रिलायंस द्वारा एनडीटीवी पर मानहानि का मुक़दमा, क्या डराने की है कोशिश ?
18 अक्टूबर को अनिल अम्बानी के रिलायंस ग्रुप ने एनडीटीवी को मानहानि का नोटिस भेजा। एनडीटीवी के मुताबिक उनपर अनिल अम्बानी की कम्पनी द्वारा 10000 करोड़ की मानहानि का मुक़दमा ठोका गया है। एनडीटीवी ने इस मुकदमें के नोटिस की जानकारी शुक्रवार को बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज और नेशनल स्टॉक एक्सचेंज को दी। यह मुक़दमा एनडीटीवी के 29 सितम्बर को प्रसारित हुए "ट्रुथ वर्सेज हाइप " के एपिसोड पर किया गया है , जिसमें राफेल समझौते की उठाया गया था। इस स्टोरी का नाम 'आइडियल पार्टनर इन राफेल डील' था। यह मामला अहमदाबाद के एक कोर्ट में चलेगा जिसकी पहली सुनवाई 26 अक्टूबर को होगी।
इसके जवाब में एनडीटीवी ने एक बयान जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि चैनल किसी भी प्रकार की मानहानि से इंकार करता है और इस मामले के सभी दस्तावेज़ कोर्ट में पेश करेगा। चैनल ने कहा है कि यह साफ़ तौर पर मीडिया को उसका काम करने से रोकने का प्रयास है। जिससे मीडिया इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर सवाल न कर सके और जनता को जवाब न मिल सके।
एनडीटीवी ने यह भी कहा है कि उन्होंने इस मामले में एक संतुलित दृश्टिकोण रखते हुए बहस कराई थी। इसमें मुद्दे के सभी आयामों को दिखाया गया था। चैनल का कहना है कि उन्होंने इस शो के लिए रिलायंस के अधिकारियों से भी संपर्क करने का प्रयास किया था। लेकिन बार बार कोशिश करने पर भी उनकी तरफ जवाब नहीं मिला। यह बयान इस बात को भी रखता है कि एनडीटीवी ने इस मामले के जो तथ्य पेश किये हैं वह और भी कई चैनलों पर दिखाए गए हैं।
राफेल समझौता आज के दौर का सबसे बड़ा घोटाला मना जा रहा है। यह एक बड़े पूंजीपति घराने को केंद्र सरकार फायदा पहुँचाने का सौदा दिखाई पड़ रहा है। जिसे सरकार लगातार दबाने का प्रयास कर रही है।
दरअसल राफेल समझौता भारत और फ्रांस के की कम्पनियों के बीच हुआ एक समझौता है जिसमें दोनों देशों की सरकारें शामिल थीं। कांग्रेस के समय 2012 में भारतीय वायु सेना के लिए फ्रांस की डासॉल्ट कंपनी से 126 राफेल विमान खरीदने का निर्णय हुआ। जिसमें से 108 विमान भारत में बनाये जाते और बाकी के बनी बनाई हालत में मिलते। इसमें टेंडर निकाला गया और सरकारी कम्पनी एचऐएल (हिन्दुस्तान एरोनॉटिक्स लिमेटिड़) को यह काम मिला जो कि पहले भी वायु सेना के लिए विमान बनाती रही है। लेकिन अप्रैल 2015 में प्रधान मंत्री मोदी के दौरे के बाद इस समझौते को ख़त्म कर दिया गया। इसके जगह नया समझौता किया गया जिसमें 36 विमान बानी बनाई हालत में लिए जाने की बात हुई। इसके साथ ही फ्रेंच कम्पनी दासौल्ट के साथ इस समझौते में अनिल अम्बानी की रिलायंस डिफेन्स को "ऑफ सेट पार्टनर " बनाया गया और सरकारी कम्पनी एचऐएल को समझौते से बाहर कर दिया गया।इस समझौते के तहत अनिल अम्बानी की कंपनी को 20000 करोड़ रुपये का कॉन्ट्रैक्ट मिला।
22 सितम्बर को इस मुद्दे पर फ्रांस के पूर्व प्रधान मंत्री होलांद ने कहा कि समझौते में उन्हें कम्पनी चुनने का मौका नहीं दिया गया। साथ ही उन्होंने आरोप लगाया कि रिलायंस की कम्पनी का नाम खुद प्रधानमंत्री मोदी ने दिया। इसके बाद समझौते पर गंभीर सवाल उठने लगे हैं। खासकर तब जब रिलायंस की कम्पनी कुछ ही दिन पहले बानी थी विमान बनाने का उन्हें कोई अनुभव नहीं है। इसके साथ ही बताया जा रहा है कि इस पूरे समझौते की कीमत पहले के 126 विमान वाले समझौते से ज़्यादा है। यही वजह है कि यह मुद्दा सुर्ख़ियों में बना हुआ है।
हमें याद रखना होगा कि पिछले कुछ समय में सत्ता द्वारा मीडिया चैनलों का मुँह बंद करने के कई प्रयास हुए हैं। 11 अक्टूबर 2018 को ऑनलाइन न्यूज़ वेबसाइट क्विंट के संस्थापक राघव बहल के घर आयकर विभाग द्वारा छापे मारे गए। इसे सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाने वालों को खामोश करने के प्रयास की तरह देखा गया। इसी तरह पिछले साल जून में द वायर और इकनोमिक एंड पोलिटिकल वीकली (ईपीडब्लू) में छपे परंजॉय गुहा ठाकुरता के एक लेख के चलते पूँजीपति गौतम अदानी ने उनपर मानहानि का मुक़दमा ठोक दिया था। यह लेख नरेंद्र मोदी द्वारा गौतम अदानी की कम्पनी को 500 करोड़ रुपये का फायदा पहुँचाने पर था। मुकदमें का नोटिस मिलने के बाद ईपीडब्लू ने इस लेख को हटा दिए लेकिन द वायर ने नहीं। 28 जुलाई 2018 में कोर्ट ने इस मुकदमें को ख़ारिज करते हुए कहा कि इसमें मानहानि का कोई मामला नहीं बनता। इसी तरह द वायर में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के बेटे जय शाह की संपत्ति बढ़ौतरी पर 8 अक्टूबर 2017 को छपे एक लेख पर भी 100 करोड़ की मानहानि का मुक़दमा जय शाह (अमित शाह के बेटे ) द्वारा ठोका गया है। यह सभी उदहारण इसी ओर इशारा कर रहे हैं कि मीडिया को मानहानि के मुकदमों और दूसरे हथकंडों के ज़रिये दबाने का प्रयास तेज़ होता जा रहा है ।
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