पत्रकार रवीश कुमार मैगसेसे से हुए सम्मानित, कहा— पुरस्कार से खुश हूं लेकिन मीडिया की हालत से उदास
मनीला: चर्चित भारतीय पत्रकार रवीश कुमार को सोमवार को एशिया का नोबेल पुरस्कार माने जाने वाले रैमॉन मैगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि भारत का मीडिया ‘संकट’ में है और यह संकट ढांचागत है, अचानक नहीं हुआ है।
रैमॉन मैगसेसे अवार्ड के प्रशस्ति पत्र में कहा गया है कि एनडीटीवी इंडिया के मैनेजिंग एडिटर और भारत के प्रभावशाली टीवी पत्रकारों में एक कुमार (44) अपनी खबरों में आम लोगों की समस्याओं को तरजीह देते हैं।
फिलीपीन की राजधानी मनीला में पुरस्कार ग्रहण करते हुए कुमार ने कहा कि भारतीय मीडिया संकट की स्थिति में है और यह संकट अचानक या आकस्मिक नहीं हुआ है बल्कि ढांचागत तरीके से इसे अंजाम दिया गया। पत्रकार होना अब व्यक्तिगत प्रयास हो गया है। मीडिया के संकट को समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
कुमार ने कहा, ‘मैं खुद के लिए तो खुश हूं, लेकिन जिस पेशे की दुनिया से आता हूं, उसकी हालत उदास भी करती है।’ कुमार ने अपने संबोधन में कहा कि पत्रकार होना अब व्यक्तिगत प्रयास हो गया है, क्योंकि समाचार संगठन और उनके कॉरपोरेट एक्जीक्यूटिव अब ऐसे पत्रकारों को नौकरियां छोड़ देने के लिए मजबूर कर रहे हैं, जो समझौता नहीं करते। फिर भी यह देखना हौसला देता है कि ऐसे और भी हैं, जो जान और नौकरी की परवाह किए बिना पत्रकारिता कर रहे हैं।
कुमार ने पांच अगस्त को अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को खत्म किए जाने के बाद कश्मीर के हालात और घाटी में संचार पर पाबंदी के विषय पर भी अपनी राय रखी। उन्होंने कहा, ‘जब कश्मीर में इंटरनेट बंद किया गया, पूरा मीडिया सरकार के साथ चला गया, लेकिन कुछ ऐसे भी थे, जिन्होंने सच दिखाने की हिम्मत की, और ट्रोलों की फौज का सामना किया।’
कुमार ने कहा, ‘हर जंग जीतने के लिए नहीं लड़ी जाती... कुछ जंग सिर्फ इसलिए लड़ी जाती हैं, ताकि दुनिया को बताया जा सके, कोई है, जो लड़ रहा है। मैं उन सभी पत्रकारों की ओर से इस सम्मान को स्वीकार करता हूं।’
रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार एशिया का सर्वोच्च सम्मान है और हर साल एशिया के लोगों या संगठनों को दिया जाता है। बिहार के जितवारपुर गांव में जन्मे कुमार 1996 में नयी दिल्ली टेलीविजन नेटवर्क (एनडीटीवी) से जुड़े थे और रिपोर्टर के तौर पर काम करते हुए आगे बढ़े।
रवीश कुमार चैनल पर ‘प्राइम टाइम’ नामक समाचार कार्यक्रम करते हैं। कुमार समेत पांच लोगों को पुरस्कार देने की घोषणा की गयी थी। वर्ष 2019 के रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार के अन्य विजेताओं में म्यांमा से को स्वे विन, थाइलैंड से अंगखाना नीलापिजीत, फिलीपीन से रेमोंडो पुजेंटे कयाबिब और दक्षिण कोरिया से किम जोंग की का नाम शामिल है।
फिलीपीन के सर्वाधिक प्रतिष्ठित राष्ट्रपति रहे रेमन डेल फिएरो मैगसायसाय के नाम पर 1957 में इस पुरस्कार की शुरुआत की गयी थी। द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद वह देश के तीसरे राष्ट्रपति थे।
आपको बता दें कि पिछले दो दशकों में एनडीटीवी में अलग-अलग भूमिकाओं में और अलग-अलग कार्यक्रमों के जरिए रवीश कुमार ने पत्रकारिता के नए मानक बनाए हैं। एक दौर में रवीश की रिपोर्ट देश की सबसे मार्मिक टीवी पत्रकारिता का हिस्सा रहा। बाद में प्राइम टाइम की उनकी बहसें अपने जन सरोकारों के लिए जानी गईं। जब सत्ता ने उनके कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया तो रवीश ने जैसे प्राइम टाइम को ही नहीं, टीवी पत्रकारिता को ही नई परिभाषा दे डाली।
सरकारी नौकरियों और इम्तिहानों के बहुत मामूली समझे जाने वाले मुद्दों को, शिक्षा और विश्वविद्यालयों के उपेक्षित परिसरों को उन्होंने प्राइम टाइम में लिया और लाखों-लाख छात्रों और नौजवानों की नई उम्मीद बन बैठे। जिस दौर में पूरी की पूरी टीवी पत्रकारिता तमाशे में बदल गई है- राष्ट्रवादी उन्माद के सामूहिक कोरस का नाम हो गई है, उस दौर में रवीश की शांत-संयत आवाज हिंदी पत्रकारिता को उनकी गरिमा लौटाती रही है।
मनीला में रेमॉन मैगसेसे सम्मान से पहले अपने व्याख्यान में उन्होंने कहा कि एक डरा हुआ नागरिक मरा हुआ पत्रकार पैदा करता है।
रेमॉन मैगसेसे अवार्ड लेने के बाद रवीश कुमार ने अंग्रेजी में अपना वक्तव्य दिया। उस वक्तव्य का हिंदी तर्जुमा इस तरह है। जब से रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार की घोषणा हुई है मेरे आस पास की दुनिया बदल गई है। जब से मनीला आया हूं आप सभी के सत्कार ने मेरा दिल जीत लिया है। आपका सत्कार आपके सम्मान से भी ऊंचा है। आपने पहले घर बुलाया, मेहमान से परिवार का बनाया और तब आज सम्मान के लिए सब जमा हुए हैं।
आमतौर पर पुरस्कार के दिन देने वाले और लेने वाले मिलते हैं और फिर दोनों कभी नहीं मिलते हैं। आपके यहां ऐसा नहीं है। आपने इस अहसास से भर दिया है कि ज़रूर कुछ अच्छा किया होगा तभी आपने चुना है। वर्ना हम सब सामान्य लोग हैं। आपके प्यार ने मुझे पहले से ज्यादा ज़िम्मेदार और विनम्र बना दिया है।
रवीश कुमार ने कहा कि दुनिया असमानता को हेल्थ और इकोनॉमिक आधार पर मापती है, मगर वक्त आ गया है कि हम ज्ञान असमानता को भी मापें।
आज जब अच्छी शिक्षा खास शहरों तक सिमटकर रह गई है, हम सोच भी नहीं सकते कि कस्बों और गांवों में ज्ञान असमानता के क्या खतरनाक नतीजे हो रहे हैं। जाहिर है कि उनके लिए व्हॉट्सऐप यूनिवर्सिटी का प्रोपेगंडा ही ज्ञान का स्रोत है। युवाओं को बेहतर शिक्षा नहीं पाने दी गई है, इसलिए हम उन्हें पूरी तरह दोष नहीं दे सकते। इस संदर्भ में मीडिया के संकट को समझना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। अगर मीडिया भी व्हॉट्सऐप यूनिवर्सिटी का काम करने लगे, तब समाज पर कितना बुरा असर पड़ेगा।
अच्छी बात है कि भारत के लोग समझने लगे हैं। तभी मुझे आ रही बधाइयों में बधाई के अलावा मीडिया के 'उद्दंड' हो जाने पर भी चिंताएं भरी हुई हैं। इसलिए मैं खुद के लिए तो बहुत ख़ुश हूं, लेकिन जिस पेशे की दुनिया से आता हूं, उसकी हालत उदास भी करती है।
क्या हम समाचार रिपोर्टिंग की पवित्रता को बहाल कर सकते हैं। मुझे भरोसा है कि दर्शक रिपोर्टिंग में सच्चाई, अलग-अलग प्लेटफॉर्मों और आवाज़ों की भिन्नता को महत्व देंगे। लोकतंत्र तभी तक फल-फूल सकता है, जब तक ख़बरों में सच्चाई हो। मैं रैमॉन मैगसेसे पुरस्कार स्वीकार करता हूं। इसलिए कि यह पुरस्कार मुझे नहीं, हिन्दी के तमाम पाठकों और दर्शकों को मिल रहा है, जिनके इलाक़े में ज्ञान असमानता ज्यादा गहरी है, इसके बाद भी उनके भीतर अच्छी सूचना और शिक्षा की भूख काफी गहरी है।
बहुत से युवा पत्रकार इसे गंभीरता से देख रहे हैं। वे पत्रकारिता के उस मतलब को बदल देंगे, जो आज हो गया है। मुमकिन है, वे लड़ाई हार जाएं, लेकिन लड़ने के अलावा दूसरा रास्ता नहीं है। हमेशा जीतने के लिए ही नहीं, यह बताने के लिए भी लड़ा जाता है कि कोई था, जो मैदान में उतरा था।
(भाषा के इनपुट के साथ)
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