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तेलंगाना : बीजेपी के पूर्व जिला सचिव ने दो दलित युवकों को बेरहमी से पीटा

आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं कि जबसे बीजेपी सत्ता में आयी है दलित विरोधी हिंसा में बढ़ोतरी हुई है .
dalit atrocities

तेलंगाना में दलित शोषण का एक और मामला सामने आया है . बीजेपी के एक पूर्व जिला सचिव ने तेलंगाना में , दो दलित युवकों से एक गंदे पानी के तालाब में ज़बरदस्ती डुबकी लगवाई, क्योंकि वो बिना पूछे उनकी रेत खदान में दाखिल हो गए थे . इसके साथ ही उन्हें लाठियों से बुरी तरह पीटा गया .

ये घटना दरअसल 21 सितम्बर को तेलंगाना के नविपट गाँव में हुई थी पर रविवार को इसका विडियो वायरल होने के बाद इस पर विवाद शुरू हुआ . इस विडियो के वायरल होने के बाद कुछ  दलित संगठनों ने इसका संज्ञान लिया और सड़कों पर उतर आये . उन्होंने इस घटना के मुख्य आरोपी और बीजेपी के पूर्व ज़िला सचिव भारत रेड्डी की गिरफ़्तारी की माँग की , पर पुलिस का कहना था कि इस मामले में पीड़ित पक्ष ने FIR दर्ज़ करने से मना कर दिया था . उनका आगे कहना था कि दलित संगठनों के FIR करने के बाद उन्होंने केस दर्ज़ कर दिया है और वो इस मामले में जाँच कर रहे हैं.

दोनों दलित युवा , के.लक्ष्मण और राजेश अपने गाँव के पास वाली रेत खदान में ये पता करने गए थे कि खदान मालिकों के पास वैध लाइसेंस है या नहीं . पर वहां काम कर रहे मजदूरों को लगा कि वह चोरी करने आये हैं और इसकी शिकायत उन्होंने खदान मालिक भारत रेड्डी से की . रेड्डी ने घटना स्थल पर आते ही उन युवकों का लाठी से पीटना शुरू कर दिया और पीटने के बाद उन्होंने एक  तालाब में डुबकी लगाने को कहा गया जो शौच के लिए इस्तेमाल किया जाता है . इसके साथ उन्हें माफ़ी मांगने को भी कहा गया और लगातार रेड्डी उन्हें भद्दी गलियाँ भी देते रहे . इस पूरी घटना के दौरान ये दोनों दलित युवा हाथ जोड़कर माफ़ी मांगते रहे पर उनकी एक ना सुनी गयी . गौरतलब है कि भरत रेड्डी पहले से ही क़त्ल के मामलों में आरोपी हैं , और इसके अलावा उनपर कुछ और मामलों में भी मुकदमें चल रहे हैं .

ये पहली बार नहीं है कि जब बीजेपी और संघ से जुड़े लोग दलित विरोधी घटनाओं में शामिल रहे हों . संघ प्रमुख मोहन भागवत समय समय पर जातिगत आरक्षण के खिलाफ बोलते रहे हैं . उनके मुख से हाल के समय में ये कई बार निकला है कि “ आरक्षण के बारे में दोबारा विचार करना चाहिए “ . संघ प्रमुख 2012 में एक तस्वीर में देखे गए थे जिसमें वो एक आदिवासी  महिला से पाँव धुलवा रहे थे . जब विवाद बढ़ा तो ये कहा गया कि ये तो आदिवासी रिवाज़ है .इस तरह का बर्ताव लाज़मी है क्योंकि आरएसएस की विचारधारा का जातिवाद एक अभिन्न हिस्सा है . अगर हम उनके सबसे प्रमुख विचारक “ गुरूजी “ गोलवर के विचारों की ओर नज़र दौडाएं तो ये बात साफ़ हो जाती है . गोलवरकर ने मनुस्मृति को कानून की सबसे बड़ी किताब माना और उसमें स्थापित जाति व्यवस्था को सही ठहराया है. आरएसएस के लोगों की ये मान्यता उनके खुद के संगठन में साफ़ दिखाई देती हैं ,जहाँ सिर्फ एक राजेंद्र सिंह को छोड़कर उनके सभी सरसंघचालक ब्राहमण ही रहे हैं. पर राजेंद्र सिंह भी उच्च जाति से ही थे . आरएसएस ने मंडल कमीशन का भी विरोध किया था और उसी को चुनौती देने के लिए उन्होंने राम मंदिर आन्दोलन की यानी कमंडल की राजनीति शुरू की थी .

2014 में बीजेपी के सरकार में आने के बाद रोहित वेमुला , ऊना की घटना , सहारनपुर की घटना और इन पर सरकार की प्रतिक्रिया उनकी ब्राहमणवादी मानसिकता दर्शाती है . आंकड़े भी इसी ओर इशारा करते हैं कि जबसे बीजेपी सत्ता में आयी है दलित विरोधी हिंसा में बढ़ोतरी हुई है . चुनाव का एलान होते ही दलितों विरोधी हिंसा बढ़ने लगी ,सरकारी आकड़ों के मुताबिक जहाँ 2012 में दलित अत्याचार के 33655 मामले आये थे , वहीँ 2013 में 39,408 , 2014 में 47064 और 2015 में 45003 मामले सामने आये हैं . ऊना आन्दोलन के नेता जिग्नेश मेवनी का इस मानसिकता पर कहना है कि दलित बीजेपी के लिए तब तक ही हिन्दू होते हैं जब तक चुनाव नहीं होते , उनके बाद वो फिर से दलित हो जाते हैं.

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