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वेनेज़ुएला में हो रहा चुनाव ही उसकी जीत है

वेनेज़ुएला की नेशनल असेंबली तब से अवरुद्ध है,जब से उसे वाशिंगटन द्वारा सत्ता परिवर्तन का एक हथियार बना दिया गया है। अब हो रहे इस चुनाव के साथ उम्मीद है कि यह विधायी प्रक्रिया फिर से शुरू हो।
वेनेज़ुएला

वेनेजुएला के लोग एक नई नेशनल असेंबली के लिए 6 दिसंबर को मतदान करेंगे। आमतौर पर इसमें कुछ भी असामान्य नहीं है,और न ही वेनेज़ुएला के बाहर की दुनिया के लिए इसमें कुछ नया होगा। 1998 में ह्यूगो शॉवेज़ के राष्ट्रपति पद के चुनाव के बाद से वेनेज़ुएला के लोगों को हर साल एक से ज़्यादा राष्ट्रीय चुनावों के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है (विधायिका के लिए यह चुनाव 21 वर्षों में 25 वां चुनाव है); ये राष्ट्रपति चुनाव, विधायी चुनाव और 1999 के संविधान को मज़बूत करने के लिए जनमत संग्रह थे। धरातल पर यह चुनाव भी उन्हीं चुनावों में से महज़ एक चुनाव है,जिसने वेनेज़ुएला में लोकतंत्र के मायने को गहरा करने का काम किया है।

लेकिन, इन दिनों कराया जा रहा यह चुनाव भी वेनेज़ुएला के आम लोगों और संयुक्त राज्य सरकार के बीच एक ज़ोर-आज़माइश बनकर रह गया है। शॉवेज़ के राष्ट्रपति बनने के बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार और उसके सहयोगी वेनेज़ुएला की सरकार को अस्थिर करने की कोशिश करती रही है,जिसमें सत्ता परिवर्तन के सीधे-सीधे प्रयास भी शामिल रहे हैं।

जब यह बात साफ़ हो गयी कि शॉवेज़ और उनके नेतृत्व में चली बोलिवेरियन क्रांति को लोगों का ज़बर्दस्त समर्थन हासिल है और उन्हें मतपेटी में हराया नहीं जा सकता, तो अमेरिकी सरकार और उसके सहयोगियों ने वेनेज़ुएला की राजनीतिक संप्रभुता की वैधता की वापसी को लेकर दबाव डालना शुरू कर दिया।

वेनेज़ुएला के राजनीतिक क्षेत्र में ज़बर्दस्त असहमति है,जहां कुलीन वर्ग अपने ख़ुद के राजनीतिक मंचों को बनाये रखे हुए है और बोलिवेरियन क्रांति को कमज़ोर करने और उसे ख़त्म करने की कोशिश जारी रखे हुए है। विपक्ष कहे जाने वाली ये ताक़त 1998 से चुनाव लड़ रही हैं, कोई संदेह नहीं कि उन्हें कुछ फ़ायदा तो ज़रूर मिला है,लेकिन यह अपने ख़िलाफ़ खड़ी ताक़त के मुक़ाबले ताक़तवर नहीं हो पायी है।

मसलन, 2015 में इस विपक्ष को नेशनल असेंबली इलेक्शन में बहुमत हासिल हो गया था और उसने पिछले पांच सालों में विधानसभा को नियंत्रित किया है। यह एक बहुत बड़ी सच्चाई है कि 2015 में विपक्ष को जीत मिली थी और वह जीत दिखाती है कि बेनेज़ुएला में एक मज़बूत चुनावी व्यवस्था है। उस समय धोखाधड़ी को लेकर किसी तरह की कोई शिकायत नहीं थी।

वाशिंगटन में बनाया गया एक विपक्ष

राष्ट्रपति निकोलस मादुरो के साथ सरकार चलाने के अपने संवैधानिक कर्तव्य को निभाने के बजाय,विपक्ष के इन वर्गों ने काराकास में अमेरिकी दूतावास की एक शाखा के तौर पर काम करने का फ़ैसला किया। 2018 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद सांसदों में से एक,जुआन गुआदो (जिसने वर्गास सूबे से अपनी सीट जीती थी) ने अमेरिकी राजनीतिक तख़्तापलट की कोशिशों का  ख़ुद को हथियार बना लिया। बोलिवेरियन क्रांति का विरोध हमेशा विभाजित रहा है और मक़सद को लेकर एकजुट नहीं हो सका है। सबसे अहम विभाजनों में से एक विभाजन संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार के अधीनस्थ होने या न होने की धुरी के सामानांतर है।

गुआदो जैसे लोग डोनाल्ड ट्रम्प और माइक पोम्पेओ का एक हथियार बनकर काफ़ी ख़ुश थे,जबकि दूसरे लोगों ने साफ़ कर दिया था कि इस तरह का नज़रिया एक असंगत,यहां तक कि देशद्रोही दृष्टिकोण है। 2015 के बाद से विपक्ष को अपनी राजनीतिक प्रक्रिया के लिए अमेरिकी समर्थन के स्तर के इस सवाल के आसपास एक अस्तित्वगत संकट का सामना करना पड़ा है; गुआदो का संपूर्ण प्रभाव उसे वाशिंगटन से मिल रहे समर्थन पर निर्भर करता रहा है, न कि उसके ख़ुद के घटक या विपक्ष से मिल रहे समर्थन पर आधारित है।

वेनेज़ुएला के संविधान को 5 जनवरी 2021 से पहले इस नेशनल असेंबली चुनाव की ज़रूरत है,जब विधायकों के एक नये समूह को शपथ दिलानी होगी। यही वजह है कि 6 दिसंबर को चुनाव हो रहे हैं। गुआदो गुट जैसे विपक्ष के कुछ वर्ग को वॉशिंगटन से ताक़त मिल रही हैं, और उसने पहले ही यह आरोप लगाते हुए चुनाव का बहिष्कार करने का फ़ैसला किया था कि इस चुनाव में धोखाधड़ी होगी।

उन्होंने अपने आरोप के इन दावों को लेकर किसी तरह के कोई सबूत नहीं पेश किये हैं; उत्तर अटलांटिक मीडिया को इन आरोपों को बार-बार दोहराने को लेकर किसी सबूत की ज़रूरत नहसूस नहीं हुई, न ही इस मीडिया ने 2015 में नेशनल असेंबली के चुनाव में विपक्ष का पक्ष लेते हुए इस साधारण मामले को सामने रखा। चुनाव के लोकतांत्रिक साधनों या प्रस्तावित क़ानून के ज़रिये सत्ता का मुक़ाबला करने के बजाय, गुआदो के खेमे वाला विपक्ष अलोकतांत्रिक तरीक़ों से सत्ता पर कब्ज़ा करना चाहता है। ऐसा लगता है कि इस चुनाव को जीत लेना इस चुनावी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अवैध ठहराने से कम महत्वपूर्ण है।

चुनावों में अमेरिकी दखल

इस मामले में रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों ही दलों के समर्थन वाले संयुक्त राज्य सरकार ने वेनेज़ुएला के 2020 इस नेशनल असेंबली चुनाव में सक्रिय रूप से हस्तक्षेप किया है। सितंबर में अमेरिकी ट्रेजरी डिपार्टमेंट ने वेनेज़ुएला सरकार के चार अधिकारियों पर प्रतिबंध लगा दिये थे,ये चार अधिकारी थे-रिनॉल्डो एनरिक मुनोज़ पेड्रोज़ा (अटॉर्नी जनरल), डेविड यूजेनियो डी लीमा सालास (एक पूर्व गवर्नर), और नेशनल इलेक्टोरल काउंसिल (कॉन्सेज़ो नैसेंशल इलेक्टोरल) के दो अधिकारी-इंदिरा मैरा अल्फोंज़ो इज़ागिर्रे और जोस लुइस गुटियारेज़ पारा। इंदिरा अल्फोंज़ो नेशनल इलेक्टोरल काउंसिल की अध्यक्ष और विपक्ष के साथ लंबे समय से स्थायी तौर पर खड़ी रहने वाली एक सम्मानित पूर्व न्यायाधीश हैं।

अमेरिकी सरकार ने बिना किसी सुबूत के इस बात का दावा किया कि ये अधिकारी "2020 के दिसंबर में होने वाले स्वतंत्र और निष्पक्ष संसदीय चुनावों को रोकने वाले" चुनाव हस्तक्षेप योजना” का हिस्सा थे। अमेरिकी सरकार का हस्तक्षेप उस महीने के बाद भी जारी रहा,जब उन दूसरे पांच विपक्षी नेताओं पर प्रतिबंध लगा दिये गये,जिन्होंने चुनाव में भागीदारी करने का फ़ैसला किया था; अमेरिकी विदेश विभाग ने उन्हें चुनावों में गड़बड़ी फ़ैलाने की उनकी "सहभागिता" को लेकर प्रतिबंध लगा दिया था।

वाशिंगटन के इस दबाव का सामना करने वाले इन विपक्षी राजनेताओं को वेनेज़ुएला के एक असंतुष्ट आधार का भी सामना करना पड़ रहा है, जो मतदान नहीं करने और मतदान का बहिष्कार करने की नीति के ख़िलाफ़ लड़ रहे हैं। इन विरोधी समूहों के पार्टी के कई सदस्यों ने अपने नेताओं ने आग्रह किया है,और इस बात की मांग की है कि वे चुनाव में भाग लें। वे गुआदो और अमेरिकी विदेश विभाग के उनके मातहत की तरफ़ से रगड़े की रणनीति से तंग आ चुके हैं।

उस कारण से 107 राजनीतिक संगठनों के 14,000 से ज़्यादा उम्मीदवार हैं, जिनमें से 98  की पहचान विपक्षी दलों के रूप में की जाती है। वे 277 सीटों (165 से कहीं ज़्यादा बढ़ी हुई सीटों की यह संख्या जनसंख्या बढ़ोत्तरी को बेहतर ढंग से दर्शाती है और लोकतांत्रिक ताक़त की बढ़ती क्षमता को भी प्रतिबिंबित करती है) पर चुनाव लड़ेंगे।

वेनेज़ुएला की नेशनल असेंबली तब से अवरुद्ध है,जब से उसे वाशिंगटन द्वारा सत्ता परिवर्तन का एक हथियार बना दिया गया है। अब हो रहे इस चुनाव के साथ उम्मीद है कि यह विधायी प्रक्रिया फिर से शुरू हो। एक नयी नेशनल एसेंबली प्रमुख अधिकारियों को नियुक्त करने में सक्षम हो सकेगी और महामारी की समस्या को हल करने के लिए ज़रूरी क़ानून पर चर्चा कर सकेगी; इससे सरकार और विपक्ष के बीच उस स्वस्थ संवाद के लिए एक गुंज़ाइश बनने की उम्मीद है,जिसे वाशिंगटन और गुआदो ने हड़प लिया है।

बहुत सारी चीज़ों के अलावे,यह नेशनल असेंबली यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित उन सरकारों और बैंकों को एक क़ानूनी चुनौती दे सकेगी,जिनके पास वेनेज़ुएला की कम से कम  6 बिलियन डॉलर के फ़ंड और सिटगो की तरह ज़ब्त संपत्ति है; अब उनके पास अपने कार्यों को अंजाम देने के एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल करने के लिए गुआदो की कथित अंतरिम सरकार भी नहीं होगी।

संक्षेप में कहा जा सकता है कि वेनेज़ुएला में हो रहा चुनाव ही उसकी जीत है।

इस आर्टिकल को ग्लोबट्रॉट्टर की तरफ़ से तैयार किया गया है।

विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वह ग्लोबट्रॉट्टर में एक राइटिंग फ़ेलो और मुख्य संवाददाता हैं। वे लेफ्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। वह चीन के रेनमिन विश्वविद्यालय स्थित वित्तीय अध्ययन के चोंगयांग इंस्टीट्यूट में एक वरिष्ठ नॉन-रेज़िडेंट फ़ेलो हैं। उन्होंने 20 से ज़्यादा किताबें लिखी हैं, जिनमें ‘द डार्कर नेशंस’ और ‘द पुअरर नेशंस’ शामिल हैं। उनकी नवीनतम किताब,‘वाशिंगटन बुल्लेट्स’ है, जिसकी भूमिका ईवो मोरालेस आयमा द्वारा लिखी गयी है।

कार्लोस रॉन वेनेज़ुएला के उत्तरी अमेरिका के विदेश मामलों के उप-मंत्री और सिमॉन बोलिवर इंस्टीट्यूट फ़ॉर पीस एंड सॉलिडैरिटी एमॉंग पीपुल्स के अध्यक्ष हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Venezuela Wins Simply by Holding an Election

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