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क्यों रूस का ऑपरेशन डोंबास और काला सागर क्षेत्र पर केंद्रित है?

पुतिन को डोंबास और काला सागर क्षेत्र में तैनात नव-नाजीवादी हथियारबंद गिरोहों की तरह बर्ताव करने वाली नागरिक सेना से भी बदला लेना है, जिसने इस क्षेत्र में रूसी समुदाय के लोगों के ख़िलाफ़ बहुत अत्याचार किए हैं। यह रूस के लिए एक अहम भावनात्मक मुद्दा है।
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दूसरे विश्वयुद्ध के अंतिम चरण में ब्रिटिश-अमेरिकी बमबारी के बाद जर्मनी का शहर ड्रेसडेन

एक वरिष्ठ भारतीय पत्रकार और वैश्विक स्तर के युद्ध संवाददाता ने हाल में विनोदपूर्ण ढंग से लिखा कि जब उन्होंने बीबीसी के लिसे डॉउसेट को एक हफ़्ते पहले कीव में उतरते देखा, तो उन्हें कॉर्बेट राष्ट्रीय उद्यान के उन बंदरों की चीखों की याद आ गई, जो जंगल को सावधान करते हैं कि बाघ आने वाला है। उन्होंने लिखा, "जैसे ही मैंने डॉउसेट को देखा, मुझे समझ आ गया था कि अब यूक्रेन में संघर्ष होने वाला है।"

लेकिन इस बार बीबीसी ने गलती कर दिया। ब्रिटेन की खुफ़िया संस्था एमआई-6 को शायद यह अनुमान था कि रूस कीव पर उसी तरीके का हमला करेगा, जैसा ब्रिटेन-अमेरिका ने 1945 में 13 से 15 फरवरी के बीच ड्रेस्डेन पर बमबारी कर किया था। तब 1300 भारी बमवर्षकों ने 3,900 टन से ज़्यादा बम शहर पर गिराए थे, जिसमें अनुमानित तौरपर 22,700 से 25,000 लोग मारे गए थे। 

बल्कि एक पूरा हफ़्ता निकल चुका है और रूसी बमवर्षक कहीं दिखाई नहीं दिए हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि कीव प्राथमिक लक्ष्य नहीं है। ऐसा लगता है रूस सोच रहा है कि युद्ध के चलते शहर अपने आप हथियार डाल देगा, जो युद्ध का अंत साबित होगा, जिसके बाद सीआईए द्वारा प्रायोजित तख़्तापलट के बाद, फरवरी 2014 में ताकत में आई सत्ता ढह जाएगी।  

अपने पश्चिमी सलाहकारों की सलाह पर काम करते हुए यूक्रेन की सत्ता द्वारा यूक्रेन के नागरिकों को हथियार देने का विचार बेहद नकारात्मक प्रोपगेंडा वाला दिखावा है। लेकिन इसके बुरे नतीज़े आने शुरू हो गए हैं। कीव की गलियों में हथियारबंद गैंग घूम रहे हैं, जो तनाव को बढ़ाने का ही काम कर रहे हैं। अगर यह जारी रहा तो किसी भी वक़्त सेना द्वारा तख़्तापलट की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। 

रूसी फ़ौजें, सत्ता में रहने वाली यूक्रेन की सेना को शायद ही "दुश्मन" मानकर उनसे संघर्ष करें, सिवाए कुछ नव-नाजी संगठनों के, जो खार्किव और मारिउपॉल व डोंबास क्षेत्र के दक्षिण-पूर्वी इलाके में सक्रिय हैं। 

यह स्पष्ट है कि रूस यूक्रेन को तबाह करना नहीं चाहता। उसका लक्ष्य यूक्रेन के नेतृत्व में यूक्रेन की संप्रभुता को दोबारा स्थापित करना और किसी भी पश्चिमी आक्रमण के खिलाफ़ बफ़र जोन बनाना है।

आज फ्रांस, जर्मनी और ब्रिटेन की सेना का बजट रूस के बजट का तीन गुना है। जर्मनी का फिर से सशस्त्रीकरण निश्चित तौर पर चिंताएं पैदा कर रहा होगा। यूक्रेन में 2014 के बाद से फ्रांस और जर्मनी के गहरे हस्तक्षेप के बारे में सार्वजनिक तौर पर ज़्यादा जानकारी उपलब्ध नहीं कराई गई है। वे अपना सिर नीचे रखते हुए, लंबे संघर्ष की तैयारी कर रहे थे। यह उनका मॉस्को के प्रति गुस्से को प्रदर्शित करता है।

जब तक इस जटिल पहेली को नहीं समझा जाता, तब तक मौजूदा रूसी अभियान की समझ नहीं बनाई जा सकती। अब तक जितने संकेत मिले हैं, उनसे रूसी अभियान के तीन उद्देश्य समझ में आते हैं- 

1) कीव और दूसरे बड़े शहरों को हथियार डालने पर मजबूर करना (नुकसान पहुंचाना)

2) पूर्व में तैनात यूक्रेनी फौजों का रास्ता बंद करना, ताकि वे कीव की तरफ वापस ना जा पाएं।

3) डोंबास और काला सागर की उत्तरी तटरेखा में अपनी मजबूत स्थिति बनाना

दिए गए नक्शे में सोमवार तक यूक्रेन की स्थिति बताई गई है। यूक्रेन के दक्षिणपूर्वी क्षेत्र डोंबास और काला सागर की तटरेखा में रूसी अभियान जारी है, लेकिन इसपर ध्यान नहीं दिया जा रहा है। प्रोपगेंडा फैलाने वाली पश्चिमी मीडिया सनसनीखेज कहानियों पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जबकि दक्षिण और दक्षिण-पूर्वी यूक्रेन में क्षेत्रीय संतुलन अनुषांगिक है।

दिलचस्प तौर पर मॉस्को ने पूर्वी यूक्रेन में लुगांस्क और डोनेत्सक नाम के दो क्षेत्रों को स्वतंत्र राज्यों के तौर पर मान्यता दी है। यह दो राज्य जितनी सीमा का दावा करते थे, उतने क्षेत्र की मान्यता उन्हें रूस द्वारा दी गई है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा कि मॉस्को ने इन दोनों क्षेत्रों के बुनियादी दस्तावेज़ों को मान्यता दी है। 

इसका क्या मतलब हुआ? मतलब रूस ने दोनों अलगाववादी गणराज्यों को उतनी सीमा तक मान्यता दी है, जहां तक उनका संविधान 2014 में इन गणराज्यों की "स्थापना" पर उनकी सीमा मानता था। इसके बाद इन गणराज्यों को यूक्रेन (नव-नाजी) की सेनाओं ने पीछे तक ढकेल दिया, इस दौरान रूसी आबादी के खिलाफ़ संगठित हिंसा हुई। तो ऐसा लगता है कि रूसी अभियान का मक़सद लुगांस्क और डोनेत्स्क की खोई हुई ज़मीन को वापस दिलवाना भी है। 

इस बीच मॉस्को को डोंबास और काला सागर क्षेत्र में तैनात नव-नाजीवादी नागरिक सेना से भी अपना बदला लेना है, जिन्होंने बेबस रूसी समुदायों के खिलाफ़ भयावह अत्याचार किए हैं। यह रूस के लिए एक भावनात्मक मुद्दा है। पुतिन ने इसे नरसंहार की संज्ञा दी थी। इन अत्याचारों पर बनाया गया एक डोज़ियर अमेरिका को भेजा जा चुका है।

रूस के नाजीवादी विरोधी इस अभियान का मक़सद नव-नाजियों को क्रूरता से दबाना है। रूसी इंटेलीजेंस ने एक "हिट लिस्ट" तैयार की है, जिसमें कुख्यात नेता शामिल हैं, जिन्होंने रूसी आबादी पर भयंकर अत्याचार किए हैं।

मंगलवार तक रूस की सेना दक्षिण में खेरसन ओब्लास्ट तक पहुंच चुकी है, जो काला सागर और नीपर नदी पर स्थित एक अहम बंदरगाह है, जहाज़ बनाने वाले बड़े उद्योग भी यहां मौजूद हैं। पूर्व में रणनीतिक तौर पर अहम माउरीपॉल शहर पर भी कब्ज़ा कर लिया गया है। यह काला सागर के तटीय इलाके में स्थित एक अहम इस्पात उद्योग केंद्र है।

रूसी फौज़ों ने यूक्रेन के खेरसन क्षेत्र के एक अहम कंक्रीट बांध को भी ध्वस्त किया है, जो क्रीमिया को पानी की आपूर्ति रोकने के लिए 2014 में बनाया गया था। यह एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा था। 

खेरसन, बड़े बंदरगाह शहर ओडेसा (इसे कैथरीन द ग्रेट ने बसाया था) से 145 किलोमीटर दूर है। ओडेसा में बड़ी रूसी आबादी रहती है, हालांकि हाल के वर्षों में यहां यूक्रेनी आबादी को बसाने की कोशिश की गई है। अब यह देखा जाना बाकी है कि क्या रूस का अभियान आगे काला सागर तटीय इलाकों और ट्रांसनिस्ट्रिया (मॉलडोवा में) के अलगाववादी इलाके में पहुंचता है या नहीं, जहां एक तिहाई आबादी रूसी है। मॉलडोवा और यूक्रेन की सीमा के बीच में पतली पट्टी, ट्रांसनिस्ट्रिया व्यापक क्षेत्र में रूसी हितों के लिए अड्डे का काम करता है।

मॉस्को पड़ोसी रोमानिया में अमेरिकी सैन्य अड्डे को बड़ा ख़तरा मानता है, इसलिए ट्रांसनिस्ट्रिया में अपनी सैन्य को उपस्थिति को आज सबसे ज़्यादा जरूरी मानता है। रोस्तोव-ऑन-डोव (रूस) से ट्रांसनिस्ट्रिया (मॉलडोवा) तक, काले सागर की तटीय रेखा के साथ चलता रास्ता रूस के लिए एक अहम संपदा हो सकती है।

इस पूरे घटनाक्रम में एक अहम चीज को नहीं भुलाया जा सकता। डोंबास यूक्रेन के इस्पात उद्योग और अनाज आपूर्ति का सबसे बड़ा केंद्र है। यह बेहद गहन औद्योगिक स्थापनाओं वाला इलाका है। काला सागर के बंदरगाहों से जुड़ाव के बाद इसका अच्छा आर्थिक विकास का भविष्य हो सकता है।

ऊपर यूक्रेन के क्षेत्रीय आर्थिक विकास का नक्शा, डोंबास में मजबूत औद्योगिक आधार को प्रदर्शित करता है। रूस का एक प्रमुख उद्देश्य यह भी होगा कि लुगांस्क और डोंबास को आर्थिक तौर पर संपन्न बनाया जाए, ताकि यह रूस पर वित्त के लिेए पूर्णत: निर्भर न हों।

साफ़ है कि रूस के अभियान की योजना बनाने में बहुत सोच-विचार किया गया है, जिसकी शुरुआत लुगांस्क और डोनेत्स्क को स्वतंत्र राज्यों के तौर पर मान्यता देने के ऐतिहासिक फ़ैसले से हुई। बर्लिन और पेरिस जिस तरीके से प्रतिक्रिया दे रहे हैं, उससे भी इसकी पुष्टि हो जाती है।

पुतिन के दिमाग में इसकी बड़ी तस्वीर है कि यूक्रेन को वापस उसका सबसे संपन्न पूर्व सोवियत संघीय देश होने का दर्जा दिलाया जाए, इसलिए उन्होंने सोच-विचारकर अपने सबसे विश्वस्त लोगों में से एक व्लादिमीर मेदिंस्की को यूक्रेन के अधिकारियों के साथ बातचीत करने के लिए चुना है। मेदिंस्की का जन्म यूक्रेन में हुआ था। 

एक ख्यात राजनीतिक वैज्ञानिक और इतिहासकार के साथ-साथ रूस की सत्ताधारी पार्टी में वरिष्ठ नेता होने के अलावा उनका उपनाम भी बेहद ख्यात है। दरअसल उनके पिता, रोस्तिस्लाव मेदिंस्की सोवियत सेना में कर्नल थे, उन्होंने चर्नोबिल परमाणु संयंत्र में 1986 में हुई दुर्घटना के प्रबंधन में अहम किरदार अदा किया था और वे राष्ट्रीय हीरो बने थे। 

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिेए लिंक पर क्लिक करें।

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