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उत्तराखण्ड की राजनीतिक स्थिति एवं वर्तमान लोकसभा चुनाव

वामपंथी दलों के अलावा अन्य दल मुद्दा विहीन हैं और इस प्रकार राज्य की राजधानी, समग्र विकास, बेरोज़गारी, पलायन, स्वास्थ्य, शिक्षा जैसे मुद्दे प्रमुख दलों के लिए गौण हैं। प्रमुख दल इन मुद्दों को हाशिये में धकेल कर ग़ैर-जनता के मुद्दों को प्रमुख मुद्दा बना कर चुनाव मैदान में हैं।
उत्तराखण्ड की राजनीतिक स्थिति एवं वर्तमान लोकसभा चुनाव

राज्य में प्रमुख राजनीतिक दलों में 'आया रामगया रामकी परंपरा रही है। इसी परंपरा के तहत सरकारें व मुख्यमंत्री बदलते रहे हैं। अबतक लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों का वर्चस्व रहा है। राज्य में 16वें लोकसभा चुनाव में राज्य की सीटों पर वर्तमान सत्ताधारी भाजपा क़ाबिज़ रही है। वर्तमान में 17वें लोकसभा का चुनाव होने जा रहा है और प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस के मध्य अंतरकलह का चुनाव जारी है। राज्य में वामपंथी दल सीपीएमसीपीआई तथा सीपीआई(एमएल) संयुक्त रूप से राज्य की टिहरी तथा नैनीताल सीटों पर चुनाव लड़ रही है। बसपा व सपा गठबंधन पौड़ी गढ़वाल को छोड़कर चार सीटों पर चुनाव लड़ रही है इसके साथ ही अन्य निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं। वामपंथी दलों के अलावा अन्य दल मुद्दा विहीन हैं और इस प्रकार राज्य की राजधानीसमग्र विकासबेरोज़गारीपलायनस्वास्थ्यशिक्षा जैसे मुद्दे प्रमुख दलों के लिए गौण हैं। प्रमुख दल इन मुद्दों को हाशिये में धकेल कर ग़ैर-जनता के मुद्दों को प्रमुख मुद्दा बना कर चुनाव मैदान में हैं। 

राज्य में लोकसभा सीटें परंपरागत रूप से कांग्रेस व भाजपा के मध्य बटती आई हैं। शुरुआती दौर में हरिद्वार सीट से समाजवादी पार्टी का सांसद रहा है। राज्य गठन से पूर्व राज्य के वर्तमान टिहरी संसदीय क्षेत्र में वामपंथी दलों का प्रभाव रहा है तथा उत्तरप्रदेश की विधानसभा में टिहरी व देवप्रयाग क्षेत्र से सीपीआई के विधायक रहे हैं। इसी क्षेत्र से कॉमरेड कमलाराम नौटियाल व विद्यासागर नौटियाल को लोकसभा चुनाव में अच्छे-खासे मत मिले हैं।

राज्य गठन के बाद से राज्य नेतृत्व

उत्तराखण्ड राज्य बनने के बाद राज्य में नित्यानन्द स्वामी के नेतृत्व में राज्य में भाजपा की अंतरिम सरकार का गठन हुआ। राज्य में प्रमुख विपक्ष के रूप में कांग्रेस रहीइस दौरान राज्य के तराई क्षेत्र में बसपा एवं समाजवादी पार्टी का जनाधार था। राज्य के प्रथम चुनाव में कांग्रेस सत्तासीन हुई राज्य में पहली बार सीधे तौर पर बसपाक्षेत्रीय पार्टी यूकेडी के भी विधायक चुने गए जो कि सत्ताधारी पार्टी से जुड़े रहे। इस चुनाव में भाजपा को विपक्ष में बैठना पड़ा। राज्य के दूसरे चुनाव में पुनः भाजपा सत्तासीन हुई इस सरकार का नेतृत्व भुवन चन्द्र खंडूरी व निशंक पोखरियाल ने किया। इस सरकार को यूकेडी सहित कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था। तीसरे चुनाव में पुनः कांग्रेस सत्तासीन हुई जिसका नेतृत्व विजय बहुगुणा और हरीश रावत ने कियाइस सरकार को भी यूकेडी सहित कुछ निर्दलीय विधायकों का समर्थन प्राप्त था। इसी प्रकार राज्य के चौथे विधानसभा चुनाव में भाजपा को बहुमत मिला तथा इस सरकार का नेतृत्व वर्तमान में श्री त्रिवेंद सिंह रावत कर रहे हैं। 

जन मुद्दे ग़ायब  

राज्य आन्दोलन के मूल में यहाँ की जनता की मुख्य पीड़ा रोज़गार व पलायन थी। यहाँ के कुछ राजनी तिक दलों व क्षेत्रीय दलों व आन्दोलनकारी समूह का मानना था कि अलग राज्य बनने के बाद यहाँ का विकास बहुत तेज़ी से होगा- पलायन रुकेगारोज़गार बढ़ेगा। लेकिन ये सब सिर्फ़ सपने साबित हुए। राज्य गठन के बाद सत्तासीन हुए प्रमुख राजनैतिक दल भाजपा व कांग्रेस अपने निजी स्वार्थों की पूर्ति करने में लग गए। आपसी खींचतान के कारण राज्य में अनेकों मुख्यमंत्री और सांसद बने और साथ ही विकास के नाम पर कुछ क्षेत्र विशेष का ही विकास हुआ तथा विकास में भी भारी भ्रष्टाचार हुआ। पहाड़ी ज़िलों की समस्या जस-की-तस बनी रहने के कारण स्थिति पहले के मुक़ाबले ज़्यादा जटिल हुई। पलायन तेज़ी से मैदानी ज़िलों की ओर हुआ तथा पहाड़ सुविधा के अभाव में ख़ाली हो गए तथा मैदानी ज़िलों की स्थिति भी बद से बदतर हुई इस प्रकार शासक दलों की जनविरोधी नीति का ख़ामियाज़ा आमजन को झेलना पड़ रहा है। क्षेत्रीय दल आपसी टकरावमतभेद तथा निजी स्वार्थों के चलते स्वतः ही अंतिम कगार पर हैं। इस राज्य में वामपंथी दल ख़ासकर माकपा कुछ क्षेत्रों में जनमुद्दों को लेकर निरंतर संघर्ष कर रही है तथा इस जनता के मध्य लोकप्रिय भी है।

टिहरी लोकसभा और राजशाही वंशवाद

इस राज्य के टिहरी लोकसभा क्षेत्र से वर्तमान भाजपा की सांसद महारानी राजलक्ष्मी शाह चुनाव मैदान में हैं। कांग्रेस की ओर से वर्तमान कांग्रेस अध्यक्ष व चकराता विधायक व पूर्व मंत्री के पुत्र प्रीतम सिंह चुनाव मैदान में हैं। भाजपा इस वंशवाद के आधार पर पुनः चुनाव जीतने की फ़िराक में हैइसी प्रकार कांग्रेस के पूर्व प्रत्याशी व पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा व उनके पुत्र भाजपा में दल-बदल के कारण कांग्रेस को वर्तमान अध्यक्ष को चुनाव मैदान में उतारना पड़ा जो कि कहीं न कहीं वंशवाद से जुड़े हैं। वामपंथी दलों की ओर से किसान नेता राजेंद्र पुरोहित चुनाव मैदान में हैं जो कि सहसपुर ब्लॉक के पूर्व प्रमुख भी रहे हैं। बसपा की ओर से भी इस सीट में उनका प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। इसी प्रकार अन्य क्षेत्रीय व निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनाव मैदान में हैं।

पौड़ी गढ़वाल लोकसभा  क्षेत्र

पौड़ी लोकसभा सीट से वर्तमान में सभी दलों के नए प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। भाजपा में अंदरूनी विद्रोह के चलते वर्तमान सांसद का टिकट कटने के कारण एक पूर्व मंत्री तीरथ सिंह रावत को चुनाव मैदान में उतारा गया है। तो कांग्रेस द्वारा इस सीट पर वर्तमान भाजपा के सांसद के पुत्र मनीष खंडूरी को चुनाव मैदान में उतारा गया।

हरिद्वार लोकसभा क्षेत्र

हरिद्वार लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री व मौजूद सांसद डॉ० रमेश पोखरियाल निशंक के सामने कांग्रेस के अम्बरीष कुमार है। दोनों सियासत के पुराने खिलाड़ी हैं। रमेश पोखरियाल निशंक को जो परेशानी झेलनी पड़ सकती है वह है उन पर प्रवासी होने का आरोप और दूसरा टिकट पाने की इच्छा पालने वाले दूसरे भाजपा के उम्मीदवार। वहीं अम्बरीष कुमार पुराने जनाधार वाले स्थानीय नेता रहे हैं। वह लोकसभा चुनाव लड़ भी चुके हैं व लड़ा भी चुके हैं जबकि उनके ख़िलाफ़ हरिद्वार को उत्तराखण्ड में शामिल होने के ख़िलाफ़ रहे रुख को भाजपा उनके ख़िलाफ़ इस्तेमाल कर सकती है। वहीं इस सीट पर बसपा प्रत्याशी का भी ठीक जनाधार रहा है। साथ ही स्थानीय पार्टी यूकेडी भी अपनी खोई ज़मीन को तलाशने की कोशिश में रहेगी।

नैनीताल लोकसभा क्षेत्र

नैनीताल लोकसभा सीट पर जंग दिलचस्प रहेगी क्योंकि पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत को हरिद्वार सीट पर कांग्रेस पार्टी की ओर से प्रबल दावेदार माना जा रहा था। वहीं हरीश रावत नैनीताल सीट से लड़ने के इच्छुक थे। पार्टी हाई कमान द्वारा हरीश रावत को उनकी मनचाही सीट से टिकट तो मिल गया किन्तु नेता प्रतिपक्ष डॉ० इंदिरा हृदयेश और पूर्व सांसद महेन्द्रपाल को अपने साथ लाने की चुनौती रहेगी क्योंकि यह भी टिकट के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे। वहीं हरीश रावत को चुनाव लड़ने व लड़ाने का लम्बा अनुभव रहा है। भाजपा से पूर्व सांसद भगत सिंह कोश्यारी को टिकट न मिलने के बाद भाजपा की ओर से प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट पहली बार लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं। जिनके सामने पूरे प्रदेश की बागडोर की ज़िम्मेदारी के साथ अपनी सीट का ख़याल भी रखना होगा। वहीं वामपंथी पार्टियों के संयुक्त प्रत्याशी कैलाश पाण्डे सीपीआई(एमएल)सपा-बसपा गठबंधन के प्रत्याशीयूकेडी के प्रत्याशी भी मैदान में हैं।

अल्मोड़ा लोकसभा क्षेत्र

अल्मोड़ा लोकसभा सीट से पुराने प्रतिद्वंदी आमने-सामने होंगे। सोमेश्वर विधानसभा पर एक दूसरे को बारी-बारी से हराने वाले पुराने प्रतिद्वंदी रहे हैं। मौजूदा वक़्त में केंद्रीय कपड़ा राज्य मंत्री अजय टम्टा का सामना राज्यसभा सांसद व पुराने अल्मोड़ा सांसद प्रदीप टम्टा से है। पहली बार लोकसभा चुनाव जीत कर सीधे केंद्र में मंत्री बने अजय टम्टा को लोकसभा क्षेत्र के लोगों को समझाना होगा कि उन्होंने अपने क्षेत्र के लिए क्या किया। प्रदीप टम्टा की बात करें तो उन्हें संभवतः हरीश रावत के उनसे सटी सीट नैनीताल सीट से चुनाव लड़ने का लाभ भी मिल सकता है। वहीं वह अजय टम्टा के मुक़ाबले अच्छे वक्ता भी माने जाते हैं। साथ ही वह जनांदोलनों में भी सक्रिय रूप से हिस्सेदारी करते रहे हैं। इस सीट पर भी सपा-बसपा गठबंधन व यूकेडी भी क्षेत्र में अपने आप को मज़बूत करने के लिए प्रयासरत रहेगी।

कुल मिलाकर भाजपा पिछले लोकसभा के नतीजों को दोहराने के प्रयास में रहेगी वहीं कांग्रेस राज्य में सत्ताविरोधी लहर को एकजुट करने की कोशिश करेगी। यह तो तय है कि भाजपा अपने पिछले प्रदर्शन को नहीं दोहराने जा रही है।

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