Skip to main content
xआप एक स्वतंत्र और सवाल पूछने वाले मीडिया के हक़दार हैं। हमें आप जैसे पाठक चाहिए। स्वतंत्र और बेबाक मीडिया का समर्थन करें।

सीबीआई की अंदरूनी लड़ाई: संस्थाओं की बर्बादी की कहानी

क्या सीबीआई में हो रहे तमाशे की जड़ में ररफाल है या सरकार के अनुसार सीबीआई के दो आला अधिकारियों की लड़ाई है?
CBI
Image Courtesy: The Hindu

भारत की संस्थाओं का ढांचा ऐसा है कि सरकारें संस्थाओं को नियंत्रित करती हैं और संस्थाएं सरकारों कोI सरकार और संस्थाएं मिलकर जनता की भलाई के लिए काम करती हैंI लेकिन इस समय जनता की भलाई नहीं हो रही हैI बल्कि सरकारें संस्थाओं को बर्बाद कर रही है और संस्थाओं के चापलूस अधिकारी सरकारों कोI साथ में संस्थाओं को चलाने वाले अधिकारी इतने उलझ चुके हैं कि सरकारों से स्वतंत्र होकर काम कर पाए, ऐसा भी असम्भव लगता है और इन दोनों का गठजोड़ जनता की भलाई कर पाए, यह भी असम्भव लगता हैI

सीबीआई के इतिहास में ऐसा पहली बार हो रहा है कि दो आला अधिकारी एक-दूसरे से लड़ रहे हैं और लड़ाई ऐसी है कि संस्थाओं की ढहती दीवार साफ तौर पर नजर आ रही है और सरकार द्वारा संस्थाओं की गर्दन मरोड़ने वाला हाथ भी साफ़ तौर पर दिख रहा हैI हुआ यह है  कि गुजरात काडर के अधिकारी राकेश अस्थाना के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के मामले में पहले से ही सीबीआई जाँच चल रही थी। इसके बावजूद केंद्र सरकार ने सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के लिखित विरोध के बाद भी अस्थाना को विशेष निदेशक बना दियाI जबकि नियम यह होता है कि स्पेशल डायरेक्टर के चुनाव के लिए सीबीआई डायरेक्टर की सलाह को ध्यान में रखा जाता हैI लेकिन इस मामले में सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा की सलाह पर केंदीय सतर्कता आयोग द्वारा निर्धारित पैनल ने बिलकुल ध्यान नहीं दिया और अस्थाना को चुन लियाI

इसके साथ इस मामलें में ये हैरान करने वाली बात है कि जिस 'स्टर्लिंग बॉयोटेक'  मसले में भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई कर रही थी, उसी के एक आरोपी को सीबीआई का विशेष निदेशक बना दिया जाता है! "ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा" जैसी बड़ी बड़ी बातें बोलने वाले मोदी जी की आख़िर ऐसी क्या मजबूरी थी कि भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे अपने प्रिय अस्थाना को उन्होंने जबरन सीबीआई में उच्च पद पर नियुक्त कर दिया?

राकेश जी गुजरात सरकार द्वारा गठित उस एसआईटी का हिस्सा थे जिसने गोधरा कांड पर मोदी को क्लीन चिट दे डाला था। सूरत, अहमदाबाद और बड़ोदरा में पुलिस अधिकारी के तौर पर कई बड़े पदों पर रहने वाले अस्थाना प्रधानमंत्री मोदी एवं अमित शाह के करीबी माने जाते हैं। अब तक लालू यादव से लेकर माल्या, नीरव मोदी, चौकसी, मोईन क़ुरैशी जैसे कई संवेदनशील मामलों को देखने वाले अस्थाना के बचाव के लिए रातों- रात सीबीआई अधिकारीयों की बदलाव कर देना अस्थाना से लेकर भाजपा सरकार के इरादों पर कई सवाल खड़ा करती हैI

बीते 4 अक्टूबर को प्रशांत भूषण, अरुण शौरी और यशवंत सिन्हा ने 36 राफेल लड़ाकू विमान खरीद के संबंध में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को लिखित शिकायत सौंपकर  नरेन्द्र मोदी और अनिल अंबानी के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार निरोधक कानून के तहत एफआईआर दर्ज करने की मांग की थी। सूत्रों से जानकारी है कि भाजपा शासित सरकार इस बात से नाराज़ थी  कि निदेशक आलोक वर्मा ने तीनों से मुलाकात कर राफेल पर शिकायत पत्र स्वीकार किया और जाँच प्रक्रिया शुरू करने पर विचार कर रहे थे।

कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी जी को इस बात का डर सताने लगा कि अस्थाना की जबरन नियुक्ति से दुखी निदेशक आलोक वर्मा राफेल डील की जाँच संबंधी प्रक्रिया शुरू कर देंगे? आख़िर राकेश अस्थाना की अपनी नियुक्ति का मामला जब शांत होने लगा था तो उन्होंने क्यूँ एकाएक अपने बॉस के ख़िलाफ़ ही भ्रष्टाचार के लिखित शिकायत कर डाले? अस्थाना अभी यह शिकायत  क्यों कर रहे हैं कि आलोक वर्मा ने कुरैशी के मामलें में घुस लिया है, लालू यादव के खिलाफ रेड डालने में बाधा बन रहे थेI क्या अस्थाना ने ये लंबी चौड़ी शिकायत बिना अपने आकाओं के इशारे पर किया? और जब जवाब में सीबीआई ने अस्थाना पर ही एफआईआर दर्ज करके गिरफ़्तार करने की तैयारी की, तो प्रधानमंत्री मोदी हरकत में आ गए!

सच्चाई ये है कि इस विवाद को सीबीआई के नंबर 1 और नंबर 2 की लड़ाई बनाकर पीछे से कुछ और खेल खेला जा रहा है। जब निदेशक आलोक वर्मा का कार्यकाल दो महीने बाद दिसंबर 2018 में ख़त्म ही होने वाला था, तो अस्थाना की शिकायत पर बेताबी से उन्हें छुट्टी पर भेजकर आधी रात को नया निदेशक नियुक्त करने की असल वजह क्या है?  क्या सीबीआई में हो रहे तमाशे की जड़ में राफेल है या सरकार के अनुसार सीबीआई के दो आला अधिकारियों की लड़ाई हैIअभी हालिया स्थिति यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने आलोक वर्मा से जुड़ी शिकायत का निपटान करने के लिए दो हफ्ते का समय दिया हैI इस मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज एIके पटनायक के निगरानी सीवीसी करेगीI साथ में सीबीआई के नये निदेशक अक्टूबर 23 के बाद अपने द्वारा लिए गये सभी फैसलों को एक बंद लिफाफे में सुप्रीम कोर्ट को सौंपेंगेI इस मामलें में सुप्रीम कोर्ट द्वारा अगली सुनवाई नवम्बर 12 को की जाएगीI    

क़ानूनी जानकार कहते हैं कि सीबीआई निदेशक को ट्रान्सफर,सस्पेंड और रिमूवल करने का अधिकार चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया, प्रधानमंत्री और नेता विपक्ष से बने पैनल के पास होती हैI केन्द्रीय सतर्कता आयोग केवल ऐसे मामलों की जाँच कर सकती हैI इसके पास किसी को छुट्टी पर भेजने का अधिकार नहीं होताI इसलिए सरकार के तरफ से यह कहा जाना कि संस्थागत सम्मान को बचाए रखने के लिए सीवीसी ने यह कार्यवाही की, यह बात हजम नहीं होती हैI इसके साथ सीबीआई के दो आला अधिकारियों के साथ जिन अन्य अधिकारियों का ट्रान्सफर किया गया है,उन अधिकारीयों के ट्रान्सफर से स्पेशल डायरेक्टर अस्थाना को फायदा पहुंचता दिख रहा हैI क्योंकि इसमें वे अफसर भी शामिल हैं जो राकेश अस्थाना से जुड़े शिकायत के मामलें की जांच कर रहे थें, जिनकी नजदीकी राकेश अस्थाना से थी और जो सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा के नजदीक थेI यहाँ यह गौर करने वाली बात है कि उन अधिकारीयों को ट्रांसफर कर पोर्ट ब्लयेर भेजा गया है जो राकेश अस्थाना के खिलाफ की गयी शिकायत की जांच कर रहे थेI इसलिए यहाँ ऐसा लगता है कि अधिकारी सरकार की बात मानने के लिए किसी हद तक जा सकते हैं और सरकार भी अपने अफसरों को बचाने के लिए तरह के नियमों का धत्ता उड़ा सकती हैI  सरकार संस्थाओं को बर्बाद कर रही है और संस्थाओं के अधिकारी सरकार कोI इन सबमें नियमबद्ध सरकार और नियमबद्ध संस्था की अहमियत बर्बाद होती जा रही हैI

 

अपने टेलीग्राम ऐप पर जनवादी नज़रिये से ताज़ा ख़बरें, समसामयिक मामलों की चर्चा और विश्लेषण, प्रतिरोध, आंदोलन और अन्य विश्लेषणात्मक वीडियो प्राप्त करें। न्यूज़क्लिक के टेलीग्राम चैनल की सदस्यता लें और हमारी वेबसाइट पर प्रकाशित हर न्यूज़ स्टोरी का रीयल-टाइम अपडेट प्राप्त करें।

टेलीग्राम पर न्यूज़क्लिक को सब्सक्राइब करें

Latest