ट्रांसजेंडर बिल को ट्रांस समुदाय ने बताया 'जेंडर जस्टिस मर्डर' बिल
ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाने और उनके विभिन्न अधिकारों की रक्षा करने के मकसद से लाए गए उभयलिंगी या ट्रांसजेंडर पर्सन्स (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स) बिल- 2019, को मंगलवार, 26 नवंबर 2019 को संसद की मंजूरी मिल गई। राज्यसभा में चर्चा और विरोध के बावजूद इसे ध्वनिमत से मंजूरी दे दी गई। लोकसभा मानसून सत्र के दौरान 5 अगस्त को इसे पारित कर चुकी है। लेकिन इस विधेयक को लेकर ट्रांसजेंडर समुदाय में नाराज़गी है। बुधवार, 27 नवंबर को ट्रांसजेंडर समुदाय के लोगों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बिल को 'जेंडर जस्टिस मर्डर' बिल बताया साथ ही कहा कि इस बिल से 2014 का सुप्रीम कोर्ट का नालसा जजमेंट बेमानी हो जाएगा।
प्रेस कॉन्फ्रेंस में शामिल ट्रांसजेंडर लोगों ने इस बिल पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि ये सरकार की सोची-समझी साजिश है अल्पसंख्यकों को और हाशिये पर धकेलने की। इस बिल के जरिये हमारे मौलिक अधिकार सम्मान से जीवन जीने के अधिकार पर हमला किया गया है। हम पहले भी इसके विरोध में लड़े हैं, हम आगे भी अपनी लड़ाई जारी रखेंगे। हम राष्ट्रपति से अपील करते हैं कि इस बिल को खारिज कर दें नहीं तो हम अपनी लड़ाई कोर्ट में लड़ेंगे। हम न हारे हैं और न हारेंगे।
विधेयक के किन प्रावधानों से है दिक्कत
दोनों सदनों में पारित हो चुके इस बिल से जुड़ी सबसे बड़ी समस्या यह है कि इसमें ट्रांसजेंडर आइडेंटिटी के लिए सर्टिफिकेट लेना होगा। इसके लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट के पास आवेदन करना होगा। जिसके बाद मेडिकल जांच होगी और फिर सर्टिफिकेट जारी किया जाएगा। इसमें एक रिवाइज्ड सर्टिफिकेट का भी प्रावधान है। ये केवल तब होगा, जब एक व्यक्ति जेंडर कन्फर्म करने के लिए सर्जरी करवाता है। उसके बाद सर्टिफिकेट में संशोधन होगा। इसे समुदाय अपने निजता के अधिकार के हनन के रूप में देख रहा है।
इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्ति वो है, जिसका जेंडर उसके जन्म के समय निर्धारित हुए जेंडर से मैच नहीं करता। इनमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमन, इंटरसेक्स या जेंडर-क्वियर और सोशियो-कल्चर आइडेंटिटी जैसे हिजड़ा और किन्नर से संबंध रखने वाले लोग भी शामिल हैं। जबकि ट्रांसजेंडर समुदाय का कहना है कि हर व्यक्ति को लिंग पहचान करने का अंतिम अधिकार होना चाहिए।
ट्रांस विवान ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘मेरा जन्म फीमेल के रूप में हुआ था, लेकिन जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ मुझे एहसास हुआ कि मैं लड़के की तरह रहना चाहता हूं। अब इसके लिए क्या मुझे सर्टिफिकेट लेना होगा। यह मेरा निजी विचार होना चाहिए कि मुझे किस जेंडर के तौर पर पहचाना जाना चाहिए। अपनी शारीरिक पहचान का प्रमाण किसी और से लेना हमारे लिए अपमान होने जैसा है।’
इस बिल में ट्रांस की परिभाषा के अलावा सज़ा के प्रावधान का भी विरोध हो रहा है, इसे समुदाय के साथ भादभाव करार दिया जा रहा है। ट्रांसमैन गेस बताते हैं, ‘सरकार इस बिल के जरिये हमारे साथ भेदभाव कर रही है। अगर किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति पर कोई यौन हिंसा या शारीरिक हिंसा करता है तो उसे केवल छह महीने से दो साल की सजा दी जाती है, जबकि वही हिंसा अगर किसी गैर-ट्रांस व्यक्ति के साथ की गई हो तो उसमें कम से कम सात साल सजा का प्रावधान है। ये अपने आप में कई सवाल खड़े करता है। यह हमारे मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है।’
इस बिल का विरोध इसलिए भी हो रहा है, क्योंकि इसमें ट्रांसजेंडर्स को रिजर्वेशन के दायरे में नहीं रखा गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट ने नालसा जजमेंट में समुदाय को ओबीसी का दर्जा देकर आरक्षण की बात कही थी लेकिन इस बिल में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं की गई।
ग्रेस बानू, ट्रांसजेंडर एक्टिविस्ट का कहना है कि इस बिल में सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दरकिनार करते हुए हमें हमारे अधिकारों से वंचित कर दिया है। हमें काफी निराशा हो रही है। इस बिल के साथ सरकार ने साबित कर दिया, कि वो अल्पसंख्यकों के खिलाफ है।
ट्रांस एक्टिविस्ट विक्रम ने न्यूज़क्लिक से बातचीत में कहा, ‘ये बिल ट्रांस लोगों की हत्या करने जैसा है। ये बिल पूरी तरह से समुदाय के खिलाफ है। इस बिल को लेकर ट्रांस समुदाय ने तीन-चार राउंड में सुझाव दिए थे लेकिन सरकार ने सबको नज़रअंदाज कर दिया। हमारे समुदाय के बिल को सरकार हमारे सुझाव के बगैर कैसे बना सकती है। हमारे लिए ये बिल केवल एक कोरा कागज़ है। ये ट्रांस लोगों की जिंदगी बद्तर कर देगा। ये बिल सेल्फ-आइडेंटिफिकेशन राइट नहीं देता, जैसा कि 2014 के फैसले में कहा गया था। हमें आईडी कार्ड के लिए मजिस्ट्रेट के पास जाना होगा। अगर हमें आदमी या औरत का कार्ड चाहिए, तो मेडिकल ऑफिसर हमारे शरीर की जांच करेगा। ये अपने आप में अपमानजनक है।
इस बिल में ट्रांसजेंडर रिहैबिल्टेशन, सर्जरी, 2011 जनगणना का आधार को लेकर भी ट्रांसजेंडर समुदाय में खासा रोष है। समुदाय इसे अपने अधिकारों के खिलाफ मान रहा है। साथ ही सरकार का मंशा पर कई सवाल भी खड़े कर रहा है।
कैसे बना ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल?
15 अप्रैल 2014 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा पास हुआ नालसा जजमेंट ट्रांसजेंडर समुदाय की दशा और दिशा सुधारने के लिए एक ऐतिहासिक फैसला माना जाता है। इस फैसले से ट्रांसजेंडर समुदायों को पहली बार ‘तीसरे जेंडर’ के तौर पर पहचान मिली। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला ट्रांसजेंडर समुदायों को संविधान के मूल अधिकार देता है। इसके बाद डीएमके पार्टी के राज्यसभा सांसद तिरुची शिव ने सदन में एक प्राइवेट मेंबर बिल पेश किया। जिसका विरोध सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत ये कहकर किया कि सरकार कोर्ट के फैसले के बाद पहले से ही पॉलिसी बना रही है। इसलिए बिल को शिव वापस ले लें लेकिन शिव अपने बिल पर अड़े रहे। आखिरकार अप्रैल 2015 में शिव का बिल राज्यसभा में पास हो गया। उन्होंने तर्क दिया कि कागज में ट्रांसजेंडर्स की संख्या साढ़े चार लाख है, लेकिन असल में इनकी संख्या 20 लाख के आसपास हो सकती है। इन्हें वोट देने का अधिकार तो है, लेकिन भेदभाव से बचाने के लिए कोई भी कानून नहीं है।
लोकसभा में इस बिल को अगस्त 2016 में बीजेडी सांसद बैजयंत पांडा ने प्राइवेट मेंबर बिल के तौर पर पेश किया। लेकिन बाद में बैजयंत बीजेपी में शामिल हो गए जिसके बाद इस बिल को सरकार ने टेकओवर कर लिया और अपना एक ड्राफ्ट पेश किया। इसे स्टैंडिंग कमेटी को भेज दिया गया। कमेटी ने इस बिल पर सरकार को लगभग 27 सुझाव दिए। जिसके बाद इस बिल ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल 2016 में कुछ बदलावों के साथ जैसे ट्रांसजेंडर की परिभाषा, भीख मांगने को अपराध के दायरे से बाहर करना और स्क्रीनिंग कमेटी को हटाना शामिल हैं, इस बिल को दिसंबर 2018 में लोकसभा में पास कर दिया गया। लेकिन 16वीं लोकसभा के खत्म होने के बाद, इसे फिर से नई लोकसभा में ट्रांसजेंडर अधिकार संरक्षण बिल- 2019 के नाम से पेश किया गया और अब ये राज्यसभा से पास हो गया है। इसके बाद राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये कानून बन जाएगा।
क्या है इस बिल में?
इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर व्यक्ति की परिभाषा है, जिसका जेंडर उसके जन्म के समय निर्धारित हुए जेंडर से मैच नहीं करता। इनमें ट्रांस-मेन, ट्रांस-विमन, इंटरसेक्स या जेंडर-क्वियर और सोशियो-कल्चर आइडेंटिटी जैसे हिजड़ा और किन्नर से संबंध रखने वाले लोग भी शामिल हैं।इस बिल में ट्रांसजेंडर्स के साथ होने वाले भेदभाव पर रोक लगाने के प्रावधान हैं।
बिल के मुताबिक कई क्षेत्रों में अक्सर ट्रांसजेंडर्स के साथ भेदभाव होता है, जैसे-
शिक्षा- सरकारी शैक्षणिक संस्थाओं में, या फिर सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त शैक्षणिक संस्थाओं में ट्रांसजेंडर्स के साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। ट्रांसजेंडर्स को भी उन संस्थाओं में पढ़ने का, खेलों में हिस्सा लेने का पूरा अधिकार है।
नौकरी- कोई भी सरकारी या प्राइवेट संस्था नौकरी देने में, प्रमोशन देने में ट्रांसजेंडर्स के साथ कोई भेदभाव नहीं कर सकती। हर संस्था में एक शिकायत अधिकारी होगा, जो इस एक्ट से जुड़ी हुई शिकायतों पर कार्रवाई करेगा। ये अधिकारी ट्रांसजेंडर्स के अधिकारों की रक्षा करने के लिए होगा।
स्वास्थ्य देशभाल - ट्रांसजेंडर्स को हेल्थ से जुड़ी हुई सुविधाएं देने के लिए सरकार कदम उठाएगी। इसके तहत अलग से एचआईवी टेस्ट सेंटर्स खोलने, सेक्स रिअसाइनमेंट सर्जरी की सुविधा और ट्रांसजेंडर्स को मेडिकल इंश्योरेंस स्कीम का भी प्रावधान है।
निवास का अधिकार- हर ट्रांसजेंडर को अपने परिवार के साथ, अपने घर में रहने का अधिकार है। अगर उसका परिवार उसकी केयर करने में नाकाम होता है, तो वो रीहैबिलटैशन सेंटर में रह सकता है। इसके अलावा वो किराये का घर लेकर भी रह सकता है, उसे कोई भी मकान मालिक इस आधार पर घर देने से मना नहीं कर सकता, कि वो ट्रांसजेंडर है। वो खुद के नाम प्रॉपर्टी भी खरीद सकता है।
–पब्लिक और प्राइवेट ऑफिस खोलने का अधिकार
– पब्लिक को दी जा रही सुविधाओं का लाभ उठाने का अधिकार
– आंदोलन करने का अधिकार
इस कानून के मुताबिक जबरन किसी ट्रांसजेंडर को बंधुआ मजदूर बनाना, (हालांकि अगर किसी सरकारी स्कीम के तहत कोई ट्रांसजेंडर मजदूरी करता है, तो वो अपराध नहीं होगा), सार्वजनिक स्थानों का इस्तेमाल करने से रोकना, घर से या गांव से निकालना, शारीरिक हिंसा, यौन हिंसा या यौन शोषण, मौखिक तौर पर, मानसिक तौर पर या आर्थिक तौर पर परेशान करना, अपशब्द कहना अपराध की श्रेणी में रखा गया है।
दंड का प्रावधान
इस बिल के मुताबिक ट्रांसजेंडर्स के खिलाफ ये सारे अपराध करने वाले को 6 महीने से दो साल तक की सजा हो सकती है। साथ ही जुर्माना भी लग सकता है। हर अपराध के मुताबिक दंड तय होगा। इस बिल में ट्रांसजेंडर्स के लिए एक काउंसिल नेशनल काउंसिल फॉर ट्रांसजेंडर पर्सन बनाने की बात भी कही गई है, जो केंद्र सरकार को सलाह देगा। केंद्रीय समाजिक न्याय मंत्री इसके अध्यक्ष होंगे साथ ही सोशल जस्टिस राज्य मंत्री इसके वाइस-चेयरपर्सन होंगे। इसके अलावा सोशल जस्टिस मंत्रालय के सचिव, हेल्थ, होम अफेयर्स, ह्यूमन रिसोर्स डेवलपमेंट मंत्रालयों से एक-एक प्रतिनिधि शामिल होंगे। नीति आयोग और नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के भी मेंबर्स इस काउंसिल में होंगे। राज्य सरकारों का भी प्रतिनिधित्व इसमें होगा। साथ ही ट्रांसजेंडर्स कम्युनिटी से पांच मेंबर्स और अलग-अलग एनजीओ से पांच एक्सपर्ट्स होंगे।
सरकार इस बिल को ट्रांसजेंडर कम्युनिटी के भले के लिए लाया बिल बता रही है तो वहीं ट्रांसजेंडर कम्युनिटी का विरोध सरकार की मंशा पर कई सवाल खड़े कर रहा है।
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