाती रवैया अपनाने का आरोप लग रहा है।

इस पूरे मसले में एक पक्ष यह भी है कि क्या मॉडल कोड ऑफ़ कंडक्ट के लागू हो जाने के बाद डायरेक्ट बेनिफिट ट्रंसफर के तहत किसी योजना के जरिये लोगों तक नकद पैसा पहुंचना उचित है?  इस पर एक लम्बी बहस हो सकती है।  लेकिन अगर एक योजना के जरिये नकद दिया जा रहा है तो दूसरी योजना के तहत क्यों नहीं!

 

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