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कोरोनावायरस के ख़तरे को देखते हुए क्या सीएए-विरोधी प्रदर्शनों को रोक देना चाहिए?

जब तक इस महामारी का इलाज नहीं हो जाता, शाहीन बाग़ के प्रदर्शनकारी अपने धरने को ख़त्म करने के फ़ायदे और नुक़सान के बारे में चर्चा कर रहे हैं।
CAA Protest
Image Courtesy: Travel Wire News

कोरोनोवायरस का डर दुनिया भर को सता रहा है, वहीं शाहीन बाग़ और अन्य सीएए विरोधी स्थलों पर प्रदर्शनकारियों के बीच खुसफुसाहट है कि क्या उन्हें कुछ समय के लिए अपनी गतिविधियों को निलंबित कर देना चाहिए।

शाहीन बाग़ के कई लोगों का मानना है कि प्रकोप की गंभीरता को देखते हुए और जिसे अब  विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने एक महामारी भी घोषित कर दिया है, इसलिए हमें प्रदर्शनकारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए और वायरस को फैलने से रोकने के लिए, विरोध को तुरंत निलंबित कर देना चाहिए। कई लोग इस विचार का विरोध कर रहे हैं, इस डर से कि यदि एक बार धरना निलंबित कर दिया तो इसे कभी पुनर्जीवित नहीं किया जा सकेगा।

शनिवार तक, नोवेल कोरोनावायरस या कोविड-19 ने दुनिया भर में 5,544 लोगों की जान ले ली है, मरने वाले ज़्यादातर लोग चीन और इटली से हैं। हालांकि भारत में इसका प्रसार काफ़ी धीमा है, अभी तक केवल दो लोगों ने संक्रमण के कारण दम तोड़ा है, जिनमें एक कर्नाटक और दूसरा दिल्ली से हैं। रोज़ नए मामले सामने आ रहे हैं, और सोमवार तक जिनकी संख्या 110 पहुँच चुकी है।

राजधानी में महीने के अंत तक स्कूलों, कॉलेजों, सिनेमा हॉल और खेल आयोजनों को बंद रखने का आदेश दे दिया गया है। डॉक्टरों ने आम लोगों को भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचने के लिए कहा हैं और लोगों को सलाह दी है कि वे अपना सामाजिक मेलजोल को कम से कम कर दें।

बढ़ते डर को देखते हुए, कई लोग शाहीन बाग़ और अन्य सीएए-एनआरसी-एनपीआर विरोधी  स्थलों पर अपनी सुरक्षा को वास्तव में ख़तरा मान रहे हैं। डॉ शाहिद जमील, वेलकम ट्रस्ट/ डीबीटी इंडिया एलायंस के एक प्रसिद्ध वीरोलॉजिस्ट और मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं। वह कहते हैं, "एक वैश्विक महामारी के चलते भारत में भी संख्या बढ़ना अपरिहार्य है। "आने वाले दिनों में मरीज़ों की संख्या बढ़ने की संभावना हैं। यह वायरस मानव-से-मानव के भीतर स्पष्ट संचरण दिखा रहा है।"

उन्होंने बताया कि चीन और यूरोप के आंकड़े बताते हैं कि एक संक्रमित व्यक्ति वायरस को औसतन दो या तीन अन्य लोगों तक पहुंचा सकता है। वो बताते हैं, “इसलिए, किसी भी अन्य सुरक्षा के अभाव में जैसे कि टीके या दवाइयाँ न होना के मामले में कम सामाजिक मेल-मिलाप ही इसके प्रसार को कम करने का एकमात्र तरीक़ा है।" उन्होंने कहा कि बड़े समारोहों से बचा जाना चाहिए।

इस बात से कोई इनकार नहीं है कि प्रदर्शनकारी इस नए स्वास्थ्य से जुड़े ख़तरे के प्रसार से उत्पन्न बढ़ती चुनौतियों के सामने व्यावहारिक सावधानी बरतने में असमर्थ हैं। जमील, जो नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ और भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी के एक चुने फ़ेलो हैं, का कहना है कि सरकार के ज़रूरी और समझदार उपाय कोविड-19 के प्रसार को न केवल रोकेंगे बल्कि पूरी तरह से वायरस को प्रतिबंधित भी कर पाएंगे।

लब्बोलुआब यह है कि मृत्यु की दर को कम करने के लिए, यह महत्वपूर्ण है कि बीमार लोगों की संख्या को अस्पतालों की क्षमता से कम रखा जाए। जमील कहते हैं, “और आप केवल बीमार लोगों की संख्या को केवल तभी सीमित कर सकते हैं यदि वायरस से कम लोग संक्रमित हों। ऐसा करने के लिए उपलब्ध एकमात्र उपकरण सामाजिक दूरी है: क्योंकि इसमें मास्क, दुपट्टा, आदि भी मदद नहीं करेगा।"

शाहीन बाग़ विरोध स्थल को सभी देशव्यापी विरोधों स्थलों की जननी माना जाता है। यह नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019 के क़ानून बनने के तुरंत बाद जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय में छात्रों के विरोध प्रदर्शन पर हुई बर्बर पुलिस कार्रवाई के बाद शुरू हुआ था। महिलाओं और छात्रों, विशेषकर कॉलेज जाने वाली महिलाओं के नेतृत्व में, ये विरोध प्रदर्शन विशेष रूप से उत्तर प्रदेश, कर्नाटक और दिल्ली में धमकी, हमलों और गिरफ़्तारी के बावजूद 500 से अधिक स्थलों पर फैल गए हैं।

यह भी मानना पड़ेगा कि इन प्रतिरोधों ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के बारे में जागरुकता पैदा करने में मदद की है, जिन्हे केंद्र में बैठी भाजपा सरकार लागू करना चाहती है। ये विरोध प्रदर्शन उन दस राज्यों की पहल का भी भागीदार बन सकते हैं जिन्होंने राष्ट्रव्यापी एनआरसी के ख़िलाफ़ अपनी विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए हैं। इन प्रतिरोधों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित सरकार को यह कहने पर मजबूर कर दिया है कि एनआरसी लागू नहीं होगा। हालांकि, पूरे देश में एनआरसी का ख़तरा तब तक रहेगा जब तक कि नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 14ए जो एनपीआर और एनआरसी को क़ानूनी आधार देती है, को निलंबित नहीं कर दिया जाता है। उन्होंने कहा, "तथ्य यह है कि विभिन्न भाजपा नेताओं ने राष्ट्रव्यापी एनआरसी पर विरोधाभासी बातें कही हैं, और इसलिए यह मामला तय होना ख़ासी दूर की बात लगती है।"

इस सबके परिणामस्वरूप, अब प्रदर्शनकारियों के सामने सवाल यह है कि कहीं धरने को निलंबित करने से सीएए विरोधी आंदोलन की भावना तो ख़त्म नहीं हो जाएगी और यहां तक कि शायद, कहीं अब तक किए गए काम के लाभ को उलट तो नहीं दिया जाएगा। जैसा कि हसीब, जो  शाहीन बाग़ धरने में नियमित रूप से से जुड़े हैं ने कहा "एक बार निलंबित होने के बाद, यह विरोध कभी भी पुनर्जीवित नहीं हो पाएगा। इसके बजाय हमें हर धरने पर एक ही संदेश देना चाहिए कि  कोरोना की तुलना में सीएए अधिक ख़तरनाक और घातक है।"

राबिया, जो धरने पर नियमित तौर पर आती हैं का कहना है कि पिछले तीन महीनों में विरोध प्रदर्शनों का गहरा प्रभाव पड़ा है और इसी कारण से उन्हें यहाँ से नहीं हिलना चाहिए। उन्होंने कहा,  “महिलाओं ने अपना विरोध जारी रखने के लिए ठंड, बारिश और यहां तक कि ओलावृष्टि के कहर को भी झेला है। उनके जोश को कुछ भी ठंडा नहीं कर पाया। पिछले महीने के अंत में जब दिल्ली में दंगे हुए थे, तब भी वे वहाँ से नहीं हटे जबकि उस वक़्त उनके जीवन को वास्तविक ख़तरा लग रहा था।"

शाहीन बाग़ स्थल पर अक्सर कहा जाता है कि दिल्ली में हाल ही में हुई हिंसा में दर्जनों लोग मारे गए और हज़ारों मुसलमान बेघर हो गए हैं। अब यह कोरोनावायरस है जिसका इस्तेमाल कर लोगों को इस स्थल को ख़ाली करने के लिए मजबूर करने के लिए असमान रूप से बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया जा रहा है। राबिया कहती हैं, "हम धरना स्थल नहीं छोड़ेंगे, क्योंकि कोविड-19 एक काल्पनिक ख़तरा है, जबकि हमारे जीवन के लिए नागरिकता का सवाल वास्तविक ख़तरा है।"

बुशरा, जो शाहीन बाग़ और जामिया दोनों विरोध स्थलों पर नियमित तौर पर जा रही हैं, कहती हैं, "यही समय है जब हमें इस विरोध को रोक देना चाहिए। यह सोचना पागलपन है कि इसे पुनर्जीवित नहीं किया जा सकेगा। आगे इसे ओर भी बेहतर तरीक़े से संगठित किया जा सकता है, क्योंकि अब लोग अपने अनुभव से सीख गए हैं।”

भारत सरकार ने महामारी रोग अधिनियम, 1897 को लागू कर दिया है और स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने सामूहिक लामबंदी/सभा के ख़िलाफ़ एक एडवाइज़री जारी की है। इसमें कहा गया है कि राज्यों को कोरोनावायरस के फैलने के जोखिम के कारण सभा न करने के ख़िलाफ़ सलाह दी गई है। जो कहती है कि "अगर इस तरह की कोई सामूहिक सभा आयोजित की जाती है, तो राज्य आयोजकों को मार्गदर्शन करने के लिए आवश्यक सलाह दे सकते हैं।"

तथ्य यह है कि कोरोनावायरस का ख़तरा वास्तविक है और अब यह भारतीयों के लिए भी अधिक वास्तविक होता जा रहा है। स्कूलों, कॉलेजों, खेल आयोजनों और अन्य सार्वजनिक समारोहों के अलावा, कई देशों ने तो प्रार्थना और उससे जुड़ी सभाओं को भी निलंबित कर दिया है ताकि वायरस के प्रसार को नियंत्रित किया जा सके। बुशरा को लगता है कि इस विरोध को जारी रखने से, निर्दोष महिलाओं, उनके परिवारों और जहां वे रहते हैं, वहां के बड़े समुदायों को ख़तरा हो सकता है।

सभी इस बात को मानते हैं कि शाहीन बाग़ की महिलाओं के लिए यह फ़ैसला लेना आसान नहीं होगा - लेकिन यह ऐसा फ़ैसला है जिस पर उन्हें जल्दी ही एक राय बनानी होगी।

लेखक स्तंभकार और लेखक है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Should Anti-CAA Protests be Suspended Due to Coronavirus Threat?

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