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तेलंगाना चुनाव : सभी सरकारों ने दिया बीड़ी श्रमिकों को धोखा

यूनियन के कार्यकर्ताओं का कहना है कि केसीआर सरकार ने बीड़ी कंपनी के मालिकों के हितों का समर्थन करते हुए बीड़ी श्रमिकों के अधिकारों की उपेक्षा करने की परंपरा को जारी रखा है।
Beedi workers, Telangana

तेलंगाना में बीड़ी श्रमिकों को लगातार परेशानी का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि मज़दूरों के कई संघर्षों के बावजूद सरकारों ने जो वादे किए वे कभी पूरे नहीं हुए। जैसे-जैसे 7 दिसंबर के विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, सभी पार्टियों के विधायक उम्मीदवार बीड़ी क्षेत्र पर नजर गड़ाए हुए हैं। लेकिन दुखद वास्तविकता यह है कि आज बीडी मज़दूरों की औसत आय प्रति 1000 बीड़ी 173 रुपये प्रतिदिन (एक कार्य दिवस) है और 2014 से 2018 तक 26 दिनों के कार्य दिवसों की संख्या में 10-12 कार्य दिवसों की कमी आ गई है।

तेलंगाना में, बीड़ी क्षेत्र 16 जिलों में 45 विधानसभा क्षेत्र में फैला हुआ है। राज्य में लगभग सात लाख बीड़ी श्रमिक हैं, जिनमें से 90 प्रतिशत से अधिक महिलाएं हैं।

तेलंगाना बीड़ी और सिगरेट मज़दूर यूनियन जो सीआईटीयू से संबद्ध युनियन है, के महासचिव एस राम ने कहा, "बीड़ी मज़दूरों ने तेलंगाना राज्य आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है लेकिन तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) के चंद्रशेखर राव (केसीआर) के तहत सरकार ने पूरी तरह से कर्मचारियों को धोखा दिया है।"

न्यूज़क्लिक के साथ बात करते हुए राम ने कहा: "तेलंगाना एक अलग राज्य बनने के बाद, बीड़ी मज़दूरों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है, बल्कि स्थिति ओर खराब हु है। सत्ता में आने से पहले, के चंद्रशेखर राव ने मज़दूरों के कल्याण के लिए उपयुक्त सरकारी आदेश (जीओ) लाने का वादा किया था। जब टीआरएस सत्ता में आयी, सरकार ने मौजूदा जीओ 41 को भी लागू नहीं किया, और पिछली कांग्रेस सरकार की तरह अपनी मज़दूर विरोधी प्रवृत्ति को बरकरार रखा। "

देश में निर्धारित उद्योगों में से एक होने के नाते, राज्य सरकारों को जीओ जारी करने और इस क्षेत्र में सभी श्रेणी के मज़दूरों की न्यूनतम मजदूरी तय करने के फैसले के लिए दायित्व बनता है। पूर्व आंध्र प्रदेश में, दिसंबर 2010 में, लाखों बीड़ी मज़दूरों ने संयुक्त संघर्ष कार्य समिति का गठन किया था और राज्य भर में बीडी उत्पादन को रोकने के लिए 32 दिनों के लिए हड़ताल की थी। नतीजतन, 2011 में, तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने एक जीओ जारी किया था। जी.ओ. 41 के अनुसार, प्रति 1000 बीड़ी प्रति मज़दूर का न्यूनतम वेतन 258 रुपये होना था। शायद बीड़ी निर्माताओं को लुभाने के लिए, जीओ में दर को कम रखा गया था।

यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि इस जी.ओ. के कार्यान्वयन के साथ, श्रमिकों के मूल अधिकारों पर हमला किया जा रहा है, जबकि बीडी कंपनी के मालिकों का लाभ करोड़ों में हैं। वर्तमान में, तेलंगाना में 72 बीड़ी कारखाने हैं। कुछ प्रमुख कारखानों में लंगार, टेलीफोन, चरबाई वारंगल, करीमनगर, सिरिसिला और आदिलाबाद जिलों में स्थित हैं। औसतन, तेलंगाना में प्रति दिन लगभग 100 करोड़ बीड़ी का उत्पादन होता है।

 

Beedi workers protest.jpg

(सितंबर, 2016 में कामरेड्डी, तेलंगाना में सैकड़ों महिला बीड़ी श्रमिकों ने विरोध सभा का आयोजन किया था)

बीड़ी श्रमिकों के लिए जीवन निर्वाह के लिए पेंशन

जीओ 41 के कार्यान्वयन की मांग करते हुए बीड़ी मज़दूरों ने टी.आर.एस. सरकार के जून 2014 में आने के बाद  तीन दिन की हड़ताल सहित कई विरोध प्रदर्शन किए हैं।

जीओ के तहत मज़दूरों को सुरक्षा प्रदान करने के बजाय, 2015 में मुख्यमंत्री केसीआर ने बीडी मज़दूरों को 1,000 रुपये का मासिक निर्वाह भत्ता (जीवन ब्रुथी) को गड़बड़ाने की कोशिश की, और उसके भुग्तान के साथ  कई शर्तें लगा दी। जबकि, यह वादा श्रमिकों के लंबे संघर्ष के बाद ही लागू किया गया था।

राम ने कहा "सरकार की स्थिति ऐसी है कि राज्य भर में कुल सात लाख मज़दूरों में से, अभी तक केवल 1,56,000 कर्मचारी इस भत्ता योजना के लाभार्थियों बनने में सक्षम हुए हैं। यदि परिवार में चार बीड़ी श्रमिक हैं, तो यह भत्ता केवल एक को मिल रहा है। इसके अलावा, यदि परिवार का सदस्य वृद्धावस्था पेंशन या विधवा पेंशन का लाभार्थी है, तो उस कर्मचारी को भत्ता नहीं मिलेगा" उन्होंने कहा कि इन परिस्थितियों में श्रमिकों के बीच संकट गहरा गया है और कई बीड़ी श्रमिकों ने आत्महत्या भी की है।

इस साल की शुरुआत में, यह बताया गया था कि कामरेड्डी जिले के चिन्ना मल्लारेड्डी गांव की निवासी वसीता ने आत्महत्या कर ली थी, क्योंकि सरकारी अधिकारियों ने उनके भत्ते पर तब रो लगा दी थी जब उन्हें पता चला कि उनके परिवार में दो सदस्य (उनके पति जो बीड़ी मजदूर हैं ) उसी योजना के तहत लाभार्थियों थे।

राम ने तर्क दिया कि टीआरएस सरकार भी बीडी श्रमिकों को पहचान पत्र प्रदान करने में असफल रही है, जिसके बग़ैर श्रमिक कर्मचारी भविष्य निधि, कर्मचारी राज्य बीमा लाभ जैसे अन्य मूल अधिकारों का लाभ नहीं उठा सकते है। बीड़ी श्रमिकों को पहचान पत्रों को बांटने का अधिकार कंपनियों के साथ निहित है और लगभग 50 प्रतिशत श्रमिकों को बीड़ी श्रमिकों के रूप में मान्यता नहीं दी जाती है क्योंकि कंपनियों ने उन्हें पहचान पत्र प्रदान नहीं किए हैं।

निजामाबाद जिले के वेल्लपुर गांव की निवासी सविता ने न्यूजक्लिक को बताया कि टीआरएस सरकार ने मज़दूरों की तुलना में कंपनियों के हितों को आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया था। सविता ने बताया"मैं पिछले 10 सालों से बीड़ी बना रही हूं और पिछले दिसंबर में मुझे अपना पहचान पत्र बीडी मज़दूर के रूप में मिला। पिछले चार सालों में, वेल्लपुर में हमारे सहकर्मी उम्मीद कर रहे थे कि केसीआर बीड़ी श्रमिकों के लिए उपयुक्त जीओ तैयार करेगी, लेकिन हमें धोखा दिया गया है" उन्होंने कहा कि बीड़ी कंपनी हर साल केवल 3-4 पहचान पत्र जारी करती है और उसके गांव में सैकड़ों श्रमिक अभी भी पहचान पत्रों की प्रतीक्षा कर रहे हैं ताकि वे इसके कारण स्वास्थ्य लाभ उठा सकें।

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स्वास्थ्य का मुद्दा

बीड़ी क्षेत्र के साथ एक और मुद्दा यह है कि यह मुख्य रूप से स्वास्थ्य को नुकसान करने (रोग पैदा करने) वाला उद्योग है। बीड़ी श्रमिक अन्य बीमारियों के अलावा तपेदिक, कैंसर, अल्सर से ग्रस्त हो जाते हैं। राम ने कहा “राज्य में कोई बीड़ी बनाने वाला कारखाना शौचालय, प्राथमिक चिकित्सा केंद्र जैसी बुनियादी सुविधाएं प्रदान नहीं करता है, हालांकि इसे केंद्रीय और राज्य कानूनों द्वारा अनिवार्य बनाया गया है। यह महिला श्रमिकों को अपने घरों से काम करने के लिए प्रेरित करता है"

बीड़ी उद्योग मानव श्रम पर पूरी तरह से निर्भर है और बीड़ी बनाने में कोई तकनीक शामिल नहीं है। आने वाले विधानसभा चुनावों के दौरान, जबकि टीआरएस सरकार बीड़ी श्रमिकों के लिए मासिक भत्ता बढ़ाने के लिए 2,000 रुपये का वादा कर रही है, कांग्रेस के नेतृत्व वाले प्रजकुट्टामी भी इसका आश्वासन दे रहे हैं और सीपीआई (एम) बहुजन वाम मोर्चा बीड़ी क्षेत्र समेत सभी क्षेत्रों में श्रमिकों के लिए 18,000 रुपये प्रति माह की न्यूनतम मजदूरी की घोषणा कर रहे हैं

तेलंगाना सीआईटीयू (सीटू) की उपाध्यक्ष सुधा भास्कर ने कहा कि बीड़ी श्रमिकों को कम से कम 350 रुपये प्रति 1000 बीड़ी की मज़दूरी मिलनी चाहिए। यहां तक कि यदि श्रमिकों को प्रति माह 2,000 रुपये भत्ते का भुगतान किया जाता है, तो यह प्रतिवर्ष 24,000 रुपये होगा। सुधा भास्कर ने न्यूज़क्लिक को बताया कि मजदूरों की उम्मीद है कि वे वैध न्यूनतम मजदूरी और उनके अधिकारों को मान्यता देंगे।

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