यूपी: प्रयागराज सामूहिक हत्याकांड में पुलिस की जांच पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?
प्रयागराज के गोहरी हत्याकांड में पुलिस ने हिरासत में लिए गए अगड़ी जाति के सभी आठ लोगों को छोड़ दिया है। अब पुलिस ने इसी मामले में तीन दलित युवकों को गिरफ्तार किया है। हालांकि, पुलिस ने गिरफ्तार किए गए तीन में से दो आरोपियों को जल्द छोड़ने की बात कही है। मीडिया रिपोर्टे्स के अनुसार, एक आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। उसका नाम पवन सरोज है और उस पर ऊपर हत्या और रेप का आरोप है।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस मामले में जिस दलित युवक को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, उसकी उम्र 19 साल है और वह मजदूरी करता है। पुलिस ने उसे 27 नवंबर को हिरासत में लिया था। वहीं पुलिस ने उसके साथ, जिन दो अन्य दलित युवकों को हिरासत में लिया था, वो 17 और 20 साल के हैं। पुलिस को उनके खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला है।
बता दें कि बीते रविवार, 28 नवंबर को गोहरीकांड का खुलासा करने का दावा करने वाले आला अधिकारियों ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया था कि सनकी आशिक पवन ने एकतरफा प्यार में पूरे परिवार को मौत के घाट उतारा था। लेकिन पुलिस के इस दावे पर कई सवाल उठ रहे हैं। मसलन अकेले पवन ने कैसे पूरे परिवार को मार डाला। पवन के साथ और कितने लोग शामिल थे। हत्यारे कैसे घर में घुसे, युवती के साथ कितने लोगों ने दुष्कर्म किया। हत्या की साजिश कैसे रची गई।पवन घंटों पुलिस की हिरासत में रहा, लेकिन पुलिस आरोपी से इनमें से किसी भी सवाल का जवाब नहीं उगलवा सकी।
#थाना_फाफामऊ पुलिस, एसओजी व सर्विलांस की संयुक्त टीम द्वारा मु0अ0सं0- 256/21 धारा 147/148/149/302/376डी भादवि, 3/4 पाक्सो एक्ट व 3(2)V SC/ST Act से सम्बन्धित अभियुक्त पवन कुमार सरोज को गिरफ्तार करने के सम्बन्ध में श्रीमान् @ADGZonPrayagraj महोदय द्वारा दी गयी बाइट- 1/2@Uppolice https://t.co/xqK4PNELU1 pic.twitter.com/NG87fgOxKH
— PRAYAGRAJ POLICE (@prayagraj_pol) November 28, 2021
इस मामले में पुलिस का यह भी कहना है कि उन्हें आरोपी के खिलाफ ज्यादा सबूत नहीं मिले हैं। फिलहाल पुलिस इस मामले में डीएनए सैंपल का इंतजार कर रही है। पुलिस ने बताया कि पीड़िता नाबालिग नहीं थी इसलिए अब केस से पॉक्सो ऐक्ट की धारा हटा दी है।
एक बयान में प्रयागराज एडीजी ने कहा, “19 साल का आरोपी उस लड़की पर नजर रखता था, जिसकी हत्या और बलात्कार हुआ। वो उसको छेड़ता था। आरोपी की तरफ से भेजे गए आखिरी मैसेज और घटनाक्रम के आधार पर उसे गिरफ्तार किया गया है।”
पुलिस पर अगड़ी जाति के लोगों को बचाने का आरोप
हालांकि, मीडिया से बातचीत में मृतकों के घरवालों ने पुलिस के ऊपर फिर से अगड़ी जाति से आने वाले लोगों को बचाने के आरोप लगाए हैं। परिवार के एक सदस्य ने कहा कि एक 19 साल का लड़का चार लोगों की हत्या कैसे कर सकता है। और अगर उसके साथ और लोग थे, तो वो कहां हैं और कौन हैं। और अगर लड़के का लड़की से कोई मामला था तो वो केवल उसकी हत्या करता, बाकी लोगों को क्यों मारता।
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वहीं आरोपी दलित युवक की बहन ने बताया, “पुलिस अपनी रिपोर्ट में कह रही है कि वो लड़की पर नजर रख रहा था। लेकिन जिस दिन हत्या हुई, उस दिन तो वो घर पर था। हमें दलित और गरीब होने की वजह से निशाना बनाया जा रहा है। पुलिस सवर्ण जाति से आने वालों को बचाना चाहती है, इसलिए मेरे भाई को निशाना बना रही है।”
आरोपी की मां ने भी कहा कि उसका बेटा ऐसा नहीं कर सकता है। वहीं मृतकों के घरवालों ने अपनी सुरक्षा को लेकर चिंता जताई है। उनका कहना है कि क्योंकि अब दूसरी जाति से वास्ता रखने वाले बाहर आ गए हैं, वो उनसे बदला लेने आएंगे।
बता दें कि इससे पहले भी मृतक परिवार के परिजनों ने पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए थे। मृतक की भाभी ने पुलिस की अभियुक्तों के साथ मिलीभगत का आरोप लगते हुए मौक़े पर मौजूद मीडिया को परिवार के साथ कुछ दिन पहले हुई मारपीट की घटनाओं की जानकारी दी थी। उनका कहना था कि पुलिस आरोपियों की मदद कर रही है। इसके बाद दो पुलिसवालों को सस्पेंड कर दिया गया था।
उन्होंने कहा था, "इन लोगों से हम लोगों की रंजिश रही है। मुक़दमा हुआ, एससी-एसटी का मामला बना, घर में घुसने का केस हुआ, लेकिन पुलिस ने कोई कार्रवाई नहीं की। हम लोगों की कोई सुनवाई नहीं हुई। 21 सितम्बर को गेट तोड़ कर घर में घुस कर हम लोगों को मारा गया। फिर भी तुरंत मुक़दमा नहीं बना। एक हफ़्ते बाद मुक़दमा बना और उसमे दोनों तरफ़ का मुक़दमा बनाया गया। पूरी लापरवाही पुलिस की है।"
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दलितों के खिलाफ अपराध का बढ़ता ग्राफ
गौरतलब है कि इस सामूहिक हत्याकांड खुलासे के कई दिन बाद भी पुलिस आपसी रंजिश हत्या, प्यार और साज़िश की सभी कड़ियों को जोड़ने में नाकाम नज़र आ रही है। कानून व्यवस्था को लेकर विपक्ष के लगातार हमलावर होने के बावजूद सरकार फिलहाल चुप्पी साधे हुए है। राज्य में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं, ऐसे में एक के बाद एक घटित हो रही ऐसी घटनाएं सरकार के 'न्यूनतम अपराध' और 'बेहतर कानून व्यवस्था' के दावों पर सवालिया निशान खड़ा कर रही हैं।
अगर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो यानी एनसीआरबी यानी के आंकड़ें देखें तो साल 2020 में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अपराध में बढ़ोत्तरी हुई है। इन दो समुदायों के खिलाफ यूपी और मध्य प्रदेश में अपराध के सबसे ज्यादा मामले सामने आए हैं। एनसीआरबी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक पिछले साल देशभर में अनुसूचित जातियों यानी एससी के खिलाफ किए गए अपराधों के लिए 50,291 मामले दर्ज किए गए, जो साल 2019 की तुलना में इन अपराधों में 9.4 प्रतिशत की बढ़ोतरी है। वहीं, अनुसूचित जनजातियों (एसटी) के खिलाफ अपराध करने के लिए कुल 8,272 मामले दर्ज किए गए, जो 2019 की तुलना में 9.3% (7,570 मामले) की वृद्धि दर्शाते हैं। दर्ज की गई अपराध दर 2019 में 7.3 से बढ़कर 2020 में 7.9 हो गई।
राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में साल 2020 में एससी के खिलाफ हुए अपराधों के सबसे अधिक 12,714 मामले यानी कुल 25.2 प्रतिशत उत्तर प्रदेश से थे। जबकि साल 2019 के दौरान भारत में अनुसूचित जाति/जनजाति (एससी/एसटी) समुदाय के लोगों के खिलाफ अपराध के कुल 45,935 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 11,829 मामले अकेले उत्तर प्रदेश में दर्ज किए गए थे। ये आंकड़े दर्शाते हैं कि साल दर साल राज्य में दलितों के खिलाफ अपराध के मामले बढ़ते ही जा रहे हैं।
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