रेलगाड़ियों में ड्राईवर के लिए अबतक शौचालय नहीं!
भारत में रेलगाड़ियों के ड्राइवरों को 'लोको पायलट' कहा जाता है, उन्हें पायलट भले ही कहा जाता हो, परन्तु अब तक वे शौचालय की व अन्य बुनियादी सुविधाओं से वंचित हैंI इनके कंधे पर सभी लोगों की सुरक्षित यात्रा का भार होता हैI फिर भी रेलगाड़ियों के ड्राईवरों को हर मौसम में तकलीफों का सामना करना पड़ता हैI परन्तु इन सब दिक्कतों के बाद भी लोको पायलट सुविधाओं के भारी आभाव में भी अपना कार्य करते हैंI लोको पायलट की इन समस्या और इंजन में व्याप्त असुविधाओं को दूर करने में रेलवे प्रशासन अब तक नाकाम साबित हुआ है या कहें वो इन्हें हल करना ही नहीं चाहतेI
सवारी रेलगाड़ियों में लगभग एक से डेढ़ हज़ार यात्री एक ट्रेन में सफर करते हैं और आमतौर पर एक्सप्रेस व इंटरसीटी ट्रेनों में 15 से 20 बोगियाँ होती हैंI इन में सवार सभी यात्रियों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी रेलगाड़ी के इंजन में कार्यरत लोको पायलट व सहायक लोको पायलट अर्थात रेल ड्राइवर की होती हैI
रेलगाड़ी के ड्राइवर की नौकरी जंग लड़ने समान है
रेलगाड़ी ड्राइवरों की यूनियन ऑल इण्डिया रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के उप महासचिव ए०के०सिंह ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि, “आज के समय में कम से कम 70 से 80 हज़ार 'लोको पायलट' काम कर रहे हैंI परन्तु इनके लिए शौचालय नहीं हैंI” लोको पायलट बताते हैं कि "इंजन में टॉयलेट नहीं होने से हमे काफ़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता हैI जब भी हमें नेचुरल कॉल आने पर नियंत्रण रखना पड़ता हैI उन्हें स्टेशन आने या फिर ड्यूटी खत्म करने का इंतजार करना होता हैI कभी-कभी ट्रेन रोक कर शौच करने को मजबूर होते हैंI” आगे वो बताते हैं कि “इस वजह से अधिकतर ड्राईवर 40 की उम्र होते होते कई बीमारियों के शिकार हो जाते हैंI"
सिंह कहते हैं कि, "एक तरफ़ तो प्रधानमंत्री खुले में शौच रोकने के लिए स्वच्छता अभियान चला रहे हैं, हज़ारों करोड़ खर्च किये जा रहे हैंI ट्रेन रोककर वहीं-कहीं हम ड्राइवरों को खुले में शौच करना जाना पड़ता है”I
ऑल इण्डिया रनिंग स्टाफ एसोसिएशन के मुताबिक है लोको पायलट की नौकरी के नियम के अनुसार उन्हें इंजन से दूर जाने की इजाज़त नहीं होती हैI ऐसे में वे शौच कैसे जाएंगे इस सवाल का कोई जवाब नहीं देताI
इन सब माँगों को लेकर ट्रेन ड्राइवर की यूनियन काफी समय से माँग कर रही थीI सरकार ने भी 2016 में ये दाव किया था कि वो इंजनो में बयोमैट्रिक टॉयलेट लगाए जाएंगे तो ड्राईवर में एक उम्मीद जगी कि 150 साल बाद ही सही ही, उन्हें अब इस नर्क के वातावरण से मुक्ति मिलेगीI परन्तु ट्रेन ड्राइवरों का कहना है कि यह भी प्रधानमंत्री का एक जुमला बन कर ही रह गया है, सच्चाई यह है कि आजतक किसी ट्रेन में ऐसी कोई भी सुविधा नहीं है, आज भी ट्रेन ड्राइवर को नौकरी पर शौच आना किसी बुरे सपने से कम नहीं हैI
यात्रियों को कैसे मिली थी शौचालय की सुविधा
ड्राइवरों को तो 150 साल से भी अधिक के इंतज़ार करने पर भी अभी तक शौचालय की सुविधा नहीं मिली है, परन्तु यात्रियों को शौचालय की सुविधा एक सदी पहले ही मिल गई थीI इसके पीछे भी एक रोचक कहानी है–
एक ख़त आज भी दिल्ली के रेल संग्रहालय में हैI जिसके बाद ही यात्रियों को शौचालय की सुविधा मिली थीI पश्चिम बंगाल एक यात्री अखिल चंद्र सेन ने 1909 में रेलवे विभाग को एक अनोखा पत्र लिखा था जिसमें उन्होंने अपना दर्द बयाँ किया थाI
अखिल चंद्र सेन का पत्र इस प्रकार था:
मान्यवर,
"मैं रेलगाड़ी से अहमदपुर स्टेशन पहुंचाI कटहल खाने से मेरा पेट फूला गया थाI इसलिए मैं शौच के लिए चला गया, मैं फ़ारिग हो ही रहा था कि गार्ड ने सीटी बजा दी, मैं एक हाथ में लोटा और दूसरे में धोती थाम भागा, मैं गिरते पड़ते भाग रहा था और इसे वहाँ स्टेशन पर मौजूद औरतों और मर्दों सबने देखा...मैं अहमदपुर स्टेशन पर ही रह गयाI यह बहुत ग़लत बात है, अगर यात्री शौच के लिए जाते हैं तब भी गार्ड कुछ मिनटों के लिए रेलगाड़ी को नहीं रोकते? इसलिए मैं आपसे अनुरोध करता हूँ कि गार्ड पर भारी जुर्माना लगाया जाएI वर्ना यह ख़बर मैं अख़बार को दे दूंगाI"
ये ही वो पत्र था जिसके बाद यात्री ट्रेनों में शौचालय की सुविधा मिली थीI अब सरकार यात्री ट्रेनों में पुराने गंदे टॉयलेट की जगह नए 'बायो टॉयलेट' लगाने की बात कर रही हैI
परन्तु रेल इंजन में नए शौचालय बनाना काफी मुश्किल और खर्चीला है, इसके साथ ही पुराने इंजनों में जगह नहीं, इसलिए रेलवे के हज़ारों ड्राइवरों के लिए शौचालय की सुविधा मिल पाना बहुत ही टेढ़ी खीर लग रहा हैI
शौचालय के अलावा भी ड्राईवरों की कई और दिक्कते हैं
ऑल इण्डिया रनिंग स्टाफ एसोसिएशन उप महासचिव ए०के०सिंह ने कहा कि, “शौचालय के अलावा भी कई और दिक्कते हैंI उन्हें बताया कि 2003 में खन्ना कमेटी की रिपोर्ट रेलवे की सुरक्षा को लेकर आई थीI जिसमें ये साफतौर पर माना है कि ट्रेन ड्राइवरों जिस हालत में कार्य करते है बहुत ही खराब है उसे सुधारना बहुत जरूरी हैI”
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि बिजली इंजन हो या फिर डीज़ल इंजनI सभी में सुविधा के नाम पर कुछ भी नहीं है, वहाँ केवल दो कुर्सियां और दो छोटे पंखे लगे हैंI जिस कारण गर्मी के दिनों में लोको पायलट की ड्यूटी और असहनीय हो जाती हैI क्योंकि बाहरी वातावरण का तापमान और इंजन की गर्मी से लोको पायलट केबिन का तापमान बाहरी तापमान से पांच डिग्री सेल्सियस अधिक रहता हैI
भीषण गर्मी से बचने के लिए सिर्फ दो छोटे पंखे लगे हैं, जो किसी भी सूरत में पर्याप्त नहीं हो सकतेI वहीं, बरसात में अगर सफर के दौरान तेज बारिश हो जाए, तो कई बार छत से पानी टपकने लगता हैI इसके साथ ही खिड़की से भी पानी के छींटे आते हैंI ऐसी स्थिति में लोको पायलटों का इंजन के भीतर खड़ा होकर रेलगाड़ी चलाना बहुत ही कठिन हो जाता हैI
आगे सिंह कहते हैं कि “इसको लेकर खन्ना कमेटी ने कई सुझाव दिए थे उसमें सबसे मुख्य यह था कि इंजन के केबिन में AC का लगाना अत्यंत ज़रूरी हैI उसने सरकार को निर्देशित किया था कि 10 वर्षों के भीतर सभी इंजनो में AC लगाने के लिए कहा था, परन्तु ये समय 2013 में ही खत्म हो गया थाI परन्तु आज भी भरतीय रेल के अधिकांश इंजनों में AC नहींI देश में करीब 10,500 इंजन हैं, उसमें से मात्र केबल 500 से 600 इंजनो में ही AC लगा हैI ये दिखाता है कि सरकार रेलगाड़ी के ड्राईवर की सुरक्षा के प्रति कितनी गंभीर हैI
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