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यूपी चुनाव: किसान-आंदोलन के गढ़ से चली परिवर्तन की पछुआ बयार
पहले चरण के मतदान की रपटों से साफ़ है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण वोटिंग पैटर्न का निर्धारक तत्व नहीं रहा, बल्कि किसान-आंदोलन और मोदी-योगी का दमन, कुशासन, बेरोजगारी, महंगाई ही गेम-चेंजर रहे।

लाल बहादुर सिंह
11 Feb 2022
rakeh tikait

10 फरवरी को UP के अहम चुनावों के पहले चरण का मतदान हो गया। रपटों से साफ है कि साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण वोटिंग पैटर्न का निर्धारक तत्व नहीं रहा, बल्कि किसान-आंदोलन और मोदी-योगी का दमन, कुशासन, बेरोजगारी, महंगाई ही गेम-चेंजर रहे। सुरक्षा के सवाल को साम्प्रदयिक twist देकर-दबंग और दंगाई की एक स्वर में बात करते हुए भाजपा जो उन्माद पैदा करना चाहती थी उसमें कामयाब नहीं हुई। अधिक से अधिक भाजपा हिंदुत्व और सोशल इंजीनियरिंग के ब्लेंड से बने अपने पक्के समर्थकों के एक हिस्से को अपने पक्ष में बचाये रखने में सफल हो पाई।

न्यूज24 पर सीएसडीएस के चुनाव विश्लेषक संजय कुमार ने अपने आकलन में कहा है कि सपा- रालोद के पक्ष में 2014, 17, 19 की तुलना में आंधी चली है और भाजपा के लिए चिंताजनक स्थिति  है।

लगभग एक दशक पूर्व के मुजफ्फरनगर दंगे की सच्ची-झूठी कहानी गढ़कर लोगों के सामने उसके सभी शीर्ष नेता जिस तरह पेश कर रहे हैं और उसका हव्वा खड़ा कर लोगों को डरा रहे हैं कि विपक्ष को वोट दिया तो " मुजफ्फरनगर फिर जल उठेगा ",  यह बेहद गैर-जिम्मेदार तो है ही, लगता है इसकी कोई echo जनता में  नहीं हुई। लोगों को कुछ कुछ ऐसा लगा जैसे सांप चला गया आप लकीर पीट रहे हैं। भाजपा के नेताओं के बयानों को सुनकर लग रहा है जैसे वे 2017 का चुनाव लड़ रहे हैं, जबकि समय 5 साल आगे बढ़ चुका है ! आप आज का चुनाव टाइम मशीन से पीछे जाकर 2017 के सवाल पर नहीं जीत सकते।

घबड़ाई भाजपा चुनाव में सारे foul plays का सहारा ले रही है। दिन भर जगह जगह से तमाम गड़बड़ियों की सूचनाएँ आती रहीं। एनडीटीवी की खबर के अनुसार अलीगढ़ के एक गाँव में कुल 700 मतदाता थे, पर मतदान में सिर्फ 200 ही मतदान कर पाए क्योंकि 500 मतदाताओ का नाम ही गायब था। अनेक केंद्रों से तरह तरह की अनियमितताओं, मतदाताओं को डराने-धमकाने, ईवीएम खराब होने, कर्मचारियों के लंच पर जाने के कारण मतदान रुके होने और मतदाता सूची में नाम न होने की वजह से मतदान करने से रोकने की शिकायतें आती रही।  इसका शिकार आमतौर पर मुस्लिम समुदाय के लोगों को होना पड़ा है।

दूसरी ओर दिन भर ऐसी ख़बरें भी आती रहीं, जब तमाम बूढ़े बुजर्ग विकलांग व्हील  चेयर और परिवार के किसी अन्य सदस्य के कंधे पर मतदान के लिए जाते रहे। जाहिर है इसे मतदान के लिए आम उत्साह से अलग अपनी अस्तित्व रक्षा के लिए, लोकतन्त्र के भविष्य के लिए बेचैनी से जोड़कर ही समझा जा सकता है। अमर उजाला ने लिखा लोनी के मन्डोला में गठबंधन के बस्ते पर भीड़ देखी गयी जबकि BJP के बस्ते खाली थे।

किसान-आंदोलन के गढ़ों मुजफ्फरनगर, शामली, मेरठ, बागपत, हापुड़, मथुरा, बुलन्दशहर आदि में तथा जाट-बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में तुलनात्मक रूप से वोट प्रतिशत ऊंचा रहा, जबकि भाजपा के मजबूत इलाकों- बड़े शहरी केन्द्रों नोयडा, गाज़ियाबाद आदि में यह कम रहा, यह इस बात का  बिल्कुल स्पष्ट संकेत है कि पश्चिम से परिवर्तन की बयार चल पड़ी है।

मुजफ्फरनगर में 2017 के 57% की तुलना में इस बार 65.91%, शामली में 61% से बढ़कर 69%,, मेरठ में 58% से बढ़कर61% , मथुरा 55% से बढ़कर 62% वोट पड़ा, जबकि नोयडा में 60% से गिरकर 50% और गाज़ियाबाद में 67% से गिरकर 53%आ गया, इसी तरह आगरा जो गठबन्धन का मजबूत क्षेत्र नहीं माना जाता और कभी बसपा का गढ़ रहे इस इलाके में जहाँ बेबी रानी मौर्या जाटव के माध्यम से भाजपा बड़ी सोशल इंजीनियरिंग में लगी है, वहां 2017 के 73% की तुलना में 13% की भारी गिरावट हुई है, वहां केवल 60% मत पड़ा।

वैसे तो कहीं पर मतदान प्रतिशत बढ़ना अपने आप में सत्ता विरोधी माहौल का अनिवार्य सूचक नहीं है। पर  यहां जब हम अभूतपूर्व महंगाई बेरोजगारी, कोविड कुप्रबंधन, किसान-आंदोलन समेत व्यापक सरकार-विरोधी जन असंतोष के संदर्भ में सोचते हैं, तो यह बिल्कुल साफ है कि सरकार समर्थकों के अंदर किसी नए जोश और उत्साह का तो कोई कारण है नहीं जो उनका मत प्रतिशत बढ़ेगा, अलबत्ता सम्भावना यह है कि उनका एक हिस्सा passive या उदासीन हो गया, जो नोयडा, गाज़ियाबाद आदि में होता दिखता है, जाहिर है इसका खामियाजा भाजपा को अपने इन मजबूत गढ़ों में भुगतना होगा।

जाट किसान बहुल ग्रामीण क्षेत्रों में जो वोट प्रतिशत बढ़ा है, यह नाराज लोगों का बदलाव के लिए वोट है, इसमें शक की कोई गुंजाइश नहीं है।

दरअसल पहले चरण में जहां मतदान हुआ है, यह किसान आंदोलन का गढ़ था, स्वाभाविक रूप से भाजपा विरोधी ताकतों ने इस क्षेत्र से बड़ी उम्मीदें पाल रखी हैं। पर हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि 2013 के दंगों के बाद यही वह क्षेत्र था, जो 2014 से लेकर 2019 तक उत्तरप्रदेश में भाजपा के सबसे मजबूत दुर्ग के रूप मे उभरा था।यहीं पर 2017 के पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने सबसे बड़ी सफलता दर्ज की थी-58 में 53 सीट, 1 RLD  विधायक भी उनके साथ जाने के बाद 58 में 54 सीटें उनकी हो गयी थीं,  अर्थात इसी अनुपात में उन्हें पूरे प्रदेश में सीटें मिलतीं तो विधान सभा मे उनकी 378 सीटें होतीं !

देश में 13 महीने चले ऐतिहासिक किसान आंदोलन ने भाजपा का यही जो सबसे मजबूत किला था, उसे ध्वस्त कर दिया । किसान-नेता राकेश टिकैत ने तंज किया, "BJP के वोट कोको ले गयी " ! पश्चिमी UP, हरियाणा में बच्चों को बहकाने या उनसे कोई चीज छिपाने के लिए कहा जाता है कि उसे कोको अर्थात चिड़िया ले गयी। जयंत चौधरी ने राकेश टिकैत के बयान को रिट्वीट किया,"लोग डिक्शनरी में कोको का मतलब ढूंढ रहे हैं।"

क्या यह महज संयोग है कि जिस दिन किसान आंदोलन के केंद्रीय इलाके में चुनाव खत्म हुआ, उसी दिन लखीमपुर में किसानों की हत्या के मुख्य अभियुक्त गृहराज्य मंत्री टेनी के बेटे को जमानत मिल गयी। यह साफ है कि सरकार ने जमानत रोकने के लिए पैरवी नहीं की और सरकारी वकील ने मंत्रीपुत्र के वकील के लचर तर्कों के आधार पर जमानत मिल जाने में मदद की।

बहरहाल, भाजपा अगर समझती है कि अब उसे किसानों की परवाह करने की जरूरत नहीं तो वह शायद भूल कर रही है। संयुक्त किसान मोर्चा का " भाजपा को सजा दो " अभियान लगातार जारी है।

किसान-नेता ताबड़तोड़ प्रेसवार्ता करते हुए जब आन्दोलन के दौरान किसानों की शहादतों की याद दिला रहे हैं, तो मोदी-योगी-शाह की सत्ता के सबसे बर्बर,क्रूर प्रतीक के बतौर जो चित्र उभर रहा है, वह और कोई नहीं-तिकोनिया के उस रोड पर चुपचाप अपना झंडा लिए चले जा रहे किसानों पर मन्त्रीपुत्र द्वारा चढ़ाई गई थार जीप के visuals ही हैं, जिसे करोड़ों किसानों ने वायरल videos में देखे हैं और जिसे वे शायद ही कभी भूल पाएंगे !

किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि हम चुनाव के इस संवेदनशील मौके पर किसानों के हत्यारे मंत्रीपुत्र को जमानत मिलने के सवाल को मुद्दा बनाएंगे।

मोदी-शाह-योगी तिकड़ी लगातार ध्रुवीकरण के एजेंडा को धार देने में लगे हैं। योगी सभा-दर-सभा 10 साल पुराने मुजफ्फरनगर दंगों का सचित्र वर्णन कर रहे हैं। इसी बीच जारी एक वीडियो में योगी ने उत्तर प्रदेश की जनता को चेताया कि वोट न दिया तो उत्तरप्रदेश को कश्मीर, केरल और बंगाल बनते देर नहीं लगेगी. यह घोर साम्प्रदायिक मन्तव्यों वाला बयान देकर योगी हमारी राष्ट्रीय एकता को कितनी बड़ी क्षति पहुंचा रहे हैं, इसकी उन्हें कोई परवाह नहीं है।

बहरहाल, योगी के इस बयान पर केरल के मुख्‍यमंत्री पिनराई विजयन ने तीखी प्रतिक्रिया देते हुए बाजी पलट दिया,  " यदि यूपी, केरल में तब्‍दील हो जाता है जिसका कि सीएम योगी आदित्‍यनाथ को डर है तो यह सर्वश्रेष्‍ठ शिक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य सेवाओं, सामाजिक कल्‍यााण, अच्‍छे जीवन स्‍तर का आनंद उठाएगा. एक सामंजस्‍यपूर्ण समाज होगा जिसमें धर्म और जाति के नाम पर लोगों की हत्‍या नहीं की जाएगी। "

इस बार के भाजपा के घोषणापत्र का highlight भी The Hindu की नज़र में, " लव जिहाद के लिए सजा बढ़ाकर कम से कम 10 साल किया जाना और 1 लाख का जुर्माना है। " ठीक इसी तरह वायदा किया गया है कि, " आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाने के लिए देवबंद में anti-terrorist कमांडो सेंटर का निर्माण पूरा करेंगे। मेरठ, रामपुर, आजमगढ़, कानपुर, बहराइच में नए anti-terrorist कमांडो सेंटर बनाये जाएंगे।" इस पूरी कवायद का विभाजनकारी मन्तव्य स्वतः स्पष्ठ है।
बाकी उनका पूरा कथित संकल्प पत्र 2017 के अब तक अधूरे खोखले बासी वायदों की कार्बन कॉपी और झूठ का पुलिंदा मात्र है।

उम्मीद की जानी चाहिए कि जनमुद्दों पर पहले चरण में शुरू हुआ गैर-ध्रुवीकृत चुनाव का पैटर्न दूसरे चरण से होते हुए पूरे चुनाव में जारी रहेगा। विपक्ष को evm की हिफाजत की गारंटी करनी होगी और यही लोकतान्त्रिक माहौल बना रहे इसे सुनिश्चित करना होगा-अपनी सकारात्मक वचनबद्धताओं को जोरशोर से हाईलाइट करते हुए, आपसी भाईचारे को बुलंद करते हुए।

किसानों, छात्र-युवाओं,उत्पीड़ित जनसमुदायों, लोकतंत्र-प्रेमियों तथा नफरती जनविरोधी ताकतों के बीच का यह epic war जैसे-जैसे पश्चिम से पूरब की ओर बढ़ेगा, परिवर्तन की बयार बदलाव की आंधी में तब्दील होती जाएगी। लगता है बंगाल के खेला होबे का UP version खदेड़ा होबे 10 मार्च को चरितार्थ होगा।


लेखक इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।

Uttar Pradesh election 2022
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