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ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति चुनावों में दांव पर आख़िर क्या है?

ट्यूनीशिया में वर्ष 2011 की क्रांति के बाद 15 सितंबर के दूसरा राष्ट्रपति चुनाव होना है। इसको लेकर हम यहां के प्रमुख मुद्दों, प्रमुख राजनीतिक ताकतों और वामपंथ के विचार पर एक नज़र डालते हैं।
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ट्यूनीशिया में 15 सितंबर को राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव होने जा रहा है। Image courtesy: Facebook

ट्यूनीशिया को आमतौर पर 'अरब क्रांति' की सफलता के इतिहास के रूप में देखा जाता है। वर्ष 2011 में ज़िने अल आबेदीन बिन अली के 29 साल लंबे निरंकुश सत्ता को समाप्त करने के लिए हज़ारों नागरिक लामबंद हो गए। अन्य देशों के उलट जहां उस समय बड़े पैमाने पर विद्रोह हुए उसकी तुलना में आज ट्यूनीशिया काफी स्थिर है और इसकी लोकतांत्रिक प्रणाली काफी हद तक व्यावहारिक है।

15 सितंबर को राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है जो इस क्रांति के बाद दूसरी बार चुनाव होगा। इस चुनाव में शामिल 26 उम्मीदवार देश में मौजूद अपेक्षाकृत उदार परिस्थितियों के साक्षी हैं। यदि कोई भी उम्मीदवार 50% से अधिक वोट नहीं जीतता है तो दो शीर्ष उम्मीदवारों के बीच दूसरे दौर का चुनाव 3 नवंबर से कुछ समय पहले किया जाएगा।

इन चुनावों में आख़िर दांव पर क्या है इसे समझने के लिए हम इसकी प्रक्रिया, कुछ प्रमुख उम्मीदवार और एजेंडा जो उन्होंने लोगों के सामने रखा है उस पर एक नज़र डालते हैं।

1. ये चुनाव निर्धारित समय से पहले क्यों किए गए?

ये राष्ट्रपति चुनाव पहले 17 नवंबर को होना निर्धारित था लेकिन राष्ट्रपति बेजी सैद एस्सेबसी की मौत के बाद इसे पहले कर दिया गया। एस्सेबसी का 25 जून को 92 वर्ष की उम्र में निधन हो गया।

वर्ष 2014 में वह लोकतांत्रिक रूप से चुने गए देश के पहले राष्ट्रपति बने। इससे पहले वे हबीब बोरगुइबा के 30 साल के तानाशाही शासन के दौरान कई शीर्ष पदों पर रहे। विधायिका के लिए चुनाव 6 अक्टूबर को होंगे।

2. राष्ट्रपति की क्या ज़िम्मेदारियां हैं?

ट्यूनीशिया में राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री दोनों हैं। प्रधानमंत्री घरेलू मामलों, सरकार और इसके संस्थानों के आंतरिक कामकाज के लिए काफी हद तक ज़िम्मेदार होते हैं। राष्ट्रपति के पास सशस्त्र बलों, विदेश नीति, रक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा पर नियंत्रण होता है।

3. आज ट्यूनीशिया में प्रमुख राजनीतिक ताकतें कौन हैं?

धर्मनिरपेक्ष निदा टौन्स पार्टी (जिससे दिवंगत राष्ट्रपति बेजी सैद एस्सेबसी का संबंध था) और इस्लामिक एन्नाहधा मूवमेंट वर्तमान में देश की सबसे मजबूत राजनीतिक शक्ति हैं। वर्ष 2014 के संसदीय चुनावों में निदा टौन्स ने 37.56% सीट पर जीत हासिल किया और एन्नाहधा ने 27.79% सीटें हासिल की।

एन्नाहदा पार्टी का मुक़ाबला करने के लिए निदा देश के उदारवादी, धर्मनिरपेक्ष ताकतों को एक साथ लाना चाहती है। हालांकि, बोर्गुइबा और बेन अली राजनीतिक गुटों के कई नेताओं को निदा में एक नई जगह मिली है।

आगामी चुनावों में आगे की दौड़ में ताहिया टौनेस पार्टी (निदा टॉनेस से अलग हुई पार्टी) के वर्तमान प्रधानमंत्री यूसुफ चाहेद, एन्नाहधा आंदोलन के एक महत्वपूर्ण नेता अब्देलफत्ता मौरु और राष्ट्रपति के रूप 2011 में क्रांति के बाद तीन वर्षों तक सेवा करने वाले अन्य ट्यूनीशिया गठबंधन के मोनसेप मरज़ूकी शामिल हैं।

मीडिया मुगल और नेस्मा टीवी चैनल के संस्थापक नबील करौई 23 अगस्त को गिरफ्तारी के बावजूद एक मज़बूत उम्मीदवार बने हुए हैं। वह इस समय जेल में हैं और उन पर मनी लॉन्ड्रिंग और कर चोरी के आरोप हैं।

ट्यूनीशियाई वामपंथियों के सबसे मज़बूत उम्मीदवार वर्कर्स पार्टी और पॉपुलर फ्रंट गठबंधन के हम्मा हम्मामी हैं।

4. आज ट्यूनीशिया के प्रमुख मुद्दे क्या हैं?

ट्यूनीशिया की प्रमुख चुनौतियां आज की अर्थव्यवस्था से संबंधित हैं। क्रांति के बाद सत्ता में आई सरकारों ने अर्थव्यवस्था को संभालने के लिए संघर्ष किया है। राष्ट्रीय ऋण वर्ष 2010 में जीडीपी के 40% से कम से बढ़कर 2017 तक 70% हो गया और आर्थिक विकास 1% पर स्थिर हो गया है।

कमज़ोर आर्थिक विकास ने बढ़ती बेरोज़गारी को जन्म दिया है, खासकर युवाओं में। वर्ष 2010 में 12% रही कुल बेरोज़गारी दर बढ़कर 15.2% हो गई और कुछ रिपोर्टों का अनुमान है कि लगभग 35% युवा बेरोज़गार हैं।

बढ़ती बेरोज़गारी का मतलब है कि हज़ारों शिक्षित युवा पलायन कर गए हैं या यूरोप में पलायन करने का प्रयास किया है। इस बीच मुद्रास्फीति बढ़ी है, विशेष रूप से पिछले कुछ वर्षों में जो जून 2018 में 28 साल के सबसे ज़्यादा 7.8% तक पहुंच गई।

वर्ष 2016 में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष अपने आम शर्तों के साथ ट्यूनीशिया को 2.9 बिलियन अमरीकी डॉलर का लाइफलाइन लोन देने पर सहमति व्यक्त की थी। निदा टौनेस के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने 2018 में नए वित्त विधेयक को पेश किया जिसमें अन्य उपायों के साथ सरकारी कर्मचारियों के वेतन रोकने और बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं पर करों को बढ़ाना शामिल था।

इस सख्त प्रक्रियाओं ने लोगों को नाराज़ कर दिया और इसके चलते जनवरी 2018 में बड़े पैमाने पर आंदोलन हुआ। इन नीतियों के ख़िलाफ़ हज़ारों संख्या में वामपंथी कार्यकर्ता, ट्रेड यूनियन के नेता और नागरिक लामबंद हो गए। वामपंथी गठबंधन, पॉपुलर फ्रंट इन प्रक्रिया-विरोधी आंदोलन में सबसे आगे थे।

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आर्थिक मितव्ययिता उपाय के खिलाफ जनवरी 2018 में विरोध प्रदर्शन

ट्यूनीशिया और यूरोपीय संघ के बीच एक गहन तथा व्यापक मुक्त व्यापार समझौते (डीप एंड कम्प्रीहेंसिव फ्री ट्रेड एग्रीमेंट) की संभावना भी मुख्य मुद्दा है। इस समझौते को फ्रांसीसी भाषा में एकॉर्ड डे लिबर एचेंज कम्प्लेट एट अप्रोफोंडी (एएलईसीए) नाम से जाना जाता है।

ये समझौता दोनों पक्षों के बीच हुए पूर्ववर्ती समझौतों से विकसित हुआ है जो दोनों पक्षों के बीच आर्थिक सहयोग को मजबूत करेगा और 'ट्यूनीशियाई अर्थव्यवस्था को यूरो-मेडिटेरेनियन आर्थिक क्षेत्र में गंभीरता से एकीकृत करेगा।' इस समझौते को लेकर बातचीत वर्ष 2015 में आधिकारिक तौर पर शुरू हुई और बाद के समय में दोनों पक्षों द्वारा प्रारंभिक चर्चाओं को प्रकाशित किया गया।

यह समझौता ट्यूनीशिया के नागरिक संगठनों, ट्रेड यूनियनों और वामपंथी दलों के लिए विवाद का विषय रहा है क्योंकि उनका मानना है कि इससे राष्ट्रीय संप्रभुता और आर्थिक स्थिरता को गंभीर ख़तरा है।

जबकि ट्यूनीशिया और यूरोप में आर्थिक सहयोग का एक विशेष इतिहास है, असमान पक्षों के बीच मुक्त व्यापार समझौतों के नकारात्मक प्रभाव के उदाहरण दुनिया भर में बड़ी संख्या में मौजूद हैं। ट्यूनीशिया में यूरोपीय वस्तुओं के प्रवेश की सुविधा देकर ये मुक्त व्यापार समझौता ट्यूनीशिया की उत्पादक क्षमता को और बदतर कर देगा। इसके निर्यात बढ़ने से ट्यूनीशिया को लाभ होने की संभावना सीमित है।

हालांकि लीबिया, अल्जीरिया, मोरक्को और मिस्र जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में ट्यूनीशिया राजनीतिक रूप से स्थिर है फिर भी इसे आतंकवादी हमलों और चरम-दक्षिणपंथी इस्लामी आंदोलनों में वृद्धि के मामले में चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। पिछले दशक में देश में कम से कम सात हमले हुए हैं जिसमें 2015 में सबसे बड़ा हमला बारडो नेशनल म्यूजियम हमला, सोसे हमला और ट्यूनिस बमबारी है। इन तीन हमलों में 70 से अधिक लोग मारे गए।

इसके अलावा किसी भी अन्य देश के नागरिकों की तुलना में सीरिया, इराक और लीबिया में ज़्यादा ट्यूनीशियाई इस्लामी चरमपंथी समूहों में शामिल हुए हैं। संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि लड़ाई के लिए 5,000 से अधिक ट्यूनीशियाई इन देशों में गए हैं।

5. ट्यूनीशिया में चुनाव क्यों महत्वपूर्ण हैं? क्षेत्रीय रूप से ट्यूनीशिया की क्या भूमिका है?

वर्ष 2019 के चुनाव 2010-2011 की क्रांति के परिणाम को और मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण क्षण हैं जो बड़े पैमाने पर राजनीतिक और नागरिक स्वतंत्रता के दायरे में थे और उन्हें लोगों के जेहन में और अधिक गहरा कर दिया। ट्यूनीशियाई आश्वस्त हैं कि दमन, अत्याचार और एकदलीय शासन की वापसी नहीं होने वाली है।

वाम के लिए ये चुनाव कई उद्देश्यों को पूरा करता है। यह निदा पार्टी की अगुवाई वाली “राष्ट्रीय और सामाजिक अपमान के तंत्र” और प्रधानमंत्री यूसुफ अल चेहेद के गठबंधन से मुक़ाबला करने का मौका होगा। और यह एक वैकल्पिक कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए वाम दलों के लिए एक अहम मौके के तौर पर काम कर सकता है।

ये चुनाव वाम और संगठित क्षेत्रों के लिए व्यवस्थित रूप से विकसित होने, जनता की शक्ति जुटाने और इसे चुनावी जीत में शामिल करने का भी एक मौका होगा।

क्षेत्रीय रूप से ट्यूनीशिया एक क्रांतिकारी मॉडल के रूप में कार्य करता है जो उन देशों को उम्मीद देता है जो इस क्षेत्र में संघर्ष में फंसे हुए हैं। ट्यूनीशियाई क्रांति पुरानी शैली के सत्तावादी शासन पर जीत की एक मिसाल के रूप में सामने आई है जो अभी भी इस क्षेत्र में शासन करती है।

6. हम्मा हम्मामी कौन हैं और ट्यूनीशिया के प्रति उनकी सोच क्या है?

हम्मा हम्मामी पॉपुलर फ्रंट से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार हैं और ट्यूनीशिया के संघर्ष और क्रांति के इतिहास की प्रमुख हस्तियों में से एक हैं। ट्यूनीशिया में विपक्ष और क्रांतिकारी आंदोलनों में उनके दशकों के काम के दौरान हम्मामी को दर्जनों बार गिरफ़्तार किया गया, कैद किया गया और प्रताड़ित किया गया। कुल मिलाकर उन्होंने 10 साल से ज़्यादा जेल में गुज़ारे और 10 साल से ज्यादा समय तक गुप्त रखा।

हम्मामी ने 1970 के दशक के दौरान छात्र आंदोलन से अपना राजनीतिक सफर शुरू किया और जनरल यूनियन ऑफ ट्यूनीशियन स्टूडेंट्स (यूजीईटी) के सदस्य थें। इस समय उन्हें पहली बार गिरफ्तार भी किया गया था। कुछ साल बाद ही बंद आंदोलन पर्सपेक्टिव्स ट्यूनीसेनी में शामिल होने के बाद हम्मामी को साढ़े आठ साल की जेल की सजा सुनाई गई थी। पर्सपेक्टिव्स ट्यूनीसेनी ने एल अमल एट्टोउन्सी का प्रकाशन किया था। उन्होंने छह साल की सजा काट ली जिस दौरान उन्हें यातनाएं दी गईं।

वर्ष 1986 में उन्होंने ट्यूनीशियाई कम्युनिस्ट वर्कर्स पार्टी के गठन में मदद की जिसे 2011 तक गुप्त संगठन के रुप में बंद और संचालित किया गया था। इस साल इस पार्टी को वर्कर्स पार्टी ऑफ ट्यूनीशिया का नाम दिया गया और वैध किया गया। वर्कर्स पार्टी ऑफ ट्यूनीशिया पॉपुलर फ्रंट में आज बड़ी ताकत है।

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हम्मा हम्मामी राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं और वामपंथी गठबंधन  पॉपुलर फ्रंट से हैं।

इस चुनाव के दौरान हम्मामी और पॉपुलर फ्रंट ने एक मुख्य मुद्दा राष्ट्रीय संप्रभुता का उठाया है। वह आईएमएफ ऋण और शर्तों, साथ ही साथ एएलईसीए समझौते को ट्यूनीशियाई संप्रभुता के लिए गंभीर ख़तरे की तरह देखते हैं और मानते हैं कि देश को औपनिवेशिक संस्थानों के हाथों में डाल दिया गया है।

हम्मामी धन के पुनर्वितरण, संविधान की रक्षा और क्रांति द्वारा प्राप्त स्वतंत्रता और भ्रष्टाचार, आतंकवाद और तस्करी के ख़िलाफ़ लड़ाई की भी वकालत करते हैं।

सौजन्य: पीपुल्स डिस्पैच

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