सीरिया पर तुर्की के आक्रमण से क्या हासिल होगा?
अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने रविवार 6 अक्टूबर को तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप तईप एर्दोगन को साफ़ शब्दों में कह दिया कि अमेरीका के सैनिक सीरिया के अंदर सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेस का बचाव नहीं करेंगे, जिन्होंने तुर्की की सीमा से सटे हिस्से में सीरिया के भीतर अपना एक एन्क्लेव बनाया हुआ है।
सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेस (SDF) काफ़ी हद तक कुर्द समुहों से बनी हैं, जिन्होंने मुख्य रूप से उत्तरी सीरिया के कुर्द क्षेत्र की रक्षा के लिए इस सशस्त्र बल की स्थापना की थी। जब अमेरिका ने अपना हमला इस्लामिक स्टेट (ISIS) पर शुरू किया था, तो सीरियन डेमोक्रेटिक फ़ोर्सेस (SDF) अमेरिकी हमलावरों के नीचे ज़मीनी ताक़त के रूप में उभरी थीं। अब, अमेरिका ने एसडीएफ़ द्वारा दिए गए बलिदान को सरे आम धोखा देने का फ़ैसला कर लिया है।
तुर्की ने पहले भी महानदी (युफ्रेट्स) के घाटों के साथ पूर्वी सीरिया के अंदर एसडीएफ़ और अन्य कुर्द समूहों पर हमला करने की धमकी दी थी। वर्ष 2014 और 2015 में, तुर्की ने संकेत दिया था कि वह सीरिया पर आक्रमण/घुसपैठ करेगा। अगस्त 2016 में, तुर्की की सेना ने अमेरिकी द्वारा दी गई हवाई सुरक्षा के तहत सीमा पार की थी। एर्दोगन ने उस समय कहा था कि तुर्की सेना आइसिस और कुर्द मिलिशिया के समूहों, पीपल्स प्रोटेक्शन यूनिट्स (YPG) दोनों पर हमला करेगी। यह मिलिटरी ऑपरेशन, जो मुख्य रूप से सीरिया-तुर्की सीमा के साथ सटे सीरिया के शहर जाराबुलस के आसपास था, को 'ऑपरेशन युफ्रेट्स शील्ड' के नाम से जाना जाता था।
वर्ष 2016 में किए गए हस्तक्षेप ने दो और सैनिक हस्तक्षेपों के लिए दरवाज़ा खोल दिया था जिसमें उत्तरी इडलीब (2017) और अफरीन (2018) था, आख़िरी ऑपरेशन का नकली नाम- ऑपरेशन ओलिव ब्रांच रखा गया था। ये एसडीएफ़ और अन्य सीरियाई बलों पर चौतरफ़ा युद्ध न होकर काफ़ी लक्षित हमले थे।
अब, एर्दोगन की सरकार एसडीएफ़ के ख़िलाफ़ बड़े सैन्य हमले के लिए सीरिया में प्रवेश करने की तैयारी कर रही है। इस दरमियान अमेरिकी बलों ने पहले से ही तेल अबीद और रास अल-ऐन दोनों स्थानों की ऑब्ज़र्वेशन पोस्ट को छोड़ने का फ़ैसला कर लिया है – सनद रहे कि यह वह जगह है जहां अमेरिका ने तुर्की सैनिकों पर निगरानी रखी थी और एसडीएफ़ को तुर्की के हमलों से बचा लिया था। सुरक्षा की उस ढाल को अब हटा दिया गया है। अमेरिकी सेना अभी भी उस क्षेत्र में बनी हुई है, लेकिन इस बात का संकेत दिया जा रहा है कि वे ख़ुद को एसडीएफ़ के मुख्य केंद्रों से हटा लेंगे।
एसडीएफ़ अब तुर्की सेना की भव्य ताक़त के सामने काफ़ी असुरक्षित हो गया है। लेकिन एसडीएफ़ के राजनीतिक नेताओं का कहना है कि वे इस सब के बावजूद अपने एन्क्लेव की "हर क़ीमत पर” रक्षा करेंगे, जिसे रोजावा के नाम से जाना जाता है। पिछले साल, सीरियाई डेमोक्रेटिक काउंसिल के उपाध्यक्ष इल्हाम अहमद ने चेतावनी दी थी कि तुर्की इस "सुरक्षित क्षेत्र" में प्रवेश करने के लिए दृढ़-संकल्प है, (या जिसे अमेरिका "सुरक्षा तंत्र" कहता है)। इस हाल मे की गई घोषणा के पहले, अहमद ने कहा था कि तुर्की रोजावा पर आक्रमण करेगा, एसडीएफ़ पर भी कठोर हमला करेगा और उन तीस लाख सीरियाई शरणार्थियों को फिर से बसाएगा जो अब तुर्की में रह रहे हैं। जबकि इन शरणार्थियों का युफ्रेट्स नदी के पूर्व के क्षेत्र से कोई भी नाता नहीं है।
तुर्की सरकार न केवल रोजावा का सर्वनाश करेगी, बल्कि बड़ी संख्या में ग़ैर-कुर्द सीरियाई लोगों को यहां बसाकर इस क्षेत्र की जातीय सफ़ाई भी करेगी। यहां यह भी याद रखना महत्वपूर्ण है कि सीरियाई कुर्दों की आबादी लगभग बीस लाख है। अहमद ने रोजावा से सीरियाई कुर्दों को विलुप्त करने के प्रयास के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की है।
इस क्षेत्र में तुर्की के आक्रमण/घुसपैठ का क्या अर्थ होगा और उसका क्या असर होगा?
1. यह हमला रोजावा के सीरियाई कुर्द एन्क्लेव को तबाह कर देगा। अपनी सभी तरह की सीमाओं के बावजूद, रोजावा की सरकार ने आर्थिक और सांस्कृतिक लोकतंत्र सहित लोकतंत्र के विभिन्न स्वरूपों का प्रयोग किया है।
2. यह हमला यूफ्रेट्स नदी के पुर्वी क्षेत्र की सांस्कृतिक दुनिया की सामाजिक अखंडता को नष्ट कर देगा। सीरिया के पश्चिमी क्षेत्र से बड़े पैमाने पर तीस लाख सीरियाई जनता को इस क्षेत्र में लाने से इस क्षेत्र का चरित्र बदल जाएगा, जो सीरियाई कुर्दों की मातृभूमि है। आने वाले समय में इस तरह का ग़ैर सीरियाई जनसंख्या हस्तांतरण सीरियाई कुर्द समाज का विनाश कर सकता है। इसके अलावा, अगर तुर्की ऐसा करता है, तो वह चौथी जेनेवा कन्वेंशन (1949) के अनुच्छेद 49 का उल्लंघन कर रहा होगा।
3. यह सीरियाई सशस्त्र बलों को अपनी सीमाओं की रक्षा करने के लिए इस क्षेत्र में सेना का मार्च (यानी अपनी रक्षा में सैनिक कार्यवाही) करने के लिए मजबूर कर सकता है। ईरानी संसद में, अपने एक बयान में विदेश मंत्री मोहम्मद जवाद ज़रीफ़ ने कहा है कि तुर्की को सीरिया की सीमाओं का सम्मान करना चाहिए, और तुर्की को सीरियाई सशस्त्र बलों को सीमा पर अपनी उपस्थिति स्थापित करने की अनुमति दे देनी चाहिए। यदि सीरियाई सेना सीमा पर हरकत में आती है, तो इससे सीरिया और तुर्की के बीच टकराव की संभावना खुल जाएगी, जिससे ईरान, रूस और संयुक्त राज्य अमेरिका के सशस्त्र बलों के बीच तनाव पैदा हो सकता है।
4. वर्ष 2017 के बाद से, ईरान, रूस, सीरिया और तुर्की अस्ताना समूह का हिस्सा रहे हैं, जिसका उद्देश्य सीरिया में ख़ूनी युद्ध को नीचे लाने का एक तरीक़ा खोजना था। सीरिया में तुर्की का हस्तक्षेप सीरिया के अंदर दोबारा से युद्ध की संभावना को बढ़ाएगा। तुर्की के समर्थक समूह जो सीरियाई सरकार पर हमले वालो में से थे, दमिश्क से इस सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए उनके प्रयास एक बार फिर बढ़ जाएंगे और उन्हें तैयारी करने के लिए उत्साहित करेगा।
5. यदि ईरान और अमेरिकी सेना सीरिया में टकराते हैं, तो क्या यह अमेरिका को ईरान के ख़िलाफ़ पूर्ण युद्ध शुरू करने का एक और कारण देगा, जिसमें ईरान पर भारी बमबारी भी शामिल होगी?
6. यह हमला एर्दोगन की बहुत ही कमज़ोर सरकार को मज़बूती दे देगा।
इन घटनाओं से चिंतित होना जायज़ बात है। संयुक्त राष्ट्र ने स्थिति का बहुत सही आंकलन किया है। सीरिया के लिए नियुक्त संयुक्त राष्ट्र के मानवीय समन्वयक-पनोस मौमटज़िस ने कहा, “हम नहीं जानते कि क्या होने वाला है। … हम सबसे ख़राब स्थिति के लिए तैयारी कर रहे हैं। बाक़ी लोगों को भी ऐसा ही करना चाहिए।"
विजय प्रसाद लेफ़्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। ई अहमत तोनक एक अर्थशास्त्री हैं जो ट्राईकांटिनेंटल: इंस्टीट्यूट फ़ॉर सोशल रिसर्च में काम करते हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।
यह लेख Globetrotter में प्रकाशित किया गया था, जो Independent Media Institute की एक परियोजना है. .
स्रोत: Independent Media Institute
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