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तुम हममें ज़िंदा हो रोहित वेमुला...

साथी रोहित! तुमको पता है कि अब देश भर के कैम्पस में माहौल बदल रहा है. जहाँ एक तरफ़ वंचित-शोषित तबके के युवाओं में एक चेतना आई है और वे खुलकर बोल रहे हैं, तो वहीँ सत्ता अब और सूक्ष्म तरीके से हमला कर रही है।

ROHITH VEMULA

आज रोहित वेमुला की तीसरी बरसी है।  पिछले साल इसी मौके पर दिल्ली विश्विद्यालय के शिक्षक लक्ष्मण यादव ने बहुत ही मार्मिक पत्र लिखा  था जो हमारी सत्ता और व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करता है। न्यूज़क्लिक इसे आपके लिए जस का तस प्रस्तुत कर रहा है-

साथी रोहित वेमुला,

सबसे पहले तो तुम्हे क्रांतिकारी सलाम साथी। आज 17 जनवरी है। तुमको गए दो साल हो गए। तुम आज भी बहुत टूटकर याद आते हो। तुम्हारा आखिरी खत अब भी हौसला अफजाई करता है। बहुतों को तुमसे शिकायत हो सकती है कि 'तुम लड़े क्यों नहींलेकिन मुझे नहीं है। तुम्हारे खत की बातें तुम्हारे भीतर चल रहे संसार और उसके साथ रोजना होने वाली लड़ाई को जाहिर करती हैं। मुझे तो लगता है तुम योद्धा की तरह लड़े। तुम्हारे खत की पंक्तियों से सीख लेते हुए कहूं तो एक ऐसा योद्धा जिसने महसूस किया है एक इंसान की कीमत उसकी फौरी पहचान में और सबसे आसान संभावनाओं में समेट कर रख दी गई है। महज़ एक वोट… महज़ एक संख्या… एक वस्तु… कभी भी इंसान से ऐसे पेश नहीं आया जाता कि उसमें दिमाग भी हैवह सोच सकता है। वह सितारों से बनी हुई एक जगमगाती चीज़ है। हर मामले मेंपढ़ाई मेंसड़कों परसियासत मेंमरने और जीने में.’  मुझ जैसा 'चुप्पायुवा तक अपने कैम्पस में अब ज़ोर से ये नारा लगता हैतो तुम याद आते हो। तुम हममे जिंदा हो।

साथी रोहित! तुमको पता है कि अब देश भर के कैम्पस में माहौल बदल रहा है. जहाँ एक तरफ़ वंचित-शोषित तबके के युवाओं में एक चेतना आई है और वे खुलकर बोल रहे हैंतो वहीँ सत्ता अब और सूक्ष्म तरीके से हमला कर रही है। महीनों तुम्हारी फ़ेलोशिप बंद करने वाली सरकार अब तो सबकी फ़ेलोशिप बंद करती जा रही है। सीटें आधी कर दीकैम्पसों में अपने चापलूसों को भर दियाबोलने वालों की आवाज़ें प्रकारांतर से दबा रही हैं। शोधार्थी को गाइड धमकाता-समझाता हैतो नौकरियों के नाम पर सत्ता एक रीढ़विहीन चापलूस पैदा कर रही है। अब कैम्पसों में आवाज़ उठाना और कठिन हो गया है। तुम्हारे जाने के दो साल बाद भी कैम्पस बदले नहींबल्कि और बदतर हो गए हैं। तुम होतेतो तुमको डीयू बुलाता और दिखाता।

साथी रोहित! हम आज भी मानते हैं कि तुम्हारी सांस्थानिक हत्या की गई। तुमको पता नहीं होगा कि तुम देशभर के युवाओं और विश्वविद्यालयों को झकझोर गए। तुम बता गए कि आज़ादी के सत्तर साल बाद भी देश की अकादमिक संस्थाओं में ब्राह्मणवादीमनुवादीसामंतीपितृसत्ता का ही कब्ज़ा है। इतना ही नहींतुमने जाने कितने द्रोणाचारियों की  नकाब उतार दियाजो प्रगतिशील लिबास में छिपे थे। आज पिछले एक साल में अपने दिल्ली विश्वविद्यालय में हम जैसे युवा बाकायदा इस कब्ज़े को देख पा रहे हैंझेल रहे हैं और उसके खिलाफ़ खड़े होने की हिम्मत जुटा रहे हैं। तुमने हिम्मत दीआज जाने कितने रोहिथ पैदा हो रहे हैंलड़ रहे हैं। अब सवाल और पूछे जाने लगे हैंआज के युवा बेचैन हैं...

साथी रोहित! तुम वैज्ञानिक बनना चाहते थेतुम लड़ना और बदलना चाहते थेलेकिन तुम्हारे सपनों की ह्त्या करने वाली सत्ताएँ आज भी ज़िंदा हैं और लगातार वही कर रही हैं, लेकिन अब चीज़ें बहुत तेज़ी से बदल रही हैं। तुमने जाने कितने प्रगतिशील संगठनों तक को अपने बैनर-पोस्टर में आंबेडकर की तस्वीर लगाने को मजबूर कर दियातुमने सत्ता चला रही पार्टी को आंबेडकर के सामने ला खड़ा कियाबशर्ते तमाशे जैसा ही सहीलेकिन अब तो आंबेडकर के राजनैतिक क़ातिल तक बेचैन हो गए। जाने कितने युवा आज भी तुम्हारे ख़त को पढ़ते होंगेबेचैन होते होंगे। तुमने कैम्पस ही नहीं,देशभर के युवाओं को झकझोरातो आज कहीं चंद्रशेखर लड़ रहा हैतो कहीं जिग्नेश बोल रहा है। तुम जहाँ कहीं होगेतो क्या सोच रहे होगेकभी सपने में आकर मुझे ज़रूर बताना। इसी बहाने मिलते रहना।

एक बार फिर से तुम्हें इंकलाबी सलाम करने का मन हैज़िन्दा रहना हममेंहम लड़ेंगे साथीजब तक लड़ने की ज़रूरत बाकी होगी...

 अलविदा दोस्त

तुम्हारा दोस्ततुम्हारा हमख़्वाब युवा

लक्ष्मण यादव 

(17 जनवरी 2018 )

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