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एर्दोगन ने यूरेशियावाद पर ध्यान देते हुए सीरिया के संबंधों में सुधार किया

सीरिया में तुर्की के सुरक्षा मामलों का सबसे बेहतर समाधान दमिश्क के सहयोग से किया गया है। इस दिशा में पहले क़दम के रूप में एर्दोगन ने पिछले सप्ताह  कहा था कि असद सरकार को अस्थिर करना किसी भी तरह तुर्की की नीति नहीं है।
Dogu Perincek
तुर्की की वामपंथी राष्ट्रवादी पैट्रियोटिक पार्टी के अध्यक्ष डोगू पेरिन्सेक कथित तौर पर सीरिया में प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व कर रहे हैं (फाइल फोटो)

सोमवार को रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने 15-16 सितंबर को समरकंद में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के शिखर सम्मेलन के बारे में उज्बेकिस्तान के राष्ट्रपति शवकत मिर्जियोयेव से बात की। आगामी कार्यक्रम को लेकर यह चौथे या पांचवें दौर की दोनों नेताओं के बीच बातचीत होगी।

पुतिन और मिर्जियोयेव ने एससीओ शिखर सम्मेलन के मौके पर संभवतः इस बड़े कार्यक्रम को लेकर एक-दूसरे से अपने-अपने मुद्दों को साझा किया। तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन और उनके सीरियाई समकक्ष बशर अल-असद के बीच हुई बैठक सीरिया में संघर्ष में सफलता का संकेत देती है।

जैसा कि हाल ही में मैने 'रसिया-टर्की रीसेट इजेज रिजनल टेंशन’ शीर्षक के लेख में लिखा था कि 5 अगस्त को सोची में पुतिन और एर्दोगन के बीच हुई बैठक का एक बड़ा परिणाम यह था कि अंकारा और दमिश्क के बीच सुलह हो सकती है। यात्रा समाप्त कर वापसी पर एर्दोगन ने कहा था कि वह असद से संपर्क करने जा रहे हैं। हालांकि, शायद ही किसी ने गौर किया हो कि पुतिन ने एर्दोगन और असद को आगामी एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए भी आमंत्रित किया था।

दरअसल, समरकंद में शिखर सम्मेलन की मेजबानी करने वाले मिर्जियोयेव को इसके बारे में पूरी जानकारी है। पुतिन और मिर्जियोयेव ने गर्मजोशी और आपसी सम्मान के साथ क़रीबी कामकाजी संबंध बनाया है जो ताशकंद को रूस की मध्य एशियाई रणनीतियों में प्रमुख राजधानी के रूप में वापस दर्जा देता है जैसा कि यह ऐतिहासिक रूप से ज़ारिस्ट युग से जुड़ा हुआ है।

मॉस्को ने मध्य एशियाई क्षेत्र में अशांति फैलाने के लिए हाल के अमेरिकी प्रयासों को कमज़ोर कर दिया है जबकि क्रेमलिन की नजर यूक्रेन पर टिकी हुई है। (पुतिन के लंबे समय से सहयोगी रूस की सुरक्षा परिषद के सचिव निकोलई पेत्रुशेव ने पिछले हफ्ते मध्य एशिया में वर्ण क्रांति (कलर रिवॉल्यूशन) शुरू करने के अमेरिकी प्रयासों में एससीओ सुरक्षा ज़ार की एक बैठक में हमला बोला।)

सीरिया वापसी पर पश्चिमी मीडिया ने सोची में पुतिन-एर्दोगन शिखर सम्मेलन का आकलन करते हुए मुख्य चीजों को भूल गया। सोची में लेटमोटिफ ग्रेटर मिड्डल ईस्ट में क्षेत्रीय सुरक्षा थी। ग्रेट मिड्डल ईस्ट लेवेंट से लेकर मध्य एशिया और पामिरों तक फैली विशाल पट्टी है जो झिंजियांग की सीमा से लगा है।

द गार्डियन अख़बार सोची में हर एक स्तर पर चार घंटे की "गुप्त बैठक" के पीछे की वास्तविक मुद्दे को करीब से समझ रहा था लेकिन कुछ बातों को जानकर उस मुद्दे को ही गंवा दिया। उसके सामने ये मामला आया कि "बैठक शुरू होने से पहले, रूसी पत्रकारों को पता चला कि चेचन नेता रमजान कादिरोव उपस्थित थे जिन्होंने सीरिया और यूक्रेन दोनों में अपनी कमान में सेना भेजी है।"

पुतिन-एर्दोगन का समझौता हितों के संतुलन पर टिका हुआ है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि मतभेद (जो काफ़ी ज़्यादा हैं) विवादों में न बदल जाएं। इस तरह, पुतिन आज भी एर्दोगन के मुद्दों के प्रति सजग हैं जो तुर्की की अर्थव्यवस्था की स्थिति और आगामी राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों (दोनों परस्पर संबंधित हैं) पर आधारित हैं।

बालकन से लेकर उत्तरी अफ्रीका और फ़ारस की खाड़ी से लेकर काकेशस तक एर्दोगन का हस्तक्षेप है लेकिन जो चीज उन्हें सबसे ज़्यादा चिंतित करती है वह सीरिया की समस्या है जिसके गंभीर निहितार्थ हैं क्योंकि वह नए सिरे से जनादेश लेने की तैयारी कर रहे हैं। एर्दोगन के लिए सीरिया एक रूसी गुड़िया (मैट्रिओस्का डॉलः घटते आकार की समस्याओं का एक सेट जो एक दूसरे के भीतर हो) की तरह है। पुतिन के अलावा और कौन मैट्रिओस्का डॉल को बेहतर ढंग से समझ सकता था?

रूसी विचार में मैट्रिओस्का डॉल अन्य सभी मूल्यों से ऊपर सत्य और उद्देश्य की खोज का प्रतीक है। इसी तरह एर्दोगन के साथ पुतिन के विचारों में सीरिया प्रमुखता से आता है। पीकेके और कुर्दिश अलगाववाद; यूएस-कुर्द का ख़तरनाक गठबंधन; इजरायली फुटप्रिंट; तुर्की-अमेरिकी संघर्ष (2016 में असफल अमेरिका समर्थित तख्तापलट के बाद) जैसे ये सभी मुद्दे तुर्की की अहम मुद्दों को प्रभावित करते हैं।

सोची में पुतिन एर्दोगन को समझा सकते थे कि उनके मुद्दों को सुलझाने का सबसे बेहतर तरीक़ा असद के साथ बातचीत को आगे बढ़ाना होगा। बेशक, एर्दोगन और असद एक दूसरे के लिए अजनबी नहीं हैं। दोनों परिवार वर्ष 2011 तक एक साथ छुट्टियां मनाते थे जब बराक ओबामा और जो बाइडेन ने कुछ कारणों के चलते एर्दोगन को ऐसा करने से रोक दिया।

मूल रूप से तुर्की-रूसी विचार है कि सीरियाई सरकार की संप्रभुता को मजबूत करने से क्षेत्रीय सुरक्षा मजबूत होगी और अलगाववाद तथा आतंकवाद से लड़ने में अंकारा और दमिश्क की समान रुचि है। वास्तव में, स्वाभाविक परिणाम यह है कि जितना अधिक समय तक अमेरिकी कब्जा जारी रहेगा उत्तरी सीरिया में "कुर्दिसों" के मजबूत होने का ख़तरा उतना ही अधिक होगा।

लेकिन अमेरिका अपने क़ब्ज़े को छोड़ने की जल्दी में नहीं है क्योंकि सैनिक हताहत नहीं हो रहे हैं; बड़े पैमाने पर तेल की तस्करी व्यवसाय को "स्व-वित्तपोषित" बनाती है (प्राचीन रोमन सेनाओं की तरह); और यह क्षेत्र सीरिया की सबसे उपजाऊ नदी घाटियां भी है।

सीरिया में एर्दोगन की सुरक्षा चिंताओं को दमिश्क के सहयोग से सबसे अच्छी तरह से सुलझाया गया है। इस दिशा में पहले निर्णय के रूप में उन्होंने पिछले सप्ताह सार्वजनिक रूप से कहा कि असद सरकार को अस्थिर करना किसी भी तरह तुर्की की नीति नहीं है।

इस बीच, रिपोर्ट सामने आई है कि पैट्रियटिक पार्टी के नेता डोगू पेरिन्सेक के नेतृत्व में पूर्व मंत्रियों और राजनयिकों का तुर्की का एक प्रतिनिधिमंडल तुर्की-सीरियाई संबंधों की बहाली के लिए असद के साथ बातचीत करने के लिए दमिश्क जाने की योजना बना रहा है। दिलचस्प बात यह है कि तब से तेहरान ने तुर्की और सीरिया के बीच संबंधों के फिर से बेहतर बनाने का आह्वान किया है।

अब, पेरिन्सेक की मौजूदगी इसे अर्ध-आधिकारिक ट्रैक 1.5 मिशन बना रही है। पेरिन्सेक एक खानदानी मार्क्सवादी के साथ एक अनुभवी राजनेता हैं जो "केमलिस्ट्स" और कुर्दिश पीकेके दोनों से जुड़े थे। उन्होंने 2014 में जेल से रिहा होने तक 15 साल जेल में बिताया और बदलाव के लिए एर्दोगन प्रशासन के सहयोगी रहे।

हालांकि, पेरिन्सेक के वैचारिक रचना में एक सुसंगत विशेषता "यूरेशियनवाद" की उनकी वकालत रही है। "यूरेशियनवाद" अर्थात् तुर्की को अटलांटिक प्रणाली से मुंह मोड़ लेना चाहिए, एक स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करना चाहिए और रूस-चीन समझौते के साथ काम करने के लिए यूरेशिया की ओर बढ़ना चाहिए।

बिना किसी संदेह के पेरिन्सेक ने खुले दिमाग से काम किया क्योंकि एर्दोगन सरकार के भीतर एक धारणा मजबूत हो रही थी कि पश्चिमी शक्तियां विशेष रूप से अमेरिका कुर्दिश अलगाववाद की मदद के ज़रिए तुर्की को कमजोर और विभाजित करने की कोशिश कर रहा है, जबकि रूस और चीन तुर्की के आंतरिक मामलों में दख़ल देने में परहेज़ करते हैं।

पेरिन्सेक और रूसी दार्शनिक व विचारक अलेक्सांद्र डुगिन कई वर्षों बाद बेहद क़रीब आए जो उनके दृढ़ विश्वास का परिणाम है कि रूसी राष्ट्रवाद और तुर्की राष्ट्रवाद का "यूरेशियनवाद" की विचारधारा में एक मिलने का स्थान है। वे एक से ज़्यादा बार मिल चुके हैं। और डुगिन की तरह पेरिन्सेक को भी आज एर्दोगन के आसपास के सत्ता मंडली के प्रभाव का श्रेय दिया जाता है।

प्रसिद्ध रूसी दार्शनिक अलेक्सांद्र डुगिन के साथ पेरिन्सेक (बाएं)

सीरियाई प्रश्न को लेकर "यूरेशियनवादी" परिप्रेक्ष्य की एक प्रस्तुति तुर्की सशस्त्र बलों की सैन्य खुफिया (2007-2011) के पूर्व प्रमुख सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल इस्माइल हक्की पेकिन के हालिया साक्षात्कार में मौजूद है। हक्की पेकिन पेरिन्सेक की पार्टी के उपाध्यक्ष डिप्टी हुआ करते थे।

तथाकथित एशिया एन्यू इनिशिएटिव में तुर्की की विदेश नीति में पेरिन्सेक के प्रभाव को देखना संभव है, जिसका अनावरण तीन साल पहले अंकारा में तुर्की राजदूतों की वार्षिक बैठक में किया गया था।

मूल रूप से अंग्रेज़ी में प्रकाशित लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करेंः
Erdogan Repairs Syria Ties With Eye on Eurasianism

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